रोजगार परीक्षा में धांधलियों की सीबीआई जांच का ऐलान कर पुलिसिया दमन के लिये माफी मांगे मुख्यमंत्री
प्यारा उतराखण्ड डाट काम
8से 9फरवरी 2023 तक उतराखण्ड पुलिस प्रशासन ने उतराखण्ड बेरोजगारों पर जो बर्बर पुलिसिया दमन किया, उसका उतराखण्ड सहित पूरे देश के जागरूक जनमानस ने कड़ी भत्र्सना की। इसी के विरोध में 10 फरवरी को उतराखण्ड बंद का आवाहन किया गया है। यह मामला तब भडका जब सरकार की अक्षमता से उतराखण्ड में रोजगार परीक्षाओं के पत्र बार बार भ्रष्टाचार के भैंट चढ कर युवाओं की आशाओं पर बज्रपात हो रहा था। शासन से इन्हीं आस्तीन के सांपों को दबोच कर अंकुश लगाने के लिये इन प्रकरण की सीबीआई की जांच कराने व पटवारी भर्ती स्थगित की मांग को लेकर उतराखण्ड बेरोजगार संघ ने अपने अध्यक्ष बाॅबी पंवार व देवभूमि बेरोजगार मंच के अध्यक्ष राम कंडवाल के नेतृत्व में सैकडों पीडित युवा देहरादून के गांधी मैंदान में धरने में बेठे। उन शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों पर आठ फरवरी की मध्यरात्रि में पुलिस का कहर टूट गया। शासन के आकाओं के निर्देश पर पुलिस ने र्बबरता से जब शांतिपूर्ण धरना दे रहे बेरोजगार संगठन के प्रमुख बाॅबी पंवार व साथियों से मारपीट की तो यह खबर जैसे ही देहरादून सहित प्रदेश के लाखों युवाओं तक पंहुची तो पूरा प्रदेश आक्रोशित हो गया। पुलिसिया दमन के खिलाफ युवाओं के सैलाब से गांधी मैदान से लेकर देहरादून की सडके भर गयी। युवा ही नहीं आम जनता भी सरकारी भर्ती सेवाओं में हो रही इन धांधलियों से नाखुश है। आक्रोशित युवाओं ने जहां 9 फरवरी के सुबह से गांधी मैदान में चल रहे बेरोजगार युवाओं के आंदोलन को समर्थन देने आ रहे कांग्रेसी नेता प्रीतम सिंह को भी इस मुद्दे से दूर रहने की चेतावनी देते हुये उन्हें धरने में सम्मलित नहीं होने दिया। वहीं पुलिस द्वारा 8 फरवरी की रात को किये गये बर्बर पुलिसिया दमन से आक्रोशित युवाओं ने पुलिस को भी इस आंदोलन से दूर रहने की चेतावनी दी। इसी गहमागहमी में पुलिस ने आक्रोशित युवाओं पर पुन्नः बर्बर लाठियां बरसा कर युवाओं को खदेडने का काम किया। जब घण्टों तक यह दमन जारी रहा तो प्रशासन की इस बर्बरता का ढक कर खुद को पाक साफ घोषित करने का नाटक करते हुये मुख्यमंत्री ने युवाओं पर लाठी चार्ज करने की घटना की मजिस्टेट जांच के आदेश दिये व साथ मंें रोजगार भर्ती परीक्षाओं में धांधलियां करने के गुनाहगार को कडा दण्ड देने के लिये नकल विरोधी कडा कानून बनाने वाले अध्यादेश को मंजूरी देने का भी ऐलान किया। परन्तु मुख्यमंत्री की यह घोषणा बेरोजगारों के जख्मों पर मरहम लगाने के बजाय कुरेदने वाला कदम समझा गया। इस प्रकरण पर कडी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुये उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के शीर्ष आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने कहा कि मुख्यमंत्री को लाठी जार्चे की जांच करने व कडा कानून बनाने का ऐलान केवल बेरोजगारों के आंखों में धूल झौंकने का हथकण्डा बताया। उनकी सरकार ने युवाओं के साथ ठीक वेसी ही बर्बरता की जैसे ेमुलायम सरकार ने राज्य गठन के समय आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता की थी।श्री रावत ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री में जरा सी भी नैतिकता है तो वे इस बेरोजगारों की मांग तुरंत मानते हुये इन प्रकरणों की जांच सीबीआई को सौंपने का काम करना चाहिए। इसके साथ 8 फरवरी से 9 फरवरी तक बेरोजगारों के साथ किये गये पुलिसिया दमन के लिये प्रदेश की जनता से माफी मांगनी चाहिये। यह जगजाहिर है इस मांग को लेकर आंदोलनकारियों पर 8 फरवरी की मध्य रात्रि पर पुलिसिया कहर ढाने का आदेश पुलिस का हो ही नहीं सकता। यह सरकार के उच्च पद पर आसीन व्यक्ति के निर्देश के बिना यह संभव नहीं था। इसलिये मुख्यमंत्री को अपनी भूल को स्वीकार करके कडे कदम उठाने चाहिये। उन्हे समझना चाहिये ंिक क्यों उनकी सरकार प्रदेश के हितों की रक्षा करने में विफल रही। मामला केवल बेरोजगारों का नहीं अपितु हर मोर्चे परर प्रदेश की सरकार पूरी तरफ से विफल रही। मामला चाहे जोशीमठ का हो या हल्द्वानी का। राजधानी गैरसैंण का मामला हो या भू कानून व मूल निवास का। प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई क्षेत्रों का परिसीमन का दंश प्रदेश के भविष्य को तबाह कर रहा है। वहीं प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने के बजाय सरकारी भर्ती तक कराने में प्रदेश सरकार विफल रही। प्रदेश में भ्रष्टाचार हर स्तर पर प्रदेश के वर्तमान व भविष्य को रौंद रहा है। जिस प्रकार से देहरादून में प्रदेश सरकार की नांक के नीचे प्रदेश पर काबिज होने के लिये अवैध बस्तियां बसा कर प्रदेश को असम, बंगाल व कश्मीर बनाने का षडयंत्र चल रहा है। आखिर सरकार का काम क्या है? केवल दिल्ली के आकाओं की परिक्रमा। जिस प्रकार से प्रदेश की 23 साल की सरकारों ने अपने अपने कार्यकाल में बेरोजगारों को रोजगार देने के बजाय वहां मुख्यमंत्रियों, विधानसभाध्यक्षों व मंत्रियों के साथ नौकरशाहों ने अपने अपने प्यादों रिश्तेदारों को रोजगार देकर प्रदेश के बेरोजगारों के भविष्य पर बज्रपात किया और प्रदेश की व्यवस्था को पतन के गर्त में धकेला। उसके दोषियों को सजा देने के नाम पर असली गुनाहगारों को बचाना व चंद प्यादों पर गाज गिराना कहां का न्याय है। अगर प्रदेश सरकार में जरा सी भी नेतिकता होती तो ऐसे गुनाहगार मंत्री व विधानसभाध्यक्ष को बर्खास्त करने का काम करते। इनके भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच करते। परन्त सरकार अंकिता प्रकरण से पूरी तरह बेनकाब हो गयी। आखिर रावणों ंको बचाने के लिये कब तक न्याय की गुहार लगाने वालों पर पुलिसिया दमन करेगे? एक बात साफ है सरकार को तुरंत अपनी भूल सुधारते हुये इन प्रकरण की सीबीआई जांच करानी चाहिये। जनता से माफी मांगनी चाहिये।