सत्ता के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देकर देश व जनहित को दांव पर लगाने वाले परिवारवादी भ्रष्ट शासकों के कारण
देव सिंह रावत
अकूत वैभव के लिए सोने की लंका के नाम से शताब्दियों से विख्यात भारत के पड़ोसी मुल्क श्री लंका में स्थिति बहुत ही विस्फोटक है। राष्ट्रपति ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए देश में आपातकाल लगाते हुए सभी प्रकार के प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया है ।प्रतिबंधों का उल्लंघन करने वालों को देखते ही गोली मारने के आदेश भी दे दिए गए हैं। आवश्यक चीजों के अभाव के विरोध में जनता राष्ट्रपति भवन पर प्रदर्शन कर राष्ट्रपति का इस्तीफा मांग रही है। विद्यार्थियों की परीक्षाएं नहीं हो पा रही हैं ।कई जगह प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए लोगों को खाद्यान्न बिजली पानी ईंधन दवाई परिवहन से वंचित होने के कारण पूरे देश में त्राहि-त्राहि मची हुई है। ऊंची कीमतों पर भी खाद्यान्न रसोई गैस इत्यादि उपलब्ध नहीं हो पा रही है। दवाइयों के बिना मरीज दम तोड़ रहे हैं। पैसा होने के बावजूद लोग खाद्यान्न आदि के उपलब्ध न होने के कारण भूखों मरने के लिए विवश हैं।
लोग इस त्रासदी के लिए राजपक्षे परिवार को जिम्मेदार मान रहे हैं। राजपक्षे परिवार के 5 सदस्य इस समय श्रीलंका सरकार को संचालित कर रहे थे। राष्ट्रपति पद पर गोटबाया राजपक्षे, प्रधानमंत्री पद पर महिंद्रा राजपक्षे। वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे, रक्षा व सिंचाई मंत्री चमल राजपक्षे, खेल व युवा मामलों के मंत्री नमल राजपक्षे यानी एक प्रकार से पूरा कुनबा ही सरकार चला रहा था। भले ही राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पूरे मंत्रिमंडल का इस्तीफा ले लिया है परंतु लोग राष्ट्रपति को ही इस त्रासदी का जिम्मेदार मानते हुए उनसे तत्काल इस्तीफा मांग रहे हैं।
श्रीलंका की इस भयानक आर्थिक संकट के लिए जहां समीक्षक कोरोना महामारी व विदेशी कार्य को जिम्मेदार मान रहे हैं वही अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया सत्ता में चूर परिवार वादी सरकार ने भ्रष्टाचार व कुशासन पर समय पर अंकुश नहीं लगाया है। संकट को दूर करने के लिए व्यवस्था को मजबूत करने के बजाय निरंतर कर्ज में जी रही विदेशी मुद्रा का भंडार कम होने के कारण सरकार ने जब 2020 में आयात पर प्रतिबंध लगाया स्थिति बद से बदतर हो गई। कोरोना महामारी के कारण श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था का मूल आधार पर्यटन उद्योग एक प्रकार से उजड़ गया इससे होटल व पर्यटन उद्योग से जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो गए।
जनता के आक्रोश को देखते हुए श्रीलंका सरकार ने इस्तीफा दे दिया है। लोग राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। कल कारखाने होटल अस्पताल स्कूल परिवहन सब तेल ईंधन आदि सुविधाओं के अभाव में बंद हो रखें हैं।
राजपक्षे परिवार ने सत्ता मिलने के बाद कर्जे में आकंठ डूबे श्रीलंका को उबारने के लिए ठोस आर्थिक नीति नहीं बनाई जिसके कारण चीन से लिया गया भारी कर्जा चुकाने में श्रीलंका विफल रहा। इसी कारण चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को चीन के पास गिरवी रखना पड़ा। ऐसा भी माना जा रहा है कि भारी चीनी कर्जे के कारण श्रीलंका को यह शर्मनाक दिन देखने पड़ रहे हैं।
हालांकि चीनी कर्जे के साथ-साथ श्रीलंकाई शासकों की सत्ता लोलुपता, देश के हितों के प्रति उदासीनता व परिवारवाद भी जिम्मेदार माना जा रहा है।
हालांकि राजपक्षे परिवार का श्रीलंका की सत्ता से पुराना नाता रहा है राजपक्षे परिवार के सत्ता शिखर पर पहुंचे सबसे मजबूत नेता महिंद्रा राजपक्षे जो 2004 में पहली बार प्रधानमंत्री बने और 2005 में राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। वे 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे हालांकि उनके कार्यकाल के दौरान श्रीलंका ने अलगाववादी लिट्ठे आतंकियों का सफाया करके श्रीलंका को गृह युद्ध की त्रासदी से उबारा। श्रीलंका के बहुसंख्यक वाली वह बौद्ध समुदाय के बीच महेंद्र राजपक्षे की भारी लोकप्रियता रही । श्रीलंका में आपातकाल लगाए जाने के बाद भले ही मंत्रिमंडल हैं अपना इस्तीफा दे दिया है परंतु राष्ट्रपति पद पर गोट बाया राजपक्षे व प्रधानमंत्री पद पर महिंद्रा राजपक्षे बने हुए हैं।
