देश

अतीक को उप्र लाने की खबरों से  जमीदोज हुई अडानी प्रकरण-राहुल गांधी की सदस्यता रद्द, अमृतपाल की खबरें

मोदी शाह के पाशों के प्रहार से पीडित कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को नहीं मिल रही  है आम जनता की सहानुभूति

कायरता,पलायनवाद ,अहंकार व अत्याचार आदि को न महाकाल स्वीकार करता है व नहीं भारत की जनता

देवसिंह रावत –

भारत में इन दिनों अजीबोगरीब राजनीति चल रही है। आम जनता समझ नहीं पा रही है कि यह क्या हो रहा है। देश की आम जनता एक तरफ मंहगाई, बेरोजगारी, आतंक, भ्रष्टाचार व पाकिस्तान चीन सहित भारत विरोधी तत्वों के दंश से मर्माहित हैं। परन्तु देश के भाग्य विधाता बने सांसद, देश की सर्वोच्च सदन संसद में इन मुद्दों का समाधान करने के बजाय शोरशराबा करके संसद को एक पखवाडे से ठप्प किये हुये है। संसद को संचालित करने को दायित्व सरकार व विपक्ष दोनों पर है। परन्तु सत्तापक्ष से अपेक्षा की जाती है कि उसका रवैया अडियल न हो कर सदन को किसी भी सूरत में संचालित करने का होना चाहिये। चाहे विपक्ष कुछ मुद्दों पर हाय तोबा मचाये तो उसको समझा बुझा कर सदन की कार्यवाही संचालित करने की गुरूतर दायित्व सरकार का होता है।
परन्तु यहां बिलकुल उल्टा ही दिखाई दे रहा है। होली के बाद बजटसत्र के दूसरे चरण के प्रारंभ से ही मोदी सरकार वाली सत्तासीन भाजपा व उसके सहयोगी दल, राहुल गांधी के विदेश में दिये गये एक बयान को देश व लोकशाही का अपमान बता कर राहुल गांधी से देश से माफी मांगने की मांग करते हुये संसद में हायतोबा मचा कर संसद नहीं चलने दे रही थी, वहीं कांग्रेस सहित विपक्षी दल प्रधानमंत्री मोदी पर विश्व विख्यात उद्योगपति अडाणी की जुगलबंदी की जांच संसदीय समिति से कराने की मांग कर होयतोबा मचा रही थी। विपक्ष का आरोप है कि प्रधानमंत्री ने अपने चेहते अडाणी के उद्यमों में  देश के नवरत्नों स्टेट बैंक व भारतीय जीवन बीमा निगम की अरबों खरबों की दौलत लगा कर देश का अहित किया है। उल्लेखनीय है कि यह मांग विपक्ष बजट सत्र में निरंतर लगा रही थी। परन्तु इस दोरान  24 जनवरी 2023 को अमेरिका की एक संस्था  ‘हिडनबर्ग’ ने  अपना अनुसंघान जांच जारी करके अडाणी उद्यम पर आरोप लगाया कि उसने शेयरों की कीमत पर हेरफेर, टेक्स चोरी सहित कई गंभीर आरोप लगाया। इससे कंपनी के शेयरों की कीमतें गिरी। इससे अडाणी को अरबों का नुकसान हुआ। इसके बाद अडाणी व प्रधानमंत्री की पहले से जुगलबंदी का आरोप लगा रही विपक्ष ने मोदी सरकार पर जबरदस्त प्रहार किया। संसद में राहुल गांधी सहित तमाम विपक्षी दलों ने इस पर प्रधानमंत्री पर सीधे प्रहार किये। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अपने प्रत्युत्तर में इस प्रकरण पर मोन साधते हुये विपक्ष पर प्रचण्ड प्रहार किये।
