जरूरत है संसद हमले की 22वीं बरसी पर तार तार हुई संसद सुरक्षा व्यवस्था को सुधारने की, 141सांसदों का निलंबन नहीं है समाधान !
लोकसभा भंग कर नई लोकसभा चुनाव का कर सकती है शंखनाद?
देवसिंह रावत
13 दिसम्बर को संसद पर 2001 के इसी दिन हुये हमली की 22वीं बरसी पर संसद की सुरक्षा को तार तार करने वाले षडयंत्र पर विपक्ष द्वारा संसद की शीतकाल में सरकार की विफलता को लेकर मचाये गये संसद के दोनों सदनों में मचाये गये हंगामा के तहत सरकार ने कडी कार्यवाही करते हुये 141 सांसदों को निलंबित कर दिया।
18 दिसंबर तक सदन से 92 सांसद निलंबित किए गए थे। आज 19 दिसंबर को 49 सांसदों का निलंबन किया गया। इस प्रकार संसद से अब तक 141 सांसदों का निलंबन किया जा चुका है।
इससे देश के प्रबुद्ध लोक स्तब्ध है। देश के लिये समर्पित जनों का साफ मानना है कि सांसदों के निलंबन व संसद हमले की 22वीं बरसी पर हुये षडयत्र पर जिस प्रकार से सरकार व विपक्ष का नजरिया है वह उचित नहीं है। दोनों को चाहिये कि इस मामले को मात्र संसद की सुरक्षा से जोड़ कर न देखे अपितु यह देश की सुरक्षा के लिये भी गंभीर खतरे का संकेत है। इसलिये सदन में निष्पक्षता, ंगंभीरता से इस पर चिंतन मंथन होना चाहिये था। सरकार को विपक्ष के हंगामा करने पर निलंबन जैसी कार्रवाही से बचना चाहिये था। निलंबन के बजाय गृहमंत्री सदन व देश को इस प्रेकरण पर सुरक्षा को देखते बयान व आश्वासन देते। परन्तु पक्ष व विपक्ष दोनों ने मात्र अपनी राजनैतिक स्वार्थो के लिये इसको प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया। यह मामला मात्र देश के खिलाफ आतंकी षडयंत्र मात्र ही नहीं है अपितु यह देश की सुरक्षा के साथ सर्वोच्च सदन की सुरक्षा व्यवस्था में ंगंभीर खामियों के कारण भी देश को यह प्रकरण देखने के लिये अभिशापित होना पडा। अगर सुरक्षा व्यवस्था सजग होती तो इस प्रकरण के षडयंत्रकारी अपने कृत्य को अंजाम देने में सफल नहीं होते। कर्मचारियों की कमी के साथ संसद की सुरक्षा व्यवस्था में तालमेल का अभाव भी स्पष्ट उजागर हो रहा है। खासकर सदन में इस काण्ड के आरोपियों के हंगामें के समय कहीं सदन में सुरक्षा बल जिन्हें सदन में मार्शल कहते है, कहीं नजर नहीं आये। खासकर जब सदन में घुरपेठिये उछलकूद मचा रहा रहे थे और कुछ सांसद उनको मार पीट कर रहे थे। यह दृश्य सदन की सुरक्षा व्यवस्था की खामियों के जगजाहिर कर रहा था। देश की सुरक्षा हो या सदन की सुरक्षा उसमें पर्याप्त सुरक्षा कर्मियों को तैनात करनी चाहिये। नौकरशाही की मंदबुद्धि के चलते दो रूपये को बचाने के लोभ में सुरक्षा कर्मियों की संख्या में कटोती करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। सेना व सुरक्षा कर्मियों की संख्या में कमी करने के बजाय ऐसे दिशाहीन नौकरशाही व सलाहकारों से देश को छुटकारा देना ही देशहीत में होगा।