देवसिंह रावत
लोकसभा चुनाव 2024 के लिये सबसे अधिक 80 सीट वाले उतरप्रदेश में सपा व कांग्रेस के बीच हुए सांझा चुनाव लडने के फेसले ने इंडिया गठबंधन में नई जान फूंक दी। क्योंकि गत महिने इंडिया गठबंधन के मुख्य सुत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाजपा गठबंधन में सम्मलित होने व बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्धारा बंगाल में अकेले ही चुनाव लडने के ऐलान के कारण मृतप्राय समझी जाने वाली इंडिया गठबंधन को मृतप्रायः समझा जाने लगा। इसके बाद आम आदमी पार्टी द्धारा पंजाब में अकेले लडने व दिल्ली में कांग्रेस को केवल एक सीट देने का ऐलान करके एक प्रकार से इंडिया गठबंधन की ताबूत में कील ठोक दी थी। विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के दलों के लिये निराश भरे ऐसे माहौल में एक और झटका तब लगा जब ऐसी खबरें आई कि पश्चिम उप्र के राजनैतिक ताकत रालोद का गठजोड़ भाजपा के साथ होने के साथ ही जम्मू कश्मीर के प्रमुख दल नेशनल कांफ्रेंस द्धारा भाजपा से गठजोड या अकेल लडने की अटकले लगाई जाने लगी। ऐसे में भाजपा का चुनावी ‘अब की बार 400 पार ’ नारा सच में तब्दील होने के आसार नजर आने लगे। विपक्षी एकता की आशाओं पर उस इससे पहले उस समय बज्रपात हुआ जब बसपा प्रमुख बसपा ने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ इंडिया गठबंधन से दूरी बनाते हुये अकेले ही चुनाव लडने का ऐलान कर दिया था। विपक्ष के नजरिये से ऐसे निराशा भरे वातावतरण में 21 फरवरी 2022 को उप्र की 80 सीटों के लिये हुये सपा व कांग्रेस के बीच सीटों के समझोते का ऐलान जहां इंडिया गठबंधन को फिर से जीवनदान देने वाला साबित हुआ वहीं नीतीश, ममता व जयंत के ऐलान के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की एकतरफी जीत सी लगने वाला समीकरण में भारी बदलाव आने लगा। अब लगने लगा की लोकसभा चुनाव 2024 भाजपा के लिये विपक्षी चुनौती दम नहीं अपितु कांटे की टक्कर देने वाली होगी।
इस समझोते के तहत प्रदेश की 63 सीटों पर सपा व 17 स्थान पर कांग्रेस चुनाव लडेगी। उप्र की तीसरी सबसे बडे राजनैतिक दल बसपा ने भले ही अकेले ही चुनाव लडने की हुंकार भरी हो पर सपा व कांग्रेस के एकजूट होने से उप्र की 80 की 80 सीटों को जीतने की हुंकार भरने वाली भाजपा को इंडिया गठबंधन के कारण कडी टक्कर मिलेगी। इंडिया गठबंधन को अब तक कमजोर समझने वाली भाजपा को भी सपा व कांग्रेस के समझोता होने के कारण क्षेत्र में लोकप्रिय व मजबूत प्रत्याशी को चुनावी समर में उतारना होगा। नहीं तो अब तक लग रहा था कि मोदी लहर के भरोसे भाजपा नेतृत्व अपने पसंद के किसी भी प्रत्याशी को चुनावी समर में उतार सकता है। भले ही विरोधी यह कह कर कांग्रेस व सपा गठबंधन का उपहास उडा कर हल्के में लेने की कोशिश कर रहे हैं कि सपा ने कांग्रेस का उल्लू बना कर वे 17 सीटें दी जिनमें वह 2019 के लोकसभा चुनाव में 12 स्थानों पर अपनी जमानत ही जब्त करा गयी। इस बंटवारे में कांग्रेस की झोली में आई रायबरेली, अमेठी, सहारनपुर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, प्रयागराज, बनारस,मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी, देवरिया और महाराजगं, अमरोहा, व झांसी। जहां तक उप्र का सवाल है 2019 के लोकसभा चुनाव में उप्र में कांग्रेस केवल रायबरेली में जीत पाई थी। वहां से कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी विजय रही थी। जो 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने स्वास्थ्य कारणों के कारण चुनावी दंगल में उतरने के बजाय इसी सप्ताह राज्यसभा सांसद बन चूकी है।
लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस ने 421 सीटों पर प्रत्याशी उतारे पर कांग्रेस को केवल 52 सीटों पर ही विजय मिली। कांग्रेस के 148 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई।
उल्लेखनीय है कि उप्र की 80 लोकसभा सीट वाले देश की राजनीति की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उप्र में भाजपा के बाद सबसे मजबूत दल सपा व कांग्रेस के मध्य हुये लोकसभा चुनाव मिल कर लडने के समझोते ने इंडिया गठबंधन में नई जान फूंक दी। इसका असर पूरे देश में दिखाई देने लगा। अब तक कांग्रेस को दिल्ली में एक सीट देने की हुंकार भर कर ममता की तरह अकेले ही चुनावी जंग लडने की हुंकार भरने वाली आम आदमी पार्टी ने भी 22 फरवरी 2023 को दिल्ली, मध्यप्रदेश व गुजरात आदि प्रदेशों में समझोता करने का मन बना दिया। इसके तहत दिल्ली में आप 4 सीटों व कांग्रेस 3 सीटों पर चुनाव लडेगी। वहीं गुजरात में आप को 2 व मध्यप्रदेश में एक सीट प्रदान करेगी। इसके साथ चण्डीगढ की एक सीट पर कांग्रेस को आप प्रदान करने के लिये तैयार है। इस ऐलान का सीधा असर जहां अखिल भारतीय स्तर पर होगा। इसका ममता बनर्जी के साथ पटरी से उतर चूकी वार्ता भी पटरी पर आ जायेगी। इस तरह यह चुनाव भाजपा गठबंधन व इंडिया गठबंधन के बीच रोचक ढंग से होगा। जिससे दोनो गठबंधन मजबूत व जनप्रिय प्रत्याशियों को उतारने के लिये मजबूर होगें। अगर मुकाबला एक तरफा रहता तो दोनो गठबंधन मनमर्जी प्रत्याशियों को चुनावी दंगल में उतारते। इस चुनाव में एक एक सीट के लिये संघर्ष रोचक होगा। जहां तक उप्र के मामले में देश के एक वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार मुकाबला कांटे का होगा। भाजपा के लिये अपना 2019 की स्थिति अर्जित करना भी एक चुनौती होगा। वहीं कांग्रेसी समर्थक रहे बुंदेलखंड के मूल निवासी व चुनावी विशेषज्ञ के अनुसार इस गठजोड के बाबजूद विपक्ष मोदी योगी की आंधी में उप्र में कंहीं भी तीसरी बार मोदी सरकार की राह में अवरोध साबित नहीं हो सकता है। उनके अनुसार नये मतदाताओं व नोजवानों के सर मोदी व योगी का जादू सर चढा हुआ है। अंध तुष्टीकरण, भ्रष्टाचार व परिवारवाद की दल दल में आकंठ डूबे विपक्षी दलों से देश के नौनिहालों व नौजवानों का मोह पूरी तरह भंग हो गया है। उन्हें यह साफ दिख रहा है कि जो इज्जत मोदी के कार्यकाल में पूरी दुनिया में भारत को मिल रही है वह एक प्रकार दुर्लभ है। इसके साथ तमाम विपरित परिस्थितियों को चीर कर जिस प्रकार देश विकास की कुचालें भर रहा है उससे युवाओं में मोदी सरकार से अपने उज्जवल भविष्य की आश जग रही है। भले ही सरकारी रोजगार प्रदान करने के क्षेत्र में मोदी सरकार युवाओं की आशाओं के अनुरूप काम नहीं कर पायी पर युवाओं को आशा है कि अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार इस दिशा में भी कार्य करेगी। देखना है कि चुनावी जंग में सतारूढ भाजपा गठबंधन के दवाब में इंडिया गठबंधन खुद को एकजूट रख पाता है या बिखर जाता है। यह चुनावी दंगल में देखने को मिलेगा।