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भारतीय भाषा आंदोलन के जांबाज पुरोधा डा वेद प्रताप वैदिक का निधन है भारत के लिये बडी क्षति

दशकों पहले देश के पत्रकारों व नेताओं के लिए काशी रहा भारतीय भाषा आंदोलन

देवसिंह रावत  & प्यारा उतराखण्ड डाट काम 

14 मार्च 2023 को अचानक भारतीय भाषा आंदोलन के जांबाज पुरोधा डा वेद प्रताप वैदिक के निधन की खबर पढ़ सुन कर देश के लाखों देशभक्त स्तब्ध रह गये। भले ही मृत्य हर जीव की निश्चित है और यही परम सत्य है। परन्तु   30 दिसम्बर 1944, इंदौर, मध्य प्रदेश  में जगदीश प्रसाद वैदिक के पुत्र रत्न में जन्म डॉ॰ वेद प्रताप वैदिक 79 उम्र में भी पूर्ण रूप से स्वस्थ्य  थे। विश्व विख्यात वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, भारतीय भाषाओं के समर्पित पुरोधा डा. वैदिक आज प्रातः अपने गुडगांव आवास  के स्नानाघर में फिसलने से हुई आकस्मिक दुर्घटना में कालकल्वित हो गये। रूसी, फारसी, अंग्रेजी, संस्कृत व हिन्दी सहित अनेक भारतीय भाषाओं के विद्वान व देश विदेश के सैकडों शीर्ष राजनेताओं के करीबी मित्र रहे डा वैदिक आर्य समाज व भारतीय भाषाओं के लिये सदैव समर्पित रहे। भारतीय भाषा आंदोलन के संघ लोकसेवा आयोग की चौखट पर दो दशक तक चले अखिल भारतीय भाषा आंदोलन के ऐतिहासिक आंदोलन के दौरान डा  वैदिक से कई बार मुलाकातें होती थी। वे नवभारत टाइम्स के सम्पादक रहने के बाद देश की सबसे प्रतिष्ठित समाचार सेवा पीटीआई की हिंदी सेवा ‘भाषा’ के संस्थापक सम्पादक थे। वे देश विदेश में भारतीय संस्कृति, राजनीति व दर्शन के साथ भारतीय भाषाओं के पुरोधा रहे।
एक दिन भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा राजकरण सिंह के साथ मैं  संसद के समीप भाषा के कार्यालय में डा वैदिक से मिला। वैदिक जी ने हमें बताया  कि देश के वर्तमान सहित अनैक पूर्व प्रधानमंत्री उनके करीबी मित्र है। विदेशी विशेष अतिथि भी उनके पास आते तो वे उनको गांधी जी से प्रेरणा लेकर उनको सूत कातने को कहते है। किसी को निष्क्रिय नहीं बैठे देना चाहते। डा वैदिक से संघ लोक सेवा आयोग सहित अनैक कार्यक्रमों में मुलाकाते होती थी। वे सदा आंदोलनकारियों को उत्साह बढाते रहते। पर वे अपना संगठन अलग चलाते रहे। परन्तु वे सदैव भारतीय भाषाओं के प्रचार प्रसार व संवर्धन के लिये एक पुरोधा की तरह खडे रहे। मुझे याद है कि जब आईआईटी दिल्ली के शौध छात्र श्याम रूद्र पाठक का भारतीय भाषा हिंदी में शौध पत्र संघर्ष रहा या संघ लोक सेवा आयोग की  चौखट पर संचालित ऐतिहासिक भारतीय भाषा आंदोलन सबको अपना नैतिक सहयोग व आशीर्वाद डा वैदिक देते रहे। खुद डा वैदिक जवाहर लाल नेहरू विश्व वि़द्यालय में अपने शौध हिंदी भाषा में करने के लिये ऐतिहासिक संघर्ष के सफल पुरोधा रहे। अंग्रेजी पत्रकारिता की तरह ही हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के पत्रकारों को सम्मान दिलाने का काम डा वैदिक ने बखुबी से किया। अपनी बैवाक टिप्पणियों के लिये वे सदैव चर्चित रहे।
भले ही संसद की चौखट जंतर मंतर पर 2013 से आज तक चले ऐतिहासिक संघर्ष ने भारतीय पत्रकारिता का विकृत रूप देखा।  भारतीय भाषा आंदोलन पर पुलिस के दमन हो या  संसद के द्वार राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर व जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर कार्य दिवस पर महिनों तक चले  ‘ अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति दिलाने का ऐतिहासिक संघर्ष  को   देश के समाचार पत्रों व खबरिया चेैनलों ने प्रायः नजरांदाज ही किया। इंटरनेट जगत में रहने वाले इस देश की सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन की एक पंक्ति की खबर तक प्रकाशित करने की सुध तक नहीं रही। यह देश के समाचार जगत क शर्मनाक पतन का एक ज्वलंत उदाहरण है। लगता है सरकार की तरह समाचार जगत को न देश के हित, जनहित के लिए संचालित शांतिपूर्ण आंदोलनों की सुध लेने की कुब्बत नहीं रही। इनको भी केवल असामाजिक, अराजक, हिंसक, दुराचार व देशद्रोहियों के निंदनीय कृृत्य ही खबर लगती है।
