कर्नाटक की शर्मनाक पराजय से निराशा में डूबी भाजपा को 2024 की जंग जीतने के लिये कैसे उबारें मोदी!
दुष्टों से पहले कालनेमियों को दंडित करते हैं बजरंगबली
–देवसिंह रावत
भले ही कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के परिणाम 13 मई को निर्वाचन आयोग ने मतगणना के बाद घोषित कर दिये है। इसके तहत 224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस पार्टी को 135, सत्तारूढ भाजपा को 66, जनता दल सेकुलर को 19, कल्याण राज्य प्रगति पक्ष को 1, सर्वोदय कर्नाटक पक्ष को 1 व स्वतंत्र प्रत्याशियों को 2 सीटों पर विजय मिली। कर्नाटक में मिले जनादेश प्रतिशत के आंकडे पर नजर दोडायें तो सत्तासीन रही भाजपा को 36 प्रतिशत, विजयी कांग्रेस को 42.9 प्रतिशत व जदस को 13.2 प्रतिशत, केजरीवाल की आप को 0.58प्रतिशत, बसपा को 0.31 प्रतिशत व ओवसी की पार्टी को 0.02 प्रतिशत मत मिले। परन्तु इन चुनाव परिणामों के निकले तीन दिन बीत जाने के बाद भी प्रदेश व देश की जनता के दिलों दिमाग में उमड रहे तीन महत्वपूर्ण सवालों का जवाब देने में इन चुनाव में विजयी रही कांग्रेस, पराजित हुई भाजपा व देश के चुनावी पण्डित देने में असफल रहे। ये तीन सवाल है कर्नाटक के इस जनादेश के ताज का असली हकदार कोन है? दूसरा सवाल है कि कर्नाटक चुनाव में महाबली बजरंग बली के शरणागत हुई भाजपा को क्यों मिली पराजय ? तीसरा सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कर्नाटक में भाजपा को मिली शर्मनाक पराजय का असली गुनाहगार कौन है? 2024 के लोकसभा चुनाव की भंवर में फंसी भाजपा की नौका को कोन लगायेगा पार?
आज हम इन तीन महत्वपूर्ण सवालों का उतर देश की जनता के समक्ष रखते हैं। भले ही कांग्रेस ने संगठित हो कर भाजपा के फिर से कर्नाटक विजय होने के दावों की हवा निकालकर चुनावी जंग जीतने में सफल रही। परन्तु कांग्रेस आला कमान इस जंग जीतने के बाबजूद चुनाव परिणाम निकलने के कई दिन बाद भी प्रदेश का मुख्यमंत्री कोन होगा, खबरिया जगत में तीन नाम हवा में उछाले जा रहे है। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष डी के शिवकुमार और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे। परन्तु नव निर्वाचित विधायकों की मंशा जानने, कांग्रेस नेतृत्व की कई दौरों की बेठकों के बाबजूद कांग्रेस नेतृत्व इस जीत के असली हकदार शिवकुमार की ताजपोशी का ऐलान त्वरित न करके कांग्रेस में असंतोष को हवा देने का आत्मघाती काम ही कर रहा है। इसका समाधान त्वरित न करके प्रदेश की जनता के साथ अपने समर्पित कार्यकत्र्ताओं को अपने कुशल नेतृत्व का परिचय नहीं दे पायी। कांग्रेस नेतृत्व की इसी कमजोरी से जहां आंध्र प्रदेश, पंजाब, उतराखण्ड में आायी हुई सत्ता दूर हो गयी। कांग्रेस नेतृत्व की इसी कमी के कारण मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों में भाजपा सेंध मारने में सफल रही। वहीं इसी कमजोरी के कारण राजस्थान व छत्तीसगढ में कांग्रेस की गुटबाजी कांग्रेस के भविष्य व प्रदेश में किये जनादेश के वादों को जमीदोज कर रही है। भले ही कर्नाटक में कांग्रेस