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तुर्की -सीरिया में प्रलयंकारी भूकंप भारत के लिये भी खतरे की घंटी, जोशीमठ त्रासदी के बाबजूद सबक लेने को तैयार नहीं है सरकार

देवसिंह रावत
तुर्की और उसकी सीमा से सटे सीरिया में 6 फरवरी सोमवार सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर भूकंप के  7.8 तीव्रता के विनाशकारी झटके से 16000 से अधिक लोग मारे गये व 11 हजार से अधिक इमारतें जमीदोज हो गयी और 40000 से अधिक लोग घायल हैं। इस त्रासदी के बाद बचाव में 55 हजार बचावकर्मी जुटे है। तुर्की ने 7 दिन का राष्ट्रीय शोक व ती महीने का आपातकाल लगा दिया है। देश के सभी विद्यालय फरवरी के पहले पखवाडे के लिये बंद कर बचाव व राहत में जुट गया है। भारत सहित अनैक देश इस त्रासदी के पीडितों के बचाव में जुटे हुये है। इस विनाशकारी भूकंप के बाद भी तुर्की में एक के बाद एक भूकंप के झटके आने से लोग दहशत में जी रहे है। परन्तु इसकी सिहरन पूरे विश्व में है। पूरे विश्व में भूकंप के गहरे दंश से पीडित है। 1556 में जानमाल के हानि की दृष्टि से चीन में आया भूकंप बेहद खौपनाक रहा, इसमें 8.30लाख लोग जमीदोज हो गये थे। वहीं तीब्रता की दृष्टि से 22 मई 1960 को चिल्ली में आये 9.5 तीब्रता के भूकंप व उससे उपजी सुनामी ने चिली, हवाई द्वीप, जापान, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया व फिलीपींस सहित अनैक देशों को तबाह कर दिया था।  इसकी आशंका से भारतीय भी सहमें हुये हैं। क्योंकि भारत का 11प्रतिशत भू भाग सबसे खतरनाक भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है।उतराखण्ड से लेकर देश के आम जनमानस को झकझोरने वाली जोशीमठ त्रासदी के दो माह बीत जाने के बाद भी प्रदेश व केंद्र सरकार कोई ठोस कदम ऐसा नहीं उठा रही है जिससे जोशीमठ भू धसांव के पीडितों व आशंकित आम जनमानस को ढाढश बंध पाये। इस दिशा में सरकार भले ही इस क्षेत्र की विनाश के जिम्मेदार समझी जाने वाली जल विद्युत परियोजनाओं को बंद करने का वचन दे पा रही है। हाॅ सरकार ने जनता के वर्तमान आक्रोश को शांत करने के नजरिये से इन पर कार्य स्थगित कर रखा है। परन्तु सरकार को यह साहस नहीं आ रहा है कि भारत के भूकंप के सबसे खतरनाक भाग में स्थित इस प्रकार की सभी परियोजनायें, सुरंगे, विस्फोट प्रयोग व भारी निर्माण सदा के लिये बंद कर दिये जाते है। सरकार तत्काल क्षणिक स्वार्थों के खातिर हिमालय के इस संवेदनशील क्षेत्र से इन योजनाओं को स्थापित कर तबाही को क्यों आमंत्रण दे रही है। जबकि जोशीमठ के स्थानीय निवासियों के साथ उतराखण्ड के जागरूक जनता दशकों से उतराखण्ड में बडे बांधों व हाइड्रो प्रोजेक्टों के साथ सुरंगों के निर्माण पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग करते आये। तपोवन-विष्णुगाड़ प्रोजेक्ट की सुरंग का व्यास साढ़े छह मीटर है। इस लम्बी सुरंग के कारण जमीन की सतह से लेकर नदी और भीतरी हिस्से तो तबाह होना तय है। ऐसी सुरंगे उतराखण्ड यत्र तत्र अनैक बनी है जिसने इस भूकंप दृष्टि से बेहद संवेदनशील क्षेत्र उतराखण्ड में भारी तबाही को आमंत्रित सा कर दिया। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट में 17 सुरंगे बन रही है, इसका 70प्रतिशत हिस्सा सुरंगों का है। यहां देश की दूसरे नंबर की 14 किमी लंबी सुरंग देवप्रयाग से जनासू तक निर्माणाधीन है।  एक आंकलन के अनुसार अगले दस साल में उत्तराखंड देश में सर्वाधिक रेल-रोड सुरंगों वाला प्रदेश होगा। यहां फिलहाल 18 सुरंग संचालित हैं व 66 सुरंग बनायी जायेगी। सुरंगों के जाल से यातायात की सुगमता होने के दावे किये जा रहे हैं परन्तु उससे जोशीमठ जैसी त्रासदी अगर पर्वतीय क्षेत्रों में उपजेगी तो सरकारों के पास समधान के नाम पर पुनर्वास व बुलडोजर के अलावा कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।