गौरतलब है कि संसद की सुरक्षा को तार तार करने वाले प्रकरण के मामले में 18 दिसम्बर को संसद के दोनों सदनों में इस संसद की सुरक्षा में हुई चूक के मामले की चर्चा कराने व गृहमंत्री अमित शाह के बयान की मांग को लेकर लेकर संसद के दोनों सदनों में इतना हंगामा हुआ कि लोकसभा में सदन के नेता कांग्रेसी सांसद अधीर रंजन चौधरी सहित विपक्ष के 78 सांसदों को पूरे शीतकालीन सत्र के लिये निलंबित कर दिया गया। इसमें लोकसभा के 22 व राज्यसभा के 45 सांसदों पर कार्यवाई की गयी। इस प्रकरण के बाद इसी मांग को लेकर 14 सांसदों को पिछले सप्ताह पहले ही निलंबित किया जा चूका है। इन निलंबित सांसदों में कांग्रेस के 33, तृणमूलके 16, दु्रमुक के 13 व अन्य दलों के 26 सांसदों को निलंबित किया गया। इस पकार लोकसभा के 46 व राज्य सभा के 46 सांसद इस प्रकरण में मचे हंगामा के कारण निलंबित किये जा चूके है। संसदीय इतिहास में एक दिन में इतने सांसदों का एक साथ निलंबन करने की यह सबसे बडी घटना है। सरकार की तरफ से जहां विपक्षी दलों की कार्रवाही को लोकशाही का गला घोंटने वाला बताया वहीं लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला ने इस कार्रवाही पर कहा कि संसद में तख्तियां लाना, नारेबाजी करना सदन की गरिमा के अनुकूल नहीं है। देश की जनता भी इसे पसंद नहीं करती है। अपनी कार्रवाही पर प्रकाश डालते हुये लोकसभाध्यक्ष आम बिरला ने कहा कि सभी दलों ने इस बात की सहमति जताई थी कि वे सदन में तख्तियां नहीं लायेंगे। लेकिन विपक्ष के सदस्य मर्यादा तोड रहे है। सदन तभी चलोगा जब सांसद तख्तियां नहीं लायेगे। इस पर राज्यसभा में नेता सदन पीयूष गोयल ने सदन से विपक्षी सांसदों का निलंबन न्यायोचित ठहराते हुये कहा कि विपक्ष ने लोकसभाध्यक्ष व राज्यसभाके सभापति का अपमान किया और अपने आचरण से देश को शर्मसार किया। लोकसभाध्यक्ष एवं राज्यसभा सभापति के बार बार अनुरोध के बाबजूद विपक्षी सांसदों ने हंगामा जारी रखते हुये वेल पर आ कर तख्तियां लहराते हुये शोर शराबा किया जिससे सदन की कार्यवाही में लगातार व्यवधान हो रहा था। यह विपक्ष ने सोची समझा रणनीति के तहत सदन को नहीं चलने दिया।
संसद से विपक्ष के 92 सांसदों को शीत सत्र के लिये निलंबित किये जाने पर कडी प्रतिक्रिया देते हुये कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने ट्वीट किया कि ‘पहले कुछ लोगों ने संसद पर हमला किया। अब सरकार संसद और लोकतंत्र पर हमला कर रही है। उन्होने आशंका प्रकट किया कि सरकार विपिक्ष विहीन संसद में बिना चर्चा कराये लंबित कानून पारित कर सकती है।खबरों के अनुसार संसद सुरक्षा सेवा क समीक्षा की गई तो ज्ञात हुआ कि प्रवेश स्तर सुरक्षा पर सबसे कम सुरक्षा कर्मी है। यही कर्मी संसद के भीतर आने जाने वाले लोगों, गाडियों व समान की भी जांच करते हैं। जांच रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा के लिये 72 सुरक्षा सहायक श्रेणी-प्प्के अधिकारी होने चाहिये थे पर उस समय केवल 10 थे। वहीं प्रवेश स्तर तकनीकी कर्मचारी सुरक्षा सहायक श्रेणी के 99 कर्मचारियों के बजाय केवल 39 लोगों से काम