भ्रष्टाचार में घिरे उ़़द्यान सचिव की ढाल बनने पर उतराखण्ड धामी सरकार को सर्वोच्च न्यायालय ने लगाई फटकार,होगी सीबीआई जांच
शाबाश, अधिवक्ता अवतार रावत, गोपाल उप्रेती, करगेती, आशुतोष नेगी
देवसिंह रावत
जैसे ही इस पखवाडे देश के सर्वोच्च न्यायालय में भ्रष्टाचार में घिरे उतराखण्ड शासन के उद्यान सचिव बवेजा की ढाल बनने के लिये उतराखण्ड सरकार ( प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा इस आरोपी सचिव की सीबीआई द्वारा जांच के आदेश पर रोक लगाने की ) ने गुहार लगाई तो सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति दत्ता व न्यायमूर्ति खन्ना की दो सदस्यीय खण्ड पीठ ने उतराखण्ड सरकार को भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे अधिकारी की ढाल बनने पर कडी फटकार लगाई तो धामी सरकार पूरे देश के सम्मुख प्रदेश के हितों के बजाय भ्रष्टाचारियों को बचाने के कृत्य के लिये बेनकाब हो गयी। इस मामले में जहां उतराखण्ड सरकार की वरिष्ठ अधिवक्ताओं की पूरी फौज अक्टूबर 23 को नैनीताल उच्च न्यायालय द्वारा उद्यान विभाग में हुये भ्रष्टाचार के मामले में उद्यान सचिव की गंभीर संलिप्ता को देखते हुये सीबीआई की जांच कराने के आदेश पर रोक लगाने की गुहार लगा रही थी तो दूसरी तरफ प्रदेश को हिमाचल की तर्ज पर फल प्रदेश बनाने के लिये समर्पित सेब किसान गोपाल उप्रेती व सामाजिक कार्यकर्त्ता दीपक करगेती की तरफ से देश के तेज तरार वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत ने उतराखण्ड सरकार की गुहार को नजरांदाज करके ऐसे भ्रष्टाचार में लिप्त सचिव के कृत्यों की जांच सीबीआई से ही कराने पर पुरजोर दिया। अदालत ने इस मामले में प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुये इस मामले की सीबीआई की जांच कराने के उच्च न्यायालय के आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय की भी सहमति जतायी। इस मामले में प्रदेश सरकार के कृत्य से जहां केंद्र सरकार भी नाखुश है। वहीं इस मामले में सरकार के तमाम दवाब के बाबजूद उच्च व सर्वोच्च न्यायालय में भ्रष्टाचार में घिरे अधिकारी को कानून के कटघरे में खडे करने की मुहिम को परवान चढाने के लिये राष्ट्रपति व गिनिज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड व प्रदेश सरकार के प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित युवा किसान गोपाल उप्रेती व उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के जांबाज पुरोधा सर्वोच्च न्यायालय के तेजतरार वरिष्ठ अधिवक्ता की प्रदेश के जागरूक नागरिकों ने भूरि भूरि प्रशंसा की।
उल्लेखनीय है कि उतराखण्डियों ने राव मुलायम सरकारों के दमन सह कर भी इस आश से उतराखण्ड राज्य गठन के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर किया था कि राज्य गठन के बाद उतराखण्ड के लोगों को पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा करने वाले कुशासन से मुक्ति मिलेगी और जनता को पीढी दर पीढी से हो रहे पलायन के दंश से मुक्ति हो कर प्रदेश में खुशहाली, अमन चैन व सुशासन का राज होगा। परन्तु प्रदेश की जनता की इन आशाओं पर उस समय बज्रपात हुआ जब प्रदेश की सरकार ने राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने