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नाटो व उसके प्यादे जेलेंन्सकी के मोह में तमाशबीन बने संयुक्त राष्ट्र के कारण तबाह हुआ यूक्रेन व विश्व पर मँडराया परमाणु युद्ध का विनाशकारी खतरा

रूस यूक्रेन  युद्ध को 1 साल होने पर विश्व के लिए भयंकर खतरा बने नाटो  को संरक्षण देने के बजाय उस पर तत्काल अंकुश लगाये संयुक्त राष्ट्र

देव सिंह रावत

परसों यूक्रेन की तबाही व विश्व को विनाश के गर्त में धकेलने वाले रूस युक्रेन युद्ध को छिडे हुये एक साल होने को है। 24 फरवरी 2022 से प्रारम्भ हुये  इस युद्ध की पहली बरसी पर यूक्रेन सहित पूरा विश्व सहमा हुआ है। विश्व सामरिक विशेषज्ञों सहित यूक्रेनी जनता को आशंका है कि रूस इस युद्ध की पहली बरसी पर यूक्रेन पर भीषण तबाही का कहर ढायेगा। यह तबाही परमाणु हमला भी हो सकता है। इसी आशंका से घिरा विश्व उस समय स्तब्ध रह गया जब दो दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो वाइडेन अचानक यूक्रेन की राजधानी कीव पंहुचे। कीव पंहुच कर अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस युद्ध का गुनाहगार रूस को बताते हुये स्पष्ट ऐलान किया कि अमेरिका पूरी तरह से यूक्रेन के साथ है और रूस को यूक्रेन सहित विश्व पर युद्ध थोप कर आत्मघाती भूल की। अमेरिका इस युद्ध में यूक्रेन को अकूत साहयता के साथ विनाशकारी हथियारों की बड़ी खेप देगा। इसके साथ अमेरिकी राष्ट्रपति ने रूस को इसका खमियाजा भुगतने की भी धमकी दी। इसके जवाब में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन  ने रूसी संसद को संबोधित करते हुये अमेरिका पर आरोप लगाया कि इस युद्ध को अमेरिका ने रूस सहित विश्व पर मात्र अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये थोपा। पुतिन ने फिर दोहराया कि रूस ने कभी अमेरिका व उसके नाटो मित्रों के खिलाफ कहीं भी कोई हमला नहीं किया। अपितु अमेरिका व उसके नाटो मित्रों ने रूस को सोवियत संघ की तरह तबाह करने के लिये सोवियत परिवार के सदस्य यूक्रेन के वर्तमान राष्ट्रपति जेलेंन्सकी को उकसा कर न केवल रूस सहित विश्व पर यह विनाशकारी युद्ध थोपकर यूक्रेन को तबाह करा दिया। इसके साथ अपने संबोधन में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अमेरिका को अपने स्वार्थ के लिये यह यूक्रेन को तबाही के गर्त में धकेलने का सीधा आरोप लगाते हुये अब इसके गंभीर परिणाम भुगतने की भी चेतावनी दी। इसके साथ पुतिन ने अमेरिका के साथ रूस की हुई परमाणु संघि से भी हटने का ऐलान किया। जिससे अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्रों में रूसी हमले की आशंका से भारी हडकंप मचा है। पुतिन की चेतावनी का सीधा असर अमेरिकी शेयर बाजार पर दिखाई देने लगा है। पूरा विश्व स्तब्ध है कि संयुक्त राष्ट्र संघ रूस व यूक्रेन युद्ध को बंद कराने के बजाय नाटो का प्यादा क्यों बना है? क्यों संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, इंग्लैण्ड सहित नाटो देशों को इस युद्ध को समाप्त करने के लिये काम करने का अनुरोध कर रहा है। एक तरफ अमेरिका सहित नाटो देश इस युद्ध में निरंतर यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति कर इस युद्ध को भडका रहे है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका व उसके साथ चीन व ईरान जैसे रूस समर्थक देशों को रूस को हथियार आदि साहयता देने पर गुर्रा रहे हैं। जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ को पूरी दुनिया के देशों से रूस-यूक्रेन युद्ध में किसी प्रकार के हथियार आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने के साथ युद्धरत रूस व यूक्रेन को शांति