यह प्रकरण पर मोदी सरकार पूरी तरह घिरी हुई थी। इसमें मोदी सरकार अपना बचाव करने में इन सवालों का जवाब देने के बजाय विपक्ष पर प्रचण्ड प्रहार करने की आक्रामक नीति बनायी। स नीति का शंखनाद भी प्रायः छोटे मोटे विवादों पर  मूक रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। उन्होने संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण के प्रारंभ से एक दो दिन पहले ही कर्णाटक में एक सभा में राहुल गांधी का नाम न लेते हुये विदेश में भारत व भारतीय लोकशाही पर प्रहार करने की कड़ी भत्र्सना की। पहले ऐसे सामान्य विवाद पर भाजपा के प्रवक्ता ही आरोप प्रत्यारोप लगाते रहते। परन्तु होली के बाद प्रारम्भ होने वाले बजट सत्र में अडाणी मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी पर विपक्ष का सामुहिक प्रहार की प्रचण्डता की धार को कूंद करने के लिये सत्तारूढ भाजपा सरकार के चाणाक्य शाह व मोदी की जोड़ी ने पहले से चली आ रही परंपरागत राजनीति से हटकर विपक्ष के तमाम प्रहारों की धार सत्ता कूंद करने का सत्ताधारी दाव चला। इस दाव की कमान संसद का सत्र प्रारम्भ होते ही भाजपा के वरिष्ठ नेता व देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व पीयूष गोयल जैसे नेताओं ने संसद के दोनों सदन में विदेश में  राहुल गांधी के भाषण को देश व लोकशाही का अपमान बताते हुये तुरंत देश से माफी मांगने की मांग की। अपने वरिष्ठ नेताओं से मिले संदेश को देखते हुये सत्तारूढ भाजपा गठबंधन के सांसदों ने संसद में राहुल गांधी माफी मांगो, राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करो’ के नारों से सदन  को गूंजायमान कर विपक्ष सहित संसद की कार्यवाही के विशेषज्ञों को भौचंक्का कर दिया। सत्ता पक्ष की अप्रत्याशित रणनीति के जवाब में विपक्ष ने मोदी अडाणी के नारे लगाते हुये अडाणी प्रकरण की जांच के लिये  संसदीय समिति के गठन की मांग करने की नारेबाजी की। एक दो दिन  नहीं एक पखवाडे से इन्हीं शोर शराबे की भैंट संसद का यह सत्र चला गया।
इसी दोरान आक्रामक विपक्ष की धार को कूंद करने के लिये अचानक गुजरात की एक अदालत द्वारा राहुल गांधी पर चल रहे मोदी उपनाम के एक मानहानि वाद में राहुल गांधी को दो साल की सजा सुना कर देश की राजनीति में एक प्रकार से भूचाल ला दिया। जैसे ही अदालत ने राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनायी तथा  इस मामले में जमानत देते हुये इस फैसले के खिलाफ फरियाद करने का 30 दिन का समय भी दिया। न्यायालय के फेसले के 24 घण्टे के अंदर ही राहुल गांधी की सदस्यता भी रद्द किये जाने से कांग्रेस सहित देश के सभी विपक्षी दलों ने पुरजोर विरोध किया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने इस मामले में मोदी सरकार को कटघरे में खडे करते हुये कहा कि जिस प्रकार से गुजरात में न्यायाधीश का तबादला किया गया, उससे हमें इस प्रकार की आशंका हो गयी थी। इस फैसले को देश की  आम जनता भी स्तब्ध है। जनता यह समझ रही है कि जब कांग्रेस व राहुल गांधी 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ प्रदेशों को छोड कर मोदी नेतृत्व वाली भाजपा का सामना करने के काबिल नहीं तो, मोदी सरकार ऐसा अतिवादी कदम क्यों उठा रही है।
