मुजफ्फरनगर कांड-94 के आरोपियों को 30 साल बाद भी सजा न दिये जाने के विरोध में मनाया काला दिवस
नई दिल्ली इस साल सरकार ने राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर दिल्ली क्षेत्र मे 2 से 6 अक्टू 2024 धारा 163के के तहत निषेधाज्ञा लागू की, फिर भी प्रदर्शन रद्द कर 2 महात्मा गांधी जयंती के दिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में रहने वाले 30 लाख उत्तराखंडियों ने आदिवासियों काण्ड-94 के वफ़ात को साक्षी निकेत की। इस कांड के मुख्य गुनाहगारों को 30 साल बाद भी सजा न दिए जाने के विरोध में काला दिवस के रूप में मना कर देश के हुक्मरानों को धिक्कारा।
इस कांड के 30 साल बाद भी देश की व्यवस्था इन गुल्हागारों को दंडित करने के बारे में साइंटिस्ट ने कहा है कि आंदोलनकारी इस से बेहद नाराज हैं। के बजाय पैडोनिट करके छलांग लगाई गई। इसी के विरोध में पिछले 29 साल से संसद की चौखट जंतर मंतर दिल्ली पर शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। इस साल सरकार ने राष्ट्रीय हड़ताल स्थल जंतर मंतर दिल्ली पर निषेधाज्ञा लगा दी। इस दमन के आगे न झुकते हुए आंदोलनकारी ने संसद के निकटतम सचिवालय क्षेत्र, गढ़वाल भवन (पंचकुंया रोड, नई दिल्ली) में श्रद्धांजली सभा रूपी काला दिवस पर शहीद का फैसला लिया। वहां भी पुलिस प्रशासन ने 1 अक्टूबर की मध्य रात्रि को होने वाले समारोह को रद्द कर दिया। इसके बाद संस्था समिति के प्रस्तावों पर लोगों ने अपने-अपने आवास में ही उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन के बलिदानियों को मोक्ष दिलाने वाले इन गुन्हेगारों को 30 साल बाद फिर से दंडित किया और उन्हें उत्तराखंड के साथ देश के हुक्मरानों का भी धिक्कारा।
इस कार्य का अनुमोदन राष्ट्रपति सर को भी जंतर मंत्र पुलिस प्रशासन द्वारा किया गया। अनुच्छेद में राष्ट्रपति द्वारा देश की व्यवस्था के रक्षकों द्वारा देश के संविधान और मानवता को रचने वाले इस जघन्य कांड के सिद्धांतों को वास्तविक सजा दे कर भारतीय संविधान, संस्कृति और न्याय की रक्षा करने की परंपरा की स्थापना की गई।
समारोह समिति के संयोजक देवसिंह रावत ने बताया कि 2 अक्टूबर 2024 को उत्तराखंड राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख सदस्य एवं सहयोगी सामाजिक संगठन ने पिछले 29 वर्षों से इस काला स्वतंत्रता संग्राम दिवस का जश्न मनाया था। जनसंघ मोर्चा, उत्तराखंड लोकमंच, उत्तराखंड जनमोर्चा, उत्तराखंड महासभा, उत्तराखंड क्रांतिदल, हिमनद संघ सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रमुख सामाजिक संगठन करते हैं। अलोकतांत्रिक कदम बताया। आंदोलनकारी उग्रवादियों ने पहाड़ी प्रदेश के अब तक के अभयारण्य को प्रदेश के आत्मसम्मान और जनाकांक्षाओं को रचने पर एक कड़ी भर्त्सना करते हुए राव-मुलायम से अन्यथा बताया। इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले और सफल बनाने वाले प्रमुख लोग शामिल हैं, कार्यकर्ता देवसिंह रावत,उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा के शीर्ष नेता खुशहाल बिष्ट, विनोद नेगी, उत्तराखंड राज्य लोकमंच के बृजमोहन उप्रेती, हिमानंद संघ के विनोद बछेती, जनमोर्चा के उत्तराखंड महासभा के हरिपाल रावत, अनिल पंत, उक्रांद के वयोवृद्ध प्रताप नेता शाही, आतंकवादियों से आये वयोवृद्ध आंदोलन प्रभातकारी ध्यानी, भीम सिंह, श्याम प्रसाद खंतवाल, पर्यटन चौहान, हरि सिंह भंडारी, प्रताप थलवाल, सुरन्द्र सिंह रावत, चंद्र सिंह रावत स्वतंत्र, मोहन जोशी, किशोर रावत, धौलाखंडी, हिरो बिष्ट, उदय मंमगाई राठी, कर्ण बुटोला, एकता मंच के अनूप बिस्कुट, रौथाण, मोहन रावत, श्रीमती मनोरमा तिवारी भट्ट, गोविंद राम भट्ट, गब्बर सिंह गुसाईं, एन पी नवानी मास्टर जी, उर्मिलेश भट्ट, पंचम सिंह रावत, जगत सिंह बिष्ठ, महेश कलौनी