वार्ता करने के लिये विवश करना चाहिये था। हकीकत यह है कि रूस द्वारा बार बार शांतिवार्ता के प्रस्ताव को जिस प्रकार से यूक्रेनी राष्ट्रपति जैलेंन्सकी ने अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्रों के शह पर ठुकराया, उससे न केवल लाखों सैनिक व नागरिक मारे गये, यूक्रेन खण्डर में तब्दील हो गया और लाखों यूक्रेनी यूरोपीय देशों में शरणार्थी बनने के लिये मजबूर है। इसके साथ पूरे विश्व पर मंडराया खाद्यान्न, ईंधन आदि का संकट। पूरा यूरोप इस संकट से त्रस्त है और विश्व परमाणु युद्ध की आशंका से सहमा हुआ है। पुतिन ही नहीं विश्व के अधिकांश सामरिक विशेषज्ञ इस युद्ध के लिये अमेरिका व उसके प्यादे जेलेंन्सकी को जिम्मेदार मानते है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इस कथन से पूरे विश्व में हड़कंप मची हुई है कि युद्ध, अमेरिका ने शुरू कराया पर इस युद्ध को समाप्त हम ही करेंगे।

अमेरिका जो विश्व में हथियारों का 39 प्रतिशत विक्रेता है। रूस व चीन मिलाकर भी अमेरिका के इस व्यापार सम्राज्य के आस पास भी नहीं फटकते है। रूस ने आरोप लगाया कि अपने हथियारों को बेचने के लिये ही अमेरिका, दुनिया में कभी इराक, सीरिया, लीबिया जैसी तबाही ढाता है। अब उसने रूस पर जो युद्ध थोपा उसका खमियाजा अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्रों को भुगतना पडेगा। संसार के दोनों महाशक्तियों की सीधी जंग की आशंका से पूरा विश्व आशंकित है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र का तमाशबीन होना विश्व शांति के लिये बहुत घातक है।
उल्लेखनीय है कि रूस व यूक्रेन भले ही 24 फरवरी 2022 से  छिडी रूस यूक्रेन जंग में नाटो समर्थक पश्चिमी मीडिया उसके इशारे पर दुम हिलाने वाले विकासशील देशों के समाचार जगत रूस यूक्रेन युद्ध में रूस की पराजय बता रहे हैं। परंतु हकीकत में यह पराजय रूस की न होकर अमेरिका के नेतृत्व वाली नाटो देशों की है व उनके प्यादे बनकर यूक्रेन को बर्बादी की गर्त में धकेलने वाले यूक्रेन के राष्ट्रपति जैलेंस्की है। पूरा विश्व दिख रहा है कि अमेरिका और उसके नाटो संगठन रूस के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। परन्तु नाटो के प्यादे बने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अपनी नाटो की सदस्यता का मोह छोडकर अपने पडोसी देश रूस से मित्रता करने के बजाय नाटो द्वारा रूस से युद्ध करने के लिये दिये गये हथियार यूक्रेन की ही भीषण तबाही के साथ साथ विश्व पर परमाणु युद्ध के खतरा बन गये है। यहीं नहीं अमेरिका के इस प्यादे के कारण जहां समृद्ध यूरोप भी बर्बादी के कगार पर खडा है। ईंधन व अनाज के लिए रूस व यूक्रेन पर निर्भर रहने वाला यूरोप व अफ्रीका के दर्जनों देश मंहगाई व अनाज अभाव की विभिषिका का दंश भोग रहे हैं। यूरोप के लाखों लोग सडकों पर उतर कर अपने  अपने देशों को नाटो से बाहर निकलने के लिए आंदोलन छेडे हुये है। परन्तु अमेरिका के दवाब में यूरोपिय देश न केवल यूक्रेन को और घातक हथियार दे कर उसे रूस से लडा रहे हैं। इस कारण न केवल यूक्रेन ही तबाह हो रहा है अपितु यूरोप भी बदहाली व बर्बादी के कगार पर है। इस विश्व को तबाही के लिए उकसाने के दोषी नाटो के कृत्यों को देखने व जानने के बाबजूद संयुक्त राष्ट्र मौन साधे हुये है। वह संसार के अमन चैन को नष्ट करने को उतारू नाटों पर अंकुश लगाना तो रहा दूर उसके इन कृत्यों पर प्रश्न तक नहीं उठा रहा है।
