डब्बल इंजन की सरकार में उतराखण्ड की दुर्दशा से संभल कर हिमाचल की जनता ने भाजपा को सिखाया लोकशाही का सबक
देवसिंह रावत
आज 8 दिसम्बर 2022 को गुजरात व हिमाचल प्रदेश की विधानसभा चुनाव परिणाम के साथ देश के विभिन्न राज्यों की छह विधानसभा व एक लोकसभा के उपचुनाव की मतगणना के बाद परिणाम घोषित किये गये। पूरे देश की नजरें गुजरात व हिमाचल विधानसभा चुनाव परिणाम पर लगी थी। गुजरात में भाजपा ने अभूतपूर्व विजय दर्ज कराकर लगातार 7वीें बार सरकार बनाने का नया कीतिर्मान स्थापित कर दिया। इस प्रकार भाजपा अब पश्चिम बंगाल के वाम सरकार का 32 साल के कार्यकाल की बराबरी करेगी। लगातार 7वीं बार विजय हो कर गुजरात में इस विजय का श्रेय भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी को दिया। हालांकि गुजरात में शाह ने आप के चक्रव्यूह से कांग्रेस का किया सफाया। गुजरात, कांग्रेस की गुपचुप तैयारियों पर कांग्रेस का कमजोर केंद्रीय नेतृत्व व भाजपा का आप दाव बहुत ही कारगर साबित हुआ। इसी के बदोलत भाजपा ने गुजरात में अब तक का सबसे बडा कीर्तिमान स्थापित किया।
12 दिसम्बर को गुजरात में प्रधानमंत्री मोदी व गृहमंत्री अमित शाह सहित देश भर के बडे भाजपा नेताओं की उपस्थिति में मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण करेंगे भूपेंद्र पटेल ।
अब तक घोषित चुनाव परिणामों में, 162 सदस्यीय गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा -156, कांग्रेस 17, आप 5 व अन्य 4
68 सदस्यीय हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस 40, भाजपा-25, आप-0, अन्य-03
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि कांग्रेस के पास न तो गुजरात में मुख्यमंत्री का चेहरा था व न रणनीति। गुजरात दंगों का दंश झेल चूके गुजरात में कांग्रेस का अंध तुष्टीकरण वाला राग भी जनता ने सिरे से नकारना ही था। सबसे बडी बात थी कि मोदी देश के साथ गुजरात का प्रतीक बन चूके है। मोदी के सम्मुख आज कोई भी नेता गुजरात की जनता नहीं पाती। हाॅ कांग्रेस मजबूत भी रहती तो भी सरकार तो भाजपा बनाती परन्तु कांग्रेस का इस कदर से सफाया नहीं होता। कांग्रेस ने मोदी को हराने के लिए जो पाटीदार व जातिवादी राजनीति के साथ अंध तुष्टीकरण का विष गुजरात में बोया था उसके कारण आज कांग्रेस पूरे देश में हाशिये में चले गयी है। आज कांग्रेस के पाटिदार आदि आंदोलन के मोहरे भाजपा के सेना के ध्वजवाहक बने है। कांग्रेस के जनाधार पर जो सेंघ सपा, बसपा, तृणमूल, जद परिवार व आंध्र में जगन रेड्डी आदि ने मारी थी, अब बचे खुचे अस्तित्व को केजरीवाल दिल्ली से लेकर गुजरात तक धनिया बो चूका है। हिमाचल, हरियाणा,राजस्थान, उतराखण्ड, छत्तीसगढ, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि जैसे राज्यों में जो बचा खुचा असर है वह वहां के क्षत्रपों के कारण है। नहीं तो कांग्रेस नेतृत्व के तथाकथित कर्णधारों ने उतराखण्ड की तरह जीती हुई बाजी हराने का काम ही किया। हिमाचल में कांग्रेस, हिमाचल की बुद्धिमान जनता के जनादेश की लाज रख पायेगी या पंजाब, उतराखण्ड व मध्य प्रदेश की तरह बिखेर देगी।
