22 साल से उतराखण्ड विधानसभा मेें भर्तियों में हो रही है बंदरबांट पर धामी सरकार केवल 5 साल में हुई भर्तियों को निरस्त कर असली अपराधियों को बचाया
श्रेय लेने की होड में मुख्यमंत्री ने मारी बाजी, प्यारा उतराखण्ड ने पहले ही कर दी थी ऐसी आशंका जग जाहिर
देवसिंह रावत
23 सितम्बर को उतराखण्ड में सत्तारूढ धामी सरकार ने प्रदेश में सरकारी नौकरियों में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग व विधानसभा की भर्तियों में सरकार में आसीन नेताओं व उनके प्यादों द्वारा की गयी बंदरबांट से आका्रेशित प्रदेश के बेरोजगार युवाओं व जनता के गुस्से को शांत करने के लिए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का एक ऐसा दावा करके खुद ऐलान ंिकया कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार को किसी भी सूरत में सहन नहीं करेगी और प्रदेश के युवाओं को रोजगार प्रदान करने में सरकारी भर्तियों को तेजी से भरेगी।
अपने इस दावे को आधार देने के लिए मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि विधानसभा में भर्तियों में हुई धांधली पर उनकी सरकार ने कडा अंकुश लगा दिया है। इससे ऐसा आभाष आम जनता को हुआ कि सरकार के इस कदम से विधानसभा में हुई भर्तियों को निरस्त बर दिया गया है। पर सच्चाई कुछ और ही बयान कर रही है। जिस चालाकी से मुख्यमंत्री धामी ने प्रदेश में विधानसभा में भर्तियों के मामले में हो रही 22 साल की धांधलियों में से केवल 27 प्रतिशत भााग पर कार्यवाही कर इस धांधलियों में 73 प्रतिशत धांधलियों को नजरांदाज कर दिया गया। जबकि जिस प्रकार से अनिमियतायें व भर्तियां 2016 से 2021 तक के विधानसभा के कार्यकाल में हुई उसी प्रकार की अनिमियतायें व भर्तियां राज्य गठन 9 नवम्बर 2000 से जांच के कार्यकाल तक हुई। फिर सवाल उठता है कि वर्तमान मुख्यमंत्री ने सभी अनिमियताओं की जांच न करके केवल 6 साल के दौरान हुई भर्तियों पर यह वाहवाही लेनी चाही। जबकि खबर यह है कि प्रथम विधानसभा अध्यक्ष प्रकाश पंत के कार्यकाल में 130, यशपाल आर्य के 85, हरबंश कपूर के 35, गोविंद सिंह कुंजवाल के 158, व प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में 73 नियुक्तियां हुई। सरकार अगर विधानसभा में हुई भर्तियों को गलत मानती है तो जिन पर कार्यवाही नहीं की गयी वे केसे ठीक हो गये। जबकि सभी एक ही अपराध के लिए सरकार व जनता के साथ कानून की नजर में गुनाहगार रहे। हकीकत यह है सरकार इसमें भी राजनीति करना चाहती थी। वह केवल विरोधियों को दण्डित करना चाहती इसकी जद में प्रेमचंद अग्रवाल का भी कार्यकाल आ गया। इसके साथ अगर सरकार की नियत भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना होता तो वह प्रथम अध्यक्ष से लेकर प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई तमाम नियुक्तियों पर समान अपराध के लिए समान दण्ड देने के साथ सभी नियुक्तियों को रद्द करतेे और जितने भी विधानसभा अध्यक्ष इसके लिए जिम्मेदार रहे उन को भी कटघरे में खडा करते। ऐसा कौन से न्याय है कि जो मुख्य अपराधी को आंच नहीं और प्यादों का सरकलम कर दो। यही नहीं प्रदेश गठन के बाद जिस प्रकार से यहां के मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में नियुक्तियों में नियमों को दर किनारे करके अपने चेहतों को पदासीन करने के मामले सार्वजनिक हुये या समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित हुये उनको कटघरे में खडा करने से धामी सरकार दूर क्यों