Chamoli उत्तराखंड

पितृपक्ष में आज बडे मामा धनसिंह रावत जी का निधन

देवसिंह रावत
पूज्य बड़े मामा धन सिंह रावत जी का कल रात यानि 12 सितम्बर 2022 को अपने पैतृक गांव चिरखून, (कडाकोट पट्टी नारायण बगड़, चमोली, उतराखण्ड) स्वर्गवास हो गया। इस दुखद खबर की सूचना मेरे मंझोले भाई त्रिलोक सिंह रावत ने आज सुबह तडके छह बजे दूरभाष से दी। तब मुझे समझ में आया कि आज तडके 4 बजे से मेरी नींद क्यों खुल गयी। मुझे समझ में नहीं  आ रहा था। परन्तु जैसे ही छोटे भाई त्रिलोक सिंह रावत का फोन आया तब मुझे समझ में आया कि मुझे यह बेचेनी क्यों महसूस हो रही थी। मामा जी, सदैव मेरे लिए बहुत ही प्रिय व अभिवाहक रहे।  पिताजी के निधन के बाद वे ही हमारे परिवार के अभिवाहक थे। मामां जी को भी हमसे बेहद लगाव रहा। वे हमारे हर सुख दुख में सदैव सपरिवार खडे रहते। पिछले दो माह से उनका स्वास्थ्य खराब होने के कारण देहरादून के इंद्रेश अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे। वेसे पेरों में दर्द की शिकायत तो वे दो तीन साल से करते रहते। परन्तु समय पर बीमारी की जांच न किये जाने से मर्ज बढ़ता रहा। जब देहरादून में मर्ज की जांच की गयी तो तब पता चला। मर्ज बढ़ गया। एक प्रकार से चिकित्सकों ने जब जबाब सा दे दिया तो मेरे ममेरे भाई देवेंन्द्र व महाबीर ने बताया कि अब बीमारी लाइलाज हो गयी है। देहरादून में रहने से बेहतर मामा जी को एक सप्ताह पहले ही उनके पैतृक गांव लेकर मामा जी का छोटा बेटा महाबीर गांव आया था। बडी मामी जी भी मामा जी के साथ देहरादून गयी थी। वह भी गांव आयी। परसों ही मामा जी से दूरभाष से बात हुई थी। बातचीत के दौरान उनकी आवाज से लगा कि वे बेहद कष्ट महसूस कर रहे है। मेरी इच्छा थी कि उनके दर्शन करने की। जो पूरी नहीं हो सकी। इसका मुझे मलाल जीवन भर रहेगा। मुझे ऐसा विश्वास नहीं था कि मामा जी इतनी जल्दी हमको छोड जायेंगे। मामा जी का अंतिम संस्कार आज इस समय अपने पैतृक घाट पर किया जा रहा है। उनकी चिता को मुखाग्नि उनके छोटे बेटे महाबीर सिंह रावत व पोतों ने दी। मेरे छोटे भाई त्रिलोक सिंह रावत खबर मिलते ही मामा जी के अंतिम संस्कार में सम्मलित हुए।  मामा जी का बडा बेटा देवेंन्द्र सिंह रावत गुडगांव में सेवारत होने के कारण अंतिम संस्कार के बाद ही घर पंहुच पाया। शोकाकुल परिवार में मामी जी, देवेंद्र व महाबीर , दोनों बहुयें व पोते पोतियां है। मामा जी की बडी विवाहिता बेटी शाकम्बरी देवी व उनका परिजन सम्मलित है। इसके अलावा छोटी मामी, उनके जांबाज सैनिक पुत्र राकेश रावत व उसका परिवार व बहिने सम्मलित हैं।
नाना स्व. कलम सिंह रावत जी  व छोटे मामा स्व अमर सिंह रावत जी (नायक सुबेदार)की तरह  बड़े मामा जी (हवलदार)भी भारतीय सेना के जांबाज सैनिक रहे। मेरे ननिहाल में सैन्य परंपरा के ध्वजवाह मेरे छोेटे मामा स्व अमर सिंह रावत के सुपुत्र राकेश रावत बने हुये हैं।