भले ही जमीदार परिवार से जुड़े राजपक्षे के पिता डीए राजपक्षे 1947 से 1965 तक सांसद रहे। इसके बाद 1970 में महिंद्रा राजपक्षे सांसद बने और 2004 मैं देश के प्रधानमंत्री भी बन गए। 2015 में राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद महिंद्रा राजपक्षे ने अपने छोटे भाई गोट बाया राजपक्षे को राष्ट्रपति का चुनाव लड़ाया जिनकी भारी बिजय हुई। गोटबाया राजपक्षे नए राष्ट्रपति बनते ही अपने भाई महिंद्रा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया और परिवार के अन्य सदस्यों को भी मंत्रिमंडल में बनाने के लिए श्रीलंका के संविधान में ही संशोधन कर डाला।
गोट बाया राजपक्षे ने भारत के सैन्य विश्वविद्यालय मद्रास से सैन्य विज्ञान में मास्टर की उपाधि ग्रहण की इसके बाद इसके बाद उन्होंने अमेरिका वह पाकिस्तान में भी सैन्य प्रशिक्षण लिया। इसके बाद वह श्रीलंका के की सेना में जुड़ गए और तमिल टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम को उखाड़ फेंकने में उनका काफी योगदान रहा। सेना से सेवानिवृत्त के बाद उन्होंने सूचना तकनीकी में शिक्षा व रोजगार ग्रहण किया है इसके बाद वे 2003 में अमेरिका के नागरिक बन गए। परंतु 2005 में वह फिर श्रीलंका लौट आए और अपने भाई के साथ राजनीति में जुड़ गए। जहां महिंद्रा राजपक्षे ने राष्ट्रपति बनने के बाद 2005 में अपने छोटे भाई गोटबाया को रक्षा मंत्रालय का सचिव नियुक्त किया। इन्हें की रणनीति के तहत श्रीलंका ने तमिल उग्रवाद का सफाया किया इस इसी कारण इन पर तमिलों का उत्पीड़न करने के भी गंभीर आरोप लगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को देखते हुए भारत के उच्चाधिकारियों की बैठक बुलाई जिसमें उच्चाधिकारियों ने केंद्र सरकार को इस बात के लिए आधा किया कि भारत में बंगाल पंजाब सहित कई राज्यों की सरकारें लोक लुभावने कार्यों के कारण प्रदेश को बड़े आर्थिक संकट के गर्त में धकेल रहे हैं अगर इन पर शीघ्र अंकुश नहीं लगाया गया तो भारत के कई राज्यों की स्थिति भी श्रीलंका की तरह बद से बदतर हो जाएगी।
प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित इस बैठक की खबर मिलते ही बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य की स्थिति को सुधारने के बजाय केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहां थी भारत की आर्थिक हालत काफी खराब है श्रीलंका में लोग विरोध में सड़कों पर उतर आए। केंद्र सरकार को तुरंत सभी राज्यों की इस पर बैठक बुलानी चाहिए। वही तो भारत की स्थिति भी श्रीलंका से बदतर हो जाएगी। वहीं देश की इस गंभीर समस्या पर गहन चिंतन मंथन करने की वजह महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिवसेना के के प्रवक्ता व सांसद संजय राउत ने ममता के सुर में सुर मिलाते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि श्रीलंका की हालत काफी चिंताजनक है भारत भी उसी राह पर है हमें इसे संभालना होगा नहीं तो हमारी स्थिति श्रीलंका से भी ज्यादा खराब हो जाएगी।
भले ही भारत के राजनीतिज्ञ नौकरशाह एक दूसरे को आरोपित करके गंभीर समस्या से भी देश को उभारने के बजाय हल्की राजनीति कर रहे हैं परंतु विशेषज्ञों ने साफ-साफ आगाह कर दिया है कि देश में राजनीतिक पार्टियां सत्ता पाने के लिए देश को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के बजाय जनता को लुभाने के लिए जो मुफ्त सुविधाएं देकर देश को आर्थिक संकट के गर्त में धकेल रही हैं ।
जिस प्रकार से केजरीवाल ने दिल्ली व पंजाब, ममता ने बंगाल, जनता को मुफ्त सुविधाओं के प्रलोभन मैं फंसा कर जनादेश का हरण किया उसे देखते अब भाजपा और कांग्रेस भी इसी प्रकार के प्रलोभन दे रही हैं । वह राष्ट्र घाती प्रवृत्ति भारत को भी श्रीलंका की तरह आर्थिक संकट के गर्त में धकेल देगी।
राजनीतिक व नौकरशाह खुद अपनी, अपने परिवार व प्यादों के ऐशो आराम व सुविधाओं पर देश की अकूत दौलत को पानी की तरह बहा रहे हैं। देश को आर्थिक मजबूती प्रदान करने के लिए कल कारखाने उद्योग धंधे कृषि इत्यादि व्यवस्था की बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के बजाय विदेशी ऋण व आयात के जाल में फसाकर देश को बर्बादी के गर्त में धकेल रहे हैं।
कोरोना महामारी के बाद सरकार ने फिजूलखर्ची व अपनी और नौकरशाही के भारी भत्तों पर अंकुश लगाना चाहिए था। विदेशी आयात पर निर्भर के बजाय देश में कृषि उद्योग धंधे व कुटीर उद्योगों को मजबूती प्रदान करनी चाहिए थी। परंतु दुर्भाग्य है कि वर्तमान राजनीतिज्ञों वन नौकरशाही की प्राथमिकता देश व जनता ना होकर हर हाल में तिकड़म करके सत्ता में काबिज रहना ही है। ये सत्तालोलुप नेता देश व जनता के हितों को रौंद कर देश को पतन के गर्त में धकेल देते हैं। जिसके कारण देश की स्थिति श्रीलंका की तरफ बद से बदतर हो जाती है।