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भारत में स्थानीय भाषा में समय पर सबको मिले न्याय:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

 

भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री को बधाई देते हुए उन्हें अपने इस वचन को साकार करने का किया अनुरोध

 

प्रधानमंत्री 30 अप्रैल को मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।

30 अप्रैल 2022 नई दिल्ली से प्याउ व पसूकाभास

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 30 अप्रैल, 2022 को प्रात: 10 बजे विज्ञान भवन, नई दिल्ली में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में शामिल हुए। प्रधानमंत्री इस अवसर पर उपस्थित गणमान्‍यजनों को संबोधित किया। इस अवसर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रामन्ना, न्यायमूर्ति ललित केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू व राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल सहित राज्यों के मुख्यमंत्री व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश उपस्थित थे।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही, वह है कि न्याय, भारतीय भाषाओं में होना चाहिए। जिसकी मांग कई वर्षों से निरंतर भारतीय भाषा आंदोलन करता रहा। आजादी के बाद देश में भारतीय भाषाओं में न्याय, शिक्षा, रोजगार व शासन संचालित करने की निरंतर मांग उठती रही। परंतु देश के हुक्मरान इस मांग को गुलाम मानसिकता के कारण अनसुना करते रहे। भारतीय भाषा आंदोलन विगत कई वर्षों से प्रधानमंत्री को निरंतर इस आशय का ज्ञापन देकर देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए आंदोलन कर रहा है। सालों तक राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर ज्ञापन दिया गया। कोरोना काल से आज तक निरंतर प्रधानमंत्री को ई ज्ञापन दिया जाता है। भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने प्रधानमंत्री द्वारा इस कार्यक्रम में देश में न्याय व्यवस्था, शिक्षा, चिकित्सा व यांत्रिकी में स्थानीय भाषाओं का समावेश करने की बात कही, उससे भारतीय भाषा आंदोलन को आशा है कि प्रधानमंत्री अपने इस विचार को साकार करके देश की लोकशाही मजबूत करेंगे।
न्यायाधीशों व मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमें अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। देश के अधिकांश लोग स्थानीय भाषा में कानून न दिए जाने पर अनभिज्ञ रहते हैं। हमें न्याय समय पर व जनता के लिए समर्पित करना चाहिए। स्थानीय भाषा में न्याय होने से जनता का न्याय के प्रति विश्वास बढ़ेगा। हम चिकित्सा व यांत्रिकी में भी स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध होने से जन सरोकार और साकार होंगे।

इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।

**हमारे देश में जहां एक ओर judiciary की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं legislature नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है।

मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का roadmap तैयार करेगा।

आज़ादी के इन 75 सालों ने judiciary और executive, दोनों के ही roles और responsibilities को निरंतर स्पष्ट किया है।

जहां जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये relation लगातार evolve हुआ है।

2047 में जब देश अपनी आज़ादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे?

हम किस तरह अपने न्यायिक व्यवस्था इतना समर्थ बनाएँ कि वो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिए।

भारत सरकार भी न्यायिक व्यवस्था में तकनीकी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है।

उदाहरण के तौर पर, e-courts project को आज mission mode में implement किया जा रहा है।

आज छोटे कस्बों और यहाँ तक कि गाँवों में भी डिजिटल transaction आम बात होने लगी है।

पूरे विश्व में पिछले साल जितने डिजिटल ट्रांजेक्शन हुए, उसमें से 40 प्रतिशत डिजिटल ट्रांजेक्शन भारत में हुए हैं।

आजकल कई देशों में कानून विश्वविद्यालय में block-chains, electronic discovery, cybersecurity, robotics, AI और bioethics जैसे विषय पढ़ाये जा रहे हैं।

हमारे देश में भी कानूनी शिक्षा इन अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुताबिक हो, ये हमारी ज़िम्मेदारी है।

एक गंभीर विषय आम आदमी के लिए कानून की पेंचीदगियों का भी है।

2015 में हमने करीब 1800 ऐसे क़ानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे।

इनमें से जो केंद्र के कानून थे, ऐसे 1450 क़ानूनों को हमने खत्म किया। लेकिन, राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।

हर जिले में डिस्ट्रिक्ट जज की अध्यक्षता में एक कमेटी होती है ताकि इन केसेस की समीक्षा हो सके, जहां संभव हो बेल पर उन्हें रिहा किया जा सके।

मैं सभी मुख्यमंत्रियों, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों से अपील करूंगा कि मानवीय संवेदनाओं और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता दें।

आज देश में करीब साढ़े तीन लाख कैदी ऐसे हैं, जो under-trial हैं और जेल में हैं।

इनमें से अधिकांश लोग गरीब या सामान्य परिवारों से हैं।

न्यायालयों में, और ख़ासकर स्थानीय स्तर पर लंबित मामलों के समाधान के लिए मध्यस्थता- Mediation भी एक महत्वपूर्ण जरिया है।

हमारे समाज में तो मध्यस्थता के जरिए विवादों के समाधान की हजारों साल पुरानी परंपरा है।

देश में जहां एक ओर न्यायपालिका की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं विधायिका नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा।

आज़ादी के इन 75 सालों ने न्यायपालिका और कार्यपालिका, दोनों की ही भूमिका और जिम्मेदारी को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये संबंध लगातार विकसित हुआ है।

भारत सरकार भी न्याय व्यवस्था में तकनीकी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है।

उदाहरण के तौर पर, ई-कोर्ट परियोजना को आज मिशन मोड में लागू किया जा रहा है।

2015 में हमने करीब 1800 ऐसे क़ानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से जो केंद्र के कानून थे, ऐसे 1450 क़ानूनों को हमने खत्म किया। लेकिन, राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।

उल्लेखनीय है कि यह संयुक्त सम्मेलन दरअसल कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक मंच पर लाने का बहुमूल्‍य अवसर है, ताकि लोगों को सरल एवं सुविधाजनक ढंग से न्याय सुलभ कराने की रूपरेखा तैयार की जा सके और इसके साथ ही न्याय प्रणाली के समक्ष मौजूद विभिन्‍न चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा की जा सके। ठीक इसी तरह का पिछला सम्मेलन वर्ष 2016 में आयोजित किया गया था। उस समय से लेकर अब तक सरकार ने ‘ईकोर्ट्स मिशन मोड प्रोजेक्ट’ के तहत बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को बेहतर करने के साथ-साथ अदालती प्रक्रियाओं में डिजिटल प्रौद्योगिकी के एकीकरण के लिए कई पहल की हैं।

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