जबकि यह जग जाहिर है कि संयुक्त राष्ट्र के अस्तित्व को रौंदते हुए अमेरिका विश्व में अपना एकाधिकार बनाये रखने के उदेश्य से अपना समानंतर गिरोह नाटो के नाम से चला कर विश्व शांति को रौंद रहा है। जबकि संयुक्त राष्ट्र के होने के बाद संसार में तमाम विवाद निपटाना व अमन चैन स्थापित करने का दायित्व संयुक्त राष्ट्र के कंधों पर है। परन्तु अमेरिका संयुक्त राष्ट्र पर एक प्रकार से शिकंजे में लेकर उस निष्प्रभावी व अपना प्यादा सा बनाया रखा है। अमेरिका ने बहुत ही चालाकी से 193 सदस्य देशों वाले इस अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना 1945 में शांति और सुरक्षा के मामलों पर विचार-विमर्श करने के लिए की गई थी। आज इसके सदस्य 193 देश है। कहने को यह संसार की सबसे बड़ी पंचायत है। परन्तु अमेरिका ने अपने अंशदान से इसको शिकंजे में जकड़कर अपना प्यादा बना रखा है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों को एक निर्धारित अनुदान संयुक्त राष्ट्र को देना होता है। सदस्य देश का प्रतिशत शेयर न्यूनतम 0.001प्रतिशत से लेकर अधिकतम 22 प्रतिशत तक है।कम से कम नामित  देशों के लिए अधिकतम 0.01प्रतिशत है व अधिकतम अंशदान 22 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों में से, शीर्ष 20 देशों का योगदान 83.78 प्रतिशत है जबकि अन्य 173 देशों का योगदान केवल 16.22प्रतिशत है। शीर्ष 10 योगदानकर्ताओं का कुल योगदान का 68.89प्रतिशत हिस्सा है। संसार में  अमेरिका ही है इकलोता देश है जो संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट में 22ः अंशदान देकर सबसे अधिक योगदान देता है।  दूसरे स्थान पर 9.68प्रतिशत के साथ जापान है, तीसरे पर चीन (7.921ः), चैथे पर जर्मनी (6.389ः), पांचवें पर फ्रांस (4.859ः),छटे पर ब्रिटेन (4.463ः), सातवें पर ब्राजील लगभग 3.823 प्रतिशत है। रूस 1.602 प्रतिशत अंशदान देकर 14वें स्थान व भारत .0.737 प्रतिशत अंशदान देकर 24वें स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट में 18 देश 1ः से अधिक का योगदान करते हैं। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल सहित 135 देशों में से प्रत्येक का योगदान 0.1 प्रतिशत से कम है। हालांकि सदस्यों के लिये संयुक्त राष्ट्र के लिये हर साल निर्धारित योगदान राशि तय करने के लिए सदस्य देश के सकल राष्ट्रीय आय व  जनसंख्या को देखते हुए एक जटिल फार्मूले के आधार से तय की जाती है। इसी के आधार पर अमेरिका जिसका सकल घरेलू उत्पाद संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के कुल सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 27ः है। इसी कारण अमेरिका के लिये अंशदान की राशि 22 प्रतिशत रखी गयी है जो अधिकतम है। यही अधिकत्तम योगदान की फांस संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का प्यादा बना है। इसका मुख्यालय भी अमेरिका में है और नीतियां भी अमेरिका के हितों के प्रसारक की तरह ही होती है। अमेरिका के हितों व मंशा के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र एक प्रकार से सांस भी नहीं ले सकता। इसलिए संयुक्त राष्ट्र को अगर स्वतंत्र बनाना है तो उसे सबसे पहले अमेरिका के आर्थिक शिकंजे से मुक्त करना होगा। इसके साथ तत्काल संयुक्त राष्ट्र व उसके संगठनों को छोड़ कर नाटो सहित तमाम गुटबाजी फैलाने वाले संगठनों पर प्रतिबंद्ध लगाना चाहिये। नाटो के कारण संसार में न केवल रूस व युक्रेन के बीच युद्ध हो रहा है अपितु इस कारण कोरिया समस्या, भारत पाक विवाद, ताइवान व अफ्रीका देशों की समस्यायें विश्व के अमन चैन पर लगातार ग्रहण लगाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की उदासीनता के कारण कोरोना जैसी महामारियों ने विश्व को तबाही के गर्त में धकेल दिया। परन्तु अभी तक संयुक्त राष्ट्र ने चीन सहित जैविक व रसायनिक हथियारों की होड़ में लगे देशों पर अंकुश नहीं लगाया। इसके कारण विश्व में कोरोना महामारी जैसी अन्य अनैक असाध्य महामारियों की चपेट में आने की आशंकायें और अधिक बलवती हो गयी है।