राहुल गांधी को एक भाषण के आधार पर  2 साल की सजा दिये जाने की बात के साथ इसकी आड में आनन फानन में राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किये जाने के तर्क भी न तो विपक्ष के गले उतर रहा है व नहीं आम जनता के। विशेषज्ञों का भी मानना है कि ऐसे मामलों में सरकार को न्यायालय द्वारा इस फैसले के खिलाफ पुर्नविचार करने के लिये दिये गये 30 दिन के समय का तो इंतजार किया जाना चाहिये था। परन्तु जिस आनन फानन में लोकसभा सदस्यता रद्द की गयी उससे आम जनमानस उचित नहीं मानता है। सरकार को जिन मामलों में शक्ति व तेजी दिखानी चाहिये उन मामलों में शक्ति व तेजी नहीं दिखा रही  है। खासकर ब्रिटेन, कनाडा व आस्ट्रेलिया में भारत विरोधी छदम आंदोलनों पर वहां की सरकारों की मूकदर्शक बने रहने के बाबजूद भारत सरकार द्वारा न तो वहां की सरकारों की कडी प्रतिक्रिया व्यक्त की व नहीं इन देशों के उच्चायुक्तों को ही तलब कर  डपट ही लगाया गया। वहीं दूसरी तरफ पंजाब पुलिस के नाक के नीचे से दिन दहाडे अमृतपाल का गायब होने का ज्वलंत मुद्दे से देश के समर्पित लोग देश की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित हैं।
राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किये जाने के अगले ही दिन जिस प्रकार कांग्रेस राजघाट में विरोध धरने की इजाजत तक दिल्ली पुलिस द्वारा न दिये जाने से सरकार की मंशा जगजाहिर हो गयी। पुलिस प्रशासन की मनाही के बाबजूद जिस प्रकार से कांग्रेस ने विरोध धरना किया। तो देश ने  देखा कि अचानक उप्र पुलिस का एक बडा दल गुजरात की जेल में बंद उप्र के बडे कुख्यात अपराधी अतीक अहमद को लाने की खबरों से आम जनता का ध्यान राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने वाले प्रकरण के बजाय अतीक प्रकरण की तरफ चला गया। जिस प्रकार से खबरिया चैनलों पर अतीक अहमद को सडक मार्ग द्वारा गुजरात से प्रयागराज उप्र लाने की खबरें इस आशंका के साथ प्रकाशित हुई कि अतीक का भी मुठभेड हो सकता है? आज कुख्यात अपराधी अतीक अहमद को गुजरात से ला रहा उप्र पुलिस का यह काफिला उप्र में प्रवेश कर झांसी से प्रयागराज की तरफ बढ रहा है। लोगों की उत्सुकता निरंतर  बढ रही है। ऐसा लग रहा है कि अतीक के इस प्रकरण से राहुल गांधी की सदस्यता रद्द की जाने वाली खबरें एक प्रकार से दम तोड रही है।  इस प्रकरण पर हमें पूरा विश्वास है कि अतीक अहमद की गाडी न विकास यादव की तरह पलटेगी व नहीं उसका कहीं कोई मुठभेड होगा। परन्तु आम जन मानस का ध्यान इस घटना पर रहे इसलिये खबरिया चैनल इसको निरंतर परोस रहे हैं। इससे जनता की जिज्ञाशा बलात बढाई जा रही है।
भले ही यह स्वाभाविक घटना है। परन्तु राजनीति के जानकार इसके लिये भी मोदी शाह की रणनीति को ही श्रेय दे रहे हैं कि देश का जनमानस राहुल गांधी सहित विपक्ष की कराह तक नहीं सुन रहा है। देश की  जनता चाहती है कि जिस प्रकार से न्यायालय जघन्य हत्याकाण्ड में लिप्त बलात्कारियों व हत्यारों को कठोर सजा देने से कतरा रही है, उससे जनता चाह रही है उप्र सहित पूरे देश के दुर्दांत अपराधियों, भ्रष्टाचारियों, भारत विरोधी तत्वों  व माफियाओं का सफाया भी विकास दुबे की तरह ही होना चाहिये। जिस बिना लाग लपेट के उप्र के मुख्यमंत्री अपराधियों व देश विरोधियों पर कडा अंकुश लगा रहे हैं उससे आम जनता चाहती है कि ऐसे तत्वों को जेल में देश का करोडों रूपये खर्च करके संरक्षण देने के बजाय इन सबकी गाडी पलटने से सफाया करना ही देश व मानवता के हित में होगा। खासकर जिस प्रकार ये अपराधी तत्व देश की कानून व्यवस्था व आम जनता के हितों को रौंदने का कृत्य राजनैतिक आकाओं के संरक्षण से करते हैं यह गठजोड पर बुलडोर से तबाह करना ही देश के हित में है।
