द्रोपती मुर्मू होंगी अगली राष्ट्रपति।ओडिसा की भाजपा की पूर्व विधायक रही श्रीमती द्रोपदी पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। भाजपा ने झारखंड की राज्यपाल रही द्रोपदी को अभी-अभी अपना उम्मीदवार घोषित किया। इसका ऐलान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी पी नड्डा ने अभी संवाददाता सम्मेलन में किया।
वह राज्य के सिंचाई और ऊर्जा विभाग में कनिष्ठ सहायक के तौर पर कार्यरत रहने के बाद वह शिक्षक बन गईं और रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद शिक्षक के तौर पर पढ़ाया।राजनैतिक जीवन में उनका पदार्पण करते हुए मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद बनी और इस नगर पंचायत की उपाध्यक्ष भी रहीं। इसके बाद सन 2000 और 2009 में 2 बार भाजपा की टिकट पर रायरंगपुर सीट से विधायक चुनी गईं।
विधायक के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने वाणिज्य, परिवहन और मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालय संभाले। तब राज्य में बीजू जनता दल और भाजपा के गठबंधन की सरकार थी। मुर्मू को 18 मई, 2015 को झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया था और वह छह साल से अधिक समय तक इस पद पर रहीं।
वह झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने के बाद ही वह भाजपा की सक्रिय राजनीति से दूर हो गयी। झारखंड के राज्यपाल के तौर पर सबसे साहसी कार्य प्रदेश भाजपा सरकार का एक विधेयक लौटाना से वह चर्चाओं में रही। तत्कालीन रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2017 में आदिवासियों की जमीनों की रक्षा से संबंधित छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में संसोधन किए थे। ये संसोधन विधानसभा से तो पारित हो गए, लेकिन मुर्मू ने यह कहते हुए उन्हें लौटा दिया।
निजी जीवन भी मुर्मू का संघर्षों से भरा रहा है। शादी के कुछ साल बाद ही उनके पति श्याम चरण मुर्मू का निधन हो गया। तीन संतानों के लालन पालन की पूरी जिम्मेदारी मूर्म के कंधों पर थीं, परन्तु दुर्भाग्य ने उनका पिछा नहीं छोडा उनके दो बेटों का असमय निधन हो गया। केवल एक बेटी ही मूर्म के सुख दुखों की संगी रही।
राजग गठबंधन द्वारा राष्ट्रपति का प्रत्याशी उडिशा राज्य की नागरिक मूर्म को बनाये जाने का खुला स्वागत उडिशा के मुख्यमंत्री पटनायक ने किया। इससे राजग के पास राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक राजग से बाहर से मजबूत दल के मतों का इजाफा हो गया।
वहीं संयुक्त विपक्ष ने वाजपेई सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को अपना प्रत्याशी बनाया है। संख्या की दृष्टि से यह तय है कि भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी राष्ट्रपति चुनाव में विजई होना तय माना जा रहा है। इसी आशंका के कारण शरद पवार से लेकर अनेक विपक्षी नेता संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनने से दूर रहे। अब देखना यह है राष्ट्रपति की चुनाव में संयुक्त विपक्ष अपने प्रत्याशी के पक्ष में कितने मत अर्जित करता है। इसके साथ यह भी तय हो गया कि भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलेगा और वह तय समय पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
भाजपा द्वारा राष्ट्रपति के प्रत्याशी का नाम जारी जारी करने से उन तमाम अटकलों पर विराम लग गया जिसके तहत राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, छत्तीसगढ़ की गवर्नर ,केरल की गवर्नर व कर्नाटक के गवर्नर का नाम चर्चाओ में था। इसके साथ उन लोगों को भी गहरी निराशा हाथ लगी जो भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति पद पर आसीन देखना चाहते थे। ऐसा लगता है कि मोदी जी ने 2024 की लोकसभा चुनाव को देखते हुए महिलाओं व पहली आदिवासी राष्ट्रपति का राजनीतिक दांव चलकर अपनी राजनीतिक बढ़त विपक्ष पर बनाए रखने के लिए आदिवासी को राष्ट्रपति बनाने का निर्णय लिया है। वैसे चर्चाओं की दृष्टि से देखा जाए तो केरल की राज्यपाल, वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों के हिसाब से सबसे उपयुक्त प्रत्याशी माने जा रहे थे। परंतु राजनीति में इन पदों पर प्रतिभा से अधिक प्रतिबद्धता व निष्ठा के साथ बनाने वाले का विश्वास भी निर्णायक कारक होता है।
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा राष्ट्रपति पर लिए गए निर्णय से यही संकेत मिलता है कि अब उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के स्थान पर भी नए उपराष्ट्रपति को आसीन चाहती है भाजपा।