अगर अमेरिका के बजाय यह कार्य संसार में नाटो संगठन रूस व चीन या अन्य किसी दूसरे के शह पर करता तो वह संगठन आज विश्व के लिये कबका खतरा घोषित किया जाता और संयुक्त राष्ट्र इस पर पूरी तरह से प्रतिबंद्ध कबका लगा चूका होता। नाटो के कारण आज न केवल रूस यूक्रेन युद्ध छिडा है अपितु पूरा विश्व तबाही के गर्त में आकंठ धंसा हुआ है।
यूक्रेन के अधिकांश शहर कल कारखाने सैन्य प्रतिष्ठान पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। यूक्रेन को रूस के खिलाफ उकसा कर उसकी सुरक्षा का ढाल बनने का झूठा झांसा देने वाले अमेरिका व उसके नेतृत्व वाली नाटो संगठन पूरी तरह बेनकाब हो चुका है ।जैसे ही रूस ने यूक्रेन पर हमला किया वैसे ही अमेरिका व नाटो संगठनों ने यूक्रेन की ढाल बनने के बजाय यूक्रेन को विनाश की गर्त में धकेल कर इस युद्ध में तमाशबीन बन गये।यूक्रेन को बुरी तरह से बर्बाद करने में जितना हाथ यूक्रेन राष्ट्रपति जेलेंस्की का है उससे अधिक हाथ अमेरिका व नाटो संगठनों का भी है। एक तरफ अमेरिका अपने व्यवसायिक हितों को साधने के लिए यूरोप को भी तबाही की गर्त में धकेलने के लिए उससे उसे तेल गैस इत्यादि पर प्रतिबंध लगाने का काम करके अर्थव्यवस्था को पतन के गर्त में धकेल रहा है वहीं नाहक ही रूस के खिलाफ भड़का कर यूरोप की सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहा है।
गौरतलब है कि 24 फरवरी 2022 से छिड़ी रूस और यूक्रेन की जंग के कारण यूक्रेन पूरी तरह तबाह हो गया है । वहीं पूरे विश्व पर विनाशकारी परमाणु युद्ध के बादल भी मंडराने लगे हैं।
पूरी दुनिया चाहती है कि एक साल से चल रही यह लड़ाई तुरंत बंद हो। यह लड़ाई इतनी भीषण मोड़ पर खड़ी हो गई है कि एक तरफ अमेरिका और उसके मित्र नाटो संगठन, रूस पर अनेक आर्थिक व सामाजिक प्रतिबंध लगाकर उसकी अर्थव्यवस्था को तबाह करने की हुंकार भर रहे हैं। वही नाटो देशों देश रूस द्वारा उन पर इंधन व ऊर्जा के साथ अनाज पर लगाये गये प्रतिबंधों के कारण इनकी अर्थव्यवस्थायें एक प्रकार से चरमरा सी गयी है और इनके नागरिकों का ईंधन व ऊर्जा व अनाज की कमी के कारण आसमान छू रही महंगाई बेरोजगारी आदि से बेहाल हो गया है। इसकी चपेट में आने से संसार की अर्थव्यवस्था डगमगा सी रही है। इसके पीछे अगर कोई जिम्मेदार है तो वह नाटो ही है। इसके विश्व में अपना बर्चस्व बनाये रखने के लिए रूस आदि  अन्य ताकतवर देशों के खिलाफ यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की जैसे प्यादों को आगे करके पूरे विश्व को परमाणु युद्ध के विनाशकारी गर्त में धकेल रहे है। अगर नाटो दखल नहीं देेेता तो न रूस व युक्रेन युद्ध होता व नहीं कोरिया आदि विनाशकारी तनाव से विश्व अभिशापित होता। एक प्रकार से विश्व में वर्तमान तनाव का प्रमुख कारण ही नाटो है। संसार में जब सबसे बडा संगठन संयुक्त राष्ट्र है तो अमेरिका क्यों विश्व शांति पर ग्रहण लगाने वाले नाटो संगठन को समांतर चला कर विश्व को विनाश के गर्त में धकेल रहा है।
वहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका और नाटो संगठन को इस लड़ाई को और न भड़काने की कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उसके अस्तित्व पर खतरा मंडराया तो रूस अंतिम विकल्प के तौर पर परमाणु प्रहार करने से भी नहीं हिचकिचायेगा। अगर विश्वयुद्ध यानी परमाणु युद्ध होता है तो उससे पूरे विश्व में कई करोड़ लोग मारे जाएंगे। भीषण तबाही होगी। मानवता के अस्तित्व पर खतरा मंडरायेगा।
