कांग्रेस का पर्व समाप्त, अब किसी प्रशांत किशोर,राहुल, प्रियंका, ममता व पवार से नहीं होगी जीवंत कांग्रेस
अंध तुष्टिकरण व भारतीय संस्कृति विरोधी दिशाहीन नेतृत्व के कारण दम तोड़ चुकी है कांग्रेस!
देव सिंह रावत
परसों से आज सुबह तक देश के सियासी जगत व खबरिया जगत में इसी पर गहन चर्चा है कि आखिर भारतीय चुनावी रणनीति के विलक्षण महारथी प्रशांत किशोर कांग्रेस में क्यों सम्मलित नहीं हुए? या कांग्रेस में प्रशांत किशोर की शर्तों को क्यों स्वीकार नहीं किया?
सबसे चौंकाने वाला सवाल यही है कि आखिर 8 बार कांग्रेस में सम्मलित होने की चर्चाओं में रहे प्रशांत किशोर असफल होने के बावजूद फिर कांग्रेस में सम्मलित होने का बार बार प्रयास क्यों कर रहे हैं?
पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर प्रशांत किशोर जब मोदी, केजरीवाल, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अमरेंद्र सिंह, स्टालिन, चंद्रशेखर राव आदि भारतीय राजनीति के दिग्गज राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं के सफल रणनीतिकार रहे। सभी दलों में प्रशांत किशोर का पर्याप्त सम्मान रहा और सभी दल प्रशांत किशोर को अपने दल में सम्मलित करना चाहते हैं।परंतु प्रशांत किशोर इन राजनीतिक दलों से अपनी राजनीति शुरू करने के बजाए कांग्रेस से ही क्यों शुरू करना चाहते हैं? वह कांग्रेस में अपनी शर्तों पर सम्मलित होने की मुहिम में अनेक बार असफल रहे।
इन सभी सवालों का उत्तर यह है कि भारतीय चुनावी राजनीति के सफल महारथी होने के कारण प्रशांत किशोर बखूबी से जानते थे कि उनको अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को साकार करने के लिए कांग्रेस से बेहतर कोई अखिल भारतीय दल नहीं है। जिसमें वह कम समय में बड़ी तेजी से आला नेतृत्व का विश्वास अर्जित करके मनमोहन वन साकार कर सकते हैं। प्रशांत किशोर देश में अपना राजनीतिक परचम प्रधानमंत्री बन कर उसी तरह से लहराना चाहते हैं जिस तरह से मोदी ने भारतीय राजनीति में अपना परचम लहराया। भारतीय जनता पार्टी की आला नेतृत्व मोदी से भले ही उनके करीबी संबंध रहे हैं पर इसके बावजूद उनको अपनी महत्वाकांक्षा साकार करने के लिए भाजपा उपयुक्त नहीं लगती है। मोदी भले ही भाजपा के शीर्ष नेता हों पर वह प्रशांत किशोर को अपने बाद देश की कमान सौंपने में सक्षम नहीं है क्योंकि भाजपा का पूरा नियंत्रण संघ के हाथों में है और संघ किसी गैर संघी को भाजपा की कमान सौंपने के लिए इतनी सहजता से कभी तैयार नहीं हो सकता। वैसे भी भाजपा में नेतृत्व की दृष्टि से मोदी के बाद अमित शाह, योगी नितिन गडकरी, राजनाथ आदि मजबूत दावेदारों की एक मजबूत पंक्ति विद्यमान है।
रही बात अन्य प्रांतीय दलों की जिनके बारे में प्रशांत किशोर बखूबी से जानते हैं कि भारत में क्षेत्रीय दलों का नेतृत्व चर्चा में अवश्य रहे परंतु राष्ट्र का नेतृत्व करने में अक्षम रहे। वे जानते हैं कि नीतीश की जनता दल यू, केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, बसपा, द्रमुक, ममता बनर्जी की तृणमूल पार्टी, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व चंद्रशेखर राव की तेलंगाना पार्टी भले ही अपने राज्यों में सत्तासीन हो सकते हैं परंतु देश का नेतृत्व करने की क्षमता अभी इन दलों में दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती है। इसलिए इन दिनों में अपना भविष्य प्रशांत किशोर को कहीं दूर दूर तक नजर नहीं आता। वामपंथी दलों का अस्तित्व अब केवल इतिहास में दाखिल होने वाला है ।इसलिए वामदलों की तरफ सोचते भी नहीं। भले ही कांग्रेसी वर्तमान में देश की सत्ता से दूर हो परंतु अखिल भारतीय स्तर पर कांग्रेस का संगठन ही हर प्रांत हर जिले में दिखाई देता है। जिसे सबल बनाकर भाजपा को सीधी चुनौती दी जा सकती है। इसीलिए प्रशांत किशोर बार-बार असफल होने के बावजूद कांग्रेस में ही सम्मलित होने का प्रयास कर रहे हैं।