वाली प्रदेश की राजधानी गैरसैंण के बजाय देहरादून से ही शासन संचालित कराना शुरू कर दिया। एक तरफ जनता राजधानी गैरसैंण बनाने, हिमालयी राज्यों की तर्ज पर भू कानून व मूल निवास कानून बनाने के लिये निरंतर जोर देते रहे परन्तु प्रदेश के हुक्मरानों जनता से विश्वासघात करते हुये गैरसैंण स्थित भव्य विधानसभा व सचिवालय से शासन संचालित करने के बजाय पंचतारा सुविधाओं की लत के कारण देहरादून को ही अघोषित रूप से राजधानी बना डाली। वहां गुपचुप करके तमाम कार्यालय बना दिये गये। प्रदेश के मुख्यमंत्रियों सहित जनप्रतिनिधियों के देहरादूनी मोह के कारण प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में कार्यरत निदेशालय, चिकित्सालय, विद्यालय सहित अन्य महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों में कार्यरत कर्मचारी किसी न किसी बहाने से अपना तबादला देहरादून व उसके आसपास के मैदानी जनपदों में कराने में लग गये। यही नहीं पर्वतीय जनपदों में स्थित निदेशालय व आयुक्तों ने भी अपने कार्यालयों के बजाय देहरादून में ही केंप कार्यालय बना डाला। इसके कारण प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार व शासन इत्यादि बेहतर भविष्य की आश में इस सीमांत प्रदेश के लाखों घरों व हजारों गांवों से पलायन की आंधी सी चल रही है। सरकारें इस समस्या का समाधान करने के लिये राजधानी गैरसैंण बनाने व पर्वतीय जनपदों में स्थित कार्यालयों को आबाद करने के बजाय प्रदेश को उजाडने में लगे अधिकारियों की ढाल बन रही है।
ऐसा ही प्रकरण है उद्यान घोटाला। वह उद्यान विभाग जिस पर अगर प्रदेश सरकार जरा सा भी ध्यान देती तो उतराखण्ड भी हिमाचल की तरह फलों का बगान व समृद्ध बन जाता।
इस उद्यान मामले पर प्रकाश डालते हुये प्यारा उतराखण्ड के संपादक देवसिंह रावत से एक विशेष भेंटवार्ता में गोपाल उप्रेती ने बताया कि उतराखण्ड सरकार ने प्रदेश को हिमाचल की तर्ज पर ही विकसित करने के लिये 2017 में सेब मिशन के तहत प्रदेश में 5 सेब के बगानों की स्थापना की। जिसमें एक बाग की स्थापना खुद बिल्लेख गांव के मूल निवासी गोपाल उप्रेती ने अल्मोडा जनपद के रानीखेत क्षेत्र में की। इस सेव मिशन 12 लाख रूपये की योजना थी। जिसका उद्देश्य था कि प्रदेश के अधिक से अधिक किसानों को सेब की खेती से जोडना।
परन्तु इस महत्वाकांक्षी योजना पर ग्रहण लगाने का काम किया गया जब 2021 में जब प्रदेश को हिमाचल की तर्ज पर फलोद्यान विभाग में चहुमुखी विकास करने के लिये हिमाचल सरकार में इसी क्षेत्र के विशेषज्ञ समझे जाने वाले डा एच एस बवेजा को प्रतिनियुक्ति के आधार पर प्रदेश का उद्यान सचिव बनाया गया। परन्तु किसानों को तब झटका लगा जब बवेजा ने प्रदेश की महत्वाकांक्षी योजना सेब मिशन में बडा उलट पुलट करते हुये इस योजना में 7.50 लाख रूपये मूल्य का सौर ऊर्जा पंप को अनिवार्य सा कर दिया। किसान हैरान थे कि यह पंप एक तो पर्वतीय क्षेत्रों में जहां इसकी आवश्यता ही नहीं थी और दूसरा यहां पर बोरिंग पर रोक लगी होने के कारण यह पंप अनावश्यक के साथ सेब मिशन पर ग्रहण लगाने वाला बना। एक तो इस सेब मिशन का विस्तार न करके उसी राशि में यह अनावश्यक चीज जोड दी। इसका किसानों ने भारी विरोध किया तो