दिल्ली में लगे एक पोस्टर पर हुई 100 शिकायत व कई गिरफ्तार तथा 10000 पोस्टरों को ले जा रहा एक वाहन जब्त होने से तिलमिलाया केजरीवाल व उसका दल
-देवसिंह रावत
मोदी सरकार की तानाशाही चरम पर है
इस पोस्टर में ऐसा क्या आपत्तिजनक है जो इसे लगाने पर मोदी जी ने 100 एफआरआई. कर दी?
प्रधानमंत्री मोदी जी, आपको शायद पता नहीं पर भारत एक लोकतांत्रिक देश है।
एक पोस्टर से इतना डर! क्यों?
मोदी हटाओ, देश बचाओ नामक बेनामी पोस्टर पर दिल्ली पुलिस की कडी कार्यवाही से बौखलाई आम आदमी पार्टी ने मोदी सरकार पर तंज करने वाला संदेश ट्वीट व े फेसबुक आदि इंटरनेटी माध्यमों से जारी किया। केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी बहुत ही मासूमियत से यह सवाल उठा कर जहां मोदी सरकार पर जानबुझ कर बेशर्मी से प्रहार कर रही है। जबकि हकीकत खुद अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं कि यह इस देश में कानून है कि पोस्टर/पर्चा/अखबार इत्यादि का प्रकाशन करने पर उस पर प्रकाशन करने वाला व इसको प्रकाशन करने वाली छापखाना (प्रिंटिंग प्रेस)का पूरा पता होना कानूनन जरूरी है। दूसरा बिना इजाजत के इनको सार्वजनिक /निजी सम्पति /स्थान/दिवारों पर लगाने पर प्रतिबंधित है। इसका उलंधन करने वाले पर बंगाल एक्ट के तहत दण्डनीय कार्यवाही जुर्माना/जेल दोनो हो सकती हैं।
दिल्ली में हजारों की संख्या में बिना प्रकाशक/प्रकाशन छापखाने के पता वाले ‘मोदी हटाओ, देश बचाओ’ के पोस्टर लगाने के बाद दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की विभिन्न स्थानों पर यह कार्यवाही की। इसके दिल्ली पुलिस ने 10 हजार ऐसे पोस्टरों को लेकर बाहर निकलते ही एक वाहन को पोस्टर सहित जब्त करा।
केजरीवाल व उनके दल की बौखलाहट पर कडी टिप्पणी करते हुये दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेता वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि
केजरीवाल ये बताएं कि आप को चोरों की तरह ये पोस्टर लगाने की क्या जरूरत थी और अब दिल्ली पुलिस की कारवाई पर आप बौखला क्यों गए हैं?
देश की जनता मोदी जी के साथ है और जल्द आप के भ्रष्टाचार का जवाब भी देगी।
भले ही आप पार्टी व अरविंद केजरीवाल दिल्ली पुलिस द्वारा पोस्टर प्रकरण पर हायतौबा मचा रहे हैं पर हकीकत यह है कि यह सब आम आदमी पार्टी का 2024 को होने वाले चुनावी अभियान का ही एक हिस्सा है। इसका खुलासा भी आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता व दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने खुद यह जानकारी जग हाहिर करते हुये किया कि दिल्ली व पंजाब की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी मोदी सरकार के खिलाफ देश व्यापी ‘मोदी हटाओ, देश बबचाओ’ का अभियान शुरू करने वाली है। उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह विपक्षी दलों द्वारा केजरीवाल के मोदी के खिलाफ मोर्चा गठन की मंशा पर पानी फेरने के बाद अब आम आदमी पार्टी 23 मार्च 2023 को अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव के बलिदान दिवस पर जंतर मंतर से इस अभियान का शंखनाद करेंगे। इस अवसर पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवत सिंह मान सहित हजारों कार्यकत्र्ता भी उपस्थित रहेगे। इसकी जानकारी देते हुये गोपाल राय ने ट्वीट किया कि
