आर्थिक आधार पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला 27 सितंबर से सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुरक्षित रखा था। मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित की अध्यक्षता में सुनाई कर रही पीठ ने इसे संविधान सम्मत बताया यह एक प्रकार से केंद्र सरकार के लिए एक बड़ी राहत भरा फैसला है।
मुख्य न्यायधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच न्यायमूर्तियों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए 3 न्यायाधीशों में इसे संविधान सम्मत बताते हुए 3-2 के फैसले से केंद्र सरकार के आर्थिक आरक्षण देने की नीति को संविधान सम्मत घोषित किया।
आज 7 नवंबर 2022 को इस पर सुनवाई करते हुये बहुमत के आधार पर सरकार की तारीफ कि कानून को विधि सम्मत बताया।
न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने आर्थिक आरक्षण को न्याय संगत बताते हुए इसे संविधान की भावना का उल्लंघन नहीं बताया। दूसरे न्यायधीश बेला त्रिवेदी ने आर्थिक आरक्षण को संविधान सम्मत बता ते हुई अपना फैसला आर्थिक आरक्षण के पक्ष में दिया। अपने फैसले में उन्होंने भी आर्थिक आरक्षण को संविधान की मूल भावना अनादर नहीं करने वाला बताया।
इस पीठ में सुनाई कर रहे न्यायमूर्ति पादरीवाला ने भी आर्थिक आरक्षण के पक्ष में अपना फैसला दिया।
इस पीठ में सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति रविंद्र भट्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की गये आर्थिक आरक्षण को संविधान सम्मत नहीं बताया।
वहीं मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने भी आर्थिक आरक्षण कानून को संविधान की मूल भावनाओं के विपरीत बताते हुए आर्थिक आरक्षण के विरोध में अपना फैसला दिया।
इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक आरक्षण कानून को संविधान सम्मत बता दें कि पक्ष में अपना फैसला दिया।
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने संविधान में 103वें संशोधन करके आर्थिक रुप से गरीब सामान्य जनता जनता के लिए सरकारी नौकरियों को शिक्षा संस्थानों में 10% आरक्षण का प्रावधान किया था।
इसको आरक्षित वर्ग के संगठनों के अलावा अनेक लोगों ने चुनौती दी थी इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
उल्लेखनीय है कि संविधान में नौकरियों व शिक्षा संस्थाओं में आरक्षण की सीमा 50% तय की गई थी जिसे अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण देने के सरकार के निर्णय के बाद बढ़ा दी गई।
गौरतलब है कि आज भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ललित के कार्यकाल का अंतिम दिन है।
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से जहां मोदी सरकार को बड़ी राहत मिली। वहीं सरकारी नौकरियों व शिक्षा संस्थानों में मिलने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10% का आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय की मोहर लगने से कानून सम्मत हो गया है।