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झारखण्ड में भी कमजोर नेतृत्व देना भाजपा को पड़ा भारी

 झारखण्ड में भी डूबी भाजपा की लुटिया,मुख्यमंत्री  बनेगेे   हेमंत सोरेन!

।झारखण्ड विधानसभा चुनाव 2019 के घोषित हुए परिणाम, कुल सीट’81,   झामुमो-कांग्रेस गठबंधन(झामुमो-30, कांग्रेस-16  राजद-1)-47, भाजपा- 25ए जेवीएम-3,आजसू-2 व अन्य-4

रांची(प्याउ)। महाराष्ट्र के बाद झारखण्ड की भी सत्ता भाजपा के हाथों से निकल गयी।  झारखण्ड विधानसभा चुनाव 2019 के घोषित हुए परिणाम, कुल सीट’81  -झामुमो-कांग्रेस गठबंधन(झामुमो-30, कांग्रेस-16 राजद-1)-47, भाजपा- 25ए जेवीएम-3,आजसू-2 व अन्य-4 ।

वहीं  मुख्यमंत्री रघुवर दास जसमेदपुर पूर्व से 15,000 से अधिक मतों से  हार गये । इस सीट पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव बल्लभ  भी चुनावी दंगल में खड़े थे ।वह तीसरे स्थान पर रहे। मुख्यमंत्री को परास्त करने वाले भाजपा के विद्रोही उम्मीदवार सरयू राय ने मुख्यमंत्री को न केवल 15,000 से अधिक मतों से मार दिया अपितु उन्होंने यह साबित कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी में टिकट वितरण भी सही ढंग से नहीं हुआ था ।उल्लेखनीय है कि सरयू प्रसाद भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता थे और उनको इस चुनाव में जानबूझकर चुनाव लड़ने से वंचित किया गया था। इससे कुपित होकर वह मुख्यमंत्री के खिलाफ ही दंगल में उतर गए और उन्होंने अकेले दम पर मुख्यमंत्री को चारों खाने चित कर भाजपा के संगठन को भी एक प्रकार से बेनकाब कर दिया। जो जमीनी और समर्थ कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करता है ।भाजपा के ञकदञवर नेता सरयू राय को प्रत्याशी न बनाने भाजपा के साथ खुद मुख्यमंत्री के लिए एक बडी भूल साबित हुई। सरयू राय ने इससे आहत होकर विद्रोही प्रत्याशी के रूप में मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनावी दंगल में उतर कर उनकी लूटिया ही डूबो दी।धनवार से बाबू लाल मरांडी जीते,  सिल्ली से आजसू के नेता सुदेश मेहतो जीते।झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि भाजपा विरोधी मतों का धुव्रीकरण हुआ। वहीं दूमका व वरेेेहट से हेमंत सोरेन चुनाव  जीत गए ।
पलामू में 9, संथाल 18, उतरी छोटा नागपुर-’25, दक्षिणी छोटा नागपुर-15,  कोल्हान-14 सीटें हैं । प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों मे झामुमो अपना परचम लहराने में सफल रहा ।संस्थाल में भी झामुमो ने भाजपा पर भारी नजर आयी। दक्षिणी छोटा नागपुर  व  उतरी छोटा नागपुर में भाजपा व झामुमो की टक्कर बराबर की रही।

झारखण्ड में भाजपा की हार के मुख्य कारण रहे कि भाजपा की हार के मुख्य कारण रहे कि  रघुवर दास की अलोकप्रियता, गैर आदिवासी मुख्यमंत्री, सरयू राय का विद्रोह, गठबंधन के साथ आजसू के साथ गठबंधन का टूटना, स्थानिय मुद्दों की उपेक्षा करना, भाजपा के राष्ट्रीय मुद्दे छाये रहे। वहीं भाजपा ने अपने पुराने नेता व झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी की झारखण्ड विकास मोर्चा ने भी भाजपा को सत्ताच्युत करने में इस बार भूमिका निभायी। इसी कारण झारखण्ड के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का बर्चस्व साफ नजर आया। भाजपा ने प्रांतों में मजबूत नेतृत्व की उपेक्षाकर कमजोर नेतृत्व देना भाजपा को अन्य राज्यों की तरह झारखण्ड में भी पड़ा भारी। जिस प्रकार भाजपा ने झारखण्ड के मजबूत नेता व प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी की उपेक्षा कर अर्जुन मुण्डा को बनाया, उससे बाबू लाल मरांडी ने भाजपा का दामन छोड़ कर अपनी अलग पार्टी झाविपा बनायी। जो वर्तमान विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के मतों पर सेंध मार कर उसके अरमानों पर पानी फेरती नजर आयी। वहीं 2014 में भाजपा ने अर्जन मुण्डा के बजाय गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में रघुवर दास को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने 2019 के विधानसभा चुनाव में अपनी आशाओं पर एक प्रकार से खुद ही ग्रहण लगा दिया था।आदिवासी बाहुल्य झारखण्ड में भाजपा द्वारा बलात गैर आदिवासी मुख्यमंत्री रघुवर दास को थोपना ठीक उसी प्रकार का आत्मघाती फैसला था जिस प्रकार भाजपा ने उतराखण्ड का पहला मुख्यमंत्री गैर उतराखण्ड मूल के नित्यानंद स्वामी को बना दिया था।उतर प्रदेश की जनता की तरह झारखण्ड की जनता खुद को इस कृत्य से अपमानित महसूस कर रही थी। स्वामी की तरह रघुवर दास ने भी स्थानीय जनांकांक्षाओं की घोर उपेक्षा की। झारखण्ड में उतराखण्ड से बेहतर यह रहा कि वहां भाजपा हो या स्थानीय दल दोनों ने झारखण्डी भावना का सम्मान किया। परन्तु उतराखण्ड का दुर्भाग्य यह रहा कि झारखण्ड की तरह यहां एक भी ऐसा मुख्यमंत्री नहीं रहा जिसने जनांकांक्षाओं को वरियता दी हो। खासकर राजधानी गैरसैंण, मुजफ्फरनगर काण्ड व जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई क्षेत्रों के परिसीमन आदि मुदृदों पर उतराखण्ड की तमाम सरकार व दल झारखण्ड से कोसों दूर रहे।

 

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