में सिद्धारमैया अनुभवी नेता हैं परन्तु डी के शिव कुमार ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कडी मेहनत करके मृतप्राय पार्टी को विजयश्री दिलाने आदि समर्पण का कार्य किया, उससे कांग्रेस नेतृत्व को बिना लाग लपेट व भय के शिव कुमार को मुख्यमंत्री का ताज पहनाना चाहिये। भाजपा नेतृत्व के अमोध बंजरंग बली ब्रह्मास्त्र को बजरंगबली की शरणागत कांग्रेस को करके शिवकुमार ने जिस बुद्धिमता से दिया, उसका स्वागत प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के पक्ष में जनादेश देकर दे कर भाजपाईयों को भी हैरान कर दिया। वहीं तत्वज्ञानियों ने इस का रहस्य उजागर किया कि बजरंगबली हमेशा दुष्टों से पहले कालनेमियों को ही दण्डित करते है।
कांग्रेस आला नेतृत्व को इस बात से भ्रमित किया जा रहा है कि शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनते ही केंद्रीय ऐजेन्सियां शिव कुमार को पुराने मामलों में गिरफ्तार कर सकती है। इससे कांग्रेस की छवि खराब होगी। ऐेसी आशंका या कदम से कांग्रेस नेतृत्व को घबराना नहीं चाहिये। इससे कांग्रेस के बजाय केंद्र की सत्ता में आसीन भाजपा पर प्रतिशोध का आरोप लगेगा। जनता भी सवाल करेगी कि शिवकुमार को तभी शिकंजा क्यों डाला गया जब वह मुख्यमंत्री बना। इससे पहले क्यों उसे बंद नहीं किया गया? इस आपात स्थिति के लिये कांग्रेस नेतृत्व को सिद्धारैमया को तैयार रखना चाहिये। आखिर मेहनती व समर्पित नेताओं को उचित सम्मान तो मिलना ही चाहिये। वेसे कांग्रेसी नेतृत्व का अपने शकुनि सलाहकारों के कारण महत्वपूर्ण अवसरों को गंवाने का एक लम्बा इतिहास रहा। सप्रंग सरकार के अंतिम दो सालों में राहुल गांधी की ताजपोशी का अवसर गंवा कर कांग्रेस ने जहां दिल्ली के तख्त ताज पर मोदी की ताजपोशी का मार्ग प्रशस्त किया वहीं अपने भविष्य पर ग्रहण लगाने की अक्षम्य भूल की। ऐसी दिशाहीनता के कारण अब देश की सत्ता पर पुन्नः आसीन होने का संयोग कांग्रेस को केंद्रीय सत्ता पर भाजपा के आसीन होने के बाद शायद ही मिलेगा। कांग्रेस नेतृत्व की इसी अक्षमता को देखते हुये कर्नाटक में कटरपंथी फिर सर उठा कर मुस्लिम उप मुख्यमंत्री की मांग उठा रहे है। कटरपंथियों पर अंकुश लगाने के बजाय कांग्रेस ने बजरंग दल पर पावंदी लगाने की घोषणा करने की भूल की उसको शिव कुमार ने जिस बुद्धिमता से बजरंग बलि की शरणांगत हो कर सुधारा उसकी आशा कर्नाटक के अन्य मुख्यमंत्री के दावेेदार नेताओं से नहीं की जा सकती।
भले ही कर्नाटक में जीत का श्रेय कांग्रेस के लोक लुभावने चुनावी वादों को भी दिया जा रहा है। कर्नाटक मे कांग्रेस के चुनावी वादों में प्रमुख है-
गृह लक्ष्मी स्कीम-महिलाओं को हर महिने 2000रूपये।
युवा निधि-बेरोजगार स्नातक को दो साल के लिये 3000रू, डिप्लोमाधारियों के लिये 1500रूपये।
अन्न भाग्यः-गरीबी रेखा के नीचे हर परिवार को हर महीने प्रति व्यक्ति 10 किलो ग्राम चावल।
कांग्र्रेसे ने कर्नाटक के दो बडे कांग्रेसी दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया व शिव कुमार के बीच तालमेल बनाये रखकर कांग्रेस को संगठित व मजबबूती प्रदान करने में सफल रही।