मेेरे पूज्य दादा नडी सिंह रावत जी भी नाना जी के समयकाल में भारतीय सेना के जांबाज सैनिक थे। मुझे याद है कि गांव की बुजुर्ग महिलायें मेरी दादी लखमा देवी को सिपियाण ज्यू कह कर सम्मान देती थी। हालांकि मेरे दादा जी के बाद हमारे परिवार में मैं मेरे परिवार में एक भतीजा ताजबर ही परिवार की सैन्य परंपरा से जुड सका। मेरे बडे बोडा माधो सिंह जी दादा जी के असमय ही निधन होने के कारण अपने अनाथ परिवार की देखभाल करने की बडे बेटे की जिम्मेदारी निर्वहन करने लाहौर से अपने गांव वापस आ गये। मेरे मंझोले बोेडा इंद्रसिंह रावत व पिता जी विजय सिंह रावत  आजादी से पूर्व लाहौर में कार्यरत रहे। आजादी के बाद वे दिल्ली में भारतीय रेलवे में सेवारत रहे। बडे बोडा माधों सिंह रावत व श्रीमती जसमा देवी जी के साथ मैं बचपन से ही उनके पुत्र की तरह ठीक उसी तरह रहा जैसे भगवान श्रीकृष्ण नंद बाबा व यशोदा जी के घर में रहे।  मेरे परिवार में हम तीन भाई व एक बोडा जी का बेटा चारों सरकारी सेवा के बजाय अपने ही कार्यों में रत रहे। वर्तमान में गांव में त्रिलोक सिंह रावत व बोडा जी के बेटे राजेश रावत अपने परिवारों के साथ सीमांत प्रदेश उतराखण्ड में अपने गांव में निवास करते है।  वेसे मेरे ससुर गुमान सिंह नेगी जी (नायक सुबेदार-कोथरा)ं व मेरे जेठु हीरा सिंह जी दोनों भारतीय सेना के जांबाज सैनिक रहे। शायद सैन्य परिवार का यह खून हमारे रगों में दौडने के कारण भले ही मैं भारतीय सेना का जवान नहीं रहा परन्तु देश की आन मान शान के लिए संघर्ष करने वाला एक समर्पित सिपाई हॅू। जो हर अन्याय के खिलाफ संघर्ष करना अपना धर्म व कर्तव्य समझता है।    इस समय मामा जी की पार्थिक देह भी पंचभूत तत्वों में विलिन हो गया होगा। उनकी स्नेहभरा मुस्कराता हुआ चेहरा व स्मृतियां मानस पटल पर सदैव विराजमान रहेगा। बचपन में मुझे ननिहाल से बडा लगाव था। दादा जी की तरह ही मैने अपने नाना जी के दर्शन नहीं किये थे। वे काफी पहले स्वर्गवाश हो गये थे। नानी जी का बेहद स्नेह सदा रहता था। मैं चिरखून बचपन में जाता रहता। मेेेेेरे नाना जी की दो शादियां थी। पहली  नानी की 3 बेटियां थी। मेरी नानी के एक बेटी व दो बेटे थे। मेरी माॅ लीला देवी अपने दोनों भाईयों से बडी थी। मेरे दोनों मामा अपनी  सभी बहनों से बहुत अपनत्व रखते थे। मेरी मांॅ जी का 1996 में निधन होने के बाद नानी जी भी इस संसार से विदा हो गयी। मेरी तीन जिबे में से केवल एक जिबे करीब 100 साल की उम्र में अपने ससुराल कोल्सों में अपने परिवार के साथ हैं। लोदला व कपीरी वाली दोनों जिबे भी स्वर्ग सिधार गयी। छोटी मामी, छोटे मामा के बाद अब बडे मामा जी का इस संसार से विदा होना ननिहाल के एक अध्याय का समाप्त होना सा है। नयी पीढि के नये रिश्ते पुराने रिश्ते व यादें समय के कालखण्ड में समा जाते हे। इस पितृपक्ष के श्राद्ध पर्व पर मैं मामा जी के निधन से उत्पन्न शोक में अपने सभी पूर्वजों (दादा, दादी, दोनों बोडा व बोडी, माॅ पिता, छोटे भाई प्रेम, छोटे भाई की दिवंगत पत्नी, सास ससुर जी, जेठु, नाना नानी, दोनो मामा व छोटी मामी)का स्मरण करके  सभी पित्रों का सादर नमन करता हॅू। भगवान श्री कृष्ण से सभी के कल्याण की कामना करते हुए सभी की परम मुक्ति की कामना करता हॅू।  पितृपक्ष में आज बडे मामा धनसिंह रावत जी का निधन