गौरतलब है कि भारतीय राजनीति में दम तोड़ रही देश की सबसे पुरानी यानी 137 साल बुजुर्ग राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को फिर से सत्तासीन करके जीवंत करने की आशाओं पर उस समय वज्रपात हो गया जब भारतीय राजनीति के चुनावी समर के महारथी व आधुनिक चाणक्य प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में सम्मलित होने की अटकलों को विराम देते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि मैं कांग्रेस में शामिल नहीं हूंगा। उल्लेखनीय है कि विगत 10 दिनों से कांग्रेस आला नेतृत्व सोनिया गांधी के साथ गहन मंत्रणा के बाद यकायक प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल नहीं होने ने का ऐलान करके सियासी जगत में बना धमाका किया।
कांग्रेस की दयनीय स्थिति को देखते हुए कांग्रेसियों में घोर निराशा छाई हुई है। कांग्रेस के अनेक नेता अपने भविष्य की रक्षा के लिए या तो भाजपा सहित अन्य दलों में सम्मलित हो रहे हैं या राजनीति से दूरी बनाए हुए हैं। इसी क्रम में वरिष्ठ समर्पित रणनीतिकार कांग्रेस की मजबूत स्तंभ समझे जाने वाले कांग्रेसी नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री ए के एंथनी ने सक्रिय राजनीतिक से संन्यास ले लिया है।
वहीं कांग्रेसी आला नेतृत्व आसपास बनी चौकड़ी कांग्रेसी आधार वाले मजबूत राज्यों में अपने निहित स्वार्थों के लिए जनप्रिय सक्षम नेताओं को दरकिनार करके प्यादों को आगे कर कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं इसका उदाहरण उत्तराखंड में हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन्हीं कांग्रेसी नेतृत्व की चौकड़ी के कारण जीता सा हुआ चुनाव हार हार गए। यह चौकड़ी हिमाचल, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आंध्र प्रदेश, केरल,महाराष्ट्र,कर्नाटक व तेलंगाना सहित अन्य राज्यों में ऐसा ही कार्य कर रही है। आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी प्रकरण भी कांग्रेसी आला नेतृत्व के मठाधीशों की स्वार्थ व अदूरदर्शिता के कारण हुआ। ममता प्रकरण भी कांग्रेसी अदूरदर्शिता के कारण हुआ। परंतु शरद पवार का कांग्रेस छोड़ना शरद की अंध महत्वाकांक्षा के कारण हुआ। अब शरद व ममता की महत्वाकांक्षा इतनी अधिक बढ़ गई है कांग्रेस उनको शिकार नहीं कर सकती है। हालांकि 7 शब्दों में कहीं तो शरद पवार व ममता की आड़ में प्रशांत किशोर अपना रास्ता बना रहे थे। उन्हें पवार या ममता से रत्ती भर का भी लगाव नहीं है। हां उनके सहारे हुए वे अपनी महत्वाकांक्षा पूरा कर सकते हैं इसके लिए वे उनके लिए एक साधन मात्र हैं। प्रशांत किशोर भली प्रकार से इस बात से विज्ञ है कि केजरीवाल, नीतीश कुमार, ममता, पवार, चंद्रशेखर राव इत्यादि एक व्यक्ति या परिवार द्वारा संचालित दलों का भविष्य इन के आला नेतृत्व के साथ ही समाप्त होने वाला है। केजरीवाल इतना अति महत्वाकांक्षी है कि केजरीवाल ने पार्टी के संस्थापक महत्वपूर्ण सदस्यों प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास व योगेंद्र यादव आदि समर्पित लोगों को भी पार्टी से दूर करने के षड्यंत्र करने में संकोच नहीं किया। केजरीवाल आम आदमी पार्टी में केवल अपने पिछलग्गू लोगों की जमात चाहते हैं मजबूत व सिद्धांत वादी नेताओं की नहीं। इन तमाम तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही प्रशांत किशोर ने केवल कांग्रेस को ही अपने सपनों को साकार करने में सहायक पाया। इसीलिए अनेक बार असफल रहने के बावजूद प्रशांत किशोर बार-बार कांग्रेस में सम्मलित होने के लिए प्रयास कर रहे हैं वह बखूबी से जानते हैं कि कांग्रेस का यह नेतृत्व संकट व कमजोरी ही उसके लिए वरदान है इसी से उबरने की चाहत में कांग्रेस उसको प्रवेश देकर उसकी राह आसान कर देगी।