सखी कार्यक्रमः-महिलाओं के लिये सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा।
गृह ज्योतिः- हर घर को 200 यूनिट निशुक्ल बिजली।
परन्तु ऐसा तर्क देने वालों को उप्र विधानसभा चुनाव व दिल्ली नगर निगम चुनाव में कांग्र्रेस द्वारा किये गये चुनावी वादों पर भी नजर डालनी चाहिये। इन वादों पर उप्र व दिल्ली की जनता ने इसलिये विश्वास नहीं किया कि वहां जनता के पास कांग्रेस का कोई शिवकुमार जैसा समर्पित व जुझारू नेता नहीं है। ये वायदे कुछ सराहनीय है और कुछ दिल्ली के केजरीवाल सरकार की तरह लिंगभेद व अन्यायपूर्ण है। परन्तु चुनावी समर में सभी दल जनादेश के लिये ऐसे तमाम तिकडम कर रहे है। वह निंदनीय है। बेजराजगारी भत्ता सराहनीय है पर इसके साथ रोजगार के स्थाई अवसरों को बढाना चाहिये।
वेसे कर्नाटक में हुई भाजपा की हार के लिये लोग कई तर्क दे रहे है कि भाजपा विरोधी एकजूट हो गये, मुस्लिमों ने एक तरफा मतदान भाजपा के खिलाफ दिया।हिंदू मत विभाजित हुआ। परन्तु कर्नाटक की हार के मुख्य कारण पर कोई प्रकाश डालने का साहस तक नहीं कर रहा है। जहां तक सवाल है भाजपा विरोधियों के एकजूट होने या मुस्लिम मतों का धुब्रीकरण का। पहली बात यह है कि जो भी सत्ता में रहता है उसके खिलाफ विरोधी दल प्रायः एकजूट ही होते है। जब कांग्रेस देश की सत्ता में मजबूत थी सभी दल कांग्रेस के खिलाफ गोलबंद होते थे। रही बात मुस्लमानों की। आखिर मुस्लमानों ने कब भाजपा के पक्ष में एकजूट हो कर मतदान किया। भाजपा व मुस्लमान प्रायः एक दूसरे से दूरियां आज की नहीं अपितु भाजपा के जन्म से अब तक है। फिर समर्थन की आश कैसे? कर्नाटक की हार के जो कारण बताये जा रहे है उनमें
सत्ता विरोधी लहर का कोई उपाय अति आत्मविश्वास से भरे भाजपा नेतृत्व करने में असफल रही। मंहगाई व बेरोजगारी जैसे ज्वलंत समस्याओं का समाधान नहीं कर पायी। जिसने कांग्रेस ने बखुबी से उठाया। बेवजह संप्रदायिक द्वेष व धुव्रीकरण आत्मघाती रहा। बजरंगबलि दुष्टों से पहले कालनेमियों के लिये ही काल साबित हुये।
पर कर्नाटक की हार का मुख्य कारण भाजपा आला नेतृत्व द्वारा कांग्रेस का अंधानुशरण करते हुये प्रांतीय नेतृत्व को कमजोर करके वहां पर अपने मोहरे थोपना रहा। कर्नाटक में जहां कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व प्रमुखता से भाजपा पर प्रहार कर रहा था वहीं भाजपा ने कर्नाटक के प्रांतीय नेतृत्व को हाशिये में धकेल दिया । भाजपा में गुटबाजी व समर्पित वरिष्ठों को नजरांदाज करने वाला कदम आत्मघाती साबित हुआ। खासकर येदियुरप्पा जैसे कर्नाटक के क्षत्रप की उपेक्षा कर केंद्रीय नेतृत्व की मनमानी भी कर्नाटक में भाजपा के शर्मनाक पराजय का कारण बनी। भाजपा के वर्तमान नेतृत्व ने भी अटल आडवाणी के जमाने (2012 ) में अपने प्यादे को कर्नाटक की सत्ता में काबिज करने के लिये सत्ता से बेदखल कर भाजपा की जडों में मट्ठा डाला। कर्नाटक में भाजपा द्वारा बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाने की आत्मघाती भूल ही साबित हुई। भाजपा को कांग्रेस के पतन से