रही। इसके साथ अगर धामी सरकार बेरोजगारों से सहानुभूति रखती तो वह तुरंत युद्धस्तर पर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के विवादस्थ अध्यक्षाों से लेकर नौकरशाहों को कटघरे में खडाा करती। इसके साथ प्रदेश में सरकारी सेवाओं में रिक्त पडे पदों पर नियुक्ति करने के लिए भर्ती अभियान का शुभारंभ करती। वह न करके बहुत ही चालाकी से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में हुई भर्तियों के मामले में 22 सालों की अनिमियताओं की जांच कर उनको दण्डित करने के बजाय केवल 2016 से 2021 तक विधानसभा अध्यक्षो द्वारा की गयी तदर्थ भर्तियों की जांच कराने की मांग की। इसी के तहत वर्तमान विधानसभा अध्यक्षा श्रीमती रितु खंडूडी ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित की। इसी समिति की की संस्तुति पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा वर्ष 2016 से 2021 तक हुई तदर्थ भर्तियों को निरस्त करने के निर्णय लिया। जिसका स्वागत कर मुख्यमंत्री धामी ने बधाई देते हुए कहा कि मेने विधानसभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खण्डूड़ी भूषण को त्वरित जांच कराने की सलाह दी थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में सदन और सरकार एकजुट है। इससे पहले विधानसभा अध्यक्ष ने इन भर्तियों के निरस्त करने का सार्वजनिक ऐलान कर दिया था। इसके बाद मुख्यमंत्री ने ट्वीट करके व प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि विधानसभा भर्ती मामले में मुख्यमंत्री ने सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए विधानसभा अध्यक्ष से भर्तियों की जांच करने का आग्रह किया था। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने सरकार की मंशा के अनुसार इस पर उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर समयबद्ध तरीके से जांचके निर्देश दिए। जाँच रिपोर्ट में समिति ने संस्तुति की है कि 2016 में 150, वर्ष 2020 में 6 व वर्ष 2021 में 72 तदर्थ भर्तियों को निरस्त किया जाए।
इस निर्णय का उल्लेख विधानसभा अध्यक्ष ने संवाददाता सम्मेलन में भी किया और अपने फेसबुक के माध्यम से भी उजागर करते हुए लिखा कि विधानसभा अध्यक्ष के रूप में जांच समिति की अनुशंसा को स्वीकार करते हुए विधानसभा सचिवालय में हुई वर्ष 2016 की 150 नियुक्तियों को, वर्ष 2020 की 6 नियुक्तियों को व वर्ष 2021 की 72 नियुक्तियों को निरस्त करने का निर्णय लिया गया है।
उतराखण्ड सरकार द्वारा प्रेषित विज्ञप्ति में दावा किया गया कि उत्तराखंड को भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बनाने की दिशा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार लगातार काम कर रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सरकार सुशासन की दिशा में कृत संकल्पित होकर काम कर रही है। किसी भी प्रकार से कोई भ्रष्टाचार सहन नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने अधिनस्थ सेवा चयन आयोग व अन्य भर्तियों में अनियमितता पाए जाने पर उन्हें पारदर्शिता से आयोजित करने के लिए उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग को हस्तांतरित की। अब नए सिरे से पारदर्शिता के साथ परीक्षा प्रक्रिया गतिमान है। उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग ने प्रथम चरण की परिक्षाओ की तिथियों का कैलेण्डर भी जारी कर दिया है।
