मोदी जी उतराखण्डियों को राजधानी गैरसैंण चाहिए, शिकायत दर्ज नहीं
शायद उतराखण्ड शासन से यह फोन प्रधानमंत्री को दिये महिनों पहले ज्ञापन के प्रत्युर में किया गया।
देवसिंह रावत
आज आठ जून 2022 को मै प्रेस क्लब आफ इंडिया में देश के लिए समर्पित समाजसेवी, पत्रकार, अधिवक्ता व कलाकार मित्रों के साथ सांयकाल साढ़े चार बजे चाय पर चर्चा कर रहा था कि तभी मुझे 911352609521 दूरभाष से फोन आया कि आपने प्रधानमंत्री कार्यालय में जो शिकायत दर्ज की थी उसके बारे में बात कर रहा हॅू। मैने कहा आप कौन साहब बोल रहे हैं और आपको किससे बात करनी है। फोन कत्र्ता ने अपना नाम शायद अभिषेक बताया। मैने कहा कि मैं देवसिंह रावत बोल रहा हॅू। किस विषय पर यह शिकायत है। इतने में फोन कट गया। पांच मिनट बाद फिर फिर दूबारा उपरोक्त नम्बर से फोन आया । उन्होने बताया कि यह गैरसैण राजधानी के संदर्भ में प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत दर्ज करायी गयी थी। मैने उनको बताया राजधानी गैरसैंण बनाने के मामले में हमने प्रधानमंत्री कार्यालय में एक नहीं कई ज्ञापन दिये है। मेने फोन कत्र्ता को बताया कि यह मांग राज्य गठन से पहले की थी। उतराखण्ड राज्य गठन के बाद एक मात्र विधानसभा गैरसैंण में बनी है। प्रदेश में सत्तासीन रही अब तक की भाजपा व कांग्रेस की सरकारों ने अपनी पंचतारा सुविधाओं के खातिर जनभावनाओं को रौंदकर बलात देहरादून से शासन चला कर उतराखण्ड राज्य गठन की आशाओं व अपेक्षाओं को जमीदोज करने का काम किया। मैने कहा कि प्रदेश की सत्ता में आसीन रहने वाली भाजपा व कांग्रेस जैसे ही विपक्ष में रहती है वेसे ही राजधानी गैरसैंण का समर्थन करती है। परन्तु सत्तासीन होने पर राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय विश्वासघात कर शहीदों की शहादत का अपमान कर ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने का जघन्य कृत्य किया। हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा खुद को उतराखण्ड का सबसे बडा हितैषी होने की हुंकार भरते हैं परन्तु जब यह विश्वासघात उनके द्वारा बनाये गये भरत उतराखण्ड भाजपा के मुख्यमंत्री कर रहे थे तो उस समय हम आंदोलनकारियों ने अनैक धरना प्रदर्शन किये सैकडो ज्ञापन प्रधानमंत्री को दिये परन्तु किसी की सुनवाई नहीं।
लोकशाही में जनभावनाओं का ऐसा घोर अनादर व दमन करने वाले कैसे खुद को लोकशाही का ध्वजवाहक बताते है। सबसे हैरानी व बेशर्मी की बात यह है कि जब भाजपा व कांग्रेस विपक्ष में रहती है तो ये खुद को राजधानी गैरसैंण का ध्वजवाहक बताते है। उतराखण्ड प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष मदन कोशिक जब हरीश रावत सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष थे तो इन्होने गैरसैण में आयोजित विधानसभा के सत्र में राजधानी गैरसैंण बनाने का निजी विधेयक सदन में रखा था। उसी भाजपा की जब सरकार आयी तो उसने विश्वासघात करके राजधानी गैरसैंण बनाने की जगह ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने की अक्षम्य भूल व विश्वासघात कर उतराखण्डियों के वर्तमान व भविष्य पर बज्रपात किया। अब जो नये मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री मोदी ने बनाये है पुष्कर धामी उनको तो गैरसैंण राजधानी को नाम लेने व आंदोलनकारियों से वार्ता करने से ही नफरत हेै।
उतराखण्ड सरकार की हालत इतनी शर्मनाक है कि सरकार ने पहले ऐलान किया कि प्रदेश विधानसभा का सत्र 14 जून से गैरसैंण में होगा। उसके बाद आंदोलनकारियों का चोला ओडे कालनेमी विधायक इसका विरोध करने की बेशर्मी करने लगे। इसके बाद शासन ने यह सत्र देहरादून में ही कराने का ऐलान किया। जिससे समर्पित आंदोलनकारी स्तब्ध है। देश जानना चाहता है कि ये सत्ता के कालनेमी, रामभक्त तो हो नहीं सकते। जो अपने स्वार्थो व दुराग्रह के लिए अपने बचनों को ही रौंद दिया। एक सच्चा जनसेवक व रामभक्त कभी ऐसी भूल नहीं कर सकता है।
मैने दूरभाष करने वाले अधिकारी से कहा कि यह शिकायत दर्ज ही होगी या इसका कोई समाधान भी होगा। प्रदेश की जनता शिकायते दर्ज कराने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती अपितु चाहती है कि प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बने। लोकशाही नौकरशाही व भ्रष्ट नेताओं की सनक पर नहीं चलती अपितु जनभावनाओं के अनुसार चलनी चाहिए।
लोकशाही में जनभावनाओं का ऐसा घोर अनादर व दमन करने वाले कैसे खुद को लोकशाही का ध्वजवाहक बताते है। सबसे हैरानी व बेशर्मी की बात यह है कि जब भाजपा व कांग्रेस विपक्ष में रहती है तो ये खुद को राजधानी गैरसैंण का ध्वजवाहक बताते है। उतराखण्ड प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष मदन कोशिक जब हरीश रावत सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष थे तो इन्होने गैरसैण में आयोजित विधानसभा के सत्र में राजधानी गैरसैंण बनाने का निजी विधेयक सदन में रखा था। उसी भाजपा की जब सरकार आयी तो उसने विश्वासघात करके राजधानी गैरसैंण बनाने की जगह ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने की अक्षम्य भूल व विश्वासघात कर उतराखण्डियों के वर्तमान व भविष्य पर बज्रपात किया। अब जो नये मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री मोदी ने बनाये है पुष्कर धामी उनको तो गैरसैंण राजधानी को नाम लेने व आंदोलनकारियों से वार्ता करने से ही नफरत हेै।
उतराखण्ड सरकार की हालत इतनी शर्मनाक है कि सरकार ने पहले ऐलान किया कि प्रदेश विधानसभा का सत्र 14 जून से गैरसैंण में होगा। उसके बाद आंदोलनकारियों का चोला ओडे कालनेमी विधायक इसका विरोध करने की बेशर्मी करने लगे। इसके बाद शासन ने यह सत्र देहरादून में ही कराने का ऐलान किया। जिससे समर्पित आंदोलनकारी स्तब्ध है। देश जानना चाहता है कि ये सत्ता के कालनेमी, रामभक्त तो हो नहीं सकते। जो अपने स्वार्थो व दुराग्रह के लिए अपने बचनों को ही रौंद दिया। एक सच्चा जनसेवक व रामभक्त कभी ऐसी भूल नहीं कर सकता है।
मैने दूरभाष करने वाले अधिकारी से कहा कि यह शिकायत दर्ज ही होगी या इसका कोई समाधान भी होगा। प्रदेश की जनता शिकायते दर्ज कराने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती अपितु चाहती है कि प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बने। लोकशाही नौकरशाही व भ्रष्ट नेताओं की सनक पर नहीं चलती अपितु जनभावनाओं के अनुसार चलनी चाहिए।