उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप पर बनने वाले और नेताजी को समर्पित होने वाले राष्ट्रीय स्मारक के मॉडल का भी अनावरण किया
“जब इतिहास का निर्माण हो रहा होता है तो आने वाली पीढ़ियां न केवल इसका स्मरण, आकलन और मूल्यांकन करती हैं बल्कि उससे निरंतर प्रेरणा भी प्राप्त करती हैं”
“आजादी के अमृतकाल में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में यह दिन भावी पीढ़ियों द्वारा याद किया जाएगा”
“आज भी सेल्युलर जेल की कोठरियों से अप्रतिम पीड़ा के साथ-साथ अभूतपूर्व जुनून की आवाजें अभी भी सुनी जाती हैं”
“बंगाल से लेकर दिल्ली और अंडमान तक, देश का हर हिस्सा नेताजी की विरासत को नमन करता है और संजोता है”
“हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं और कर्तव्य पथ के सामने नेताजी की भव्य प्रतिमा हमें अपने कर्तव्यों की याद दिलाती है”
“जैसे समुद्र विभिन्न द्वीपों को परस्पर जोड़ता है, वैसे ही ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना भारत माता के हर बच्चे को आपस में जोड़ती है”
“यह देश का कर्तव्य है कि जिन सैनिकों ने स्वयं को राष्ट्रीय रक्षा के लिए समर्पित किया है, उन्हें सेना के योगदान के साथ-साथ व्यापक रूप से भी मान्यता दी जानी चाहिए”
“अब लोग इतिहास जानने और जीने के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की यात्रा पर आ रहे हैं”
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज पराक्रम दिवस के अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 21 परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के नाम पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 बड़े अज्ञात द्वीपों का नामकरण करने के लिए आयोजित एक समारोह में शामिल हुए। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप पर बनने वाले और नेताजी को समर्पित होने वाले राष्ट्रीय स्मारक के मॉडल का भी अनावरण किया।
उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने पराक्रम दिवस के अवसर पर सभी को बधाई दी और कहा कि यह प्रेरणादायक दिवस देश भर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का दिन अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। उन्होंने कहा, “जब इतिहास का निर्माण हो रहा होता है तो भावी पीढ़ियां न केवल इसका स्मरण, आकलन और मूल्यांकन करती हैं, बल्कि इससे निरंतर प्रेरणा भी पाती हैं।” प्रधानमंत्री ने बताया कि आज अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से 21 द्वीपों का नामकरण समारोह आयोजित हो रहा है। अब उन्हें 21 परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के नाम से पहचाना जाएगा। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन को सम्मान प्रदान करने के लिए एक नए स्मारक की आधारशिला उसी द्वीप पर रखी जा रही है, जहां वे रुके थे। उन्होंने कहा कि इस दिन का भावी पीढ़ियों द्वारा आजादी के अमृत काल में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में स्मरण किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि नेताजी स्मारक और 21 नए नामित द्वीप युवा पीढ़ियों के लिए निरंतर प्रेरणा के स्रोत होंगे।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि यहां पहली बार तिरंगा फहराया गया था और भारत की पहली स्वतंत्र सरकार बनी थी। उन्होंने यह भी कहा कि वीर सावरकर और उनके जैसे कई अन्य वीरों ने इसी भूमि पर देश के लिए तपस्या और बलिदान के उच्च शिखर को छुआ था। उन्होंने कहा, “उस अभूतपूर्व जुनून और अप्रतिम पीड़ा की आवाजें आज भी सेल्युलर जेल की कोठरियों से सुनी जाती हैं।” प्रधानमंत्री ने अफसोस जताया कि अंडमान की पहचान स्वतंत्रता संग्राम की यादों के बजाय गुलामी के प्रतीकों से जुड़ी हुई है और कहा, “यहां तक कि हमारे द्वीपों के नामों पर भी गुलामी की छाप थी।” प्रधानमंत्री ने तीन मुख्य द्वीपों का नाम बदलने के लिए चार-पांच साल पहले पोर्ट ब्लेयर की अपनी यात्रा का स्मरण करते हुए बताया कि आज रॉस द्वीप नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप बन गया है, हैवलॉक और नील द्वीप स्वराज और शहीद द्वीप बन गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि स्वराज और शहीद नाम स्वयं नेताजी ने ही दिए थे लेकिन आजादी के बाद भी इन्हें कोई महत्व नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री ने यह टिप्पणी की कि जब आजाद हिंद फौज की सरकार ने 75 साल पूरे किए तो हमारी सरकार ने ही इन नामों को फिर से बहाल किया है।