भले ही इस बार कांग्रेस में सम्मलित होने के आमंत्रण को अस्वीकार करते हुए प्रशांत किशोर ने परसों दो टूक शब्दों में ट्वीट किया कि मैने कांग्रेस पार्टी में शामिल होने और चुनावों की जिम्मेदारी लेने के #कांग्रेस के उदार प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
ट्वीट में प्रशांत किशोर ने साफ शब्दों में कहा कि मेरी विनम्र राय में, परिवर्तनकारी सुधारों के माध्यम से गहरी जड़ें वाली संरचनात्मक समस्याओं को ठीक करने के लिए पार्टी को मुझसे अधिक नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
प्रशांत किशोर का साफ मानना है कि 2024 में भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत विपक्ष की नितांत जरूरत है। लेकिन कांग्रेस चमत्कारी नेतृत्व देने में वर्तमान में असफल रहा। खासकर जब पार्टी पिछले 10 वर्षों में 90% से अधिक चुनाव हार गई हो।इस लिए विपक्षी नेतृत्व को लोकतांत्रिक तरीके से तय करने दें।
प्रशांत किशोर कांग्रेस अध्यक्ष पद व प्रधानमंत्री के चेहरे पर अलग अलग व्यक्ति का ऐलान चाहते थे ।वह कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी के बजाय प्रियंका गांधी को उपयुक्त मानते थे। तथा प्रधानमंत्री के पद पर गैर नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य को आसीन करना चाहते थे ।सूत्रों के अनुसार वे पूर्व कांग्रेसी शरद पवार या ममता को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने के लिए कांग्रेस में तमाम प्रयास कर रहे थे इसके साथ ही कांग्रेस के संगठन में भी आमूलचूल परिवर्तन करके खुद को कॉन्ग्रेस आना नेतृत्व से सीधा संबंध रखना चाहते थे। अपनी बातों को मजबूती देने के लिए उन्होंने पार्टी को दिया 600 पेज का प्रेजेंटेशन। जिससे सितंबर में सहित अनेक नेता प्रशांत किशोर की प्रतिभा के कायल हुए और वे चाहते थे कि प्रशांत किशोर किसी भी सूरत में कांग्रेस में जुड़े।
परंतु कांग्रेस चाहती थी कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में सम्मिलित होने के साथ ही अन्य सभी दलों से दोस्ती खत्म करें । कांग्रेस की यह शर्त भी प्रशांत किशोर को रास नहीं उन्हें मालूम है कि उनकी असली शक्ति ही आई पीएसी है। भले ही प्रशांत किशोर बंगाल चुनाव के बाद इस कंपनी से दूरी बनाने का ऐलान कर चुके हैं परंतु जानकारों के मुताबिक तेलंगाना, बंगाल व तमिलनाडु आदि प्रदेशों में उनकी यह कंपनी उन्हीं की सरपरस्ती में संचालित हो रही है।
कांग्रेसी अधिकांश नेता जहां राष्ट्रीय अध्यक्ष की तौर पर राहुल गांधी को आसीन करना चाहते हैं। राहुल को विश्वास था कि प्रशांत किशोर शायद ही कांग्रेस में सम्मलित होंगे। प्रशांत व राहुल गांधी के विचारों में दूरियों के कारण ही प्रशांत राहुल की बजाय प्रियंका गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर आसीन करना चाहते थे ।जो सोनिया सहित अधिकांश कांग्रेसी नेताओं को स्वीकार नहीं था।
इससे पहले, 2021 के अक्टूबर में भी प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की बात कही जा रही थी, लेकिन उस वक्त जी 23 नेताओं ने शामिल करने पर सवाल उठा दिया था। परंतु इन जी विद्रोही नेताओं के वजूद के बारे में कांग्रेसियों ही नहीं जनता भी बखूबी से जानती हैं। ये अधिकांश कांग्रेस आला नेतृत्व के ही कृपा पात्र रहे। जनता के सरोकारों से इनको कभी दूर दूर तक लेना-देना नहीं रहा ।अब कांग्रेस नेतृत्व को अपने करीब न पाकर इनको लोकशाही की याद आ रही है। असल में कांग्रेस को बर्बाद करने वाले ऐसे ही तत्व रहे जो अपने भारतीय संस्कृति विरोधी बयानों से कांग्रेस को देश की छवि को धूमिल करते रहे।
भले ही इस बार प्रशांत किशोर कांग्रेस में सम्मलित होने में असफल हो गए हों। परंतु वह हार नहीं मानेंगे और फिर कांग्रेस में सम्मलित होने का तब तक प्रयास करेंगे जब तक वह अपनी शर्तों में कांग्रेस में सम्मिलित ना हों।
