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आज जयपुर में आमेर के दुर्ग की यात्रा कर क्यों हुआ मुझे सुख-दुख का अहसास?

 

देव सिंह रावत

आज 10 अगस्त 2022 को गुलाबी नगरी जयपुर के हवा महल जल महल सहित अनैक दर्शनीय स्थानों का दर्शन करने के बाद मैं परिवार राजा मान सिंह ( 1589 -1614 )द्वारा निर्मित आमेर के भब्य किले का दर्शन किया। आमेर के दुर्ग की भव्यता देख कर दिल में जहां अति प्रसन्नता हुई कि वह दुर्ग भारत के अधिकांश राजा महाराजाओं के किले की तरह खंडहर न बनकर आंशिक रूप से आबाद हो रखा है।
परंतु यह जानकर दुख हुआ कि यह वही राजा मानसिंह रहे जो अकबर इत्यादि मुगल शासकों की अधीनता स्वीकार करते थे जबकि उस समय देश की आन बान शान की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप जैसी प्रतापी राजा अपना सर्वस्व बलिदान कर रहे थे। भले ही महाराणा प्रताप के किले वर्तमान उपस्थिति मानसिंह की किल्ले की तुलना में कहीं नहीं ठहरती हों 125करोड़ भारतीयों दिलों में मान सिंह नहीं अपितु महाराणा प्रताप जी ही राज करते हैं।
आमेर जयपुर नगर सीमा में ही स्थित उपनगर है, आमेर को कछवाह राजपूतो ने बसाया था। आमेर नगरी और वहाँ के मंदिर तथा किले राजपूती कला का अद्वितीय उदाहरण है।
लाल बलुआ पत्थर एवं संगमर्मर से निर्मित यह आकर्षक एवं भव्य दुर्ग पहाड़ी के चार स्तरों पर बना हुआ है, जिसमें से प्रत्येक में विशाल प्रांगण हैं। इसमें दीवान-ए-आम अर्थात जन साधारण का प्रांगण, दीवान-ए-खास अर्थात विशिष्ट प्रांगण, शीश महल या जय मन्दिर एवं सुख निवास आदि भाग हैं। सुख निवास भाग में जल धाराओं से कृत्रिम रूप से बना शीतल वातावरण यहां की भीषण ग्रीष्म-ऋतु में अत्यानन्ददायक होता था। यह महल कछवाहा राजपूत महाराजाओं एवं उनके परिवारों का निवास स्थान हुआ करता था। दुर्ग के भीतर महल के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट ही इनकी आराध्या चैतन्य पंथ की देवी शिला को समर्पित एक मन्दिर बना है। आमेर एवं जयगढ़ दुर्ग अरावली पर्वतमाला के एक पर्वत के ऊपर ही बने हुए हैं व एक गुप्त पहाड़ी सुरंग के मार्ग से जुड़े हुए हैं। राजा मानसिंह से लेकर जय सिंह तक अनेक राजाओं ने अपने कार्यकाल में इस किले की सुंदरता पर चार चांद लगाए। वर्ष २०१३ में आयोजित हुए विश्व धरोहर समिति के ३७वें सत्र में राजस्थान के पांच अन्य दुर्गों सहित आमेर दुर्ग को राजस्थान के पर्वतीय दुर्गों के भाग के रूप में युनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
यहाँ का प्रसिद्ध दुर्ग आज भी ऐतिहासिक फिल्मों के निर्माताओं को शूटिंग के लिए आमंत्रित करता है। मुख्य द्वार गणेश पोल कहलाता है, जिसकी नक्काशी अत्यन्त आकर्षक है। यहाँ की दीवारों पर कलात्मक चित्र बनाए गए थे और कहते हैं कि उन महान कारीगरों की कला से मुगल बादशाह जहांगीर इतना नाराज़ हो गया कि उसने इन चित्रों पर प्लास्टर करवा दिया। ये चित्र धीरे-धीरे प्लास्टर उखड़ने से अब दिखाई देने लगे हैं। आमेर में ही है चालीस खम्बों वाला वह शीश महल, जहाँ माचिस की तीली जलाने पर सारे महल में दीपावलियाँ आलोकित हो उठती है। हाथी की सवारी यहाँ के विशेष आकर्षण है, जो देशी सैलानियों से अधिक विदेशी पर्यटकों के लिए कौतूहल और आनंद का विषय है।

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