हालांकि इस दौरान कांग्रेस से दूरी बनाये रखने वाले अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी व अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने भी खुल कर मोदी सरकार को राहुल गांधी की सदस्यता खत्म करने वाले प्रकरण पर प्रहार किया। हालांकि जिस प्रकार से मोदी सरकार की  जांच ऐजेन्सियों ने लालू के पूरे परिवार को रेलवे में नियुक्तियों के बदले जमीन घोटाले प्रकरण, केजरीवाल सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया शराब प्रकरण, तेलांगना के मुख्यमंत्री की पुत्री कविता  को शराब प्रकरण  में पूरी तरह कटघरे में खडा कर रखा है। उससे विपक्ष के पसीने छूट रखे हैं। कई प्रकरणों में घिरे अखिलेश व ममता बनर्जी  भी कांग्रेस से 2024 में दूरी बनाये रखने के बयान दे कर 2024 के लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्ष की एकजूटता की संभावनाओं की पीठ में ताबूत की कील ठोक रहे है। मायावती व केजरीवाल इस मामले में पहले ही कांग्रेस से दूरी बनाये रखने की घोषणा कर चूके है। हालांकि इन सबके कांग्रेस विरोध के पीछे भी राजनीति के मर्मज्ञ मोदी शाह की रणनीति को ही श्रेय दे रहे है। ऐसी चर्चायें राजनैतिक गलियारों में है कि आरोपों में घिरे इन तमाम क्षत्रपों को यह संदेश दे दिया जा चूका है कि अगर कांग्रेस का साथ गठबंधन किया तो 2024 से पहले ही ईडी व सीबीआई इन नेताओं पर चल रही कार्यवाही तेज गति से होगी। इसका परिणाम ये भी सिसौदिया व जैन की तरह सलाखों के अंदर बंद होंगे। भले ही यह आरोप हवाई हो पर इसके बाबजूद विपक्षी दलों का कांग्रेस को अछूत समझने वाले बयानों से कहीं न कहीं इस आशंका को बल ही मिल रहा है।
आम जनता इन दलों से कोई सहानुभूति नहीं है। जनता चाहती है कि मोदी निर्ममता से सभी अपराधियों पर कार्यवाही करें चाहे वह विपक्ष में हो या भाजपा में।  सभी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिये। आखिर देश व जनता के अपराधी होते हैं भ्रष्टाचारी व अत्याचारी। चाहे वे किसी भी दल का मुखौटा पहन ले। जनता को ऐसी कार्यवाहियों में पक्षपात रत्तीभर भी स्वीकार नहीं। देश की जनता चाहती है कि सरकार किसी की भी रहे वह देशद्रोहियों, अपराधियों व भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने वाला न हो। देश में युवाओं को रोजगार प्रदान करने वाली नीतियों का संचालित करे तथा आम जनता को मंहगाई, भाई भतीजेवाद व भ्रष्टाचार से मुक्त कर सुशासन देने वाला हो।  अगर सरकार व विपक्ष जो जनता की उपरोक्त भावनाओं की उपेक्षा कर अपने स्वार्थ के लिये सत्तामद में दमनकारी कृत्य करता है तो देश की जनता उसे दिल से स्वीकार नहीं करती है।
