देव सिंह रावत
भूत को ही एक मात्र अंतिम सत्य मानकर उसका अंध अनुकरण करने से न वर्तमान संवरता है न ही भविष्य। अपितु देश व संसार में राग द्वेष ही फैलता है।व्यक्ति, देश व विश्व का कल्याण तभी हो सकता है जब वह जाति, क्षेत्र, सम्प्रदाय, दल व निहित स्वार्थ के मोह में ग्रसित न हो कर सत, न्याय व सर्वभूत हित में समर्पित रहे। जीव को भूत व वर्तमान आदि से उन्हीं आदर्शों व मूल्यों को आत्मसात करना चाहिये जो खुद व जगत के हित की में हो। बाकि को त्याग देना चाहिये।हमें अपने वर्तमान के दायित्व का निर्वहन यह सोच कर करना चाहिये कि कोई भी भूत वर्तमान से बढ़ कर नहीं होता है। जाति, क्षेत्र, सम्प्रदाय, दल, लिंग, पद,सम्पदा, प्रतिष्ठा व नश्ल को अपनी एक मात्र पहचान समझ कर खुद को श्रेष्ठ व दूसरों को हेय मानने वाले ही मानवता, देश व खुद के दुश्मन होते हैं।यह सब अज्ञानता से ही होता है।