इस तबाही के लिए अगर कोई जिम्मेदार होगा तो वह है संयुक्त राष्ट्र संघ, जो 2003 में हुए इराक युद्ध से लेकर 2022 में शुरू हुए यूक्रेन युद्ध पर मौन साधे रहा। सन 2003 मे अमेरिका ने सद्दाम के परमाणु और रासायनिक हथियारों के खिलाफ दुनिया के देशों को झांसा दे कर इराक को तबाह किया। उसके बाद लीबिया वह मिश्र को भी सीरिया की तरह तबाह किया। उस समय भी संयुक्त राष्ट्र संघ सहित पूरी दुनिया नपुंसक की तरह अमेरिका की दादागिरी झेलता रहा।अगर इराक युद्ध के समय 2003 में संयुक्त राष्ट्र संघ अमेरिका व उसके नाटो देशों को कड़ी चेतावनी देता कि वह सद्दाम हुसैन और इराक पर हमला न करें तो आज यूक्रेन पर किसी प्रकार का हमला नहीं होता। लाखों लोगों की तबाही इराक युद्ध में अमेरिका के वर्चस्व के लिए हुई। झूठे मामलों पर हुई। परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ धृतराष्ट्र की तरह इस बर्बादी को तमाशबीन की तरह देखता रहा। अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले के समय व सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में इस्लामिक आतंक को बढ़ावा देने की अमेरिका की गतिविधियों पर समय रहते संयुक्त राष्ट्र संघ अंकुश लगाता तो आज पूरे विश्व को इस्लामिक आतंकवाद का क्रूर चेहरा है उसका दंश नहीं झेलना पड़ता । आज इस्लामी आतंक से जहां भारतीय महाद्वीप, अफगानिस्तान, अरब देशों, अफ्रीका ही नहीं अपितु इसको संरक्षण व प्रशिक्षण देने वाले अमेरिका व यूरोपीय देशों के लिए आज इस्लामिक आतंक इनके लिए भी जी का जंजाल बन चुका है। अमेरिका पर हुए इस्लामिक आतंकी हमले के बावजूद अमेरिका और उसके मित्र नाटो आज भी इससे सबक नहीं ले रहे हैं और फिर विश्व में इस्लामफोबिया के नाम पर आतंक की ढाल बनने का नापाक कृत्य कर रहे हैं।
रूस यूक्रेन युद्ध को भी भड़काने व यूक्रेन को तबाही की गर्त में धकेलने के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह है अमेरिका व उसके नाटो मित्र देश। परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ नाटो देशों को इस युद्ध से दूर रहने की चेतावनी भी नहीं दे रहा है वह विश्व युद्ध में निरंतर रूस के खिलाफ यूक्रेन को भड़का कर उसे और अधिक घातक हथियार भेजकर इस युद्ध को समाप्त कराने के बजाय और अधिक बढ़ा रहे हैं। जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ को भी मालूम है कि यह युद्ध रूस के दुश्मन नाटो देशों द्वारा पूर्व सोवियत परिवार की सदस्य यूक्रेन को रूस के खिलाफ भड़काने से शुरू हुआ है। घोषणा तो नाटो देशों से उलझा वह नहीं उसने किसी नाटो देश पर हमला किया इसके बावजूद नाटो देश रूस के घर में जाकर उसके खिलाफ निरंतर षड्यंत्र कर रहे हैं इससे आत्मरक्षा में मजबूर रूस ने अपने परिवार के सदस्य को नाटो में सम्मलित होकर आत्महत्या करने से रोकने के लिए जब युद्ध किया तो यूक्रेन को सुरक्षा का झांसा देने वाले अमेरिका व उसके नाटो देश केवल तमाशबीन बनकर रह गये। संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए था कि वह विश्व शांति के लिए नाटो देशों को अपने नापाक गतिविधियों से दूर रहने की चेतावनी देता। परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ जो निरंतर दशकों से विश्व के हितों की रक्षा करने के बजाय केवल नाटो देशों के हितों का रक्षक बनकर रह गया है वह पूरी तरह इस संकट की घड़ी में बेनकाब हो गया है। वहीं दूसरी तरफ रूस आरोप लगा रहा है कि यह लड़ाई अमेरिका बंद नहीं होने दे रहा है व यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की को उकसा रहा है।