यह सीख लेनी चाहिये थी कि सत्ता में काबिज रहना अलग बात है पर लोकशाही में स्थानीय व प्रांतीय नेतृत्व को जमीदोज करके आप मोहरों को थोप कर न अपने दल का भला कर सकते है व नहीं देश प्रदेश का चहुमुखी विकास। जिस प्रकार से भाजपा नेतृत्व ने े उत्तराखंड के अनुभवी व समर्पित नेतृत्व की उपेक्षा करके जनता द्वारा नक्कारे प्यादों की बलात ताजपोशी केी, उससे प्रदेश के चहुमुखी विकास व राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को निर्ममता से रौंदा जा रहा है, उससे जनता ऐसी डब्बल इंजन की सरकार से छली महसूस कर रही है। जिस प्रकार से डब्बल इंजन की सरकार के मंत्री आम जनता से सडक पर मारपीट कर रहे है, शासन अंकिता भण्डारी जैसे प्रकरण के असली गुनाहगार का नाम तक उजागर नहीं कर रहा है, रोजगार प्रदान करने के बजाय मुख्यमंत्री व विधानसभाध्यक्षों आदि द्वारा अपनों को नौकरियों की बंदर बांट की गयी, हल्द्वानी व जोशीमठ प्रकरण सहित गैरसैंण जैसे मुद्दों का त्वरित समाधान नहीं किया गया। मूल निवास व भूकानून को नजरांदाज कर प्रदेश में घुसपेठियों व अवैध बस्तियों के साथ अपराधियों की ऐशगाह बना दी, उससे लगता है प्रदेश की शांत वादियां कश्मीर, असम व असम की तरह देश विरोधी ताकतें सर उठायेगी। जिस प्रकार से यहां जनसंख्या में तेजी से बदलाव हो रहा है उससे प्रदेश की शांति व विकास पर ग्रहण ही लगेगा।
ऐसी ही स्थिति राजस्थान में देखने में नजर आ रही है। वहां पर भाजपा व कांग्रेस दोनों का आला नेतृत्व प्रांत में मजबूत नेताओं को दर किनारे करके अपने मोहरे थोप रहे है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जहां राजस्थान में वहां की सबसे मजबूत व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के बजाय अपने मोहरों की ताजपोशी चाहते है। राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिये राजनैतिक दलों ने रणभेरी बजा दी है पर राजस्थान की राजनीति में मजबूत पकड रखने वाली सिंधिया से भाजपा केंद्रीय नेतृत्व टकराव शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में कडी मेहनत करने वाले पायलट को दर किनारे करके राजनीति के घाघ नेता अशोक गलहोत को सत्तासीन करने की भूल की। सत्तासीन होने के बाद कांग्रेस के कमजोर केंद्रीय नेतृत्व में इतना दमखम नहीं रहा कि वह इंदिरा के जमाने की कांग्रेस आला कमान की तरह सचिन पायलट की तुरंत ताजपोशी कर सके। इसी का फायदा गहलोत उठा रहे हैं। स्थिति इतनी हास्यास्पद है कि भाजपा ने वसुंधरा पर अंकुश लगा पा रही है व नहीं कांग्रेस गहलोत पर। सचिन पायलट इन दिनों यात्रा कर रहे हैं कि वसुंधरा के राज के भ्र्र्र्र्र्र्रष्टाचारों की जांच हो। वहीं गहलोत पर आरोप लगा रहे हैं कि वे वसुंधरा से मिले हुये हैं। राजस्थान में भाजपा व कांग्रेस की स्थिति हास्यास्पद बनी हुई है। शायद ऐसे ही प्रकरणों से उबरने के लिये किसी भी दल का आला नेतृत्व अपने दल में मजबूत आला कमान चाहता है परन्तु अन्य सभी नेता मोहरे की चाहता है। इसी से लोकशाही के नाम पर दलीय लोकशाही का गला घोंटा जाता है।
