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उप्र में सफल और उतराखण्ड में विफल क्यों है भाजपा का डबल इंजन

इसी पखवाडे बजायेगा चुनाव आयोग उप्र, पंजाब, उतराखण्ड, गोवा व मणिपुर विधानसभा चुनावों की रणभेरी

उप्र में जनता में आशा की किरण बना और उतराखण्ड में विश्वासघात व निराशा का प्रतीक क्यों बना

देवसिंह रावत
2022 में होने वाले उप्र, उतराखण्ड, पंजाब, गोवा व मणिपुर सहित पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव पर पूरे देश का ध्यान लगा है। 2022 में 5 राज्यों में होने वाले चुनाव में उप्र जैसे विशाल राज्य के विधानसभा चुनाव होने के कारण इन चुनाव को 2024 में लोकसभा के आम चुनाव का सेमीफाइनल भी समझ कर सभी राजनैतिक दल इसे फतह करने के लिए अपनी पूरी ताकत झौंक रहे हैं। परन्तु देश की राजनीति के पंडितों की नजरों में भाजपा की डबल इंजन की सरकार उप्र में तो पूरी तरह सफल नजर आती है। वहीं भाजपा की उतराखण्ड में आसीन डबल इंजन की सरकार पूरी तरह असफल नजर आ रही है। भले ही उतराखण्ड देश का छोटा राज्य है परन्तु इसके चुनाव परिणाम भी काफी असरदार होते है। उतराखण्डी प्रतिभा देश विदेश में दिशा तय करने में सहायक होती है।
चुनाव आयोग इसी पखवाडे चुनाव की रणभेरी बजा देगा। चुनाव आयोग अपनी तैयारी को अंतिम रूप देने के लिए इन पांचों प्रदेशों का दोरा करने की रूपरेखा बना दी है। सूत्रों के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा, चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और अनूप चंद्र पांडे अगले हफ्ते गोवा व उत्तराखंड के दौरे पर जायेंगे इसी तरह आयोग के उप्र, पंजाब व मणिपुर का भी दोरा करे चुनावी समर के लिए अपनी तैयारियों को अतिम रूप देंगे। इसके लिए चुनाव आयोग ने इन सभी पांच राज्यों से मतदाताओं की संशोधित सूचि जनवरी 2022 क प्रथम सप्ताह तक प्रकाशित करने का दो टूक निर्देश दिया। इसी को देखते हुए आंकलन लगाया जा रहा है कि जनवरी के प्रथम सप्ताह यानी 5 तारीक या उसके तत्काल बाद ही चुनाव की रणभेरी बजा देगा।
हालांकि हर चुनाव महत्वपूर्ण होते है। वह लोकसभा का हो या विधानसभा का। परन्तु उप्र अपने विशाल जनसंख्या व 80 लोकसभा सीटों के कारण, देश विदेश के राजनीतिज्ञों की नजरें इस चुनाव पर टिकी है। देश के विभिन्न राज्यों में इस समय विभिन्न दल सत्तारूढ है। केंद्र की संत्ता में आसीन भाजपा अनेक महत्वपूर्ण राज्यों में भी सत्तारूढ़ है। 2022 को होने वाले पांच राज्यों में भी भाजपा व उसके सहयोगी राजग उप्र, उतराखण्ड,गोवा व मणिपुर में सत्तारूढ़ है। वहीं कांग्रेस पंजाब में सत्तारूढ़ है।इन पांचों राज्यों की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जहां सत्तासीन होने के लिए चुनावी समर में उतरेगी। वहीं इन 5 राज्यों में पंजाब को छोड कर सभी 4 राज्यों में भाजपा अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए चुनावी समर में उतरेंगी। पंजाब में अकाली के साथ गठबंधन बिखरने के कारण भाजपा मुख्य मुकाबले से बाहर लग रही है। यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस बनाम अकाली व आप में होना निश्चित है। परन्तु भाजपा द्वारा अमरेंद्र सिंह के दल के साथ होने वाले गठबंधन के बाद भाजपा कहीं मुकाबले में वापस लोट आये तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। हालांकि उप्र, पंजाब, गोवा व उतराखण्ड की विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए आम आदमी पार्टी भी हुंकार भर रही है। परन्तु बिहार,हरियाणा, राजस्थान व मध्यप्रदेश में इस दल का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसलिए इस दल के इन प्रदेशों में प्रचाररत पदाधिकारियों को भी पूरा भरोसा नहीं है कि आप आलाकमान केजरीवाल इन प्रदेशों में चुनाव लडायेगा कि नहीं। दिल्ली के बाद इस पार्टी को थोड़ी सी जगह पंजाब में मिली। दिल्ली को छोड़ कर अन्य प्रदेशों में जनता केजरीवाल को विश्वास योग्य ही समझने के लिए तैयार नहीं है।