परंतु प्रशांत किशोर अपने इस स्वप्न लोक में अपनी महत्वाकांक्षा को साकार करने के लिए विचरण कर रहे हों। परंतु दीवारों में लिखी साफ इबादत को पढ़ने में प्रशांत किशोर भी असफल रहे। भले ही प्रशांत किशोर चुनावी रणनीति के मर्मज्ञ हो सकते हैं परंतु मृतप्राय कांग्रेस में पुन्न प्राण फूंकने में उनकी सारी तिकड़म धरी की धरी रह जाएगी। कोई नहीं जान पा रही हैं कि कांग्रेस का समय पूरा हो चुका है। वर्तमान में कांग्रेस की दुर्दशा का कारण नेहरू गांधी परिवार नहीं अपितु कांग्रेसी नेतृत्व का अदूरदर्शिता, जमीनी पकड़ का अभाव, अंध तुष्टिकरण, भारतीय जनमानस व संस्कृति से दूर होना रहा है। अनुभव हीनता व जमीनी पकड़ के अभाव में कांग्रेसी नेतृत्व को आज इस बात का भी भान नहीं है कि उसके प्रांतों में कौन सा नेता प्रदेश की जन आकांक्षाओं व कांग्रेस को मजबूती देने में सक्षम है। आम जनता व देश की दिशा और दशा का भान हो ना तो बहुत दूर की बात कांग्रेसी नेतृत्व अपने प्यादों के कांग्रेस विरोधी कृत्यों पर ही अंकुश लगाने में अक्षम साबित हो रहा है इसी कारण कांग्रेस जनता से निरंतर दूर होती दिखाई दे रही है।
मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी भले ही महंगाई, रोजगार, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने व सुशासन देने में नाकाम रही हों। परंतु भारतीय संस्कृति व सम्मान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देश की सुरक्षा के प्रति सजगता उनको अन्य दलों से बेहतर साबित करती है ।खासकर भारतीय जनता पार्टी के शासन में जिस प्रकार से श्री राम जन्मभूमि का शताब्दियों का विवाद, कश्मीर से भारत विरोधी धारा 370 को हटाना, महिलाओं की अस्मिता पर अंकुश लगाने वाला तीन तलाक आदि महत्वपूर्ण कार्यों की अमिट छाप ने देशवासियों का दिल जीत लिया है। खासकर मोदी के राज में जिस प्रकार से पूरे विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी उससे देशवासी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। इसके साथ भारतीय जनता पार्टी की अमित शाह की सरपरस्ती में संगठनात्मक मजबूती भारत की तमाम दलों से 21 ही साबित हो रही है। ऐसे में भारत का हर जागरूक नागरिक सन 2024 में दिशाहीन, सत्ता लोलुप, अंध तुष्टिकरण, भ्रष्ट परिवार वादी राजनीतिक दलों के बजाय मोदी के कुशल नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी को जनादेश देना खुद और देश के हित में बेहतर मानेगा। कांग्रेस अब किसी राहुल सोनिया प्रियंका या प्रशांत किशोर ममता पंवार आदि से जीवंत नहीं होने वाली असल में कांग्रेस तभी मृतप्राय हुई जब वह इंदिरा जैसी मजबूत दूरदर्शी नेतृत्व से वंचित हो गई । कांग्रेस एक बड़ा संगठन था, इसलिए उसका क्षरण भी धीरे-धीरे हुआ। अब कांग्रेस तब ही जीवंत हो सकती है जब वह अपनी-अंध तुष्टिकरण व भारत विरोधी मनोवृति को छोड़कर देश में सब के विकास के लिए समर्पित होकर कार्य करें। इस दिशा में कार्य करना राहुल व प्रियंका के ही नहीं ममता व शरद पवार की जहन में भी दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है। बिना जन विश्वास को अर्जित किए बिना अब कांग्रेस देश में शासन करने में सफल रहेगी ऐसा दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा है । मोदी सरकार की सत्तासीन होने के बाद देश की जनता जागरूक हो गई है ।वह भारतीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील हो गई है। इसलिए भारत विरोधी मानसिकता की अंध तुष्टिकरण वाली राजनीति इस देश में अब नहीं चलने वाली ।चाहे इसका नेतृत्व सोनिया करें या राहुल प्रियंका, पवार करें या ममता या प्रशांत किशोर। जनता अब ऐसे सत्तालोलुपुओं व अवसरवादियों को देश की सत्ता किसी भी कीमत पर नहीं सौंपने वाली।