आदि ने सरकार की इस कृति की कड़ी भरतना की।
उल्लेखनीय है कि ‘उत्तराखंड राज्य गठन जनआंदोलन’ में गांधी जयंती की पूर्व संध्या 1 अक्टूबर 1994 को, 2 अक्टूबर 1994 को आहुत लाल किला रेल में भाग लेने आ रहे शांतिप्रिय हजारों झारखंडियों को, लोकतंत्र स्थित धार्मिक स्मारक पर आलोकतांत्रिक ढाका सीट पर रोक कर जो संवैधानिक जुल्म, व्याभिचार व कालीआम उत्तर प्रदेश के स्वामी सिंह सरकार व केंद्र में सत्यसेन नारायण राव की कांग्रेसी सरकार ने की, उनके न केवल भारतीय संस्कृति के अवशेष भी शर्मसार हुए। लेकिन सबसे खेद की बात यह है कि जिस भारतीय गौरवशाली संस्कृति में नारी को जगत जननी का स्वरूप माना जाता है, वहां हमेशा वंदनीय रही है, वहां पर सरकारी तंत्र में आसीन इस कांड के सिद्धांतों को दंडित करने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से संरक्षण देते हुए पदोनति की बात कही गई है। दे कर चुनौती दी गई। सबसे पुरानी बात यह है कि जिस स्थान का कांड-94 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, उस पर शासन करने वालों द्वारा कब्जा कर लिया गया था, नाजी विद्रोहियों के सहयोगियों का कब्जा था, इस कांड के आधार पर मुजफ्फरनगर जिले (उत्तर प्रदेश) के अनंत कुमार सिंह ने कहा, वी पुलिस के गवाहों ने समोएट सैट सिंह और नसीम इक्कीस को सीधे तौर पर दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई का ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। यही नहीं उच्च न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकार को पहाड़ के विकास के लिए प्रतिनाथ भाईचारे का आश्वासन दिया, दोनों के लिए यहां के विकास के लिए त्वरित कार्य करने का निर्णय भी दिया गया। जिस कांड पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेंसी कंसा ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया था, उस महिला आयोग से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दोषी ठहराया था, दुर्भाग्य से यह है कि इस देश में जहां हमेशा ‘सत्यमेव जयते’ का उदघोष गुंजयमान रहता है, वहां पर उच्च कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद चर्च और उनके आकाओं के हाथ इतने मजबूत हो रहे हैं कि देश की न्याय व्यवस्था आज 30 साल बाद भी कमजोर हो रही है।
इस कांड से प्रभावित पहाड़ों की करोड़ों जनता को आशा थी कि राज्य के गठन के बाद उत्तराखंड की राज्य सरकार इस कांड के आदर्श को सर्वोच्च पद पर स्थापित करने का काम करेगी। लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि वहां पर स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खंडूडी, निशंक, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, पदलोलुप नेता तीरथ और धामी जैसे पदलोलुप नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे। इनमें से एक शासन में इस कांड के मंदिरों पर दंडात्मक कार्रवाई के बजाय संरक्षण अधिनियम का अपमान किया गया था।