उप्र में मुख्यमंत्री े योगी आदित्यनाथ ने अपने केवल पांच साल के कार्यकाल में ही दंगामय प्रदेश के नाम से कुख्यात उप्र को दंगा मुक्त रखने का कीर्तिमान स्थापित किया।इसके साथ बीमारू व माफिया राज प्रदेश से कुख्यात उत्तर प्रदेश को अपने समर्पित व दृढ इच्छा शक्ति से निकालकर विकास की कूचाले मार रहा विकासोनुमुख प्रदेश बना दिया है।

सन 2015-16 में 10.90 लाख करोड़ का सकल घरेलु उत्पाद वाला राज्य उतर प्रदेश योगी के योग्य नेतृत्व (यानी मोदी व योगी की जुगलबंदी जिसे डबल इंजन की सरकार भी भाजपा का आला नेतृत्व कहता है ) में 21.73 लाख करोड़ रू के सकल घरेलु उत्पाद के साथ देश की दूसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन गया है। योगी के सत्तारूढ होते समय 2017 में अर्थव्यवस्था के मामले में उप्र देश में पांचवे नंबर वाला राज्य र्था। वह अब दूसरे स्थान पर विराजमान है।
भले ही विपक्षी दल योगी के शासन पर उप्र की बर्बादी के घडियाली आंसू बहा रहे है। परन्तु हकीकत आंकडे बयान कर रहे है कि मोदी व योगी की डबल इंजन की सरकार ने उप्र में विकास का परचम लहरा ही दिये। सन्2015-16 में उप्र की प्रति व्यक्ति आय जहां 47,116 रुपये थी, वह अब 2021 में बढ़कर 94,495 रुपये हो गयी है। वहीं 2017 से पहले प्रदेश सरकार का बजट 2 लाख करोड़ तक होता था, वह सन 2021 में बढ़कर साढ़े 5 लाख करोड़ पहुंच गया।
यही नहीं बेराजगारों को सरकारी व अन्य माध्यमों से रोजगार दिलाने में योगी सरकार अपनी पूववर्ती माया व अखिलेश सरकार पर भारी रही।यहीं नहीं योगी सरकार ने उप्र में कर्मचारी, शिक्षक व लोकसेवा आयोग की परीक्षा को समय पर न कराने की उहापोह से उबार कर लाखों युवाओं को रोजगार पाने को सपने को साकार किया। लाखों युवाओं को स्वयं अपना रोजगार खोलने में भी शासन ने सहयोग दिया।
यही नहीं विश्व पर शताब्दियों बाद आई विनाशकारी ं कोराना त्रासदी का भी जिस मजबूती से योगी सरकार ने मुकाबला करके लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान की उसकी न केवल देश में अपितु विश्व भर में मुक्त कंठों से प्रशंसा की गयी। यहीं नहीं कोरोना काल में जहां दिल्ली जैसे छोटे राज्य भी कामगारों को सुरक्षा देने में नाकाम रहा। इस कारण लाखों की संख्या में पैदल ही अपने प्रदेश ेउप्र को लोट रहे लोगों को जो परिवहन व सुरक्षा योगी सरकार ने दी वह देश विदेश के लिए एक नजीर बन गया। दूसरे राज्यों से घर लौटे लाखों कामगारों को स्थानीय स्तर पर रोजगार दिलाना योगी सरकार की एक बडी उपलब्धी रही।
प्रदेश में विकास की गंगा बहाने के लिए डबल इंजन की सरकार ने उतर प्रदेश में हवाई अड्डों व एक्सप्रेसवों का एक प्रकार से जाल सा बिछा दिया है। उप्र डबल इंजन राज में ही देश का सबसे अधिक हवाई अड्डों वाला प्रदेश बन गया है। उप्र के चहुमुखी विकास के लिए पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, गंगा एक्सप्रेस वे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे और बलिया लिंक एक्सप्रेसवे, ऐसी आधुनिक और चैड.चैड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं. इसके अलावा यमुना व लखनऊ एक्सप्रेस-वे से पूर्वांचल व बुंदेलखंड हाईवे को भी जोडा जा रहा है।