टिहरी बांध जैसे परियोजनाओं से उतराखण्डियों को लाभ होने के बजाय केवल विस्थापन का ही दंश झेलना पड रहा है। पंचेश्वर बांध के पदचाप से विस्थापन व प्रभावित होने की आशंका से लाखों लोगों की रातों की नींद उडी हुई है। अब जोशीमठ त्रासदी से यह पीडा फिर उजागर हुई। इसी लिये गत महिने संसद की देहरी प्रेस क्लब दिल्ली में उतराखण्ड के प्रबुद्ध जनों ने विशेषज्ञों के साथ मिल कर सरकार से तुरंत उतराखण्ड के विनाश के पर्याय बनी परियोजनाओं पर रोक लगाने की मांग की। इसी  माह 4 फरवरी 2023 को भी जंतर मंतर पर जोशीमठ त्रासदी को लेकर दिन भर का धरना दिया गया। जोशीमठ में चल रहे जनता के संघर्ष का पूरा समर्थन किया गया।
अब तुर्की -सीरिया में इसी माह 6 फरवरी को आये विनाशकारी भूकंप ने उतराखण्ड की जनता को उतरकाशी व चमोली भूकंप के जख्म कुरेद दिये। इसके साथ देश की प्रबुद्ध जनता भी हैरान है कि जब उतराखण्ड का यह क्षेत्र भारत के सबसे खतरनाक भूकंपीय भाग में है तो सरकारें क्षणिक लाभ के लिये देश को  विनाश की गर्त में क्यों धकेल रहे है।
उल्लेखनीय है कि  भारत को भूकंप की दृष्टि से 5 भागों में बांटा गया है। सबसे चैकाने वाला तथ्य यह है कि भारत का 59 प्रतिशत भू भाग भूकंप की मारक क्षमता की परिधी के अंतर्गत है।
पांचवा भाग वह है जो भूकंप की दृष्टि से सबसे खतरनाक है। देश का 11 प्रतिशत भू भाग इस खतरनाक भाग में आता है। इस भाग में सबसे अधिक विनाशकारी भूकंप आने की संभावनाये है। यहां 9.00 की तीब्रता या इससे अधिक के भूकंप आ सकते है। इस क्षेत्र में पूरा पूर्वोतर भारत, उतराखण्ड, हिमाचल, जम्मू कश्मीीर, गुजरात का कच्छ, बिहार का उतरी हिस्सा, अंडमान निकाबार है।
चोथे भाग भी भूकंप की दृष्टि से बेहद खतरनाक है । ददेश का 18 प्रतिशत भू भाग चोथे भाग में आता है। परन्तु 5वें भाग की तुलना में थोडा कम। परन्तु यहां भी 8 तीब्रता वाले भूकंप आते है। उल्लेखनीय है कि 7.9 तीब्रता के ऐसे ही भूकंप ने इसी माह 6 फरवरी 2023 को टर्की व सीरिया को तबाह कर दिया। देश की राजधानी दिल्ली व इसके आसपास का क्षेत्र, जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उ्र, बिहार, बंगाल का उतरी हिस्सा, गुजरात ,राजस्थान व महाराष्ट्र है। एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सहित राष्टीय राजधानी क्षेत्र भी भूकंप के प्रति संवेदनशील है। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली 3 सक्रिय भूकंपीय रेखाओं सोहना, मथुरा और दिल्ली-मुरादाबाद के पास स्थित है। भूकंपीय विशेषज्ञों के अनुसार  7 फॉल्ट लाइन पर स्थित गुरुग्राम दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सबसे संवेदनशील।तीसरा क्षेत्र- भूकंप की दृष्टि से तीसरा क्षेत्र पांचवे व चोथे क्षेत्रों के मुकाबले कम भूकंप वाला क्षेत्र है। इसमें 7तीब्रता के भूकंप आते हैं। देश का 30 प्रतिशत क्षेत्र इस हिस्से में आता है। परन्तु खतरा यहां पर भीी बना रहता हे। इसमें गोवा, केरल, लक्षदीप, गुजरात, उडिसा,तमिलनाडू, कर्नाटक, बंगाल, उप्र, पंजाब, राजस्थान, मप्र, , छत्तीसगढ, झारखण्ड, व बिहार आदि क्षेत्र आते है।