उसके बाद सरकार ने इस अनावश्यक चीज को हटाया। अपने पहले कदम के विरोध होने से बवेजा बोखला गये। वे उद्यान विभाग के निर्देशालय चौबट्टिया में बेठने के बजाय देहरादून में केंप कार्यालय बना कर रहने लगे। इससे चौबट्यि उद्यान संस्थान जिसे अंग्रेजों ने 1932 में रानीखेत के समीप शीतोष्ण फलोद्यान का एशिया का सबसे बडा शोध केंद्र के रूप में स्थापित किया। यहीं की उन्नत सेब के पौद्यों से हिमाचल, पूर्वोतर व नेपाल जैसे अनेक बाग पूरे विश्व में सेब के उद्यानों के नाम पर कीतिमान स्थापित कर गये। ऐसी महान धरोहर से उतराखण्ड की समृद्धि की नींव मजबूत करने के बजाय प्रदेश के हुक्मरानों की देहरादूनी मोह के कारण यहां पर बवेजा जैसे अधिकारियों को कमान सौंप कर प्रदेश की आशाओं के साथ वर्तमान व भविष्य पर ग्रहण सा लगा दिया गया। यह चौबट्यि धरोहर भी उजडने के कगार पर है। ऐसी दिशाहीन व भ्रष्ट नीतियों के कारण प्रदेश में सेब मिशन पर ग्रहण लग गया। जिसको देख कर गोपाल उप्रेती जैसे उतराखण्ड हितैषी किसानों ने पुरजोर विरोध किया। गोपाल उप्रेती उतराखण्ड भाजपा प्रदेश कार्यकारणी के सदस्य रहने के साथ सेब सहित कृषि क्षेत्र के समर्पित किसान के रूप पर पूरे देश में विख्यात है। उन्होने प्रदेश के हितों की रक्षा के लिये सभी संबंधित अधिकारियों मंत्रियों के अलावा मुख्यमंत्री से भी इस मामले में गुहार लगाई। परन्तु ऐसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के बजाय प्रदेश सरकार के एक मजबूत तबका उसको बचाने व उसका कार्यकाल बढाने पर लगा। भ्रष्टाचार पर अंकुश न लगता देख कर गोपाल उप्रेती व दीपक करगेती आदि समर्पित युवाओं ने इसके खिलाफ मजबूती से आवाज उठायी। इस मामले में नैनीताल उच्च न्यायालय ने उद्यान विभाग के सचिव डा बवेजा के कार्यकलापों को देखते हुये बिना समय गंवाये इसकी जांच सीबीआइ्र्र से कराने का आदेश दिया। प्रदेश सरकार उच्च न्यायालय में इस मामले में न्यायालय को विशेष जांच गठन करने की बात कर रोकना चाहती थी परन्तु उच्च न्यायालय ने दो टूक शब्दो सरकार के अनुरोध को ठुकरा दिया। ऐसी ही फटकार धामी सरकार को इसी मामले में उद्यान सचिव को सीबीआई जांच से बचाने के लिये करने पर लगाई। आखिर मुख्यमंत्री धामी उन आस्तिन के सांपों को दण्डित करेंगे जो ऐसे लोगों को प्रदेश में संरक्षण दे कर प्रदेश को पतन के गर्त में ाकेलते है?
सवाल यह है नहीं है कि ऐसे मामलों में सीबीआई ऐसे भ्रष्टाचारी को दण्डित कर पाती या उसके बचाने वाले अपने प्रभाव से उसको कानून की पेचदगियों से बचा देते है। सवाल यहां यह है कि उतराखण्ड को पलायन के दंश से बचाने,े चहुमुखी विकास के साथ राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के द्वार समझे जाने वाले राजधानी गैरसैंण में बने मनोहारी विधानसभा भवन व एशिया के सबसे बडे शीतोषण फलो के शोध संस्थान चौबटिया, जिसे 1958 में ही तत्कालीन उप्र सरकार ने उद्यान निर्देशालय बना दिया था, उसको उतराखण्ड में उजाडा क्यों जा रहा है? जिस विधानसभा भवन में करोड़ों रूपये व प्रदेश की जनभावनायें जुडी है वहां राजधानी घोषित न करके ग्रीष्म कालीन राजधानी बना कर पूरे पर्वतीय जनपदों को उजाडा क्यों जा रहा है? जिस चौबट्टिया उद्यान निर्देशालय बना कर हिमाचल, पूर्वोतर सहित कई प्रांत आबाद किये उसे उतराखण्ड सरकार के नौकरशाह देहरादून में डेरा डाल कर क्यों उजाड रहे है? प्रदेश सरकार को इतना भी विवेक नहीं है कि वे जनसेवक है और उनका दियत्व प्रदेश की जनांकांक्षाओं व विकास करना है न कि जनप्रतिनिधियों व नौकरशाहों की मौज मस्ती कराना।
