जोशीमठ त्रासदी प्यारा उत्तराखंड की नजर में
131 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया
723 घरों में अब तक दरार पाई गई।
678 मकानों पर लगाइए खतरे के निशान।
53परिवारों को 5000 की मदद दी गई ।
10 घरों को 130000 की मदद दी गई।
344 राहत शिविर इनमें 1425 लोग रह रहे हैं।
खतरनाक मकान पर लाल निशान लगाए गए। इन मकानों में रहने वाले लोगों से मकान खाली कराये गये।
संवेदनशील क्षेत्र के बिजली काटी गई ।क्षेत्र को 9 क्षेत्रों में बांटा गया। मकानों को बहुत खतरनाक, खतरनाक और सामान्य श्रेणी में बांटा गया।
लाल निशान लगाये गये इमारत गिराने के लिए बुलडोजर लगाया गया है। प्रशासन कार्रवाई की तैयारी में। इसी लोगों का आक्रोश भड़का। लोग बिना मुआवजा के खाली करने के लिए तैयार नहीं है और जोशीमठ में मकानों में दरारे बढ रही है।
सन1976 में जोशीमठ पर बनी कमेटी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी को यह सिफारिश की थी कि यहां पर भारी निर्माण ना हो, यहां पर मकानों का निर्माण की क्षमता के अनुसार ही हो ।यहां नैनीताल की तरह ड्रेनेज सिस्टम बने।
अंधाधुंध निर्माण जिला प्रशासन और नगर पंचायत के गठजोड़ से। इस स्थिति को विस्फोटक बनाने के लिए प्रदेश सरकार, स्थानीय सांसद, विधायक, जिला प्रशासन और नगर पालिका प्रशासन जिम्मेदार है। किसके साथ सरकार को इस संवेदनशील क्षेत्र में प्रकृति से खिलवाड़ करने वाली परियोजनाओं को नहीं लगाना चाहिए। जो परियोजनाएं यहां कार्यरत है उनमें मानकों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए था जो नहीं हुआ। उसी के कारण इस संवेदनशील क्षेत्र में स्थिति विस्फोटक हो गई।
जिलाधिकारी चमोली के अनुसार जोशीमठ नगर क्षेत्र में भू-धंसाव के कारण 723 भवनों को चिन्हित किया गया है जिनमें दरारें आयी है। सुरक्षा के दृष्टिगत आजतक 131 परिवारों के 462 लोगों को अस्थायी राहत शिविरों में विस्थापित किया है।
राहत कार्यो के तहत 70 खाद्यान्न किट, 70 कंबल, 570 दूध पैकेट सहित 80 लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया है। राहत शिविरों में लोगों को प्रतिदिन कुक्ड फूड उपलब्ध कराया जा रहा है।
नगर क्षेत्र अंतर्गत गांधीनगर, मनोहरबाग, सिंग्धार व सुनील वार्ड को असुरक्षित घोषित करते हुए इन वार्डों को खाली कराया जा रहा है। रविग्राम,परसारी,ऊपर बाजार, पालिका मरवारी,नीचे बाजारमें भी अनेक मकानों में दरारें आयी हुईं हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी, जिसका उस समय का नाम कार्तिकेयपुर था। लगता है कि एक क्षत्रिय सेनापति कंटुरा वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर अपना शासन स्थापित किया तथा जोशीमठ में अपनी राजधानी बसायी।जिसने 7वीं से 11वीं सदी के बीच कुमाऊं एवं गढ़वाल पर शासन किया।
जोशीमठ शब्द ज्योतिर्मठ शब्द का अपभ्रंश रूप है जिसे कभी-कभी ज्योतिषपीठ भी कहते हैं। इसे वर्तमान 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। उन्होंने यहां एक शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया और यहीं उन्हें ज्योति या ज्ञान की प्राप्ति हुई। यहीं उन्होंने शंकर भाष्य की रचना की जो सनातन धर्म के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है।
शंकराचार्य के जीवन के धार्मिक वर्णन के अनुसार भी ज्ञात होता है कि उन्होंने इसके पास ही अपने चार विद्यापीठों में से एक की स्थापना की और इसे ज्योतिर्मठ का नाम दिया, जहां उन्होंने अपने शिष्य टोटका को यह गद्दी सौंप दी। ज्योतिर्मठ के पहले शंकराचार्य बने।
उत्तराखंड के गढ़वाल के पैनखंडा परगना में समुद्र की सतह से 6107 फीट की ऊँचाई पर, धौली और विष्णुगंगा के संगम से आधा किलोमीटर दूर है जोशीमठ।जोशीमठ की जनसंख्या 1872 में 455 थी, जो 1881 में बढ़कर 572 हो गई। अब इस आपदा के समय करीब 20 हजार जनसंख्या है।