प्रधानमंत्री ने भारत की 21वीं सदी का अवलोकन किया जो उसी नेताजी को याद कर रही है जो कभी भारत की आजादी के बाद इतिहास के पन्नों में गुम हो गए थे। उन्होंने आकाश में ऊँचे भारतीय ध्वज पर प्रकाश डाला, जो आज उसी स्थान पर फहरा रहा है, जहाँ नेताजी ने अंडमान में पहली बार तिरंगा फहराया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह उन सभी देशवासियों के दिलों को देशभक्ति से भर देता है जो उस स्थान पर आते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी याद में जो नया संग्रहालय और स्मारक बनने जा रहा है, वह अंडमान की यात्रा को और भी यादगार बना देगा। प्रधानमंत्री ने 2019 में दिल्ली के लाल किले में उद्घाटन किए गए नेताजी संग्रहालय के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि वह स्थान लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। उन्होंने नेताजी की 125वीं जयंती और उस दिन को पराक्रम दिवस के रूप में घोषित किए जाने पर बंगाल में आयोजित होने वाले विशेष कार्यक्रमों का भी उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि बंगाल से लेकर दिल्ली और अंडमान तक, देश का हर हिस्सा नेताजी की विरासत को नमन करता है और उसे संजोता भी है।
प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित उन कार्यों के बारे में प्रकाश डाला जो आजादी के तुरंत बाद किए जाने चाहिए थे। उन्होंने बताया कि वे कार्य पिछले 8-9 वर्षों में किए गए हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्वतंत्र भारत की पहली सरकार देश के इस हिस्से में 1943 में बनी थी और देश इसे और अधिक गर्व के साथ स्वीकार कर रहा है। उन्होंने कहा कि आजाद हिंद सरकार के गठन के 75 साल पूरे होने पर देश ने लाल किले पर झंडा फहराकर नेताजी को श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री ने दशकों से नेताजी के जीवन से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग का उल्लेख किया और कहा कि यह काम पूरी निष्ठा से किया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं और कर्तव्य पथ के सामने नेताजी की भव्य प्रतिमा हमें हमारे कर्तव्यों का स्मरण करा रही है।
प्रधानमंत्री ने यह उल्लेख किया कि जिन देशों ने अपने करीबी हस्तियों और स्वतंत्रता सेनानियों को नियत समय में जनता के साथ जोड़ा और सक्षम आदर्शों को बनाया और साझा किया, वे विकास और राष्ट्र-निर्माण की दौड़ में बहुत आगे निकल गए, भारत, आजादी के अमृत काल में इसी तरह के कदम उठाते हुए आगे बढ़ रहा है।
इन द्वीपों के नामकरण के पीछे ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विशिष्ट संदेश के बारे में प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह देश के लिए दिए गए बलिदानों और भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम की अमरता का संदेश है। प्रधानमंत्री ने कहा कि 21 परमवीर चक्र विजेताओं ने भारत माता की रक्षा के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। भारतीय सेना के ये बहादुर सैनिक विभिन्न राज्यों से थे, विभिन्न भाषाओं और बोलियों को बोलते थे और विभिन्न जीवन शैली जीते थे लेकिन यह माँ भारती की सेवा थी और मातृभूमि के प्रति उनका अटूट समर्पण था जिसने उन्हें एकजुट किया। प्रधानमंत्री ने कहा, “जैसे समुद्र विभिन्न द्वीपों को परस्पर जोड़ता है, वैसे ही ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना भारत माता के हर बच्चे को आपस में जोड़ती है।” मेजर सोमनाथ शर्मा, पीरू सिंह, मेजर शैतान सिंह से लेकर कैप्टन मनोज पांडे, सूबेदार जोगिंदर सिंह और लांस नायक अल्बर्ट एक्का, वीर अब्दुल हमीद और मेजर रामास्वामी परमेश्वरन तक इन सभी 21 परमवीरों का एक ही संकल्प था – राष्ट्र प्रथम! इंडिया फर्स्ट! यह संकल्प अब नामकरण से हमेशा के लिए अमर हो गया है। अंडमान में एक पहाड़ी भी कारगिल युद्ध के कैप्टन विक्रम बत्रा के नाम पर समर्पित की जा रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अंडमान और निकोबार के द्वीपों का नामकरण न केवल परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं को बल्कि भारतीय सशस्त्र बलों को भी समर्पित है। आजादी के समय से ही हमारी सेना को कई युद्धों का सामना करना पड़ा है। इस बात का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे सशस्त्र बलों ने सभी मोर्चों पर अपनी बहादुरी को सिद्ध किया है। अब यह देश का कर्तव्य है कि इन राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यों के लिए समर्पित सैनिकों को सेना में योगदान के साथ-साथ व्यापक रूप से मान्यता भी मिलनी चाहिए”, प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आज देश उस जिम्मेदारी को पूरा कर रहा है और इसे सैनिकों और सेनाओं के नाम पर मान्यता मिल रही है।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की क्षमता पर प्रकाश डालते हुए, प्रधान मंत्री ने कहा कि यह जल, प्रकृति, पर्यावरण, प्रयास, बहादुरी, परंपरा, पर्यटन, ज्ञान और प्रेरणा की भूमि है। उन्होंने क्षमता की पहचान करने और अवसरों को मान्यता देने की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने पिछले 8 वर्षों में किए गए कार्यों पर प्रकाश डाला और बताया कि 2014 की तुलना में 2022 में अंडमान आने वाले पर्यटकों की संख्या दोगुनी हो गई है। उन्होंने अंडमान की रोजगार और पर्यटन से संबंधित आय में वृद्धि होने का भी उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया कि इस स्थान की पहचान में भी विविधता आ रही है क्योंकि अंडमान से जुड़े स्वतंत्रता के इतिहास के बारे में लोगों की जिज्ञासा भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि अब लोग यहां इतिहास जानने और उसे जीने के लिए भी आ रहे हैं।’ उन्होंने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की समृद्ध आदिवासी परंपरा का भी उल्लेख किया और कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित स्मारक और सेना की वीरता का सम्मान भारतीयों में यहां की यात्रा करने के संबंध में नई उत्सुकता पैदा करेगा।