अब सारी हदें पार हो चुकी हैं अगर स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को बचाना है तो एक ही रास्ता है- ‘मोदी हटाओ, देश बचाओ।’
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान दिवस पर आम आदमी पार्टी की जंतर-मंतर पर जनसभा।
देश में अघोषित तानाशाही के विरोध में इस जनसभा में अरविंद केजरीवाल और भगवत मान भी शामिल होंगे।
मोदी हटाओ, देश बचाओ वाले पोस्टर पर 100़एफआरआई दर्ज हो चुकी हैं, कई लोग गिरफ्तार हुए
आपका गोपाल राय
इससे साफ हो गया कि ये तमाम पोस्टर इत्यादि आम आदमी पार्टी के इसी अभियान के अंग थे। अब सवाल यह होता है कि देश के लोकतंत्र के अनुसार देश के हर नागरिक व दल को यह संविधान सम्मत अधिकार है कि अपना चुनावी व अभिव्यक्ति को प्रकट करने का। तो आम आदमी पार्टी इस अभियान चलाने के लिये संविधानसम्मत रास्ता क्यो अखित्यार कर रही है ? मोदी सरकार के जनविरोधी कार्यों का विरोध देश का हर नागरिक व दल कर सकता है । पर उसके लिये संविधान सम्मत तरीका है। उस पर चलने के बजाय खुद गलत रास्ते पर चलने की इजाजत देश का संविधान व कानून नहीं देता है। सवाल यह है कि आम आदमी पार्टी आखिरकार विधि सम्मत रास्ते पर क्यों नहीं चल रही है। पर्चा पोस्टर पर अपना नाम क्यों नहीं लिखा रही है। खुद को क्यों छुपा रही है?जब आम आदमी पार्टी गलती खूद कर रही है तो उसका दोष दिल्ली पुलिस या भाजपा आदि राजनैतिक दल पर क्यों मंढ रही है? क्या आम आदमी पार्टी देश के कानून से उपर है?कानून का उल्लंधन कर खुद को लोकशाही को ध्वजवाहक बता कर दिल्ली व देश के नागरिकों की आंखों में धूल क्यों झौंक रही है। आम आदमी पार्टी के इस प्रसंग पर सीनाजोरी प्रकरण पर मुझे बरबस याद आया उतराखड राज्य गठन आंदोलन का वह ऐतिहासिक प्रसंग जिससे ऐसे प्रकरणों पर हमारी आंखे खोल दी।
बात 16 अगस्त 2000 की थी। 15 अगस्त 2000 को लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने उतराखण्ड राज्य गठन की घोषणा की। उतराखण्ड राज्य गठन के लिये हम उतराखण्ड के समर्पित आंदोलनकारी, उतराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा(उतराखण्ड आंदोलन संचालन समिति/उतराखण्ड जन संघर्ष मोर्चा) के बेनर तले 16 अगस्त 1994 से संसद की चैखट, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर ऐतिहासिक आंदोलन छेडे हुये थे। इस आंदोलन के तहत हजारों दिन का सतत् धरना, सैकडों प्रदर्शन, दर्जनो गोष्ठियां/जन अभियान संचालित किया गया। यह भारत के राज्य गठन के अब तक के इतिहास में पहला ऐतिहासिक सफल आंदोलन रहा, जिसने देश की राजधानी को देश के किसी राज्य गठन की मांग को लेकर निरंतर छह साल तक आंदोलित रखते हुये अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता अर्जित की।