दंगा प्रदेश के नाम से कुख्यात को डबल इंजन की योगी सरकार ने दंगा, माफिया मुक्त प्रदेश बना कर पूरे देश में उप्र का नाम रोशन किया। इससे पूर्ववती सरकारों के कार्यकाल में आये दिन दंगों के दंश से जहां लोगों के अमन चैन पर ग्रहण लग गया था वहीं प्रदेश के विकास पर भी ग्रहण लग गया था। योगी राज में माफियाओं पर की गयी योगी सरकार की ताडबतोड कार्यवाही से जहां लोगों ने सकुन की सांस ली वहीं प्रदेश फिर से विकास की डगर भरने लगा। प्रदेश में अगर आपसी झगडे इत्यादि छोड दें तो प्रदेश में माफियाओं का संगठित अपराध न्यूनतम स्तर पर है। प्रदेश में अनैक माफिया या तो मारे गये या जेलों में है। अनैक अपराधियों व उनको संरक्षण देने वाले नेताओं को भवन व उद्योग परिसरों को पूरी तरह से बुल्डोजरों से तबाह कर दिया है।
इसके साथ डबल इंजन की सरकार ने उतर प्रदेश में विगत 4 शताब्दी से लंबित व भारतीय न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि मंदिर प्रकरण भी रहा। जिस प्रकार से विदेशी आक्रांता बाबर के राज में भारतीय संस्कृति को मिटाने के लिए भारतीयों के आस्था के प्रतीक अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि का विवाद बहुत ही बुद्धिमता से न्यायालय के माध्यम से बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा दिया है। वह भारत के लिए बहुत बडा कार्य रहा। इसके बाद काशी में भगवान शिव शंकर के मंदिर व मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर शताब्दियों से चल रहा विवाद भी भगवान राम जन्मभूमि मंदिर विवाद की तरह सुलझने के आसार बन गये है। काशी में केवल आक्रांता के बदनुमा दाग को छोड़ कर काशी विश्वनाथ के मंदिर परिसर को भव्यता प्रदान की जा रही है।
डबल इंजन की सरकार के कार्यों से जहां अपराधियों, माफियाओं, भ्रष्टाचारियों व परिवार वादियों की आशाओं पर निरंतर बज्रपात हो रहा है। इस लिए सभी भारत विरोधी ताकतें हर हाल में योगी को आगामी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में परास्त करने के लिए एकजूट हो गयी है। ये ताकतें उप्र में सपा का साथ देकर भाजपा को परास्त करना चाहते है। 2022 का विधानसभा चुनाव न केवल योगी के लिए अग्नि परीक्षा का साल होगा अपितु मोदी सहित भाजपा के लिए बड़ी चुनौती का साल रहेगा। हालांकि सन 2014-2019 लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव पूरी तरह से प्रधानमंत्री मोदी के नाम और केंद्र सरकार के काम पर लड़ा गया था, लेकिन 2022 का विधानसभा चुनाव योगी के नाम और काम पर लड़ा जा रहा है. 14 साल के वनवास के बाद बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव में 311 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी जबकि एनडीए को 325 सीटें मिली थी. ऐसे में मुख्यमंत्री योगी के लिए 2022 के चुनाव में पिछले चुनाव के रिकॉर्ड को बरकरार रखने की न केवल एक बडी चुनौती होगी, क्योंकि अपितु खुद उनके व भाजपा के लिए एक अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा। मोदी के बाद योगी में ही देश की जनता भारत को दिशा देने की प्रतिभा नजर आ रही है।