चलाया जा रहा है। वहीं लोकसभा के दूसरे सुरक्षा हेतु द्वार पर तैनाती के लिये 69 कर्मियों की मंजूरी है पर 24ही तैनात की गयी। इसके साथ संसद में संयुक्त सचिव सुरक्षा का पद खाली पडा है। यह संसद सुरक्षा के साथ गंभीर लापरवाही है। हालांकि इस प्रकरण के बाद 13 दिसम्बर को लोकसभा की सुरक्षा में हुई चूक की जांच में दिल्ली पुलिस के 8 कर्मियों को प्रारंभिक जांच के तहत निलंबित किया गया है। इस प्रकरण मेंजांच के बाद अब तक जिन 6 आरोपियों को गिरफ्त्तार किया गया उनमें संसद के अंदर कूदने व पीली गैस फैला कर दहशत फैलाने वाले सागर शर्मा व मनोरंजन डी के अलावा संसद के समीप बाहर नारेबाजी करने वाली नीम देवी व अमोल शिंदे के अलावा वहां से फरार हुये मुख्य आरोपी ललित झा व झा का साथी महेश कुमावत को पुलिस ने इस प्रकरण में सलाखों के भीतर डालने में सफलता अर्जित की। इसके साथ गुरग्राम के विक्की शर्मा व उसकी पत्नी को भी आरोपियों को अपने यहां ठहराने के मामले के दबोचा गया।
इस पूरे प्रकरण से साफ झलकता है कि सरकार व विपक्ष इस गंभीर समस्या का स्थाई निदान करने के बजाय इनका पूरा ध्यान सन् 2024 के प्रारम्भिक महिनों में होने वाले लोकसभा चुनावी जंग में अपने पाशे बिछाने पर सत्तासीन दलों व विपक्षियों का लगा है। अगर सत्तापक्ष व विपक्ष अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी समझते तो इस गंभीर मामले में भी सदन में इजरायल की तरह एकजूट हो कर इस समस्या का समाधान करने ेके लिये काम करते न की जो नूराकुश्ती संसद में दिखाई दे रही है वह करते। देश की संसदीय व्यवस्था में मजबूत पक्ष विपक्ष दोनों का होना लोकशाही व देश को मजबूती प्रदान करती है। सांसदों को समझना चाहिये कि इस प्रकार की नूरा कुश्ती से जहां विश्व में देश की जगहंसाई होती है वहीं देश की जनता का मनोबल भी गिरता है। खासकर संकट के समय देश के जनप्रतिनिधियों को दलगत संकींर्णता से दूर होकर देश के हित में एकजूट होना चाहिये तभी जनता को भी एकजूटता का सही सदेंश जायेगा।
संसद से विपक्ष के 92 सांसदों को शीत सत्र के लिये निलंबित किये जाने पर कडी प्रतिक्रिया देते हुये कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने ट्वीट किया कि ‘पहले कुछ लोगों ने संसद पर हमला किया। अब सरकार संसद और लोकतंत्र पर हमला कर रही है। उन्होने आशंका प्रकट किया कि सरकार विपिक्ष विहीन संसद में बिना चर्चा कराये लंबित कानून पारित कर सकती है।खबरों के अनुसार संसद सुरक्षा सेवा क समीक्षा की गई तो ज्ञात हुआ कि प्रवेश स्तर सुरक्षा पर सबसे कम सुरक्षा कर्मी है। यही कर्मी संसद के भीतर आने जाने वाले लोगों, गाडियों व समान की भी जांच करते हैं। जांच रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा के लिये 72 सुरक्षा सहायक श्रेणी-प्प्के अधिकारी होने चाहिये थे पर उस समय केवल 10 थे। वहीं प्रवेश स्तर तकनीकी कर्मचारी सुरक्षा सहायक श्रेणी के 99 कर्मचारियों के बजाय केवल 39 लोगों से काम चलाया जा रहा