दुनिया

यूक्रेन को सदस्य नहीं बलि का बकरा बनाकर रूस से युद्ध की भट्टी में झोंककर तबाह करना चाहता है नाटो

विलनियस शिखर सम्मेलन में नाटो से मिले विश्वासघात के बाद भी नहीं टूटा जेलेंस्की का नाटो मोह

-देवसिंह रावत

विलनियस  में कल ही सम्पन्न हुये नाटो के शिखर  सम्मेलन में एक बार फिर नाटो के सदस्य बनने की अंधी लालसा में अपने देश को युद्ध में तबाह कर चूके यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्सकी को मुंह की खानी पड़ी। नाटो ने यूक्रेन को सदस्यता न दे कर स्वीडन को सदस्यता देने का ऐलान किया। हालांकि नाटो ने विलनियस शिखर सम्मेलन से पहले ही ऐसे संकेत दे दिये थे कि नाटो की सदस्यता अभी यूक्रेन को नहीं मिलेगी। इसके बाबजूद सदस्यता मिलने की आश से नाटो के आमंत्रण पर जेलेंस्की विलनियस पंहुचे थे।
जेलेंस्की की मांग के बारे में प्रत्युतर देते हुये नाटो महासचिव जेन स्टोल्टेनबर्ग, (नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री भी रहे ं)ने दो टूक शब्दों में कहा कि सबसे बडी बात यह है कि यूक्रेन देश  पहले रूस के खिलाफ युद्ध जीते, क्योंकि जब यूक्रेन  अस्तित्व में रहेगा  तभी सदस्यता पर बातचीत का मतलब है। नाटों के इस बयान से आक्रोशित जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन को आमंत्रित करने और उसकी सदस्यता के लिये कोई समय सीमा तय नहीं किया जाना अभूतपूर्व और बेतुका है। अनिश्चितता कमजोरी होती है । हम अपने सहयोगियों को महत्व देते हैं । यूक्रेन भी सम्मान का हकदार है।
परन्तु अमेरिका व नाटो के मोह में जेलेंस्की व यूक्रेन इतना विवेकहीन हो गया है कि नाटो को आज इस बात काविश्वास ही नहीं है कि यूक्रेन रूस से युद्ध के बाद अपना वजूद बचा पायेगा। यह नाटो के महासचिव के बयान से यही उजागर होता है। अगर नाटो की मंशा रहती कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने तो वह कब का उसे सदस्यता से प्रदान कर चूका होता। नाटो ने फिनलैंड को सदस्य बना दिया। उसके बाद अब स्वीडन को भी सदस्यता दे कर अपने गिरोह की सदस्य संख्या 32 कर चूका है। परन्तु वह सदस्यता के लिये नाटो के सबसे बडे विरोधी रूस से कई महिनों से युद्ध में अपना सर्वनाश करा चूूके यूक्रेन को सदस्यता देने के लिये तैयार नहीं है। जिस स्वीडन में हाल में ही इस्लाम की सबसे पाक धार्मिक पुस्तक का अनादर करने का काम किया, उस स्वीडन को भी नाटो अपना सदस्य बनाने की स्वीकृति प्रदान कर चूका है। वह भी दुनिया में खुद को मुस्लिम देशों का रहनुमा होने का दंभ भरने वाले टर्की ने भी स्वीडन की सदस्यता के लिये अपनी सहमति प्रदान कर दी।
पर इस शिखर सम्मेलन से भी जेलेंस्की व उसका देश यूक्रेन नाटो की सदस्यता  न मिलने से खुद को ठगा महसूस कर रहे है। एक सरल सी बात यूक्रेन के समझ में नहीं आ रही है। अमेरिका यूक्रेन को सदस्यता  का झांसे में फंसा कर रूस के खिलाफ युद्ध में झोंकने का मोहरा मात्र बना कर यूक्रेन के साथ रूस की ताकत क्षीण  करना चाहता है। यूक्रेन हर दिन तबाह हो रहा है  पर नाटो उसको युद्ध विराम कराने के बजाय हथियारों का प्रर्दशन व नुमाईश  कराने के लिये युक्रेन को हथियार दे कर युद्ध की विनाशकारी भट्टी में झोंक रहे है। इसके साथ रूस को युक्रेन के साथ युद्ध कराकर अपने हथियारों का व्यापार बढाने में लगा  है।  इस युद्ध से पूरे विश्व में असुरक्षा का वातावरण बन गया जिसका अंधा दोहन करके अमेेरिका अपने हथियारों का बाजार का विस्तार कर रहा है। पूरी दुनिया में हथियार खरीदने की होड़ मची हुई है। नाटो एक प्रकार से अमेरिका का बर्चस्व वाले हथियार विक्रेता व पश्चिमी देशों के हितों के पोषक गिरोह है। नाटो के कारण  संयुक्त राष्ट्र मात्र नाममात्र का संगठन रह गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में इतनी नैतिकता व सामर्थ्य है कि वह अपने विस्तार के लिये विश्व शांति को खतरे में डाल रहे नाटो को रूस के साथ टकराव की कुनीति छोड़ने की सलाह तक दे सके।
जबकि यूक्रेन, नाटो की सदस्यता के झांसे में फंस  कर  विगत कई माह से रूस से भीषण आत्मघाती युद्ध लड कर अपने देश का सर्वनाश करा रहा है। रूस अपने सोवियत परिवार के अहम सदस्य रहे यूक्रेन से इसी बात से आक्रोशित हो कर युद्ध लड़ रहा है कि वह सोवियत संघ की तरह ही रूस के दुश्मन नाटो का सदस्य न बने। रूस द्वारा कई बार समझाने के बाबजूद अपनी सुरक्षा के नाम पर अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो की सदस्यता कवच पहनने के लिये इतना अंधा है कि उसने अपने परिवार के सदस्य रूस से दुश्मनी मोल ले कर अपना सर्वनाश करा बेठा। इस युद्ध के कारण जहां लाखों यूक्रेनी विस्थापित हो कर शरणार्थी का जीवन जीने के लिये अभिशापित है। वहीं हजारों लोग मारे जा चूके है। इस युद्ध में यूक्रेन के कल कारखाने ही नहीं अपितु विकास का पूरा आधारभूत ढांचा तबाह हो गया है। इसके बाबजूद नाटो के मोह में अंधे बने जेलेन्सकी का मोह न टूट रहा  है व नहीं यूक्रेन की जागरूक जनता में इतना साहस ही जाग रहा है कि वह अमेरिकाके मोह में यूकेंन को बर्बाद करने को तुले जेलेन्सकी के सर पर चढ़े नाटो का सदस्य बनने का भूत उतार सके। हकीकत यह है कि न केवल जेलेस्की अपितु पूरे यूक्रेनी तंत्र पर अमेरिका ने नाटो का शिकंजा कसा हुआ है। यह शिकंजा तभी टूटेगा जब अमेरिका चाहेगा। वह लादेन की तरह  जब जेलेन्सकी भी काम का नहीं रह जायेगा, जब उसको हटा कर किसी दूसरे मोहरे को सामने कर देगा।

About the author

pyarauttarakhand5