प्रदेश सरकार के अपने इसी दायित्व से विमुख होने के कारण प्रदेश के पर्वतीय जनपदों से भयंकर पलायन हो गया है। लाखों घरों में ताले लग गये हैं । सैकडों गांव बिरान हो गये है। यहीं नहीं प्रदेश के हितों के प्रति सरकार की उदासीनता से नौकरशाह बेलगाम हो गये है। जिसके कारण प्रदेश में विनाशकारी घुसपेठ षडयंत्र से करायी जा रही है। जो देश व प्रदेश की सुरक्षा व शांति के लिये गंभीर खतरा बन गये है। उतराखण्डी जनमानस सरकार की उदासीनता से निराश, हताश है। प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने के बजाय बाहर के लोगों को यहां पर थोक के भाव में यहां नौकरियां दी जा रही है। यही नहीं प्रदेश के मुख्यमंत्रियों, विधानसभाध्यक्षों, मंत्रियों व नौकरशाहो द्वारा अपने प्यादों को बंदरबांट किये जाने से प्रदेश के युवाओं का आक्रोश सडकों पर दिख चूका है। यही नहीं यहां के सरकारी नियुक्तियों करने वाले संस्थान ही प्रदेश में समय पर पारदर्शिता के साथ उप्र की तरह रोजगार देने में असफल रहे। प्रदेश में जिस प्रकार शासन के नाक के नीचे अंकिता भण्डारी जैसे प्रकरण हुये उससे लोग बेहद आहत है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार दोषियों को सजा दिलाने के बजाय फरियाद करने वाले व न्याय की गुहार लगाने वालों का ही दमन क्यों कर रही है। खासकर आशुतोष नेगी का दमन करने से जनता में पूरी तरह से गलत संदेश जा रहा है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में जिस प्रकार से जनता निराश व हताश है, उसे समझ में नहीं आ रहा है कि हिमालयी राज्यों में केवल उतराखण्ड को मजबूत भू व मूल निवास से वंचित क्यों किया जा रहा है? उतराखण्ड के हितों व हक हकूकों पर कुठाराघात क्यों किया जा रहा है? सरकार भ्रष्टाचारियों पर अंकुश व दण्डित करने के बजाय उनको बचाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के दर पर भी फटकार खाने के बेशर्मी क्यों कर रही है। प्रदेश में जिस प्रकार से वजीफा घोटाले को चंद्रशेखर करगेती जैसे समर्पित युवाओं ने बेनकाब किया , उससे प्रदेश की हकीकत सामने आ रही है। प्रदेश में उतरकाशी सुरंग हादसा हो या जोशीमठ की त्रासदी या हल्द्वानी से लेकर देहरादून में अवैध घुसपेठ बसावत इन प्रकरणों से प्रदेश का जनमानस काफी उद्दल्लित है। सरकार अपराधियों को दण्डित करने के विश्वास पर जिस प्रकार से अंकिता भण्डारी प्रकरण ने बज्रपात किया गया उससे लोग परेशान हैं कि किस पर विश्वास करें? प्रदेश में इन दिनों ठोस भू व मूल कानून का आंदोलन चल रहा है। आम आदमी आहत है। ऐसे में हल्की सी आशा की किरण सर्वोच्च न्यायालय ने दिखाई सरकार को फटकार लगा कर। सरकार को लोकशाही का आईना दिखाने के लिये जो काम अवतार रावत,गोपाल उप्रेती, दीपक व चंद्रशेखर करगेती, तथा आशुतोष नेगी ने किया वह सराहनीय है। आशा है जनता ऐसी सरकारों को संगठित हो कर लोकशाही का आईना दिखा कर उसको अपने दायित्व का बोध करायेगी? प्रदेश की जनता आज प्रधानमंत्री मोदी से यही गुहार लगा रही है कि गैरसैंण व चौबट्टिया जैसे उतराखण्ड के चहुमुखी विकास व लोकशाही के द्वारों को उजाडने के बजाय प्रदेश के हुक्मरानों को इन्हे आबाद करने की दो टूक सीख दें।