वहीं हिमाचल की जागरूक जनता ने भाजपा की पुन्नः सत्तासीन होने की आशाओं पर पानी फेरते हुये जहां आप पार्टी को भी धूल चढाई ।वहीं कांग्रेस के पूर्व कार्यकालों के कार्यों पर विश्वास प्रकट करते हुये वीरभद्र जैसे लोकप्रिय नेता के अभाव में भी सत्तासीन कर दिया।
वहीं हिमाचल में चुनाव परिणामों के रूख साफ होते ही कांग्रेस ने जहां अपने विधायकों को सुरक्षित रखने की रणनीति पर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा आदि नेता निरंतर जुटे हुये हैं। क्योंकि कांग्रेस पूर्व में देश के विभिन्न राज्यों में भाजपा द्वारा विपक्षी दल की सरकारों में सेंघ मारी का इतिहास देखते हुये उससे बचाव के लिये कमर कस दी है। खासकर चुनाव परिणाम आने के बाद जिस प्रकार से भाजपा के चाणाक्य समझे जाने वाले अमित शाह का चुनाव प्रचार के दौरान दिये गये बयान से भाजपा की भावी रणनीति से कांग्रेस सहमी हुई है। अमित शाह ने कहा था कि वहां कम से कम आठ दावेदार है मुख्यमंत्री के। हालांकि कांग्र्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र की धर्मपत्नी व वर्तमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह को स्वाभाविक दावेदार के रूप में माना जा रहा है। परन्तु दो अन्य दावेदारों में प्रदेश प्रचार समिति के प्रमुख सुखविंदर सिंह सुक्खू जो तीन बार के विधायक भी है और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी है नादौन विधानसभा सीट से विजयी विधायक उनको भी मुख्यमंत्री का दावेदार माना जा रहा है। इसके अलावा 4 बार के विधायक रहे मुकेश अग्निहोत्री का नाम भी मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में उछाला जा रहा है। परन्तु यह साफ है कि भाजपा के दंश से कांग्रेस कैसे अपनी हिमाचल की सरकार बचा पायेगी। क्योंकि हिमाचल में न तो उतराखण्ड व राजस्थान सरकारों जैसा मुख्यमंत्री के दिग्गज नेता रहे जो भाजपा को धोबी पाट दाव से परास्त कर सकते। हिमाचल में मध्य प्रदेश जैसी स्थिति का देर सबेर सामना करना पड़ सकता है। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व भी अब पहले की तरह मजबूत नहीं रहा। इस सबके बाबजूद हिमाचल की जागरूक जनता ने जो जनादेश दिया वह देश के हर प्रांत के नागरिकों को अनुकरण करना चाहिये। शायद हिमाचल की प्रबुद्ध जनता ने अपने पडोसी राज्य उतराखण्ड की जनता की भाजपा की डबल इंजन की सरकार में हो रही दुर्दशा से सबक लेकर मोदी जी के तमाम प्रलोभनों व आश्वासन के बाबजूद प्रदेश के जनहितों पर खरी नहीं उतरी प्रदेश भाजपा सरकार को विदाई देने का सराहनीय कार्य किया। यह देश की लोकशाही के लिए एक नजीर है कि नागरिकों को दलों के कार्यो के आधार पर मूल्यांकन करना और तमाम वादों व आश्वासनों के झांसे में न आकर दलों को लोकशाही का पाठ पढाये।
हिमाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भले ही अपनी विधानसभा चुनाव जीत गये परन्तु वे भाजपा को पुन्नः सत्ता में वापिस लाने में असफल रहे।चुनाव परिणामों में भाजपा की हार देखते हुए मुख्यमंत्री ने जनादेश को स्वीकार करते हुये हिमाचल की जनता को धन्यवाद करते हुये नई सरकार को अपनी शुभकामनायें दी। उन्होने उनकी सरकार को विशेष सहयोग देने के लिये प्रधानमंत्री मोदी का भी धन्यवाद प्रकट किया। इसके साथ जयराम ठाकुर ने सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने का वचन दिया।