है। वहीं लोकसभा के दूसरे सुरक्षा हेतु द्वार पर तैनाती के लिये 69 कर्मियों की मंजूरी है पर 24ही तैनात की गयी। इसके साथ संसद में संयुक्त सचिव सुरक्षा का पद खाली पडा है। यह संसद सुरक्षा के साथ गंभीर लापरवाही है। हालांकि इस प्रकरण के बाद 13 दिसम्बर को लोकसभा की सुरक्षा में हुई चूक की जांच में दिल्ली पुलिस के 8 कर्मियों को प्रारंभिक जांच के तहत निलंबित किया गया है। इस प्रकरण मेंजांच के बाद अब तक जिन 6 आरोपियों को गिरफ्त्तार किया गया उनमें संसद के अंदर कूदने व पीली गैस फैला कर दहशत फैलाने वाले सागर शर्मा व मनोरंजन डी के अलावा संसद के समीप बाहर नारेबाजी करने वाली नीम देवी व अमोल शिंदे के अलावा वहां से फरार हुये मुख्य आरोपी ललित झा व झा का साथी महेश कुमावत को पुलिस ने इस प्रकरण में सलाखों के भीतर डालने में सफलता अर्जित की। इसके साथ गुरग्राम के विक्की शर्मा व उसकी पत्नी को भी आरोपियों को अपने यहां ठहराने के मामले के दबोचा गया।
इस पूरे प्रकरण से साफ झलकता है कि सरकार व विपक्ष इस गंभीर समस्या का स्थाई निदान करने के बजाय इनका पूरा ध्यान सन् 2024 के प्रारम्भिक महिनों में होने वाले लोकसभा चुनावी जंग में अपने पाशे बिछाने पर सत्तासीन दलों व विपक्षियों का लगा है। अगर सत्तापक्ष व विपक्ष अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी समझते तो इस गंभीर मामले में भी सदन में इजरायल की तरह एकजूट हो कर इस समस्या का समाधान करने ेके लिये काम करते न की जो नूराकुश्ती संसद में दिखाई दे रही है वह करते। देश की संसदीय व्यवस्था में मजबूत पक्ष विपक्ष दोनों का होना लोकशाही व देश को मजबूती प्रदान करती है। सांसदों को समझना चाहिये कि इस प्रकार की नूरा कुश्ती से जहां विश्व में देश की जगहंसाई होती है वहीं देश की जनता का मनोबल भी गिरता है। खासकर संकट के समय देश के जनप्रतिनिधियों को दलगत संकींर्णता से दूर होकर देश के हित में एकजूट होना चाहिये तभी जनता को भी एकजूटता का सही सदेंश जायेगा।
संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी में कहा कि विपक्ष सरकार को उखाड़ने की सोच रहा है जबकि हम सरकार मैं आसीन होकर देश को मजबूत बनाने के लिए काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नई इस अवसर पर कहा की भाषा की मर्यादा बने रखनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा कि लगता है 2024 में जो खाली कुर्सियों विपक्ष की दिखाई दे रही है उसमें भी2024में विपक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराएगा हम इन सीटों पर भी आसीन होने का प्रयास करेंगे।
प्रकरण से साफ लग रहा है कि सरकार हो सकता है तुरंत लोकसभा चुनाव कर दे और संसद भंग कर दे। क्योंकि चुनाव मार्च अप्रैल की बजाय 10वीं परीक्षा की प्रारंभ होने से पहले भी करने पर किया जा सकता है। यह भी हो सकता है कि आज विपक्षी दलों की जो बैठक दिल्ली में हो रही है उसमें विपक्षी दल सामूहिक रूप से लोकसभा से इस्तीफा दे सकते हैं।