भारत को अंग्रेजी का गुलाम बनाए रखने के लिए किया जा रहा है हिंदी सहित भारतीय भाषाओं का विरोध:भाभाआ
प्यारा उत्तराखंड डॉट कॉम
भारतीय भाषा आंदोलन ने मोदी सरकार द्वारा देश को आजाद होने की 75 साल बाद देश के माथे पर लगा अंग्रेजी भाषा की गुलामी के कलंक को मिटाने के संकल्प संसद से लेकर देश भर में घड़ियाली आंसू बहाने वालों को जॉर्ज पंचम के कहार बताते हुए उनको अंग्रेजी गुलामी बनाए रखने वाले आस्तीन का सांप घोषित किया। हिंदी सहित भारतीय भाषाओं कि विरोधियों को कड़ी फटकार लगाते हुए भारतीय भाषा आंदोलन ने भारतीय भाषाओं व भारतीय लोकशाही का दुश्मन बताया। भाषा आंदोलन ऐसे तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध किया जो देश की व्यवस्था शिक्षा रोजगार न्याय व शासन को भारतीय भाषाओं में संचालित करने के बजाय अंग्रेजों से मुक्त होने के 75 साल बाद भी देश को को अंग्रेजी भाषा का गुलाम बनाए रखना चाहते हैं इसी कारण वे देश में अंग्रेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को संचालित करने का विरोध कर रहे हैं।
यह विवाद तब उठा जब इसी पखवाड़े देश के गृहमंत्री अमित शाह ने संसद की आधिकारिक भाषा कमेटी को संबोधित करते हुए कहा कि किसी और भाषा की बजाय हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के तौर पर स्वीकार किया जाना चाहिए। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय किया है कि सरकार के कामकाज को आधिकारिक भाषा में किया जाए, इससे हिंदी की महत्ता निश्चित तौर पर बढ़ेगी। अमित शाह ने यह भी कहा था कि सरकार का 70 फीसदी एजेंडा हिंदी में बनता है। अब समय आ गया है कि आधिकारिक भाषा हिंदी को देश की एकता का जरूरी हिस्सा बना दिया जाए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान को आधार बनाकर कांग्रेश द्रुमुक सहित कई दलों के नेताओं ने इसे देश में हिंदी ठोपने वाला कदम बना बताकर देश की जनता को गुमराह करने के लिए अनाप-शनाप के बयान बाजी करनी शुरू की। ये नेता यह नहीं बता पाए कि केंद्र सरकार उस आक्रांताओं की भाषा अंग्रेजी के कलंक को मिटाने का प्रयास कर रही है जिन्होंने दो शताब्दियों तक भारत को गुलाम बनाया लाखों भारतीयों को कत्लेआम किया और अरबों खरबों की अकूत दौलत लूटी। ये नेता यह बताने से भी कतरा गए कि जब देश 1947 में आजाद हो गया तो इस देश में आक्रांताओं अंग्रेजी की भाषा को बनाए रखकर व भारतीय भाषाओं को जमीदोज करके कौन सी राष्ट्रभक्ति वे कर रहे हैं?
उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए कई दशकों से निरंतर आंदोलन कर रहा है। भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी का गुलाम बनाने के बजाय हर प्रांत की भाषा में शिक्षा रोजगार न्याय शासन देने की मांग करता है। भारतीय भाषा आंदोलन के इतिहास का उल्लेख करते हुए भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देव सिंह रावत ने बताया कि संघ लोक सेवा आयोग के द्वार पर वर्षों तक चला अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन व संसद की चौखट से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक वर्षों तक पदयात्रा व धरना देने का ऐतिहासिक आंदोलन करने वाले भारतीय भाषा आंदोलन भले ही अंग्रेजी मानसिकता की गुलाम देश के खबरिया चैनलों व समाचार जगत में प्रखरता से ही अपना स्थान नहीं पा सका हो परंतु प्रधानमंत्री कार्यालय व राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन की अमिट छाप मोदी सरकार की देश हित के मुद्दों को पुलिसिया दमन से रौंदने की बात भले ही प्रत्यक्ष रूप में नहीं दिखाई दे रही है परंतु उसकी अमिट छापआज भी सुनाई दे रही है। भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देव सिंह रावत के नेतृत्व में प्रिंस के हुक्मरानों को धिक्कार ने के लिए चलाए गए आंदोलन से राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर, संसद मार्ग, रामलीला मैदान व शहीद पार्क के अलावा वर्षों तक राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर प्रतिदिन ज्ञापन देने का ऐतिहासिक आंदोलन आज भी कोरोना काल के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इंटरनेट के माध्यम से प्रतिदिन दिया जाता है। भारतीय भाषा आंदोलन भारत की सभी भाषाओं के उत्थान के लिए वह प्रांतों में प्रांतीय भाषा में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन प्रदान करने के लिए निरंतर आंदोलनरत है।