प्रधानमंत्री ने दशकों की हीन भावना और आत्मविश्वास की कमी, विशेष रूप से विकृत वैचारिक राजनीति के कारण देश की क्षमता को पहचानने में पूर्ववर्ती सरकार के प्रयासों के बारे में खेद व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि चाहे वह हमारे हिमालयी राज्य हों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर, या अंडमान और निकोबार जैसे समुद्री द्वीप क्षेत्र हो, ऐसे क्षेत्रों में विकास, दशकों तक उपेक्षित किया गया क्योंकि इन्हें दूरस्थ, दुर्गम और अप्रासंगिक क्षेत्र माना जाता था।” उन्होंने यह भी पाया कि भारत में द्वीपों और आइलेट्स की संख्या का लेखा-जोखा नहीं रखा गया था। सिंगापुर, मालदीव और सेशेल्स जैसे विकसित द्वीपीय राष्ट्रों का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इन राष्ट्रों का भौगोलिक क्षेत्रफल अंडमान और निकोबार की तुलना में कम है, लेकिन वे अपने संसाधनों का सही उपयोग करके नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए है। भारत के द्वीपों में भी ऐसी ही क्षमता है और देश इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने ‘सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर’ के माध्यम से अंडमान को तेज इंटरनेट से जोड़ने का उदाहरण दिया, जो डिजिटल भुगतान और अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं को बढ़ावा दे रहा है तथा पर्यटकों को लाभान्वित कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अब देश में प्राकृतिक संतुलन और आधुनिक संसाधनों को एक साथ आगे बढ़ाया जा रहा है।’
स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने वाले अतीत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से तुलना करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन का समापन यह कहते हुए किया कि यह क्षेत्र भविष्य में भी देश के विकास को नई गति प्रदाने करेगा। प्रधानमंत्री ने कहा है कि मुझे विश्वास है, हम एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे जो सक्षम है और आधुनिक विकास की ऊंचाइयों को प्राप्त करेगा।”
इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लेफ्टिनेंट गवर्नर एडमिरल डी के जोशी, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
पृष्ठभूमि
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृति का सम्मान प्रदान करने के लिए वर्ष 2018 में अंडमान निकोबार द्वीप समूह की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने रॉस द्वीप समूह का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप रख दिया था। नील द्वीप और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप भी कर दिया गया था।
देश के वास्तविक जीवन के नायकों को उचित सम्मान देना हमेशा प्रधानमंत्री भी सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। इसी भावना के साथ आगे बढ़ते हुए अब इस द्वीप समूह के 21 बड़े अज्ञात द्वीपों का नामकरण 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर करने का निर्णय लिया गया है। पहले बड़े अज्ञात द्वीप का नाम पहले परमवीर चक्र विजेता के नाम पर रखा जाएगा, दूसरे बड़े अज्ञात द्वीप का नाम दूसरे परमवीर चक्र विजेता के नाम पर रखा जाएगा और इसी तरह अन्य द्वीपों का नाम रखा गया है। यह कदम हमारे नायकों के प्रति एक चिरस्थायी श्रद्धांजलि होगी, जिनमें से कई नायकों ने राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया है।
इन द्वीपों का नाम जिन 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखा वे हैं – मेजर सोमनाथ शर्मा; सूबेदार और मानद कैप्टेन (तत्कालीन लांस नायक) करम सिंह, एम.एम; सेकेंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे; नायक जदुनाथ सिंह; कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह; कैप्टन जीएस सलारिया; लेफ्टिनेंट कर्नल (तत्कालीन मेजर) धन सिंह थापा; सूबेदार जोगिंदर सिंह; मेजर शैतान सिंह; सीक्यूएमएच। अब्दुल हमीद; लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशिर बुर्जोरजी तारापोर; लांस नायक अल्बर्ट एक्का; मेजर होशियार सिंह; सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल; फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों; मेजर रामास्वामी परमेश्वरन; नायब सूबेदार बाना सिंह; कैप्टेन विक्रम बत्रा; लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे; सूबेदार मेजर (तत्कालीन राइफलमैन) संजय कुमार; और सूबेदार मेजर सेवानिवृत्त (मानद कैप्टेन) ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव।
**.*.*..