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मात्र रस्म अदायगी का ही रहा गैरसैण बजट सत्र! मुख्यमंत्री धामी में भी उतराखण्ड के लिये जज्बे की भारी कमी

 

बहुत मुस्किल से गैरसैंण में विधानसभा सत्र का आयोजन कर पाये धामी

 

देश में उतराखण्ड का नाम रोशन करने वाली प्रतिभावान खिलाड़ी  मानसी नेगी को सरकारी रोजगार देकर सबल तक नहीं कर पाये मुख्यमंत्री

 

सडक से विधानसभा में विपक्ष ने गूंजाये उतराखण्डी हितों की मांग, पर सरकार ने किया नजरांदाज सदन में भारी हंगामा,१५ कांग्रेस विधायक निलंबित,3दिन में बजट सत्र स्थगित

 

देवसिंह रावत-

भले ही उतराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी ने उतराखण्ड राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने की कूंजी गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी घोषित करने का साहस तो नहीं जुटा पाये पर वे ना चाहते हुये भी ( मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने के कई महिनों बाद) प्रदेश की एकमात्र नव निर्मित विधानसभा भवन में विधानसभा सत्र तक आयोजित न करने से आहत जनता के जख्मों को मरहम लगाने के लिये इसी पखवाडे 13 मार्च 2023 से गैरसैंण में प्रदेश का बजट सत्र करने का निर्णय लेने का साहस तो जुटा ही दिया। 13 मार्च से प्रारंभ हुए उत्तराखंड का बजट सत्र, विपक्ष की भारी विरोध बहिर्गमन के बीच मात्र 30 मिनट में ही सत्ता पक्ष ने प्रदेश का 77 407 करोड़ रुपए का बजट पास कर दिया तथा 16 मार्च 2023 की रात 10:00 बजे गैरसैण विधानसभा सत्र को मात्र 3 दिन में ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया ।
भले ही मुख्यमंत्री व उनकी सरकार ने इस बजट सत्र को प्रदेश के विकास के लिये मील का पत्थर बता रहे हैं। पर हकीकत यह है कि यह बजट सत्र भी पूर्व में देहरादून व गैरसैंण में सम्पन्न हुये 23 सालों के तमाम सत्रों की तरह मात्र रस्म अदायगी मात्र ही रहे। यह 16 आने सच है कि जिन जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिये उतराखण्ड की जनता ने राव मुलायम सरकारों के अमानवीय जुल्म सहते हुये भी उतराखण्ड राज्य गठन के लिये तत्कालीन सत्तासीनों को मजबूर किया उन जनांकांक्षाओं को साकार होता देखने के लिये ं (23 सालों में एक दर्जन के करीब मुख्यमंत्री ढोने के बाबजूद )प्रदेश की जनता तरस रही है। प्रदेश की जनता ने अपने सांस्कृतिक विरासत, स्वाभिमान की रक्षा करने के साथ पीढी दर पीढी के पलायन के दंश से मुक्त होने,प्रदेश के संसाधनों का प्रदेश के गांव खलिहानों के विकास करने व उप्र के लूट खसोटी तंत्र से मुक्त हो कर सुशासन स्थापित करने के लिये उतराखण्ड राज्य के गठन किया था। इनको साकार करने के लिये राज्य गठन की मांग करने वाले आंदोलनकारी संगठनों व प्रदेश की प्रबुद्ध जनता ने प्रदेश की राजधानी गैरसैंण(प्रदेश को लखनवी शहरी व पंचतारा सुविधाओं की मानसिकता में रत जनप्रतिनिधियों व नौकरशाही को उतराखण्ड मानसिकता में लोकशाही संचालित करने के लिये), हिमाचल की तर्ज पर भू कानून, मूल निवास, मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने का पथ निर्धारित किया था। परन्तु दुभाग्र्य रहा उतराखण्ड व देश का जिन राष्ट्रीय दल भाजपा व कांग्रेस ने अब तक प्रदेश की सत्ता की बागडोर संभाली। उन्होने उतराखण्डियों का हमदर्द व सच्चा हितैषी बन कर जनादेश का हरण कर सत्ता में काबिज हो गये परन्तु उन्होने लोकशाही का धर्म व दायित्वों का निर्वहन करने के बजाय अपने दल के दिल्ली आकाओं, अपनी सत्तालोलुपता, अपने प्यादों व दल के स्वार्थो की पूर्ति के लिये प्रदेश की सत्ता का निर्ममता से दुरप्रयोग, दोहन करने के साथ उतराखण्ड राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को निर्ममता से रौंदने की धृष्ठता की। जिसके कारण उतराखण्डी राज्य गठन के 23 साल बाद भी अब तक की तमाम सरकारों के विश्वासघात व खिलवाड से बेहद आहत व निराश है।