देवसिंह रावत
पूज्य बड़े मामा धन सिंह रावत जी का कल रात यानि 12 सितम्बर 2022 को अपने पैतृक गांव चिरखून, (कडाकोट पट्टी नारायण बगड़, चमोली, उतराखण्ड) स्वर्गवास हो गया। इस दुखद खबर की सूचना मेरे मंझोले भाई त्रिलोक सिंह रावत ने आज सुबह तडके छह बजे दूरभाष से दी। तब मुझे समझ में आया कि आज तडके 4 बजे से मेरी नींद क्यों खुल गयी। मुझे समझ में नहीं  आ रहा था। परन्तु जैसे ही छोटे भाई त्रिलोक सिंह रावत का फोन आया तब मुझे समझ में आया कि मुझे यह बेचेनी क्यों महसूस हो रही थी। मामा जी, सदैव मेरे लिए बहुत ही प्रिय व अभिवाहक रहे।  पिताजी के निधन के बाद वे ही हमारे परिवार के अभिवाहक थे। मामां जी को भी हमसे बेहद लगाव रहा। वे हमारे हर सुख दुख में सदैव सपरिवार खडे रहते। पिछले दो माह से उनका स्वास्थ्य खराब होने के कारण देहरादून के इंद्रेश अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे। वेसे पेरों में दर्द की शिकायत तो वे दो तीन साल से करते रहते। परन्तु समय पर बीमारी की जांच न किये जाने से मर्ज बढ़ता रहा। जब देहरादून में मर्ज की जांच की गयी तो तब पता चला। मर्ज बढ़ गया। एक प्रकार से चिकित्सकों ने जब जबाब सा दे दिया तो मेरे ममेरे भाई देवेंन्द्र व महाबीर ने बताया कि अब बीमारी लाइलाज हो गयी है। देहरादून में रहने से बेहतर मामा जी को एक सप्ताह पहले ही उनके पैतृक गांव लेकर मामा जी का छोटा बेटा महाबीर गांव आया था। बडी मामी जी भी मामा जी के साथ देहरादून गयी थी। वह भी गांव आयी। परसों ही मामा जी से दूरभाष से बात हुई थी। बातचीत के दौरान उनकी आवाज से लगा कि वे बेहद कष्ट महसूस कर रहे है। मेरी इच्छा थी कि उनके दर्शन करने की। जो पूरी नहीं हो सकी। इसका मुझे मलाल जीवन भर रहेगा। मुझे ऐसा विश्वास नहीं था कि मामा जी इतनी जल्दी हमको छोड जायेंगे। मामा जी का अंतिम संस्कार आज इस समय अपने पैतृक घाट पर किया जा रहा है। उनकी चिता को मुखाग्नि उनके छोटे बेटे महाबीर सिंह रावत व पोतों ने दी। मेरे छोटे भाई त्रिलोक सिंह रावत खबर मिलते ही मामा जी के अंतिम संस्कार में सम्मलित हुए।  मामा जी का बडा बेटा देवेंन्द्र सिंह रावत गुडगांव में सेवारत होने के कारण अंतिम संस्कार के बाद ही घर पंहुच पाया। शोकाकुल परिवार में मामी जी, देवेंद्र व महाबीर , दोनों बहुयें व पोते पोतियां है। मामा जी की बडी विवाहिता बेटी शाकम्बरी देवी व उनका परिजन सम्मलित है। इसके अलावा छोटी मामी, उनके जांबाज सैनिक पुत्र राकेश रावत व उसका परिवार व बहिने सम्मलित हैं।
नाना स्व. कलम सिंह रावत जी  व छोटे मामा स्व अमर सिंह रावत जी (नायक सुबेदार)की तरह  बड़े मामा जी (हवलदार)भी भारतीय सेना के जांबाज सैनिक रहे। मेरे ननिहाल में सैन्य परंपरा के ध्वजवाह मेरे छोेटे मामा स्व अमर सिंह रावत के सुपुत्र राकेश रावत बने हुये हैं।