वहीं उतरप्रदेश का पर्वतीय क्षेत्र जो सन 2000 में ही उतराखण्ड प्रदेश के रूप में देश में अपना परचम लहरा रहा है। वहां पर भी उप्र कीे तरह भाजपा की ही सरकार आसीन है। परन्तु यहां की सरकार आम जनता की नजरों में उप्र की सरकार की तरह अपना परचम लहराने में पूरी तरह असफल रही। कंेंद्र सरकार की उपलब्धियों व योजनाओं को अगर दरकिनारे किया जाय तो उतराखण्ड की सरकार के पास प्रदेश में विकास के कार्य गिनाने जैसी उपलब्धी नहीं है। उतराखण्ड की सरकार जनता की नजरों में जहां पूरी तरह विफल लग रही है। वहीं उत्तराखण्ड की सरकार खुद भाजपा के आला नेतृत्व की नजरों में भी पूरी तरह असफल साबित हो गयी। इसीलिए आगामी 2022 के चुनावी समर में अपनी सरकार का चेहरा ठीक करने के लिए भाजपा नेतृत्व ने कुछ समय पहले ही 4 महिने में तीन मुख्यमंत्री बदल डाले। भाजपा के इस कार्य से पूरे देश में भाजपा की किरकिरी हुई। जिस प्रकार से चार साल तक त्रिवेंद्र सरकार की सरकार ने प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौदने का काम किया। उससे प्रदेश की जनता में भारी निराशा थी। इस निराशा के दंश से भाजपा को उबारने के लिए भाजपा आला नेतृत्व ने आनन फानन में विधानसभा सत्र को समाप्त कर त्रिवेंद्र रावत को अपदस्थ कर तीरथ सिंह रावत को सत्तासीन किया। भाजपा नेतृत्व को आशा थी कि तीरथ की सरकार जनता की नाराजगी को दूर करने में सफल होगी। परन्तु जिस प्रकार से तीरथ सरकार की कार्यप्रणाली व भाजपा के मुख्यमंत्री बनने के लिए लालायित क्षत्रपों ने उनको भी अपदस्थ करने के लिए प्रदेश में हवा बना कर केंद्रीय नेतृत्व को गुमराह करने का कार्य किया। उससे जहां भाजपा ने तीरथ रावत को भी मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा कर मंत्रीपद के अनुभवहीन नोजवान भाजपा विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के पद पर आसीन किया। उससे भाजपा की पूरे देश में जग हंसाई हुई। लोगों को आशा थी कि भाजपा नेतृत्व जनाधार वाले अनुभवी नेता के हाथों में प्रदेश की बागडोर देकर आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में जीतने की युक्ति संगत फैसला करेगा। परन्तु डबल इंजन के अहं में भाजपा ने ऐसा फैसला लिया जो खंडूडी जरूरी की तरह धामी की ताजपोशी कर भाजपा की उतराखण्ड में हार की फिर इबादत लिख दी।
हालांकि भाजपा कह रही है कि उसकी सरकार ने प्रदेश के 47 प्रतिशत घरों में पानी पंहुचा दिया है। 2017 तब उत्तराखंड में 8 प्रतिशत घरों में पानी के कनेक्शन थे अब उत्तराखंड में 47 प्रतिशत पानी के कनेक्शन उत्तराखंड में हैं. जल्दी ही उत्तराखंड में शत प्रतिशत। पर यह योजना भी अखिल भारतीय है। केंद्र सरकार की भी। भाजपा के पास गिनाने के लिए एक ही उपलब्धी है गैरसैंण में ग्रीष्मकालिन राजधानी बनाने का। इसे कार्य को न जाने भाजपा नेतृत्व क्या सोच कर उपलब्धी बता रहा है। जबकि उतराखण्ड की जनता इसे भाजपा का विश्वासघात बता रही है। उत्तराखण्ड की जनता राज्य गठन आंदोलन के समय से प्रदेश की राजधानी गैरसैंण मांग रही है। परन्तु प्रदेश की एक मात्र विधानसभा भवन गैरसैंण में बनने,उसमें बजट, शीतकालीन सहित सभी महत्वपूर्ण अधिवेशन होने के बाबजूद भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष मदन कोशिक खुद निजी विधेयक गैरसैंण राजधानी के लिए विधानसभा में गत विधानसभा में पेश करने तथा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष भट्ट द्वारा कर्णप्रयाग विधानसभा उपचुनाव में जनता से राजधानी गैरसैंण बनाने का सार्वजनिक वादा करने के बाबजूद गैरसैंण राजधानी बनाने की जगह ग्रीष्म कालीन राजधानी थोप कर जनता से ठीक उसी प्रकार का विश्वासघात किया जिस प्रकार से किसान कल्याण के नाम पर तीन कृषि कानून केंद्र सरकार ने जबरन थोप दिये। ग्रीष्म कालीन राजधानी की प्रदेश में कोई मांग नहीं थी। फिर भी अपने दुराग्रह व पंचतारा सुविधाओं के मोह में भाजपा की सरकार ने जबरन थोप दिया। जो जनता को किसी भी सूरत में मंजूर नहीं। परन्तु त्रिवेंद्र के बाद तीरथ व धामी सरकार की इस मामले पर शर्मनाक चुप्पी साबित करती है कि भाजपा जानबुझकर जनभावनाओं को रौंदकर अपना दुराग्रह पूरा कर रही है।
वहीं प्रदेश में अन्य कार्य चार धाम सडक चैडीकरण रेल इत्यादि सडक मार्ग केंद्र सरकार की। केंदारनाथ बदरी नाथ केंद्र सरकार का। भाजपा सरकार के विकास के कार्यों में एक ही उपलब्धी मानी जा रही है कि उसने चार महिने में 3 मुख्यमंत्री बनाना। उतराखण्ड जनता का विकास करने के बजाय स्थापित करना। परन्तु भाजपा सभी मांगों को बेशर्मी से नजरांदाज करती रही और प्रदेश के हितों का गला घोंटती रही।

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