वहीं विहार में हुये मुजफरपुर के कुढनी विधानसभा उप चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जदयू प्रत्याशी की हार व भाजपा की विजय से नीतीश की छवि पर ग्रहण सा लगा। वहीं उप्र में हुये लोकसभा उपचुनाव में मैनपुरी से मुलायम सिंह के निधन से रिक्त हुई सीट पर हुये संसदीय उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव की पुत्रबधु व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश की धर्मपत्नी डिम्पल यादव ने भाजपा प्रत्याशी रघुराज शाक्य को पराजित कर अपना किला बचाया। वहीं उप्र में खैतोली की विधानसभा सीटों पर हुये उपचुनाव में भी सपा ने बाजी मारी। इस प्रकार उप्र में हुये उप चुनाव एक प्रकार से सत्तारूढ दल के लिये एक खतरे का संकेत ही है कि परिवारवादी व जातिवादी ताकतें भले ही कमजोर हो गयी है परन्तु वे समय आने पर फिर सर उठा सकती है। भाजपा के लिए संतोष की बात है कि रामपुर की विधानसभा उप चुनाव में सपा के आसीम रज्जा को भाजपा प्रत्याशी आकाश सैक्सेना ने पराजित कर एक प्रकार से सपा के क्षत्रप आजम खान के किले को ध्वस्थ सा कर दिया। वहीं खैतोली से सपा व रालोद के सांझा प्रत्याशी मदन भैया ने भाजपा की राजकुमार सैनी को पराजीत किया। खासकर लोकसभा चुनाव 2024 की अभी से तैयारी कर रहे भाजपा के लिए सावधान रहने का संकेत है।परन्तु भाजपा का सौभाग्य है कि उप्र में इस समय योगी जैसे युगान्तकारी नेतृत्व शासन की बागडोर संभाल कर माफियाओं, भ्रष्टाचारियों व परिवारवादियों द्वारा रसातल में धकेेले गये उप्र को पुन्नः विकास के पथ पर दोडने वाला देश का प्रमुख राज्य बनाया।
विगत छह महिनों से केजरीवाल गुजरात में चक्कर काट रहे थे परन्तु उसकी आशाओं पर एक प्रकार से बज्रपात सा हुआ। उतराखण्ड की तरह गुजरात में सरकार बनाने की हुंकार भरने वाला केजरीवाल व उसकी पार्टी अपने मुख्यमंत्री के घोषित दावेदार को भी नहीं जीता पायी। गुजरात में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री के दावेदार इसुदान गढवी खम्भालिया सीट से हार चूके है। वहीं गुजरात में आम आदमी पार्टी के झंडाबरदार बने गोपाल इटलिया भी सूरत की कतारगाम विधानसभा क्षेत्र से पराजित हो चूके है। हालांकि आप के एकमात्र नेता केेजरीवाल ने 8 दर्जन के करीब सीटों पर जीतने की हुंकार भरी थी जो दहाई की देहरी को भी नहीं छू सकी। हाॅ गुजरात में मत प्रतिशत अर्जित कर आप देश में राष्ट्रीय दल बनने में कामयाब जरूर हो गया। परन्तु केजरीवाल को भी इस बात का भान होगा ही कि बिना मोदी के आशीर्वाद के यह सभव नहीं था। इसीलिये शायद उन्होने कल दिल्ली नगर निगम के चुनाव की विजय पर अपने कार्यकत्र्ताओं को संबोधित करते हुये भी प्रधानमंत्री मोदी के आशीर्वाद की याचना की। देश की वर्तमान राजनीति जितनी साफ दिख रही है वह कई चक्रव्यूह में फंसी हुई है। देश में सत्तारूढ़ों द्वारा भ्रष्टाचारियों व कटरपंथियों पर कडा अंकुश न लगाये जाने से देश बडे खतरे से घिरा है। देश में सत्तामोह में राजनैतिक दल कब देश को यूक्रेन के जेलेैस्की की तरह बर्बाद कर दें। इसके लिये देश की जनता को आंखे खोल कर राजनीति के कालनेमियों के झांसे में आकर रेवड्डियों के प्रलोभन में फंस कर अपना वर्तमान व भविष्य तबाह नहीं करना चाहिये।