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आज किये प्राचीन भारत के सबसे मजबूत दुर्गों में अग्रणी रणथंभोर दुर्ग व रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान के दर्शन

देव सिंह रावत

आज 9 अगस्त 2022 को सुबह देश की रक्षा के लिए समर्पित जांबाजो की भूमि राजस्थान को सपरिवार करीब से दर्शन करने का मौका मिला। राजस्थान के जांबाज़ों के शौर्य परचम को लहलाने वाले भारत की सबसे सुरक्षित समझे जाने वाले रणथंभोर दुर्ग को देखने का अवसर मिला। इसके साथ भारत के प्रसिद्ध रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान में सफारी में विचरण करके बाघ, हिरण आदि जंगली पशुओं को भी करीब से निहारने का मौका मिला।
भारतीय पुरातत्व संस्थान के अनुसार रणथंबोर दुर्ग पांचवी सदी में महाराजा जयंत द्वारा बनाये गये भारत के सबसे सुरक्षित दुर्गों में से एक है। रणथंभोर दुर्ग राजस्थान के सवाई माधोपुर में स्थित है।
गौरतलब है कि इस सप्ताह मैं सपरिवार भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं की साक्षी रही पावन वृंदावन, आगरा स्थित तेजोमहालय, दोसा स्थित मेहंदीपुर बालाजी होते हुए सवाई माधोपुर पहुंचा। सवाई माधोपुर में ही रणथंभौर दुर्ग व रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान का भी दर्शन किया।
सवाई माधोपुर में थंभ नाम की पहाडियों के बीच समुद्रतल से ४८१ मीटर ऊंचाई पर १२ कि॰मी॰ की परिधि में बना एक दुर्ग है रणथंभोर । दुर्ग के तीनो और पहाडों में प्राकृतिक खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है। यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36वीं बैठक में 21 जून 2013 को रणथंभोर को विश्व धरोहर घोषित किया गया।
इस दुर्ग का निर्माण का श्रेय कई इतिहासकार राजा सज्जन वीर सिंह नागिल और उनके उत्तराधिकारियों को भी देते हैं। अबुल फजल ने इसके बारे में कहा कि “अन्य सब दुर्ग नंगे है,यह बख्तरबंद है।” राव हम्मीर देव चौहान की भूमिका इस किले के निर्माण में प्रमुख मानी जाती है।

अलाउद्दीन खिलजी ने 1300 ईस्वी के दौरान किले पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन ऐसा करने में विफल रहे। तीन असफल प्रयासों के बाद, उनकी सेना ने अंततः 1 जुलाई 1301 में रणथंभौर किले पर कब्जा कर लिया था। तीन शताब्दियों के बाद अकबर ने किले का पदभार संभाला और 1558 में रणथंभौर राज्य को भंग कर दिया। 18 वीं सदी के मध्य तक किला मुगल शासकों के कब्जे में रहे। 18 वीं शताब्दी में मराठा शासक अपने शिखर पर थे और उन्हें देखने के लिए जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह ने मुगलों को किला को उनके पास सौंपने का अनुरोध किया था। सवाई माधो सिंह ने फिर से पास के गांव का विकास किया और इस किले को दृढ़ किया और इस गांव का नाम बदलकर सवाई माधोपुर रखा।

११९२ में तहराइन के युद्ध में मुहम्मद गौरी से हारने के बाद दिल्ली की सत्ता पर पृथ्वीराज चौहान का अंत हो गया और उनके पुत्र गोविन्द राज ने रणथंभोर को अपनी राजधानी बनाया। गोविन्द राज के अलावा वाल्हण देव, प्रहलादन, वीरनारायण, वाग्भट्ट, नाहर देव, जैमेत्र सिंह, हम्मीरदेव, महाराणा कुम्भा, राणा सांगा, शेरशाह सुरी, अल्लाऊदीन खिलजी, राव सुरजन हाड़ा और मुगलों के अलावा आमेर के राजाओं आदि का समय-समय पर नियंत्रण रहा लेकिन इस दुर्ग की सबसे ज्यादा ख्याति हम्मीर देव (1282-1301) के शासन काल में रही। हम्मीरदेव का 19 वर्षो का शासन इस दुर्ग का स्वर्णिम युग था। हम्मीर देव चौहान ने 17 युद्ध किए। जिनमे 13 युद्धो में उसे विजय प्राप्त हुई। करीब एक शताब्दी तक ये दुर्ग चितौड़ के महराणाओ के अधिकार में भी रहा। खानवा युद्ध में घायल राणा सांगा को इलाज के लिए इसी दुर्ग में लाया गया था।

वहीं दूसरी तरफ देश विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन चुके रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान उत्तर भारत के बड़े उद्यानों में से एक है। यहां लोगों का मुख्य आकर्षण का केंद्र बात व अन्य जंगली जानवर हैं। यहां सफारी सवारी द्वारा दिन में दो बार इस उद्यान के दर्शन कराए जाते हैं। निजी क्षेत्र के इस सफारी सेवाओं द्वारा करीब ₹1000 प्रति सवारी के हिसाब से यह दर्शन कराए जाते हैं।
रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान भी सवाई माधोपुर में स्थित है। रणथंभौर को भारत सरकार द्वारा 1955 में सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया था और 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व में से एक घोषित किया गया था। 1 नवंबर 1980 को रणथंभौर एक राष्ट्रीय उद्यान बन गया। 1984 में, समीप के ही जंगलों को सवाई मान सिंह अभ्यारण्य और केलादेवी अभयारण्य घोषित किया गया। 1992 में, उत्तर में निकटवर्ती केलादेवी अभयारण्य और दक्षिण में सवाई मानसिंह अभयारण्य सहित अन्य जंगलों को शामिल करने के लिए टाइगर रिजर्व का विस्तार किया गया। आज यह 1334 वर्ग किमी के क्षेत्र को आच्छादित करता है।

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