उल्लेखनीय है कि उतराखण्डियों ने राव मुलायम सरकारों के दमन सह कर भी इस आश से उतराखण्ड राज्य गठन के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर किया था कि राज्य गठन के बाद उतराखण्ड के लोगों को पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा करने वाले कुशासन से मुक्ति मिलेगी और जनता को पीढी दर पीढी से हो रहे पलायन के दंश से मुक्ति हो कर प्रदेश में खुशहाली, अमन चैन व सुशासन का राज होगा। परन्तु प्रदेश की जनता की इन आशाओं पर उस समय बज्रपात हुआ जब प्रदेश की सरकार ने राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने वाली प्रदेश की राजधानी गैरसैंण के बजाय देहरादून से ही शासन संचालित कराना शुरू कर दिया। एक तरफ जनता राजधानी गैरसैंण बनाने, हिमालयी राज्यों की तर्ज पर भू कानून व मूल निवास कानून बनाने के लिये निरंतर जोर देते रहे परन्तु प्रदेश के हुक्मरानों जनता से विश्वासघात करते हुये गैरसैंण स्थित भव्य विधानसभा व सचिवालय से शासन संचालित करने के बजाय पंचतारा सुविधाओं की लत के कारण देहरादून को ही अघोषित रूप से राजधानी बना डाली। वहां गुपचुप करके तमाम कार्यालय बना दिये गये। प्रदेश के मुख्यमंत्रियों सहित जनप्रतिनिधियों के देहरादूनी मोह के कारण प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में कार्यरत निदेशालय, चिकित्सालय, विद्यालय सहित अन्य महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों में कार्यरत कर्मचारी किसी न किसी बहाने से अपना तबादला देहरादून व उसके आसपास के मैदानी जनपदों में कराने में लग गये। यही नहीं पर्वतीय जनपदों में स्थित निदेशालय व आयुक्तों ने भी अपने कार्यालयों के बजाय देहरादून में ही केंप कार्यालय बना डाला। इसके कारण प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार व शासन इत्यादि बेहतर भविष्य की आश में इस सीमांत प्रदेश के लाखों घरों व हजारों गांवों से पलायन की आंधी सी चल रही है। सरकारें इस समस्या का समाधान करने के लिये राजधानी गैरसैंण बनाने व पर्वतीय जनपदों में स्थित कार्यालयों को आबाद करने के बजाय प्रदेश को उजाडने में लगे अधिकारियों की ढाल बन रही है।
ऐसा ही प्रकरण है उद्यान घोटाला। वह उद्यान विभाग जिस पर अगर प्रदेश सरकार जरा सा भी ध्यान देती तो उतराखण्ड भी हिमाचल की तरह फलों का बगान व समृद्ध बन जाता।
इस उद्यान मामले पर प्रकाश डालते हुये प्यारा उतराखण्ड के संपादक देवसिंह रावत से एक विशेष भेंटवार्ता में गोपाल उप्रेती ने बताया कि उतराखण्ड सरकार ने प्रदेश को हिमाचल की तर्ज पर ही विकसित करने के लिये 2017 में सेब मिशन के तहत प्रदेश में 5 सेब के बगानों की स्थापना की। जिसमें एक बाग की स्थापना खुद बिल्लेख गांव के मूल निवासी गोपाल उप्रेती ने अल्मोडा जनपद के रानीखेत क्षेत्र में की। इस सेव मिशन 12 लाख रूपये की योजना थी। जिसका उद्देश्य था कि प्रदेश के अधिक से अधिक किसानों को सेब की खेती से जोडना।
