जब अपने भाग्य के तुम ही हो विधाता
फिर ईश्वर को क्यों कोस रहे हो।
जाति क्षेत्र दल संप्रदाय के ध्वजवाहक बन तुम
देश प्रदेश जनहित न्याय को सदा रौंद रहे हो।
फिर महंगाई हिंसा भ्रष्टाचार कुशासन पर
तुम घड़ियाली आंसू क्यों बहा रहे हो?
बोओगे जब डाल तुम बबूल नागफनी के
तब बांज डाल की छांव जल तुम कैसे पाओगे।
सत न्याय जनहित में रत मनीषियों का साथ न दोगे तो
लुटेरे भ्रष्टाचारी दुराचारी विश्वासघाती ही राज करेंगे।
जाग उठो है भारत के सपूतो
छूद्र स्वार्थ छोड़ राष्ट्र को देखो।
# देव सिंह रावत