प्रवर्तन निदेशालय द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तार करने प्रकरण, 28 मार्च तक प्रनि के शिकंजे में, विपक्षियों का विलाप, केजरीवाल की धृष्ठता
विपक्ष की राष्ट्रव्यापी आंदोलन को देखते हुए प्रश्न उठता है कि क्या चुनाव होने के आड में देश में किसी संवेधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को कानून रौंदने व भ्रष्टाचार करने की इजाजत देश का संविधान व जनता देती है? नहीं। देश भ्रष्टाचार, आतंकबाद व देश विरोधी तत्वों से इतना व्यथित हो गया है कि देश में आम जनता से शिक्षा, चिकित्सा, न्याय व रोजगार आदि कोसों दूर हो गया है। देश में आज जरूरत है दिशावान राष्ट्रभक्त सरकार की जो देश को भ्रष्टाचारियों व देशद्रोहियों के शिकंजे से बचा कर देश की आम जनता को सुशासन प्रदान कर सके। यहां जरूरी है कि खुद केजरीवाल जब भ्रष्टाचार का आंदोलन चला रहे थे तब वे देश के बडे बडे नेताओं व मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर उनको पद से इस्तीफा देने व जेल में बंद करने की मांग करते थे। अब जब उन पर ऐसे आरोप लगने लगे तो इस्तीफा देना तो रहा दूर खुद जांच का सामना करने से दूर भागते रहे। अपने द्वारा खिंचे गये आदर्शों का जिस निर्ममता से स्वयं केजरीवाल ने रौंदने का कार्य किया उससे साफ होता है कि दाल में जरूरी काला है। नहीं तो केजरीवाल जांच से क्यों घबरा रहे है। इसके साथ केंद्रीय जांच ऐजेन्सियों को भी निष्पक्षता से अपना कार्य संपादन की जरूरत हे। केंद्र सरकार से भी आशा है कि वह दलीय भेदभाव के बजाय जो भी भ्रष्ट हैं उन पर कडी कार्यवाही करनी चाहिये। सवाल यह भी उठ रहा है कि जिस प्रकार से चुनावी चंदा बोंड, निर्वाचित सरकार व दलों को तोड़ना व दलीय दृष्टि से भ्रष्टाचार के मामलों को संचालित करना उचित नहीं है, इस पर अंकुश लगना चाहिए। कार्यवाही निष्पक्ष, न्यायोचित व त्वरित के साथ पार्दर्शितापूर्ण होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि कल केजरीवाल की गिरफ्तारी प्रकरण में प्रवर्तन निदेशालय ने न्यायालय से अरविंद केजरीवाल को 10 दिन की पूछताछ के लिये देने की मांग की जिसे न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद 6 दिन हिरासत की ही इजाजत दी। हालांकि केजरीवाल का पक्ष रखते हुये देश के चर्चित वरिष्ठ अधिवक्ता मनु सिंघवी ने कहा कि राजनीतिक प्रतिशोध को उजागर करने के लिए, ईडी की शक्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। केजरीवाल ने कोई अपराध नहीं किया। नरमी बरतने की आड़ में सह आरोपियों के बयान लिए जाते हैं. यह पूरी तरह से प्रक्रिया का दुरुपयोग है। वहीं प्रवर्तन निदेशालय ने केजरीवाल के वकील की तमाम दलीलों को सिरे से खारिज करके केजरीवाल को इस शराब घोटाले का मुख्य सरगना बताते हुये कहा कि दिल्ली सरकार की शराब नीति 2021-22 को बनाते हुये न केवल दिल्ली के सरकारी खजाने को नुकसान पंहुचाया अपितु अपने निहित स्वार्थ के लिये दिल्ली में शराब के धंधे को निजी लोगों के हवाले कर दिया। इस सारे प्रकरण में बहुत ही सावधानी बरतने वाला केजरीवाल ही मुख्य सरगना रहा।प्रवर्तन निदेशालय ने इस पूरे घोटाले के अपराधियों को दण्डित करने के लिये केजरीवाल से और पूछताछ की जरूरत हैं क्योंकि इस पूरे प्रकरण में शराब नीति के निर्माण, कार्यान्वयन और अनियमितताओं से अपराध की आय के उपयोग में अरविंद केजरीवाल की मुख्य भूमिका है.। दिल्ली व पंजाब की सत्ता में आसीन आम आदमी पार्टी का प्रमुख भी स्वयं केजरीवाल है। इसके साथ दिल्ली प्रांत का मुख्यमंत्री होने के साथ केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के मंत्रियों, आप नेताओं और अन्य व्यक्तियों की मिलीभगत से ही दिल्ली शराब नीति को सरकारी दुकानों के बजाय निजी व्यापारियों को सौंप कर इस घोटाले को अंजाम दिया गया। इस प्रकरण में शराब नीति बनाने, जो पैसा आया, उस पैसे को ठिकाने लगाने का तानाबाना भी केजरीवाल ने ही बुना। प्रनि ने कहा कि इस घोटाले को क्रियान्वयन कराने वाले विजय नायर और मनीष सिसोदिया दोनों केजरीवाल के विश्वासी थे, इनके सहयोग से ही दक्षिण भारत की शराब लाबी से सांठगांठ कर धन वसूली की गयी। इसी प्रकरण के रहस्यों को पूरी तरह से उजागर करने के लिये प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल ने 9 बार पूछताछ में सम्मलित होने का आग्रह किया। जिसका सम्मान करने के बजाय केजरीवाल ने अपने संवेधानिक पद की आड में प्रवर्तन निदेशालय के आग्रह को न केवल नक्कारा अपितु इसे असंवैधानिक बताने का कृत्य भी किया। प्रवर्तन निदेशालय के शिकंजे से बचने के लिये अरविंद केजरीवाल दिल्ली उच्च न्यायालय में भी गया। न्यायालय ने भी मामले की गंभीरता समझते हुये केजरीवाल को अभयदान नहीं दिया। इसके बाद ही प्रवर्तन निदेशालय ने अपने दायित्व का निर्वहन करते हुये 21 मार्च 2024 की सांय 7 बजे दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास पर मजबूरन पूछताछ व तलाशी लेकर केजरीवाल की संलिप्तता देखते हुये गिरफ्तार किया। इस पूरे प्रकरण में अपराध की आय का पता लगाने के लिए गिरफ्तार व्यक्ति से उनकी भूमिका और उपरोक्त बयानों के संबंध में पूछताछ की करनी जरूरी है। प्रवर्तन निदेशालय ने न्यायालय को बताया कि अरविंद केजरीवाल निरंतर जांच में असहयोग कर रहा था तथा पीएमएलए की धारा 50 के तहत जारी समन की भी अवहेलना कर रहा था। इस प्रकरण में तलाशी के दौरान केजरीवाल के घर से जब्त किए गए इलेक्ट्रोनिक यंत्रों और डाटा को लेकर पूछताछ जरूरी है। इसके अलावा इस मामले में जो भी सामग्री या अभिलेख जब्त किए गए हैं, उसे लेकर केजरीवाल से पूछताछ करनी है, जो कि सिर्फ हिरासत में ही संभव है। गिरफ्तार केजरीवाल से दक्षिम भारत के शराब विक्रेताओं द्वारा आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं को दी गई रिश्वत आदि के तानेबाने को उजागर करना है। इस घोटाले को किस तरह अंजाम दिया गया, इसका पता लगाने के लिए भी गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ की जानी जरूरी है।