ठीक ऐसा ही कार्य भाजपा द्वारा कर्नाटक में किया गया। कर्नाटक में भाजपा के अधिकांश फैसले बी.एल. संतोष ने लिए। वहीं प्रदेश में सरकार का नेतृत्व बासवराज बोम्मई कर रहे थे, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने यहां जोरदार प्रचार किया- ऐसे में सवाल उठता है कि इस हार की जिम्मेदारी किसकी है? वहां के स्थानीय नेतृत्व येदियुरप्पा के अलावा जगदीश शेट्््टार आदि नेताओं की उपेक्षा की गयी। दिल्ली दरवार कर्नाटक में भी डबल इंजन की सरकार के नाम पर मन मर्जी कर रहे थे।
भाजपा मध्य क्षेत्र लिंगायत बाहुल्य क्षेत्र व महाराष्ट्र ससे लगा कर्नाटक के क्षेत्रों में जगदीश शेट्टार आदि नेताओं के विद्रोह का खमियाजा भी भाजपा को उठाना पडा। अगर यह मनमर्जी जनहितों को साकार करने के लिये होती तो जनता का साथ मिला। भ्रष्टाचार ले डूबा कर्नाटक में भाजपा कोः-कर्नाटक में भाजपा सरकार मोदी सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन देने के अभियान का परचम कर्नाटक शासन में उताररने में पूरी तरह से असफल रही। कर्नाटक में कांग्रेस ने भाजपा की इसी भ्रष्टाचारी राग ‘पे सीएम’ नाम से चुनाव से पूर्व कई महिनों तक जोरदार प्रहार किया। भले ही कांग्रेस एक भी सबूत या किसी को कटघरे में खडा नहीं कर पायी परन्तु यह आरोप जनता के गले उतर गया। ऐसा नहीं कि यह केवल कांग्रेस का आरोप रहा। कर्नाटक राज्य ठेकेदार संघ ने भी यह शिकायत की थी कि कर्नाटक सरकार में हर टेंडर को अर्जित करने के लिये 40 प्रतिशत कमीशन वसूली जा रही है। जब डब्बल इंजन की कर्नाटक सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा पर केेंद्रीय नेतृत्व ने कोई कदम उठाने की कोशिश नहीं की।
जहां भाजपा के पास प्रदेश स्तर पर सरकार की उपलब्धियों को गिनाने में असफल रही। वह केवल केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्यियों का बखान कर जनता को लुभा रही थी। वहीं कांग्रेस ने अपना पूरा चुनाव अभियान कर्नाटक पर केंदीत करके किया। कांग्रेस ने जिस प्रकार अमूल दूध की कर्नाटक में व्यापार बढाने की घोषणा को भी कर्नाटक के हितों पर प्रहार बताते हुये उसे नंदिनी व्यवसाय से जोडा। उसको जनता ने अपने जनादेश से एक प्रकार से मुहर लगा दी। सत्तासीन होने के बाद भाजपा ने जनादेश अर्जित करते समय जनता से किये वादों को ही पूरा करने का प्रयास तक नहीं किया। जिससे जनता का विश्वास भाजपा से उठ गया। इसके कारण मोदी सहित केंद्रीय नेतृत्व के तमाम वादे व आश्वास जनता के गले नहीं उतरा। इसके साथ राहुल गांधी की भारत जोडो यात्रा के दोरान कर्नाटक के कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं में नया जोश भर दिया वहीं इससे कांग्रेस से विमुख हो चूकी जनता को भी कांग्रेस से जोडने में सफल रही।