प्रदेश के इस बबजट सत्र से जनता को लेशमात्र भी आशा नहीं रही। जनता सरकारों की रस्म अदायगी से वेहद आहत रही। भले ही वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को देश के प्रधानमंत्री ने ताजपोशी उनकी मासुमियत देख कर इस विश्वास से किया कि वह जनता के दिलों में उनकी तरह राज करेंगे। शायद इसी विश्वास के कारण प्रधानमंत्री मोदी ने विधानसभा चुनाव 2022 में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाये जाने के बाबजूद अपने विधानसभा सीट खटीमा से अप्रत्याशित ढंग से हार जाने के बाबजूद प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन किया। परन्तु प्रदेश की जनता की आशाओं व अपेक्षाओं को साकार करने के बजाय मुख्यमंत्री धामी उनको पहचान व सम्मान भी नहीं कर पाये। उनके पास अवसर था। वे उप चुनाव में जीतने के बाद गैरसैंण में अधिवेशन करके जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुये राजधानी गैरसैंण घोषित करने का साहस जुटाना तो रहा दूर वे गैरसैंण में गत वर्ष सत्र का आयोजन भी नहीं करा पाये। इसको रोकने के लिये गैरसैंण में ठण्ड जैसे बहानों को हथकण्डा बनाना प्रदेश की जनता को पसंद नहीं आया।
प्रदेश में जनता ने देखा कि सरकारों की उदासीनता के कारण देहरादून, हल्द्वानी से लेकर पूरे उतराखण्ड में षडयंत्र के तहत राज्य गठन के बाद तेजी से प्रदेश पर काबिज होने वाले घुसपेठियों का शिकंजा बुरी तरह से कसा है। जिसे प्रदेश सरकार मूल निवास व भू कानून से अंकुश लगा सकती थी। जिसका सदप्रयोग करने में धामी सरकार भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह विफल रहे। इसके साथ जोशी मठ प्रकरण में भी प्रदेश सरकार पूरी तरह असफल रही। प्रदेश के युवाओं को रोजगार प्रदान करने, व रोजगार की परीक्षा निष्पक्ष सम्पन्न कराने में भी धामी सरकार विफल रही। जिस प्रकार से धामी सरकार नकल विरोधी कानून व भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने का ढोल पीट रही है। प्रदेश सरकार के तमाम दावों के बाबजूद राज्य गठन के बाद प्रदेश में अपने प्यादों को रोजगार की बंदरबांट करने वाले विधानसभाध्यक्ष, मुख्यमंत्री, मंत्री व नौकरशाहों पर अंकुश लगाने में सरकार विफल रही। केवल कुछ नियुक्त लोगों पर अंकुश लगाने का ढोंग किया गया। परन्तु जिन विधानसभाध्यक्षों व मुख्यमंत्रियों ने ऐसा कृत्य किया उनको दण्डित करने का साहस तक धामी सरकार नहीं उठा पायी।
इसके साथ प्रदेश सरकार ने जिस प्रकार से अंकिता भण्डारी प्रकरण में लिप्त गुनाहगारों को सजा देने के लिये ढुलमूल रवैया अपनाया उससे प्रदेश की जनता के साथ देश की जनता स्तब्ध रही कि क्यों मुख्य गुनाहगार जिसके लिये अंकिता भण्डारी की मौत हुई, उसका नाम तक उजागर करने में प्रदेश पुलिस प्रशासन असफल रही। इसीलिये प्रदेश की जनता इस काण्ड की सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में सीबीआई द्वारा जांच किये जाने की लगातार मांग कर रही है। जिसको करने में प्रदेश सरकार क्यों डर रही है। जिस प्रकार से बेरोजगारों पर प्रदेश सरकार ने दमन किया उससे देशभर में धामी सरकार की लगातार किरकिरी हो रही है।
इसके अलावा जिस प्रकार उतराखण्ड की प्रतिभावान युवा खिलाड़ी मानसी नेगी ने 20 किमी की दौड चाल में पूरे देश में कई प्र्रतियोगितायें जीत कर उतराखण्ड का नाम रोशन किया। हाल में उन्होने तमिलनाडू में आयोजित 82वीं अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय एथलिट प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। ऐसी प्रतिभावान पर गरीब परिवार की खिलाड़ी को सरकारी नौकरी दे कर सबल बनाने की प्रदेश के शुभचिंतकों की मांग भी मुख्यमंत्री अभी तक सुन नहीं पाये। जबकि ऐसी मांग निरंतर इंटरनेटी माध्यम से पूरे देश में छाई हुई है। इसके बाबजूद मुख्यमंत्री धामी ऐसा ऐलान कर प्रदेश की अर्थाभाव में दम तोड रही प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने का दायित्व क्यों नहीं निभा पा रहे है। यह बहुत गंभीर विषय है। इससे मुख्यमंत्री की इच्छा शक्ति और विवेक पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है। अपने राजनीतिक गुरु भगत सिंह कोश्यारी की छत्रछाया में राजनीतिक प्रशिक्षण लेने वाले पुष्कर सिंह धामी उनकी तरह जनता का दिल जीतने व जन आकांक्षाओं को पहचानने की कला भी नहीं सीख पाये। इससे न केवल स्वयं मुख्यमंत्री की छवि धूमिल हुई अपितु प्रदेश की आशाओं पर भी ग्रहण लग गया।

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