इतने शर्मनाक पतन के बाबजूद पत्रकारिता में अनैक पत्रकार आज भी विद्यमान है जिनका दिल व दिमाग देशहित व जनहित के लिए समर्पित है। देश को अंग्रेजी की गुलामी के कलंक से मुक्ति दिलाने के लिए  संसद के द्वार, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर आजादी की जंग छेड़े हुए भारतीय भाषा आंदोलन को समर्थन देने का महत्वपूर्ण काम किया।
पेशे से पत्रकार भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने कहा कि देश में लोहिया के बाद 1988 में भाषा आंदोलन की लौ संघ लोक सेवा आयोग में प्रज्ज्वलति करने वाले भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चौहान व राजकरण सिंह के साथ दर्जनों देशभक्तों की अगुवायी में संचालित आंदोलन में देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व विश्वनाथ प्रताप सिंह, चतुरानंद मिश्र, आडवाणी, पासवान व राजनाथ सिंह सहित 4 दर्जन सांसदों का साथ मिलने के साथ साथ देश के वरिष्ठ साहित्यकार डा बलदेव वंशी, बेकल उत्साही,वेद प्रताप वैदिक,स्वामी अग्निवेश,डा श्याम सिंह शशि,  व सुरेन्द्र शर्मा सहित अनैक साहित्यकार ही नहीं देश के अनैक प्रतिष्ठित समाजसेवी, पत्रकार आदि जुडे हुए थे।
भारतीय भाषा आंदोलन, दशकों से देश के लिए समर्पित पत्रकारों के लिए काशी के समान रहा। आज भले ही पत्रकारिता में देशभक्ति का जज्बा खत्म होने के कारण नौशिखिये व धनपशु बने पत्रकारों का ध्यान अब भारतीय भाषा आंदोलन के बारे में कोई रूचि नहीं है पर 1988 से अपने संघर्ष के सफर में भारतीय भाषा आंदोलन को निरंतर देश के अग्रणी पत्रकारों के साथ मिला। देश में पत्रकारिता के स्तम्भ कहे जाने वाले, राजेन्द्र माथुर, प्रभात जोशी, डा विद्यानिवास मिश्र, अच्युतानंद मिश्र, राम बहादूर राय, वेद प्रताप वैदिक, गोविन्द सिंह, राहुल देव, ओम प्रकाश तपस, हबीब अख्तर जैसे वरिष्ठ पत्रकारों का मार्ग दर्शन मिला। देश की पत्रकारिता में अपना परचम लहरा रहे भारतीय भाषा आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारी ओम प्रकाश हाथपसारिया के पत्रकारिता के सहपाठी रहे दीपक चौरसिया हो या रामहित नंदन, अनामीषरण आदि पत्रकारों का साथ मिला। सन् 2000 के प्रारम्भिक वर्षों तक देश के पत्रकारों में देश की आजादी की लड़ाई के प्रतीक समझे जाने वाले भारतीय भाषा आंदोलन के प्रति सम्र्पण व रूझान बना रहा। परन्तु जैसे जैसे देश के अन्य संस्थानों की तरह पत्रकारिता का अंध व्यवसायीकरण हो गया, उसके बाद आने वाले पत्रकारों में देश व जनहित के मुद्दों के बजाय स्तरहीन समाचारों को प्रमुखता दी जाने लगी। जनहित व देशहित वाली समस्याओं व आंदोलनों को समाचार पत्रों व खबरिया चैनल में न के बराबर जगह मिलती है। अंधी व्यवसायीकरण के मोह में अंधा हुआ समाचार जगत को देश के हितों का भान तो रहा दूर अपने दायित्वों का तक भान नहीं है।