ऐसे में कर्नाटक की संभावित पराजय की आशंकाओं को देखते हुये भाजपा के खबरिया जगत के प्रबंधकों ने कर्नाटक चुनाव परिणामों के दौरान भाजपा के सर्वशक्तिमान मोदी के स्थान पर भाजपा अध्यक्ष नड्डा की तस्वीर को प्रमुखता से रखवाया। परन्तु जनता जानती है कि यह हार नड्डा की न हो कर भाजपा के आला नेतृत्व की है। जो प्रांत में डब्बल इंजन की सरकार के नाम पर जनादेश की मांग करते है। अगर जीत का श्रेय केंद्रीय नेतृत्व को है तो हार को वहन करने की नैतिकता केंद्रीय नेतृत्व में होनी चाहिये। जिस प्रकार से भाजपा व कांग्रेस के केदं्रीय नेतृत्व ने प्रांतीय समर्पित व मजबूत नेतृत्व को कमजोर करके अपने मोहरों को प्रदशों में सत्तासीन किया उसका खमियाजा देश प्रदेश की जनता के साथ सत्तारूढ दल को भी चूकाना पडता है।
कर्नाटक का चुनाव भाजपा के लिये हारने के बाबजूद किसी बरदान से कम नहीं है। यह ंहार भाजपा नेतृत्व को अपने कार्यों की समीक्षा करने का अवसर देता है। अगर भाजपा नेतृत्व ईमानदारी से देश व प्रदेश की सत्ता में अपने प्रांतीय व प्रतिभावान नेताओं को सत्तासीन करे तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पुन्नः सत्तासीन होने से दिशाहीन, पथभ्रष्ट व अतिमहत्वकांक्षी विपक्ष नहीं रोक सकता है। देश की जनता भी चाहती है कि देश व प्रदेश में जो भी सरकार हो वह देश की संस्कृति, सुरक्षा, विकास करने के लिये समर्पित हो। देश में रोजगार बढाये, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाये। देशद्रोहियों, अपराधियों के साथ पाक चीन के नापाक गठजोड पर कडा अंकुश लगाये। देश में जनता को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन प्रदान करे। जो भी दल देशद्रोहियों व कटरपंथियों को बढावा दें उन पर कडाई से अंकुश लगाये। भ्रष्टाचार के मामले में दलीय स्वार्थों से उपर उठ कर देश को पथभ्रष्ट व कमजोर करने वाले तत्वों पर अगर मोदी जी अंकुश लगायें तो देश की जनता 2024 में भी 2014 व 2019 की तरह उन्हें भारी बहुमत से सत्तासीन करेगी। जरूरत है पारदर्शी, जबाबदेही व भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्रवादी मूल्यों का शासन संचालित करने वाली सरकार व दलों का। जो दलीय स्वार्थो के लिये देश को जाति, संप्रदाय, लिंग व क्षेत्र की संकीर्णता से उबार कर देशद्रोही, भ्रष्टाचारियों व अपराधियों पर बिना पक्षपात के अंकुश लगाने की। इसके लिये सत्तारूढ दल को 2014 के अपने चुनावी वादों को अमलीजामा करने की जरूरत है। मोदी जी मन की बातों की पुस्तकों में उतारने के बजाय अपने 2014 के जनता को दिये आश्वासन को साकार करने का।
कर्नाटक चुनाव परिणाम एक शुभ अवसर है भाजपा सहित देश के तमाम दलों के नेतृत्व के पास। अपने कार्यो की समीक्षा करे अपनी असफलता को दोष, किसी समाज व जनता को देने के बजाय अपनी कमियों का ईमानदारी से दूर कर राजनीति को देश के संसाधनों को अपने निहित स्वार्थो पर लुटाने के बजाय देशहितों व जनहितों को साकार करने का। राजनेताओं द्वारा अपने वेतन, सुविधाओं पर करोड़ों रूपये लुटाने तथा न्याय पालिका में गुनाहगारों को सजा न मिलने से देश की आम जनता निराश है। देश के हुक्मरानों को लोकशाही को मजबूत करना चाहिये न की अपनी सुख सुविधायें व दलीय स्वार्थ को। जनता जब दलीय मोह से उपर उठ कर सुशासन न देने वालों को सत्ताच्युत करने का विवेकपूर्ण जनादेश देगी, तभी देश के हुक्मरान अपने कृत्यों को सुधारने दिशा में कदम उठाने के लिये मजबूर होंगे।