परन्तु इस महत्वाकांक्षी योजना पर ग्रहण लगाने का काम किया गया जब 2021 में जब प्रदेश को हिमाचल की तर्ज पर फलोद्यान विभाग में चहुमुखी विकास करने के लिये हिमाचल सरकार में इसी क्षेत्र के विशेषज्ञ समझे जाने वाले डा एच एस बवेजा को प्रतिनियुक्ति के आधार पर प्रदेश का उद्यान सचिव बनाया गया। परन्तु किसानों को तब झटका लगा जब बवेजा ने प्रदेश की महत्वाकांक्षी योजना सेब मिशन में बडा उलट पुलट करते हुये इस योजना में 7.50 लाख रूपये मूल्य का सौर ऊर्जा पंप को अनिवार्य सा कर दिया। किसान हैरान थे कि यह पंप एक तो पर्वतीय क्षेत्रों में जहां इसकी आवश्यता ही नहीं थी और दूसरा यहां पर बोरिंग पर रोक लगी होने के कारण यह पंप अनावश्यक के साथ सेब मिशन पर ग्रहण लगाने वाला बना। एक तो इस सेब मिशन का विस्तार न करके उसी राशि में यह अनावश्यक चीज जोड दी। इसका किसानों ने भारी विरोध किया तो उसके बाद सरकार ने इस अनावश्यक चीज को हटाया। अपने पहले कदम के विरोध होने से बवेजा बोखला गये। वे उद्यान विभाग के निर्देशालय चौबट्टिया में बेठने के बजाय देहरादून में केंप कार्यालय बना कर रहने लगे। इससे चौबट्यि उद्यान संस्थान जिसे अंग्रेजों ने 1932 में रानीखेत के समीप शीतोष्ण फलोद्यान का एशिया का सबसे बडा शोध केंद्र के रूप में स्थापित किया। यहीं की उन्नत सेब के पौद्यों से हिमाचल, पूर्वोतर व नेपाल जैसे अनेक बाग पूरे विश्व में सेब के उद्यानों के नाम पर कीतिमान स्थापित कर गये। ऐसी महान धरोहर से उतराखण्ड की समृद्धि की नींव मजबूत करने के बजाय प्रदेश के हुक्मरानों की देहरादूनी मोह के कारण यहां पर बवेजा जैसे अधिकारियों को कमान सौंप कर प्रदेश की आशाओं के साथ वर्तमान व भविष्य पर ग्रहण सा लगा दिया गया। यह चौबट्यि धरोहर भी उजडने के कगार पर है। ऐसी दिशाहीन व भ्रष्ट नीतियों के कारण प्रदेश में सेब मिशन पर ग्रहण लग गया। जिसको देख कर गोपाल उप्रेती जैसे उतराखण्ड हितैषी किसानों ने पुरजोर विरोध किया। गोपाल उप्रेती उतराखण्ड भाजपा प्रदेश कार्यकारणी के सदस्य रहने के साथ सेब सहित कृषि क्षेत्र के समर्पित किसान के रूप पर पूरे देश में विख्यात है। उन्होने प्रदेश के हितों की रक्षा के लिये सभी संबंधित अधिकारियों मंत्रियों के अलावा मुख्यमंत्री से भी इस मामले में गुहार लगाई। परन्तु ऐसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के बजाय प्रदेश सरकार के एक मजबूत तबका उसको बचाने व उसका कार्यकाल बढाने पर लगा। भ्रष्टाचार पर अंकुश न लगता देख कर गोपाल उप्रेती व दीपक करगेती आदि समर्पित युवाओं ने इसके खिलाफ मजबूती से आवाज उठायी। इस मामले में नैनीताल उच्च न्यायालय ने उद्यान विभाग के सचिव डा बवेजा के कार्यकलापों को देखते हुये बिना समय गंवाये इसकी जांच सीबीआइ्र्र से कराने का आदेश दिया। प्रदेश सरकार उच्च न्यायालय में इस मामले में न्यायालय को विशेष जांच गठन करने की बात कर रोकना चाहती थी परन्तु उच्च न्यायालय ने दो टूक शब्दो सरकार के अनुरोध को ठुकरा दिया। ऐसी ही फटकार धामी सरकार को इसी मामले में उद्यान सचिव को सीबीआई जांच से बचाने के लिये करने पर लगाई। आखिर मुख्यमंत्री धामी उन आस्तिन के सांपों को दण्डित करेंगे जो ऐसे लोगों को प्रदेश में संरक्षण दे कर प्रदेश को पतन के गर्त में ाकेलते है?