पत्रकारिता के शर्मनाक पतन के बाबजूद वर्तमान में भाषा आंदोलन में यूएनआई के वरिष्ठ समाचार सम्पादक रहे बनारसी सिंह, राहुल देव, रोशन गौड,अभिनव कलूडा, हबीब अख्तर, अवधेश कुमार, विजेन्द्र रावत, व्योमेष जुगरान, हरीश लखेडा, के पी मलिक व आचार्य बिष्णु गुप्त सहित अनैक वरिष्ठ पत्रकारों का महत्वपूर्ण मार्गदर्शन व साथ भारतीय भाषा आंदोलन को मिलता रहा।  आज भारतीय भाषा आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारी रहे रवीन्द्र धामी भले ही उत्तराखण्ड में व जाकिर हुसैन इंटरनेटी बेबसाइट में पत्रकारिता का परचम लहरा रहे है और डॉक्टर पंकज दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे हैं। पर भारतीय भाषा आंदोलन के लिए आज भी ये पूरे जब्जे के साथ समर्पित हैं। भारतीय भाषा  के जांबाज आंदोलनकारी सरकार की उपेक्षा, प्रशासन के दमन व समाचार जगत के अंध व्यवसायीकरण से हुए पतन तथा निहित स्वार्थो में लिप्त अवसरवादियों के षड़यंत्रों का बखुबी से सामना करके देश को अंग्रेजी की गुलामी के कलंक से मुक्ति दिला कर भारत में भारतीय भाषा को राज शिक्षा, रोजगार, न्याय, सम्मान व शासन में स्थापित करना चाहता है। इस कार्य के लिए भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष  देवसिंह रावत कोरोना काल के लम्बी बंदी व सरकार द्वारा जंतर मंतर पर सतत आंदोलन पर रोक लगाने के बाद आज भी प्रतिदिन इंटरनेटी माध्यम से प्रधानमंत्री व देश की जनता से देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर देश की व्यवस्था को भारतीय भाषाओं में संचालित करने के लिये कमर कसे है। संसद की चौखट पर वर्षों तक संचालित रहे इस आंदोलन के धरने को सफल बनाने वालों में रामजी शुक्ला, सुनील कुमार सिंह,वेदानंद, मन्नु कुमार, पूनिया,सुनीता चौधरी व अभिराज शर्मा सहित अनैक आंदोलनकारी साथी समर्पित रहे। भाषा आंदोलन में भले ही आज दशकों तक जुडे प्रमुख आंदोलनकारियों का उतना सक्रिय साथ नहीं मिल रहा हो परन्तु इसके बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन के जांबाजों को विश्वास है शीघ्र देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति मिलेगी और देश में भारतीय भाषा में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन मिलेगा। इसी के बाद देश को आजादी मिलेगी, तभी देश में लोकशाही का सूर्योदय होगा व तभी देश में भ्रश्टाचार के खात्मा के साथ देश में मानवाधिकारों की रक्षा होगी।
आज 14 मार्च को अचानक भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा डा वैदिक के निधन की खबर से भारत को गहरा आघात है । क्योंकि भले ही देश अंग्रेजों से मुक्ति का 75वीं वर्षगांठ  मना रहा हो। पर हकीकत यह है कि आज भी देश अपने नाम व भाषा के साथ इतिहास के लिये तरस रहा है। देश में आज भी अंग्रेजों का थोपा नाम इंडिया व उन्हीं की भाषा अंग्रेजी से संचालित है। ऐसे में देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के इस ऐतिहासिक संघर्ष के सफल होने से पहले डा वैदिक को महाप्रयाण करना भारत के लिये बडा आघात ही है। आर्य समाज के सूत्रों के अनुसार डॉ. वेद प्रताप वैदिक जी का अन्तिम संस्कार दिनांक 15 मार्च, 2023 को दोपहर बाद 4 बजे दिल्ली के लोधी रोड श्मशान घाट पर पूर्ण वैदिक रीति से सम्पन्न होगा। भारतीय भाषा आंदोलन अपने वरिष्ठ पुरोधा साथी के आकस्मिक निधन पर उनकी पावन स्मृति को सादर नमन करता है। इस दुख की घडी में उनकी धर्म पत्नी डॉ॰ वेदवती वैदिक,    पुत्र सुपर्ण वैदिक व पुत्री अपर्णा वैदिक सहित शोकाकुल परिवार को अपनी शोक संवेदना प्रकट करते हुये परमात्मा से प्रार्थना करते है कि उनको  यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करें।   ओम शांति ओम

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