केजरीवाल और धामी सरकार दोनों कटघरे मे
देव सिंह रावत
दिल्ली के उप राज्यपाल द्वारा नजफगढ़ की दामिनी प्रकरण में उच्च न्यायालय द्वारा फांसी की सजा पाये हुये जघन्य आरोपियों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरी की जाने से आक्रोशित उत्तराखंड सहित देश के आम जनमानस व मृतक पीड़िता के परिजनों की फरियाद सुन कर इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की स्वीकृति प्रदान करने के कदम का उत्तराखंडी सहित देश के जनमानस ने खुले दिल से स्वागत करते हुए आभार प्रकट किया। जनता ने आशा प्रकट की कि राज्यपाल की सहृदयता से प्रेरणा लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस मामले में पूरा सहयोग करेंगे।
इसके साथ आम जनमानस के दिलों दिमाग में यह प्रश्न भी है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार व उत्तराखंड धामी सरकार सरकार ने इस मामले में ऐसा त्वरित निर्णय अब तक क्यों नहीं लिया।
सबसे बड़ा सवाल देश की जनता का धामी सरकार से है कि नजफगढ़ की दामिनी के मामले की तरह उत्तराखंड सरकार, अंकिता भंडारी प्रकरण में सक्रिय क्यों नहीं है? क्या अंकिता भंडारी उत्तराखंड की बेटी नहीं है? जो प्रदेश सरकार उसकी नृशंस हत्या के कई महीने बाद भी उसके असली गुनाहगार ( जिसके लिए उसको सेवा देने के लिए विवश किया जा रहा था) का नाम उजागर करने व इस प्रकरण की सीबीआई द्वारा जांच कराने से क्यों घबरा रही है? इस प्रकरण की असली गुनाहगारों को क्यों बचाया जा रहा है?
उल्लेखनीय है कि इसी महीने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नजफगढ़ दिल्ली के दामिनी के दोषियों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जाने से देश का आम जनमानस निराश व आक्रोशित था। जनमानस को आशा थी कि दिल्ली सरकार तत्काल सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी।
यह काम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार को तत्काल करना चाहिए था। परंतु उन्होंने इस मामले में वह सक्रियता नहीं दिखाई जो अन्य मामलों में वह दिखाते हैं । केंद्र, दिल्ली सरकार व उत्तराखंड सरकार द्वारा त्वरित निर्णय न लिए जाने से उत्तराखंडी समाज और देश का आम जनमानस बेहद हताश व आक्रोश था। दोनों सरकारों की सक्रियता न देखकर दिल्ली की उत्तराखंडी समाज ने इस पर दिल्ली में दर्जनों प्रशासन किये। दिल्ली उत्तराखंड समाज की गतिविधियों के केंद्र गढ़वाल भवन में समाज ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए एक समिति का भी गठन किया। वह समिति भी इस मामले का अध्ययन करके अगला कदम उठाने की सोच रही है।
इस बीच दिल्ली उत्तराखंड समाज से जुड़े दिल्ली भाजपा के नेता व उत्तराखंड एकता मंच के संयोजक व्यक्तिगत पहल करते हुए डॉ विनोद बछेती व गढ़वाल हितेषी सभा के अध्यक्ष अजय बिष्ट नजफगढ़ की दामिनी के परिजनों को लेकर प्रधानमंत्री की विशेष सहयोगी और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी से मिले। उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने अगले ही दिन दिल्ली के उपराज्यपाल से नजफगढ़ की दामिनी के परिजनों के साथ भेंट करके इस जघन्य मामले के दोषियों को सजा दिलाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की। जिसे उपराज्यपाल ने अपनी तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी। सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले का प्रतिनिधित्व अब SG तुषार मेहता और अतिरिक्त SG ऐश्वर्या भाटी करेंगे।
जिसकी खबर आज पूरे देश के खबरिया चैनलों में प्रमुखता से प्रसारित हुई। जिसका उत्तराखंडी समाज व देश के आम जनमानस में स्वागत किया।
दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा उठाए गए इस निर्णय का आज उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वागत किया तथा ट्वीट किया की छावला केस में आरोपियों को बरी किए जाने के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका दाखिल करने को मंजूरी देने हेतु दिल्ली के उपराज्यपाल जी का हार्दिक आभार।उत्तराखण्ड की बेटी को न्याय दिलवाने व दोषियों को कठोरतम सजा मिले यह सुनिश्चित करने हेतु हमारी सरकार हर संभव प्रयास करेगी।
@LtGovDelhi।
दिल्ली के उपराज्यपाल से सांसद बलूनी व पीड़िता के परिजनों की मुलाकात की भनक लगने के बाद कल 20 नवंबर 2022 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी नई दिल्ली स्थित उत्तराखण्ड सदन में छावला केस की पीड़िता के माता-पिता से मुलाकात कर कहा कि उत्तराखण्ड की बेटी को न्याय दिलाने के लिए राज्य सरकार हर सम्भव प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू से भी बात की है। मामले से संबंधित वकील चारू खन्ना से भी पूरी जानकारी ली है। पूरा उत्तराखंड उनके साथ है। मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पूर्व उत्तराखण्ड की बेटी के पिताजी से फोन पर बात की थी और कहा था कि वे जल्द ही दिल्ली आकर उनसे मुलाकात करेंगे। आज मुख्यमंत्री ने नई दिल्ली में उत्तराखण्ड सदन में पीङिता के माता-पिता से मुलाकात कर कहा कि पीड़िता हमारे उत्तराखंड की बेटी है और उसे न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
इस पूरे प्रकरण में जहां यह सब दृष्टिगोचर होता है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस प्रकार की प्रकरणों में त्वरित प्रभावशाली वह निष्पक्ष कदम उठाने में असफल रहे। एक तरफ उनकी सरकार, अंकिता भंडारी प्रकरण में कई महीने बाद भी असली गुनाहगार का नाम तक उजागर नहीं कर पाई, नहीं इस प्रकरण की सीबीआई जांच कराने की मांग कर निष्पक्ष जांच कराने का भरोसा प्रदेश की जनता को ही दे पाई। नजफगढ़ की दामिनी प्रकरण में भी ना तो वह दिल्ली में कई बार आने के बाद उतना राज्यपाल से मुलाकात करने तक गये। प्रदेश सरकार की ढुलमुल नीतियों से उत्तराखंड का जनमानस बेहद आहत है।