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मैं दिल्ली हॅू मुझे मुर्दा समझ कर यूं ना भागो बेटो

तुम जूं कर तरह मुझे, मुर्दा समझ कर यूं ना भागो बेटों
मै दिल्ली हॅू कई बार उजड कर भी सदा आबाद रहती हॅू।
आज कोरोना से भयभीत होकर भागते हुए कह रहे हो कि
तेरे शहरों के महलों में भी बेकाम घुटकर जीने से बेहतर है
अपने गांव की झोपड़ी में खुली हवा में पानी पी कर जीना।
पर सुन मेने आज तक न किसी को बुलाया व न भगाया।
यहां जो भी आया उसे मेने हर हाल में आगे ही बढाया।
तुम्हैं क्या नहीं दिया यहां मैेने उजले दिनों में भागने वालो
तुम जब यहां आये थे तब लाये ही क्या थे अपने साथ?
यहां तुमको दौलत शौहरत के साथ सम्मान भी दिया मैने।
तुम गांव अपने जाओं पर यों न भाग कर जाओ मेरे बेटो
कोरोना के दंश से पीडित मुझे छोड़कर ंजूूं की तरह जाना।
यह किसी सपूत किसी वीर का  काम तो नहीं हो सकता
पर याद रख मैं दिल्ली हॅू जो झंझावतों से भी नहीं मिटती
फिर आबाद हूूॅंगी करोड़ों जरूरतमंदो को फिर आश्रय दूंगी
मत भूलना मैं दिल्ली हूॅ जो उजड़कर भी आबाद होती हॅू

 

-देवसिंह रावत

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