मेेरे पूज्य दादा नडी सिंह रावत जी भी नाना जी के समयकाल में भारतीय सेना के जांबाज सैनिक थे। मुझे याद है कि गांव की बुजुर्ग महिलायें मेरी दादी लखमा देवी को सिपियाण ज्यू कह कर सम्मान देती थी। हालांकि मेरे दादा जी के बाद हमारे परिवार में मैं मेरे परिवार में एक भतीजा ताजबर ही परिवार की सैन्य परंपरा से जुड सका। मेरे बडे बोडा माधो सिंह जी दादा जी के असमय ही निधन होने के कारण अपने अनाथ परिवार की देखभाल करने की बडे बेटे की जिम्मेदारी निर्वहन करने लाहौर से अपने गांव वापस आ गये। मेरे मंझोले बोेडा इंद्रसिंह रावत व पिता जी विजय सिंह रावत  आजादी से पूर्व लाहौर में कार्यरत रहे। आजादी के बाद वे दिल्ली में भारतीय रेलवे में सेवारत रहे। बडे बोडा माधों सिंह रावत व श्रीमती जसमा देवी जी के साथ मैं बचपन से ही उनके पुत्र की तरह ठीक उसी तरह रहा जैसे भगवान श्रीकृष्ण नंद बाबा व यशोदा जी के घर में रहे।  मेरे परिवार में हम तीन भाई व एक बोडा जी का बेटा चारों सरकारी सेवा के बजाय अपने ही कार्यों में रत रहे। वर्तमान में गांव में त्रिलोक सिंह रावत व बोडा जी के बेटे राजेश रावत अपने परिवारों के साथ सीमांत प्रदेश उतराखण्ड में अपने गांव में निवास करते है।  वेसे मेरे ससुर गुमान सिंह नेगी जी (नायक सुबेदार-कोथरा)ं व मेरे जेठु हीरा सिंह जी दोनों भारतीय सेना के जांबाज सैनिक रहे। शायद सैन्य परिवार का यह खून हमारे रगों में दौडने के कारण भले ही मैं भारतीय सेना का जवान नहीं रहा परन्तु देश की आन मान शान के लिए संघर्ष करने वाला एक समर्पित सिपाई हॅू। जो हर अन्याय के खिलाफ संघर्ष करना अपना धर्म व कर्तव्य समझता है।    इस समय मामा जी की पार्थिक देह भी पंचभूत तत्वों में विलिन हो गया होगा। उनकी स्नेहभरा मुस्कराता हुआ चेहरा व स्मृतियां मानस पटल पर सदैव विराजमान रहेगा। बचपन में मुझे ननिहाल से बडा लगाव था। दादा जी की तरह ही मैने अपने नाना जी के दर्शन नहीं किये थे। वे काफी पहले स्वर्गवाश हो गये थे। नानी जी का बेहद स्नेह सदा रहता था। मैं चिरखून बचपन में जाता रहता। मेेेेेरे नाना जी की दो शादियां थी। पहली  नानी की 3 बेटियां थी। मेरी नानी के एक बेटी व दो बेटे थे। मेरी माॅ लीला देवी अपने दोनों भाईयों से बडी थी। मेरे दोनों मामा अपनी  सभी बहनों से बहुत अपनत्व रखते थे। मेरी मांॅ जी का 1996 में निधन होने के बाद नानी जी भी इस संसार से विदा हो गयी। मेरी तीन जिबे में से केवल एक जिबे करीब 100 साल की उम्र में अपने ससुराल कोल्सों में अपने परिवार के साथ हैं। लोदला व कपीरी वाली दोनों जिबे भी स्वर्ग सिधार गयी। छोटी मामी, छोटे मामा के बाद अब बडे मामा जी का इस संसार से विदा होना ननिहाल के एक अध्याय का समाप्त होना सा है। नयी पीढि के नये रिश्ते पुराने रिश्ते व यादें समय के कालखण्ड में समा जाते हे। इस पितृपक्ष के श्राद्ध पर्व पर मैं मामा जी के निधन से उत्पन्न शोक में अपने सभी पूर्वजों (दादा, दादी, दोनों बोडा व बोडी, माॅ पिता, छोटे भाई प्रेम, छोटे भाई की दिवंगत पत्नी, सास ससुर जी, जेठु, नाना नानी, दोनो मामा व छोटी मामी)का स्मरण करके  सभी पित्रों का सादर नमन करता हॅू। भगवान श्री कृष्ण से सभी के कल्याण की कामना करते हुए सभी की परम मुक्ति की कामना करता हॅू।

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