भ्रष्टाचार के खघ्लिाफ अभियान में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित अलग-अलग विभागों में समूह ग भर्ती परीक्षा में गड़बड़ियों की शिकायत मिलते ही कठोर निर्णय लिए। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग भर्ती परीक्षा में पेपर लीक मामले में संलिप्त 41 आरोपियों की अब तक गिरफ्तारी हो चुकी है वहीं 18 अभियुक्तों पर चार्जशीट हो चुकी है जबकि गैंगस्टर एक्ट हेतु 21 आरोपियों की जुडिशल रिमांड स्वीकृत हो चुकी है। वहीं ओर वन दरोगा मामले में 03 सचिवालय रक्षक भर्ती में एक आरोपी की गिरफ्तारी हो चुकी है।
’मुख्यमंत्री ने कहा है कि प्रदेश के युवाओं के साथ कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने युवाओं से पूरे उत्साह और परिश्रम से परिक्षाओ की तैयारी में जुट जाने का अनुरोध किया। वर्तमान में 7000 परिक्षाओ की भर्ती प्रक्रिया गतिमान है। इसके अलावा 12 हजार से अधिक पदों पर भर्ती की कार्ययोजना पर भी काम कर रहे हैं।’
उल्लेखनीय है कि प्यारा उतराखण्ड ने कुछ दिन पहले ही उतराखण्ड सरकार की इस मंशा को उजागर करने के लिए एक लेख लिखा था कि मोदी जी उतराखण्ड में दाल में काला नहीं अपितु पूरी दाल ही काली हो गयी है।
उतराखण्ड में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग व विधानसभा अध्यक्षों द्वारा की गयी नियुक्तियों का भांडा फूटने से जहां उतराखण्ड में भारी असंतोष हैं। न केवल बेरोजगार युवा अपितु प्रदेश का आम जागरूक जनमानस इस बंदरबांट की खबरें सुन कर स्तब्ध व खुद को ठगा महसूस कर रही है। प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस की 22 सालों की सरकारों में मची अंधेरगर्दी से निराश, हताश व आक्रोशित युवा इस खुली लूटबाजारी व विश्वासघात के खिलाफ सडकों पर आंदोलित है। भाजपा व कांग्रेस के मठाधीश एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं परन्तु वे जनता के सवालों का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है। प्रदेश की ऐसी स्थिति को देख कर 2024 में फिर से देश प्रदेश की सत्ता में अपना परचम लहराने के लिए जहां भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इसका समाधान खोजने में लगा है। वह अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए वह जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिये भाजपा नेतृत्व प्रदेश से भ्रष्ट, दिशाहीन, उत्तराखंड विरोधी व पदलोलुप हुक्मरानों पर अंकुश लगाने के बजाय अपनी छवि मनाने के लिए मात्र एक या दो मंत्री व कुछ कर्मचारियों को बलि का बकरा बना कर खुद अपनी पीठ थपथपायेगी।
वहीं कांग्रेस भले ही प्रदेश में इसके खिलाफ व्यापक जनांदोलन छेडने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। भले ही कांग्रेसी नेता आक्रोशित बेरोजगारों व युवाओं के प्रदर्शन में चढ़बढ कर हिस्सा ले रहे हैं। परन्तु प्रदेश में विधानसभा अध्यक्षों द्वारा अपने अपने कार्यकाल में की गयी नियुक्ति में जिस प्रकार से अपने व अन्य नेताओं के परिजनों व प्यादों की नियुक्ति प्रदेश में अधीनस्थ चयन आयोग या राज्य लोकसेवा आयोग की तरह खुली विज्ञप्तियां निकाल कर प्रदेश के बेरोजगारों को आमंत्रित करने के बजाय मानकों को दर किनारे करके बंदरबांट करके नियुक्तियां प्रदान की गयी। इन नियुक्तियों की सूचियों जैसे ही इंटरनेटी माध्यमों व समाचार जगत से सार्वजनिक हुई। उसे देख पढ कर भाजपा व कांग्रेस की सरकारों सहित अनैक विधायक भी बेनकाब हो गये। प्रदेश की इस दुर्दशा पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए राज्य आंदोलनकारी व प्रदेश की राजनीति के विशेषज्ञ कहते हैं कि यह मामला केवल अधीनस्थ सेवा आयोग की एकाद परीक्षाओं व विधानसभा पूर्व अध्यक्ष कुजवाल-अग्रवाल के कार्यकाल तक ही सीमित नहीं है। अपितु इस प्रदेश के गठन 9 नवम्बर 2000 से ही यहां पर आसीन अब तक की तमाम सरकारें, उनके मुख्यमंत्री, मंत्री व विधानसभा अध्यक्षों के कार्यकाल पर प्रश्न चिन्ह लग चूका है। ऐसी बंदरबांट अधिकांश सत्तासीनों के कार्यकाल में हुई। खबरों के अनुसार प्रथम विधानसभा अध्यक्ष प्रकाश पंत के कार्यकाल में 130, यशपाल आर्य के 85, हरबंश कपूर के 35, गोविंद सिंह कुंजवाल के 158,प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में 73 नियुक्तियां हुई। वर्तमान विधानसभा अध्यक्षा रितु खंडूडी भूषण ने विधानसभा में हुई तमाम नियुक्तियों की जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। समिति को एक माह में अपनी जांच रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। समिति जल्द ही अपनी जांच रिर्पोट विधानसभाध्यक्ष को सोंप देगी। परन्तु अब तक के मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों के कार्यकाल पर उन पर उठे नियमों को दर किनारे करके नियुक्तियां प्रदान करने की जांच करने का सरकार तैयार नहीं है। क्योंकि इससे प्रदेश की सत्ता में पक्ष विपक्ष में रहने वाली भाजपा व कांग्रेस दोनों के तथाकथित ईमानदारों के चेहरे बेनकाब हो जायेंगे। इसका अहसास भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों के मठाधीशों को है। वर्तमान में प्रदेश में न केवल अधीनस्थ सेवा चयन आयोग व विधानसभा में हुई नियुक्तियों की बंदरबांट का सवाल नहीं है। अपितु प्रदेश का पूरा तंत्र ही प्रदेश के दिशाहीन व पदलोलुपु नेताओं व पथभ्रष्ट नौकरशाहों ने अपने कंेंद्रीय नेताओं के अभयदान व उदासीनता से प्रदेश की पूरी व्यवस्था पतन के गर्त में धकेल दी है। यहां विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सहित लोकशाही के महत्वपूर्ण स्तम्भों को कमजोर कर दिया है। इससे यहां सामाजिक न्याय की आश करना भी नासमझी लग रही है। उतराखण्ड एक प्रकार से दिशाहीन पदलोलुपु प्यादों के नेतृत्व के कारण अपराधियों का आश्रयस्थल सा बन गया है। प्रदेश में आए षड्यंत्र कारी वह अपराधी प्रदेश के इन उदासीन, अयोग्य अनुभवहीन नेतृत्व के कारण जहां भाग्य विधाता बनने की तरफ बढ़ रहे हैं वही गुपचुप तरीके से आपने यादव व परिजनों को नियम कानूनों को ताक में रखकर प्रदेश के बेरोजगारों का हक मारकर उत्तराखंड सरकार की नौकरी में आसीन कर रहे हैं।
प्रदेश की यह स्थिति के लिए भाजपा व कांग्रेस के दिल्ली के वे आका जिम्मेदार हैं जिन्होने प्रदेश के जनसेवा में समर्पित नेताओं को प्रदेश की बागडोर देने के बजाय यहां उतराखण्ड विरोधी व अनुभवहिन प्यादों को थोप कर प्रदेश की जनांकांक्षाओं को निर्ममता से रौंदने का काम कराया। जनता की निरंतर पुकार को अनसुना करके प्रदेश में जनविरोधी नेताओं को आसीन कर राज्य गठन की राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने, मूल निवास, मजबूत भू कानून, जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन पर अंकुश लगाने, रोजगार परख कार्ययोजना चलाना, भ्रष्टाचारियों व अवैध घुसपेठियों पर अंकुश लगाने जैसी मांगों को दर किनारे करके प्रदेश के हितों व आशाओं पर वज्रपात किया गया। इससे प्रदेश के लाखों घरों में ताले लग गये तीन हजार से अधिक गांव पलायन की