देश की जनता चाहती है कि सरकार अडाणी प्रकरण पर उठ रहे सवालों का जवाब संसद में दे। मूक रहने से काम नहीं चलने वाला। आखिर जब बफोर्स इत्यादि सभी मामले में तत्कालीन सत्तारूढ कांग्रेस सरकार से विपक्ष में रहने वाली  भाजपा सहित सभी दल संसदीय जांच समिति के गठन की मांग करती है तो अब अडाणी प्रकरण पर ऐसे सवालों को अपनी नाक का सवाल न बना कर इसे देश की जनता की सर्वोच्चता को स्वीकार करते हुये उसे स्पष्टीकरण देना जनप्रतिनिधियों व सरकार का दायित्व होता है। लोकतंत्र में सरकार व जनप्रतिनिधी सर्वोच्च नहीं अपितु जनता सर्वोच्च है। लोकशाही में सभी संस्थाओं की जवाबदेही जनता के प्रति होती है। संविधान भी देश व जनता के कल्याण के लिये होता है। देश काल परिस्थितियों के अनुसार संविधान में भी निरंतर संसोधन किये जाते हैं।  राहुल गांधी की सदस्यता को आनन फानन में रद्द करने के बजाय फरियाद करने के लिये न्यायालय द्वारा दिये गये 30 दिन के समय का इंतजार किया जाना चाहिये था। राहुल गांधी का पलायनवादी रूख  व भारतीय संस्कृति पर प्रहार करने की प्रवृति को कभी भारतीय जनमानस ने स्वीकार नहीं किया। राहुल  गांधी की पहली भूल यह हो गयी  कि उन्होने मनमोहन सरकार के कार्यकाल के अंतिम दो साल में प्रधानमंत्री पद पर  आसीन न हो कर  एक प्रकार से मोदी की े दिल्ली की ताजपोशी की राह आसान की। अगर राहुल  गांधी 2012 में प्रधानमंत्री बन जाते तो मोदी की दिल्ली की ताजपोशी पर काफी बडा अवरोध लग जाता। इसके बाद मोदी की ताजपोशी के बाद राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष बन कर मोदी सरकार की चुनौतियों का मजबूती से मुकाबला करने के बजाय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से दूर रहने का जो छदम त्याग के नाटक में कांग्रेस को कमजोर किया। उससे राहुल सहित कांग्रेस काफी कमजोर हो गयी। अवसरवादी नेता मोदी की शरण में चले गये। कुछ आगामी 2024 के चुनाव के समय चले जायेंगे। देश की  जनता चाहती है कि कुशासन  के खिलाफ मजबूती से संघर्ष की चुनौती स्वीकार करने वाले नेता को, न की चुनौती से पलायन करने वाले को। लोग इस बात का ध्यान देते हैं कि जनहित व देशहित में कार्यकर रहे हैं या नहीं। परिवारवाद आदि मुद्दे गोण है। देश के अधिकांश धनाडय लोग कुख्यात लोगों द्वारा स्थापित संस्थानों में भी अपने बच्चों का शिक्षा प्रदान करने से नहीं चूकते हैं।
भले ही राजनेता अपने कृत्यों पर पर्दा डालने के लिये कहते हैं कि जनता की याददाश्त बेहद कमजोर होती है। लोग समय गुजरने के साथ सब कुछ भूल जाते हैं। परन्तु वे लोग यह भूल जाते हैं कि भले ही कुछ लोग अपने स्वार्थ के चलते सब कुछ भूल जाते हो। परन्तु महाकाल कभी भी कायरता, पलायन, अहंकार व अन्याय को न भूलता है व नहीं उसको करने वाले को माफ करता है। हर जीव को उसके कृत्यों का हर हाल में फल मिलता है। इसके साथ यह धारणा भी मिथ्या है कि जनता सब कुछ भूल जाती है। जनता भले ही हर अन्याय, अंहकार, कायरता व पलायन का तत्काल खुले रूप में विरोध न भी करे पर यह कालजयी सत है कि जनता दिल से न किसी अन्यायी,अत्याचारी व अहंकारी को दिल से स्वीकार करती है। इसके साथ यह भी सत है कि जनता कायर व पलायनवादी को भी कभी सरमाथे पर नहीं रखती।

About the author

pyarauttarakhand5