देवसिंह रावत:
एक तरफ अफगानिस्तान में गत रात आये विनाशकारी भूकंप से हजारों मर गये व लाखों लोग तबाह हो गए। इसी तरह के भूकंप से नेपाल भी सहम गया। हांलांकि नेपाल में जान माल की हानि की कोई खबर नहीं है।
परंतु अफगानिस्तान व नेपाल के पड़ोसी देश भारत के महाराष्ट्र प्रांत में आये राजनैतिक भूकंप में वहां की सत्ता पर काबिज उद्धव ठाकरे के सिहासन को पूरी तरह से डोल गया है। हालांकि यह सियासी भूकंप शिवसेना की कभी सहयोगी रहे विरोधी दल भारतीय जनता पार्टी के सह पर शिवसेना किसी अधिकांश विधायकों ने उद्धव ठाकरे मंत्रिमंडल के सदस्य एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में आया। इस भूकंप से उद्धव ठाकरे का बेताज होना तय माना जा रहा है। महाराष्ट्र में आये राजनीतिक भूकंप का केंद्र भारतीय जनता पार्टी माना जा रहा है। शिवसेना के 3 दर्जन से अधिक असंतुष्ट विधायक बाढ़ से बेहाल हुए हुये असम राज्य की राजधानी गुवाहाटी में रेडिसन ब्लू होटल मैं डेरा जमाए हुए हैं। इससे पहले शिवसेना के लिए असंतुष्ट विधायक गुजरात की सूरत शहर के होटल में एकनाथ शिंदे बाकी बागी विधायकों के साथ रुके हुए थे। दोनों स्थानों में प्रांतीय सरकार ने भारी सुरक्षा व्यवस्था असंतुष्ट की है। इससे यह जगजाहिर हो गया है कि भाजपा नेतृत्व के सहयोग व निर्देश के बिना कोई भी विरोधी राजनीतिक दल के लोग इस प्रकार का कदम नहीं उठा सकते हैं। पूर्व में भी कई बार महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार को अपदस्थ करने की चाल में असफल होने के बाद लगता है भाजपा ने इस समय बहुत मजबूती से शिवसेना की असंतुष्टों की महत्वकाँक्षा को हवा देने का सफल प्रयास किया। हालांकि कभी दलबदल करने के लिए कांग्रेस पर सत्ता का दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी अब सत्तासीन होने के बाद कांग्रेस की तरह ही विरोधियों की सरकारों को चुन-चुन कर दलबदल करा कर अपदस्थ कर रही है।
हालांकि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली असंतुष्ट शिवसेना का धड़ा हिंदुत्व के नाम पर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ सरकार से हटने का हुंकार भर रहे हैं। परंतु हकीकत है कि अगर हिंदुत्व के नाम पर इस प्रकार का कोई कदम उठाया जाता तो पालघर जघन्य कांड के बाद हुंकार भरने वाले शिवसैनिक मूक नहीं रहते। हां यह बात सही है किस शिवसेना अपने बाला साहब ठाकरे के हिंदुत्व वाले मार्ग से सत्ता की गलियारों में भटक गई है। परंतु इसके लिए भारतीय जनता पार्टी भी शिवसेना को विरोधी कांग्रेस के पाले में धकेलने के लिए बराबर की गुनाहगार है। वर्षों तक भारतीय जनता पार्टी के साथ सपा की गठबंधन करने वाली प्रथम साथी शिवसेना को इस बार मुख्यमंत्री के पद को साझा करने में क्या दिक्कत थी? जबकि वह अपने घोर विरोधी जम्मू कश्मीर की महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री बनाने में तनिक भी नहीं लज्जाई। समझा जा सकता है देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की सत्ता पर शिकंजा कसने के लिए राजनीतिक पार्टियां किस तरह झटपटाती है। यह महाराष्ट्र की तमाम राजनीतिक घटनाक्रम से साफ उजागर होता है। महाराष्ट्र में हो रही सत्ता की उठापटक से साफ हो गया है कि राजनीतिक दलों को अपने सिद्धांतों से कोई लेना देना नहीं है दलबदल के खिलाफ बहने वाले राजनीतिक दलों के आंसू घटियाली ही साबित हो गए। अब जगजाहिर हो गया है कि किसी भी राजनीतिक दल क्षमता वह देश हित के बजाए सत्ता की बंदरबांट करने में ज्यादा प्राथमिकता है। शिवसेना की इस शर्मनाक पतन के पीछे उद्धव ठाकरे का अहंकार व परिवारवाद भी कम जिम्मेदार नहीं है। महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार की गृह मंत्री सहित कई नेता व अधिकारी भ्रष्टाचार की शर्मनाक आरोपों में जेल में बंद है। महाराष्ट्र में चल रही अवैध वसूली व कानून का खुलेआम दुरुपयोग कर लोगों को डराना धमकाना एक रस्मो रिवाज सा बन गया है। अब पूरा महाराष्ट्र इस प्रकार के कुशासन से मुक्ति चाहता है। इस घटनाक्रम में सबसे रोचक बात यही होगी कि अब देखना यह है कि ठाकरे के हाथ से शिवसेना की कमान कैसे भारतीय जनता पार्टी के हाथ में आती है? क्या शिवसेना का भी वही हस्र होगा जो कभी हिंदू महासभा का हुआ था। महाराष्ट्र की राजनीति देखकर ठाकरे ही नहीं देश की अधिकांश राजनीतिज्ञ स्तब्ध है। देखना है कि शरद पवार, ठाकरे की नैया को भाजपा के इस भंवर से पार लगाते हैं या नई चाल चलकर महाराष्ट्र की सत्ता के केंद्र में बने रहते हैं। इसके साथ ही महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी जो कोरोना से पीड़ित बताए जा रहे हैं वे किस प्रकार संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करते हैं।
वहीं भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान से मिल रही खबरों के अनुसार मरने वालों की तादाद बढ़कर 1500 तक पहुंच गई है और घायलों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है। अफगानिस्तान की स्थानीय समाचार के अनुसार भूकंप पकतीका प्रांत के रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.1 दर्ज की गई थी। यूएस जियोलॉजिकल के अनुसार, भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के दक्षिणपूर्व में था।अफगानिस्तान के खोस्त शहर से 44 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम इलाके में बताया गया है। अफगानिस्तान में आई इस प्राकृतिक आपदा से उबारने के लिए अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार विश्व से राहत व बचाव कार्य में हाथ बढ़ाने का आश्रम कर रही है। तालिबानी के आतंक से उबर रहे अफगानिस्तान पर भूकंप का कहर अफगानी बेहद दुःखी हैं।