त्रासदी से विरान हो गये। इससे प्रदेश के साथ देश की सुरक्षा पर एक प्रकार से ग्रहण सा लग गया। जहां उतराखण्ड का पडोसी राज्य हिमाचल में परमार से वीरभद्र जैसे दिशावान धरती पूत्र जननायकों के नेतृत्व की सरकारों के सुशासन से देश का सबसे कल्याणकारी राज्य बन गया है। वहीं उतराखण्ड प्रदेश विरोधी तिवारी तथा स्वामी, कोश्यारी, खंडूडी, निशंक, बहुगुणा, हरीश, त्रिवेंद्र, तीरथ व धामी जैसे अनुभवहीन पदलोलुपु नक्कारे नेताओं के शासन से प्रदेश पतन के गर्त में है। प्रदेश सरकार के देहरादून मोह से नेता, नौकरशाह व कर्मचारी सभी देहरादून व इसके आसपास के जनपदों में डेरा डालने के तिकड़म में ही अपना समय नष्ट रहे हैं। प्रदेश के अनुभवहीन अयोग्य नेताओं के कारण ही नवगठित उत्तराखंड राज्य मैं जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन को थोपा गया। जबकि निर्वाचन आयोग इसे रोकने का मन बना चुका था परंतु उत्तराखंड के दिशाहीन नेतृत्व के कारण प्रदेश की 6 विधानसभा सीटें उच्च पर्वतीय क्षेत्र से कम हुई जिन्होंने विषम भौगोलिक परिस्थितियों के लिए उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड राज्य की मांग की और इस संघर्ष में थोड़ा मुलायम सरकार की हैवानियत को सहकर उत्तराखंड राज्य गठन करने के लिए केंद्र सरकारों को विवश किया। यही नहीं मुजफ्फरनगर कांड की दोषियों को सजा दिलाने के मामले में भी कमजोर पैरवी करके अपराधियों को संरक्षण देने का शर्मनाक कृत्य किया गया। प्रदेश की जल संसाधन इत्यादि हक हकूकों पर भी बंटवारे के समय उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों की बंदरबांट को भी उत्तराखंड के हित में सही करने का काम नहीं किया गया। प्रदेश की कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका में महत्वपूर्ण पदों में अपने प्यादों को भरकर सामाजिक न्याय की रक्षा नहीं की गयी। प्रदेश गठन के बाद निर्मित प्रदेश की एकमात्र निर्मित विधानसभा गैरसैण में सभी महत्वपूर्ण विधानसभा सत्रों का सफल आयोजन के बाबजूद राजधानी गैरसैंण घोषित करने की जनता की प्रबल मांग व राज्य गठन की जन आकांक्षाओं को रौंदते हुए राजधानी गैरसैंण घोषित करने की बजाय देहरादून में ही राजधानी थोपने का षड्यंत्र किया गया। जिससे प्रदेश गठन की जन आकांक्षाओं व प्रदेश की लोकशाही के साथ देश की सुरक्षा के साथ खौफनाक खिलवाड़ किया गया। प्रदेश की जनता ने 2014, 2017 2019 व हाल की विधानसभा चुनाव में मोदी जी पर विश्वास करके भारतीय जनता पार्टी को केंद्र व उत्तराखंड में भारी बहुमत से सत्तासीन किया। उत्तराखंड की जनता ने मोदी जी के डबल इंजन की सरकार में प्रदेश की जन आकांक्षाओं का सम्मान व विकास के आश्वासन पर पूरा भरोसा था। परंतु जिस प्रकार से डबल इंजन की सरकारों के कार्यकाल में प्रदेश में अंधेर भर्ती हो रही है, उससे कांग्रेस का कुशासन भी लोगों को बेहतर लग रहा है। अब प्रदेश की देशभक्त जनता चाहती है कि प्रधानमंत्री मोदी उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण आदि जन आकांक्षाओं को साकार करते हुये प्रदेश को परिवारवादी, भ्रष्टाचारी दिशाहीन, पदलोलुप व नक्कारे नेतृत्व के साथ भ्रष्टाचारी अपराधी तत्वों से उत्तराखंड को मुक्ति प्रदान करें। प्रदेश में तमाम रिक्त पदों पर तुरंत नियुक्तियां करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किया जाए। तभी उत्तराखंड के साथ देश की रक्षा की जा सकेगी। तभी उत्तराखंड के लोगों की आस्था व आशा साकार होगी।