दमनकारी कर्मचारियों को एक माह तक पीडितों के घर घास पहुंचाने व सार्वजनिक माफी मांगने की मिले सजा
प्यारा उतराखण्ड डाट काम
उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलनकारियों ने सीमान्त जनपद चमोली के हेलंग में इसी सप्ताह हरियाली के पर्व हरेला के दिन प्रदेश के हक हकूकों को रौंदते हुए जिस प्रकार से उतराखण्ड पुलिस के जवानों ने घसियारियों के हक का दमन किया, उससे देश प्रदेश की जनता बेहद आहत व नाखुश है। इसके लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को अविलम्ब पीडित महिलाओं के साथ देश की जनता से भी माफी मांगनी चाहिए कि उनकी पुलिस ने मातृशक्ति के साथ ऐसा शर्मनाक व्यवहार किया। जिसे देख कर पूरे देश विदेश के लोग प्रदेश सरकार की कडी निंदा कर रहे है।
उतराखण्ड आंदेालनकारी संगठनों के संयोजक देवसिंह रावत ने इस घटना को शर्मनाक बताते हुए इस प्रकरण के दोषी कर्मियों को तत्काल दण्डित किया जाय। इसकी सजा उनको एक माह तक पीडित महिलाओं के घरों तक घास पंहुचाने की दे कर उन पीडित महिलाओं के गांव की पंचायत में सार्वजनिक माफी भी मांगी जाय। इस माफी नामा की विडियो बना कर इंटरनेटी माध्यम से प्रसारित की जाय।
इसके अलावा चमोली सहित प्रदेश के गांव की परंपारिक जंगलों से ग्रामीणों को घास, लकडी व पतवार इत्यादि शताब्दियों से चल रहे हक हकूकों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध किसी भी योजना आदि की आड में नहीं लगाया जाना चाहिए। सरकार को इस प्रकार का भान रखना चाहिए कि लोगों के हक हकूकों पर किसी तरह का प्रतिबंद्ध नहीं लगाया जाना चाहिये। क्योंकि इसी प्रकार के सरकारी कुनीतियों के कारण प्रदेश के इन पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन हो रहा है। पर्वतीय लोग बिना प्राकृतिक संसाधनों व हक हकूकों के कैसे जीवन यापन करेंगे? इतनी तो समझ प्रदेश की नीति निर्धारकों को होनी चाहिए।
उतराखण्ड आंदेालनकारी संगठनों के संयोजक देवसिंह रावत ने इस घटना को शर्मनाक बताते हुए इस प्रकरण के दोषी कर्मियों को तत्काल दण्डित किया जाय। इसकी सजा उनको एक माह तक पीडित महिलाओं के घरों तक घास पंहुचाने की दे कर उन पीडित महिलाओं के गांव की पंचायत में सार्वजनिक माफी भी मांगी जाय। इस माफी नामा की विडियो बना कर इंटरनेटी माध्यम से प्रसारित की जाय।
इसके अलावा चमोली सहित प्रदेश के गांव की परंपारिक जंगलों से ग्रामीणों को घास, लकडी व पतवार इत्यादि शताब्दियों से चल रहे हक हकूकों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध किसी भी योजना आदि की आड में नहीं लगाया जाना चाहिए। सरकार को इस प्रकार का भान रखना चाहिए कि लोगों के हक हकूकों पर किसी तरह का प्रतिबंद्ध नहीं लगाया जाना चाहिये। क्योंकि इसी प्रकार के सरकारी कुनीतियों के कारण प्रदेश के इन पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन हो रहा है। पर्वतीय लोग बिना प्राकृतिक संसाधनों व हक हकूकों के कैसे जीवन यापन करेंगे? इतनी तो समझ प्रदेश की नीति निर्धारकों को होनी चाहिए।