भूकंप की दृष्टि से भारत के दूसरा व पहला भाग में उपरोक्त 5,4,3 भागों की तुलना में कम तीब्रता के भूकंप आते है। इस भाग में 6.00 या इससे कम तीब्रता वाले भूकंप आते हैं। उल्लेखनीय है कि भूकंप के खतरे में 4.9 तीब्रता के भूकंपों से जान माल के नुकसान की संभावना प्रायः कम होती है। परन्तु इसके बाबजूद यह स्थान भी  भूकंप की दृष्टि से सुरक्षित नहीं माना जा सकता है।

उल्लेखनीय है भारत के भूकंपीय दृष्टि से सबसे संवेदनशील क्षेत्र उतराखण्ड जोशीमठ में इस प्रकार की परियोजनाओं के कारण जोशीमठ के लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। इस त्रासदी से पूरा देश स्तब्ध है कि आखिर इस संवेदनशील क्षेत्र में ऐसी विनाशकारी परियोजनायें बनाने को क्यों तुली है सरकार। जबकि देश में ऊर्जा के अन्य विकल्प विद्धमान है। जोशीमठ में जिलाधिकारी चमोली द्वारा 8 फरवरी को जारी आंकडों के अनुसार 868 भवनों में दरारें आयी हैं। इनमें 181 भवनों को खतरनाक व असुरक्षित घोषित किया है। जबकि शासन प्रशासन की धृष्ठता 1976 में बनी जोशीमठ त्रासदी से उबारने की सरकारी उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री व उप्र के मुख्यमंत्री को सौंपी गयी। इसमें भी इस क्षेत्र में भारी परियोजनाओं, भारी बसाव आदि न करने की सलाह दी थी। जिसकी अवैहलना स्थानीय प्रशासन, जिला प्रशासन, प्रदेश व केंद्र सरकार ने बेशर्मी से की जिसके कारण केदारनाथ व जोशीमठ त्रासदी है। इस सबके बाबजूद सरकार कोई सबक नहीं सीख रही है।
सरकार अपनी परियोजनाओं को जारी रखने के लिये प्रो एमपीएस बिष्ट जैसे भू गर्भ वैज्ञानिकों के तर्को को ढाल बना रही है जिसमें उन्होने नार्वे का उदाहरण दे कर सडक व रेलवे के लिये उतराखण्ड में सुरंग निर्माण को हिमालयी क्षेत्र के लिये कोई खतरा न बताते हुये, इसका समर्थन किया। वे तर्क देते कि नार्वे जैसे पहाडी देश में 900 से ज्यादा रेल सुरंग है। परन्तु भू गर्भ वैज्ञानिक भूल गये कि उतराखण्ड का यह क्षेत्र कच्चे पहाड व भूकंप की दृष्टि से सबसे संवेदनशील है। यहां भ्रष्टाचार में लिप्त तंत्र सुरंगों व सडक परियोजनाओं के निर्माण में नार्वे जैसी आधुनिक तकनीक व मानकों का कहां पालन करने वाला।
सरकार एक त्रासदी के बाद जनता के गुस्से को शांत करने के लिये कमेटियों का गठन करती है परन्तु इन कमेटी के सुझावों को लागू तक नहीं करती। यही हाल 1976 में बनी जोशीमठ त्रासदी पर गठित उच्च स्तरीय कमेटी का हुआ। यही हाल सन 2013 में हुई केदारनाथ आपदा के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  पर्यावरणीय क्षति पर जलविद्युत परियोजनाओं के आकलन के लिये गठित रवि चोपड़ा कमेटी का हुआ। रवि चोपडा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट से यह तथ्य जग जाहिर हो गया कि उत्तराखंड में कुल 3,624 मेगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता की 92 जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं और सरकार यहां करीब 450 हाइड्रो पावर लगा कर 27,049 मेगावॉट बिजली उत्पादन की है। जबकि सरकार यह भी जानती है  कि उतराखण्ड का यह क्षेत्र देश के सबसे खतरनाक भूकंपीय क्षेत्र में आता है।

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