हकीकत में देखा जाए तो इस तबाही के पीछे अमेरिका नेतृत्व वाले नाटो के झांसे में फंसे यूक्रेन में राष्ट्रपति जेलेंस्की ही है। यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की नाटो में सम्मलित होने की सनक के कारण ही यूक्रेन के एक करोड़ अधिक लोग बेघर हो गए। हजारों मारे गए व हजारों लोग घायल हो गए। पूरा यूक्रेन तबाह हो गया।
जिसने अमेरिका व नाटो के झांसे में आकर रूस से बिना बात की दुश्मनी बढ़ाई। परंतु जैसे ही रूस ने यूक्रेन पर हमला किया न अमेरिका व न उसका नाटो संगठन यूक्रेन के बचाव में आगे आया। रूसी हमले से यूक्रेन पूरी तरह तबाह हो गया। परंतु अमेरिका व उसका नाटो संगठन दूर से कड़ी निंदा करते हुए मात्र तमाशबीन बने रहे। अमेरिका और नाटो के इस कायरता पूर्ण कार्रवाई को यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूस से डर कर यूक्रेन से विश्वासघात करना बताया।
भले ही रूस और यूक्रेन के बीच कुछ और मनमुटाव भी हों पर इस लड़ाई का मूल कारण जेलेंस्की का नाटो संगठन में यूक्रेन को सम्मलित करने की सनक ही रही। रूस द्वारा बार-बार आग्रह व चेतावनी देने के बाद भी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने उसका यूक्रेन से ट्रस्ट देश रहने का आग्रह ठुकरा कर इस भीषण युद्ध को खुद ही आमंत्रण दिया। आप नाटो के विश्वासघात के बाद रूसी हमलों से यूक्रेन की और बर्बादी को रोकने के लिए रूस से समझौता करने के बजाए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की रूस को बर्बाद करने के लिए नाटो देशों से सैन्य सहायता की गुहार लगा रहे हैं।
यूक्रेनी जनता देश छोड़कर पड़ोसी देशों में शरणार्थी का जीवन जीने के लिए अभिशाप हैं। विवाद यह है कि यूक्रेन उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो का सदस्य देश बनना चाहता है और रूस इसका विरोध कर रहा है। उस जंग के बीच में भी यूक्रेन से नाटो की सदस्यता का मोह त्याग कर तटस्थ देश रहने का वचन देने की ही मांग कर रहा है। परंतु रूस नहीं चाहता कि उसका पड़ोसी देश नाटो का मित्र बने।
4 अप्रैल 1949 को अमेरिका ने अपने सदस्य राष्ट्रों की स्वतंत्रता की रक्षा व सुरक्षा करने के उद्देश्य से उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो एक सैन्य संगठन बनाया। इसका मुख्यालय बेल्जियम के ब्रुसेल्स में है । इसमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन,इटली, फ्रांस,टर्की, जर्मनी, नीदरलैंड आयरलैंड लक्जमबर्ग नार्वे पुर्तगाल, ग्रीस, हंगरी चेक गणराज्य पोलैंड, बुलगारिया, एस्टोनिया, लिथुआनिया, लातविया, रोमानिया, स्लोवेनिया, स्लोवाकिया, अल्बानिया व क्रोएशिया आदि 30 देश शामिल हैं।
इसका गठन एक प्रकार से सोवियत संघ के नेतृत्व वाले वारसा संगठन के खिलाफ पश्चिमी देशों का एक संगठन है । सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो संगठन का औचित्य एक प्रकार से ही समाप्त हो गया है ।परंतु अपने वर्चस्व के लिए यह संगठन समय-समय पर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपने हितों की पूर्ति के लिए विवाद खड़ा करता रहता है। कहने के लिए यह भले ही यह आपसी सैन्य संगठन है ।परंतु यह पूरे संसार की संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन, मानवाधिकार संगठन व विश्व न्याय प्राधिकरण सहित तमाम संगठनों की गतिविधियों को अपने हितों के अनुसार संचालित करता है। इसके कारण पूरे संसार में युद्ध व अराजकता रहती। असल में अमेरिका व नाटों के अधिकांश देशों का सबसे बडा धंधा ही हथियार यानि शस्त्र उघ्घोग है। जब संसार में लडाई होगी तो इनके हथियार बिकेंगे। इनके देशों में रोजगार व आय बढेगी। आरोप यह भी है रूस व युक्रेन युद्ध में केवल अमेरिका को भारी लाभ हो रहा है। अमेरिका अपने विकास के लिए विश्व में इसी प्रकार के युद्धों में उलझाये रख कर अपना विकाश व बर्चस्व बनाता है। जिससे पूरे विश्व में अशांति व अराजकता फैलती है। इस पर रोक लगाने का दायित्व ही संयुक्त राष्ट्र का है। जो अमेरिका के हाथों का तोता है।