भले ही उतराखण्ड राज्य गठन करने की संवैधानिक प्रक्रियायें पूरा करने के बाद 9 नवम्बर 2000 को उतराखण्ड राज्य विधिवत अस्तित्व में आया। परन्तु 15 अगस्त 2000 को जब देश के प्रधानमंत्री ने विधिवत ढंग से उतराखण्ड राज्य गठन की घोषणा लालकिले के प्राचीर से किया। तो 16 अगस्त 2000 को उतराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा ने पूरे हर्षोल्लाश के साथ राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर विधिवत समापन व धन्यवाद समारोह मनाने का निर्णय लिया।तुरंत इसके पोस्टर छपाये गये। 15 अगस्त 2000 की सांयकाल निर्णय लिया गया कि इन पोस्टरों को संसद के आसपास से लेकर पूरे कनाट प्लेस क्षेत्र में लगाने के लिये दिये गये। उल्लेखनीय है इस क्षेत्र के भारत सरकार के विभिन्न कार्यालयों व निजी क्षेत्र में सेवारत हजारों की संख्या में उतराखण्डी प्रायः उतराखण्ड आंदोलन में जुडे हुये थे। इसलिये इस ऐतिहासिक धरने के सफल समापन समारोह में सम्मलित होने के लिये उन साथियों को सूचित करने व ऐतिहासिक सफलता के समारोह में उनकी सहभागिता बर्धन के लिये यह आयोजन व पोस्टर लगाने का निर्णय लिया था। इन पोस्टरों को लगाने के लिये पेशेवर पोस्टर लगाने वालो से लगाने का शुल्क भी धरने के समर्पित जांबाज आंदोलनकारी नरेंद्र भाकुनी,रणजीत पंवार व प्रताप रावत को दे दिया था। सुबह जब हम इस समारोह को प्रारंभ करने आये तो टेेंट लगा था, परन्तु वहां पर हमारे समर्पित आंदोलनकारी साथी नजर नहीं आये। वहां अन्य आंदोलनकारियों से पूछा तो पता चला कि हमारे समर्पित तीनों आंदोलनकारी थाने में पुलिस ने बंद कर दिया। यह सुनते ही मुझे व हमारे संयोजक अधिवक्ता अवतार रावत सहित अन्य आंदोलनकारियों को बडा गुस्सा आया। थाने में गये तो पता चला कि इन लोगों को पोस्टर लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उस समय हमें बहुत गुस्सा आया। हम भी ऐसा ही गुस्सा जाहिर कर रहे थे जैसे आज पोस्टर प्रकरण पर केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी के नेता कर रहे थे। हम कह रहे थे कि लोकतंत्र पर घोर कुठाराघात। कार्यक्रम के आयोजन में देर न हो इसलिये आनन फानन में हमने तीनों साथियों की जमानत कराई ।तब हमें ज्ञात हुआ कि विना अनुमति के सार्वजनिक /निजी भवनों/सम्पति पर पोस्टर नहीं चिपका सकते है। यह दण्डनीय अपराध है। इसके खिलाफ जो कानून लगता है वह बंगाल एक्ट के नाम से जाना जाता है। तीनों साथियों की आनन फानन में जमानत कराने के बाद हम जंतर मंतर पर आयोजित अपने धरने में समापन समारोह को शुरू करने पंहुचे। (हालांकि दो साल बाद जब इस मामले की कई तारीखों पर तीनों न्यायालय में उपस्थित नहीं हुये तो इसके बाद जमानतियों को न्यायालय में उपस्थित हो कर दण्ड भरना पडा। उस की टीस आज भी हमारे दिलों में है)। इस आयोजन में भारी संख्या में आंदोलनकारी बहुत ही उत्साह से सम्मलित हुये। हमारे धरने में ध्वनि प्रसारक यंत्र पर धरने के लोकप्रिय आंदोलन के लोकगीतों से पूरा जंतर मंतर गूंजायमान हो रहा था। इस समारोह में तत्कालीन वाजपेयी सरकार के केंद्रीय राज्यमंत्री बच्ची सिंह रावत व पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री सतपाल महाराज (जो संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक भी थे),देहरादून से मोर्चा के पूर्व प्रमुख संयोजक उप्र सरकार के पूर्व मंत्री डा हरक सिंह रावत, मोर्चा के संयोजक मे जरनरल शैलेंद्र राज बहुगुणा व पूर्व सैनिक संगठन के मुख्य समन्वय पीसी थपलियाल,उतरकाशी से मोर्चा के युवा संगठन के प्रमुख केदारसिंह रावत,मानवाधिकार संगठन के प्रमुख एस के शर्मा आदि साथी सम्मलित हुये। इस समारोह में आंदोलनकारियों का उत्साह देख कर लोग भी उत्साहित थे। बडी मात्रा में मिष्ठान का वितरण भी हुआ। इस समारोह की खबरेें आजतक से लेकर समाचार में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी।
जो लोग जंतर मंतर से इन 6 सालों में इधर उधर जाते समय हमारे आंदोलन का उपहास उडाते हुये व्यंग कसते थे कि इनका राज्य बनेगा? े वे भी राज्य गठन होते देख कर हमें बधाई दे रहे थे। विषम परिस्थितियों, पुलिस दमन व राजनैतिक धात प्रतिधात से बचाते हुये इस आंदोलन का ध्वजवाहक उतराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में मैं देवसिंह रावत था, मोर्चा के जांबाज समर्पित आंदोलनकारी नरेंद्र भाकुनी, प्रताप रावत व रणजीत सिंह पंवार जो समापन के अवसर तक दिन रात समर्पित थे। इस मोर्चा को अथक संघर्षों से दिशा देने का काम किया सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत जो इस मोर्चे के संयोजक थे। इस मोर्चे के अन्य प्रमुख कर्णधार जो अंतिम समय तक इस मशाल को जीवंत बनाये रखे उनके पूर्व अध्यक्ष खुशहाल सिंह बिष्ट, व्योमेंद्र नयाल, जगदीश भट्ट, दिनेश बिष्ट, प्रहलाद गुसांई, जगमोहन रावत, सूरत सिंह राणा, रवींद्र वर्तवाल, देशवंधु बिष्ट, आकाश भण्डारी यशवंत गुसांई, कुलदीप कुकरेती,राम प्रसाद भदूला, देवेंद्र चमोली, अशोक लाल शाह,मन्नू, भुवन नेगी,हीरासिंह बिष्ट, महिपाल नेगी, नंदन सिंह पटवाल, सीता पटवाल,सम्पति डोबरियाल, जगदीश गौड, गायत्री ढौडियाल, अरूण लखेडा, प्रेम गुसांई, चंदन सिंह मनराल, गंगा दत्त जोशी, हरीश भण्डारी आदि। हालांकि आंदोलन के प्रारंभ में खिमानंद खुल्वे, प्रताप शाही, सुरेश नौटियाल,राजेंद्र शाह, एल डी पाण्डे, मोहन सिंह नेगी,सूरत सिंह चैहान,डीडी पाण्डे, राजेंद्र रतूडी, बचन सिंह जोशी के अलावा जगदीश नेगी, जगमोहन बिष्ट, बीना बिष्ट, दलबीर रावत, डब्बल सिंह नेगी, रामभरोसे ढौडियाल, हर्ष बर्धन खंडूडी, एस एन बसलियाल, उषा नेगी, हीरो बिष्ट, रवि बिष्ट, चैनियाल, सदानंद नौनी, डब्बू पोखरियाल,कमला रावत,तेजा सिंह बिष्ट, जंतर मंतर के जोशी जी आदि आंदोलनकारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। परन्तु संगठनों में आंदोलनकारियों की अपनी निजी समस्या, संगठन में आपसी खिंचतान व विचारों के टकराव के कारण अनैक साथी धरने से दूर होते गये और नये जुडते गये। आज के दिन अनैक आंदोलनकारी साथी इस संसार से विदा हो गये। परन्तु उनकी यादें आज भी हमारे जेहन में जीवंत है।
उतराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा , उतराखण्ड के तमाम स्थापित राजनैतिक दलों से हट कर उतराखण्ड राज्य गठन के लिये समर्पित उतराखण्डियों का संगठन रहा। जिसने कांग्रेस/भाजपा/सपा/बसपा/वामदलो/उक्रांद आदि दलों के दलीय शिकंजे से इस आंदोलन को बचाते हुये आंदोलन को जनता का आंदोलन बनाये रखने में सफलता अर्जित की। इसी कारण इस आंदोलन में उतराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति , उतराखण्ड महिला संयुक्त संघर्ष समिति, उतराखण्ड महिला मंच, उतराखण्ड छात्र संयुक्त संघर्ष समिति, उतराखण्ड छात्र व युवा संगठन, उतराखण्ड शिक्षक व कर्मचारी संगठन, उतराखण्ड पूर्व व अर्ध सैनिक संघर्ष समिति, उतराखण्ड पत्रकार संगठन, उतराखण्ड पंचायत संगठन सहित अनैक उतराखण्ड राज्य के लिये समर्पित व्यक्ति, संगठनों का निरंतर जुडाव रहा। इसके साथ दिल्ली की सैकडों उतराखण्डी सामाजिक संगठनों, देश के विभिन्न राज्यों व शहरों में रहने वाले उतराखण्डी समाज के संगठनों का पूरा समर्थन व जुडाव इस संगठन से रहा। आंदोलन के चरम समय पर इस संगठन को देर रात लोगों को अपने अपने घरों को जाने के लिये निरंतर पसीने बहाने पडते थे। उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के प्रमुख पुरोधा इंद्रमणि बडोनी, काशीसिंह ऐरी,दिवाकर भट्ट, पूरण सिंह डंगवाल, विपिन त्रिपाठी,पूर्व सैनिक व अर्ध सैनिक संगठन के प्रमुख ले. जनरल जगमोहन रावत, महिला संयुक्त संघर्ष समिति की संयोजिका कोशल्या डोबरियाल, ऊषा नेगी,आशा बहुगुणा,कमला कण्डारी, उतराखण्ड महिला मंच के प्रमुख कमला पंत, उतराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के संयोजक उतरकाशी के राजेंद्र रावत व देहरादून मसूरी से प्रकाश सुमन ध्यानी, उतराखण्ड छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष गिरजा पाठक, एस पी सत्ती, मेहता व लक्ष्मण सिंह रावत, मोर्चा के धरना स्थल पर धरने में सम्मलित हुये भ्रष्टाचार के खिलाफ पहली बार सडक का संघर्ष करने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी धर्मसिंह रावत, बोडो नेता बसुमितियारी, कांग्रेसी नेता बसंत साठे, किशोर उपाध्याय व लोकदल नेता धीरेंद्र प्रताप का भी सराहनीय साथ रहा।
उतराखण्ड के लिये समर्पित रहे पूर्व सेवानिवृत अधिकारी बहादूर राम टम्टाजी व आर एस पांगती जी, मेजर जनरल एस एन डिमरी, कमांडेट बीपी नवानी, श्रीनगर से अनिल स्वामी,भारतीय विद्या भवन के प्रधानाचार्य नेगी जी, रामनगर से प्रभात ध्यानी, अल्मोडा से डा शमशेर सिंह बिष्ट, पीसी तिवारी, उत्तराखंड महासभा के अध्यक्ष हरिपाल रावत उत्तराखंड हिमनद संघ के वीरेंद्र जुयाल व उत्तराखंड राज्य लोक मंच के उदय राम धौड़ियाल व राज्य गठन आंदोलन के अंतिम चरण में समर्पित रहे कांग्रेसी नेता हरीश रावत सहित सैकडों अग्रजों का निरंतर स्नेह भरा मार्गदर्शन मिलता रहता।
आज मोदी हटाओ, देश बचाओं नामक विवादस्त पोस्टर के प्रकरण में आम आदमी पार्टी की सीनाजोरी को देखते हुये मुझे जहां उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन का यह ऐतिहासिक प्रसंग याद आया वहीं आम आदमी पार्टी की धृृष्ठता पर आश्चर्य हुआ कि जब कानून बनाने वाले व उसके रक्षक ही कानून को रौंदेंगे तो देश का क्या होगा?क्या सत मार्ग पर चल कर राजनेता राजनीति नहीं कर सकते?इनकी नैतितकता कहां दम तोड गयी?