सवाल यह है नहीं है कि ऐसे मामलों में सीबीआई ऐसे भ्रष्टाचारी को दण्डित कर पाती या उसके बचाने वाले अपने प्रभाव से उसको कानून की पेचदगियों से बचा देते है। सवाल यहां यह है कि उतराखण्ड को पलायन के दंश से बचाने,े चहुमुखी विकास के साथ राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के द्वार समझे जाने वाले राजधानी गैरसैंण में बने मनोहारी विधानसभा भवन व एशिया के सबसे बडे शीतोषण फलो के शोध संस्थान चौबटिया, जिसे 1958 में ही तत्कालीन उप्र सरकार ने उद्यान निर्देशालय बना दिया था, उसको उतराखण्ड में उजाडा क्यों जा रहा है? जिस विधानसभा भवन में करोड़ों रूपये व प्रदेश की जनभावनायें जुडी है वहां राजधानी घोषित न करके ग्रीष्म कालीन राजधानी बना कर पूरे पर्वतीय जनपदों को उजाडा क्यों जा रहा है? जिस चौबट्टिया उद्यान निर्देशालय बना कर हिमाचल, पूर्वोतर सहित कई प्रांत आबाद किये उसे उतराखण्ड सरकार के नौकरशाह देहरादून में डेरा डाल कर क्यों उजाड रहे है? प्रदेश सरकार को इतना भी विवेक नहीं है कि वे जनसेवक है और उनका दियत्व प्रदेश की जनांकांक्षाओं व विकास करना है न कि जनप्रतिनिधियों व नौकरशाहों की मौज मस्ती कराना।
प्रदेश सरकार के अपने इसी दायित्व से विमुख होने के कारण प्रदेश के पर्वतीय जनपदों से भयंकर पलायन हो गया है। लाखों घरों में ताले लग गये हैं । सैकडों गांव बिरान हो गये है। यहीं नहीं प्रदेश के हितों के प्रति सरकार की उदासीनता से नौकरशाह बेलगाम हो गये है। जिसके कारण प्रदेश में विनाशकारी घुसपेठ षडयंत्र से करायी जा रही है। जो देश व प्रदेश की सुरक्षा व शांति के लिये गंभीर खतरा बन गये है। उतराखण्डी जनमानस सरकार की उदासीनता से निराश, हताश है। प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने के बजाय बाहर के लोगों को यहां पर थोक के भाव में यहां नौकरियां दी जा रही है। यही नहीं प्रदेश के मुख्यमंत्रियों, विधानसभाध्यक्षों, मंत्रियों व नौकरशाहो द्वारा अपने प्यादों को बंदरबांट किये जाने से प्रदेश के युवाओं का आक्रोश सडकों पर दिख चूका है। यही नहीं यहां के सरकारी नियुक्तियों करने वाले संस्थान ही प्रदेश में समय पर पारदर्शिता के साथ उप्र की तरह रोजगार देने में असफल रहे। प्रदेश में जिस प्रकार शासन के नाक के नीचे अंकिता भण्डारी जैसे प्रकरण हुये उससे लोग बेहद आहत है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार दोषियों को सजा दिलाने के बजाय फरियाद करने वाले व न्याय की गुहार लगाने वालों का ही दमन क्यों कर रही है। खासकर आशुतोष नेगी का दमन करने से जनता में पूरी तरह से गलत संदेश जा रहा है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में जिस प्रकार से जनता निराश व हताश है, उसे समझ में नहीं आ रहा है कि हिमालयी राज्यों में केवल उतराखण्ड को मजबूत भू व मूल निवास से वंचित क्यों किया जा रहा है? उतराखण्ड के हितों व हक हकूकों पर कुठाराघात क्यों किया जा रहा है? सरकार भ्रष्टाचारियों पर अंकुश व दण्डित करने के बजाय उनको बचाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के दर पर भी फटकार खाने के बेशर्मी क्यों कर रही है। प्रदेश में जिस प्रकार से वजीफा घोटाले को चंद्रशेखर करगेती जैसे समर्पित युवाओं ने बेनकाब किया , उससे प्रदेश की हकीकत सामने आ रही है। प्रदेश में उतरकाशी सुरंग हादसा हो या जोशीमठ की त्रासदी या हल्द्वानी से लेकर देहरादून में अवैध घुसपेठ बसावत इन प्रकरणों से प्रदेश का जनमानस काफी उद्दल्लित है। सरकार अपराधियों को दण्डित करने के विश्वास पर जिस प्रकार से अंकिता भण्डारी प्रकरण ने बज्रपात किया गया उससे लोग परेशान हैं कि किस पर विश्वास करें? प्रदेश में इन दिनों ठोस भू व मूल कानून का आंदोलन चल रहा है। आम आदमी आहत है। ऐसे में हल्की सी आशा की किरण सर्वोच्च न्यायालय ने दिखाई सरकार को फटकार लगा कर। सरकार को लोकशाही का आईना दिखाने के लिये जो काम अवतार रावत,गोपाल उप्रेती, दीपक व चंद्रशेखर करगेती, तथा आशुतोष नेगी ने किया वह सराहनीय है। आशा है जनता ऐसी सरकारों को संगठित हो कर लोकशाही का आईना दिखा कर उसको अपने दायित्व का बोध करायेगी? प्रदेश की जनता आज प्रधानमंत्री मोदी से यही गुहार लगा रही है कि गैरसैंण व चौबट्टिया जैसे उतराखण्ड के चहुमुखी विकास व लोकशाही के द्वारों को उजाडने के बजाय प्रदेश के हुक्मरानों को इन्हे आबाद करने की दो टूक सीख दें।