अब रूस के सामने चुनौती यह है कि उसके कुछ पड़ोसी देश पहले ही नाटो में शामिल हो चुके हैं। इनमें एस्टोनिया और लातविया जैसे देश हैं, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे। अब अगर यूक्रेन भी नाटो का हिस्सा बन गया तो रूस हर तरफ से अपने दुश्मन देशों से घिर जाएगा और अमेरिका जैसे देश उस पर हावी हो जाएंगे। अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता है और रूस भविष्य में उस पर हमला करता है तो समझौते के तहत इस समूह के सभी 30 देश इसे अपने खिलाफ हमला मानेंगे और यूक्रेन की सैन्य सहायता भी करेंगे।

रूस के लिए यूक्रेन कितना महत्वपूर्ण है यह रूसी क्रांति के महा नायक व्लादिमीर लेनिन के इस कथन से साफ हो जाता है कि ‘यूक्रेन को खोना रूस के लिए एक शरीर से अपना सिर काट देने जैसा होगा।
सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया में उसके स्थान पर रूस को स्थापित करने का श्रेय वर्तमान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को ही जाता है । उन्होंने अपनी दूरदर्शिता व कुशल नेतृत्व से पुरे संसार में उसको वही स्थान दिला दिया जो कभी सोवियत संघ का होता था।
सोवियत संघ को ढहाने का जो भी अन्य कारण रहे हो परंतु पुतिन सहित तमाम जानकार लोग जानते हैं कि इस षड्यंत्र के पीछे अमेरिका व उसके नाटो संगठन का कहीं न कहीं हाथ जरूर है।
रूस विरोधी नाटो को अपने परिवार में घुसते देख कर पुतिन सहित हर स्वाभिमानी व जागरूक सोवियत नागरिक का भड़कना स्वाभाविक ही है। इसीलिए पुतिन सहित रूसी लोग नाटो में यूक्रेन के प्रवेश का विरोध कर रहा है। रूस का पड़ोसी देश यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर स्थित है।

इतिहास में झांके तो साफ दृष्टिगोचर होता है कि रूस और यूक्रेन एक ही परिवार के सदस्य हैं । 1917 से पहले रूस और यूक्रेन रूसी साम्राज्य का हिस्सा थे। 1917 में रूसी क्रांति के बाद, यह साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन ने खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। हालांकि 3 साल स्वतंत्र देश रहने के बाद यूक्रेन 1920 में फिर से सोवियत संघ परिवार में जुड़ गया । सोवियत संघ के विघटन के बाद ही सोवियत संघ के अन्य देशों की तरह यूक्रेन भी स्वतंत्र हो गया।
25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ के टूटने के बाद ये(यूक्रेन,आर्मीनिया,अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया.. मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान) 15 देश बने।
सोवियत संघ के विभाजन के बाद अलग बने देशों पर अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो संगठन ने रूस को घेरने के लिए इन देशों में घुसपैठ करना शुरू कर दिया।

रूस से आशंकित यूक्रेन भी जानता है कि वह रूस से कभी भी अपने दम पर मुकाबला नहीं कर सकता और इसलिए वह एक ऐसे सैन्य संगठन में शामिल होना चाहता है । यूक्रेन के राष्ट्रपति को लगा कि नाटो से बेहतर संगठन कोई और नहीं है जो रूस से यूक्रेन की रक्षा कर सके।

रूस-यूक्रेन के बीच तनाव नवंबर 2013 में तब शुरू हुआ जब यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का कीव में विरोध शुरू हुआ। यानुकोविच को रूस का समर्थन हासिल था ।जबकि प्रदर्शनकारियों को अमेरिका और ब्रिटेन का। इस विवाद के कारण फरवरी 2014 में यूक्रेन के राष्ट्रपति यानुकोविच को देश छोड़कर रूस में शरण लेनी पड़ी थी।
2014 में रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप का पुनरूविलय कर लिया था।इसके पीछे रूसी तर्क है कि वहां रूसी मूल के लोग बहुतायत में हैं और विरोध प्रदर्शन के बीच उनके हितों की रक्षा करना रूस की जिम्मेदारी है। वहां रूसी मूल के लोग बहुतायत में हैं और विरोध प्रदर्शन के बीच उनके हितों की रक्षा करना रूस की जिम्मेदारी है। गौरतलब है कि क्रीमिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या रूसियों की है। इसके साथ ही वहां यूक्रेनी, तातार, आर्मेनियाई, पॉलिश और मोल्दावियाई हैं। हालांकि क्रीमिया पर कभी क्रीमियाई तातार बहुसंख्या में थे ।लेकिन उन्हें स्टालिन के शासन के दौरान मध्य घ्एशिया भेज दिया गया था।

1954 में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव ने अदूरदर्शिता के कारण क्रीमिया को यूक्रेनी-रूसी मैत्री और सहयोग के एक तोहफे के तौर पर यूक्रेन को सौंप दिया था। जो बाद में विवाद का कारण बना।
अमेरिकी परस्थ संयुक्त राष्ट्र व अन्य वैश्विक संगठन इस मामले में जहां रूस की निंदा कर रहे हैं ।वहीं वे इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि क्यों नाटो संगठन रूस के पड़ोसी देशों में जाकर यूक्रेन को युद्ध के लिए उकसा रहा है। वह वहां के अमन-चैन को तबाह कर रहा है। तो संयुक्त राष्ट्र संघ व अन्य वैश्विक संगठनों को चाहिए कि वहां अमेरिका सहित नाटो देशों को इस विवाद से दूर रहने की कड़ी चेतावनी दें और वे इस युद्ध में शांति की जगह हथियार देकर और गलत बयानी करके इस युद्ध को और भड़काने से बाज आए। संयुक्त राष्ट्र संघ को अपनी तटस्थता भी सिद्ध करनी है। क्योंकि इराक, लीबिया, मिस्र व अफगानिस्तान इत्यादि प्रकरणों में व अमेरिका के हमलों पर संयुक्त राष्ट्र संघ वह तमाम वैश्विक संगठन मूकदर्शक बने रहे। सच में इस पूरी बर्बादी का मुख्य गुनाहगार यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की है जो अपनी नाटो मोह के कारण यूक्रेन को तबाही के गर्त में धकेल रहा है। सच देखा जाए तो रूस अपनी सुरक्षा के लिए यह कदम उठा रहा है। अगर यूक्रेन नाटो का मोह त्याग कर रूस से वार्ता करें तो युद्ध उसी समय बंद हो जाएगा। इस युद्ध से यही सबक दुनिया को मिला कि देशवासियों को दूसरों के प्यादे बने अपरिपक्व व्यक्ति के हाथ में देश की बागडोर नहीं सोंपनी चाहिए। नहीं तो उन्हें भी यूक्रेन की तरह बिना वजह तबाह हो कर शरणार्थी बनना पड़ेगा। भले ही यूक्रेन के कुछ सूत्र खबरिया चैनलों पर यह प्रचार कर रहे थे कि रूस मई के प्रथम पखवाड़े तक इस जंग को जारी रखकर यूक्रेन को तबाह करेगा। परंतु इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है जिस दिन भी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की खुले मंच से नाटो का मोह छोड़कर तटस्थ देश बनने का ऐलान करते हुए रूस से शांति वार्ता करेगा उसी दिन यह जंग बंद हो जाएगी।
सबसे हैरानी वाली बात यह है संयुक्त राष्ट्र संघ सहित तमाम वैश्विक संगठन अमेरिका और नाटो देशों से यह सवाल क्यों नहीं कर रहे हैं कि जब सोवियत संघ का बिखराव हो गया तो नाटो को बनाए रखने का औचित्य क्या? अगर अमेरिका व उसके साथी देशों के दिलो-दिमाग में जरा भी ईमानदारी होती तो वह नाटो को तुरंत भंग करके विश्व में शांति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र को मजबूत करते परंतु हकीकत यह है कि युद्धों से अमेरिका व उसके नाटो संगठन अपने वर्चस्व बनाए रखने व हथियारों के व्यापार के बढ़ोतरी के लिए ही इस प्रकार के विवादों को दुनिया में यत्र तत्र खड़ा करते हैं।

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