विधानसभा चुनाव में उतरने से पहले राजधानी गैरसैंण के साथ भू कानून, मूल निवास,मुजफ्फरनगर कांड व आंदोलनकारियों की सुध ले सरकार
देव सिंह रावत
उत्तराखंड में 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पुनः जनादेश हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के शीर्ष नेता कमर कसे हुए हैं।
इस विधानसभा चुनाव में जीत के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं ।
परंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। भाषणों से लेकर विज्ञापनों में भाजपा के नेता व खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी
भले ही भाजपा की जीत के बड़े-बड़े दावे कर रहे हों
परंतु जनता से नजर मिलाने
की हिम्मत भाजपा के प्रदेश नेताओं में नहीं है ।इसीलिए भाजपा को डूबता हुआ जहाज समझकर सत्ता की लालच में भाजपा से जुड़े कांग्रेस के दिग्गज नेता पुनः कांग्रेस की तरफ भागने के लिए तैयार बैठे हैं।
ऐसा नहीं कि उत्तराखंड में भाजपा की कमजोर स्थिति का एहसास केंद्रीय नेतृत्व को नहीं है।
इसी कारण केंद्रीय नेतृत्व ने कुछ ही महीने पहले ताड़ब तोड़ यानी 4 महीने में तीन मुख्यमंत्री बदल डाले।
यानी केंद्रीय नेतृत्व को भी उत्तराखंड में अपने डबल इंजन की सरकार का इंजन फेल होने का एहसास हो चुका था।
डबल इंजन यानि भाजपा सरकार का उत्तराखंडी इंजन यानी मुख्यमंत्री भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व की अपेक्षाओं की साथ जनता की अपेक्षाओं पर भी खरा नहीं उतर पाया।
इसके लिए जितना जिम्मेदार उत्तराखंड का विफल हुआ इंजन यानी मुख्यमंत्री है। उससे कहीं अधिक जिम्मेदार भाजपा आला नेतृत्व का वह केंद्रीय नेतृत्व का तंत्र है। जो प्रदेश सरकार से न तो जन हित के कार्य करा पाया व नहीं दल के साथ प्रदेश की हितों की रक्षा ही कर पाया।
जिस प्रकार से भाजपा की केंद्र सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार एक के बाद एक जन आकांक्षाओं को साकार कर रही थी वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड की भाजपा की सरकार उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं
को साकार करने की बजाय रौंदने का काम कर रही थी।
इसी डबल इंजन की सरकार के तहत भाजपा की उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने जिस बेशर्मी से उत्तराखंड की जनता की पुरजोर मांग राजधानी गैरसैण बनाने की बजाय प्रदेश की जन आकांक्षाओं को रौंदते हुए जबरन ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसेंण थोप दी।
जन भावना रौंदने का ऐसा अभिशाप त्रिवेंद्र सरकार पर लगा कि वह न तो उस विधानसभा सत्र को ही पूरा कर पाए व नहीं मुख्यमंत्री उसी सप्ताह अपनी सत्ता ही बचा पाए।
जन भावनाओं को रौंदने का भाजपा को इतना तगड़ा झटका लगा कि भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश सरकार से गैरसैण राजधानी सहित जन आकांक्षाओं को साकार कराने के बजाय आनन-फानन में दो और मुख्यमंत्री प्रदेश के विकास पर ग्रहण लगाने के लिए थोप कर अपनी जग हंसाई करा दी।
ऐसा नहीं कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने ही प्रदेश की गैरसैण राजधानी जैसी प्रथम जन आकांक्षाओं को रौंदा हो अपित प्रदेश की अब तक की कांग्रेस व भाजपा नेतृत्व वाली सभी सरकारों ने
बहुत ही बेशर्मी से प्रदेश के हितों को रौंदा है।
जनता एक तरफ अब तक की सरकारों द्वारा प्रदेश हक हकूकों की रक्षा
करने के लिए राजधानी गैरसैण मुजफ्फरनगर कांड की गुनहगारों को सजा दिलाने प्रदेश की जन आकांक्षाओं के तहत हिमाचल की तर्ज पर भू कानून व मूल निवास
कानून न बनाने से जनता आक्रोशित है।
सरकार एक तरफ राज्य गठन के समर्पित आंदोलनकारियों की सम्मान की दावे करती है परंतु हकीकत यह है उत्तराखंड की सरकार राज्य गठन आंदोलन की वरिष्ठ समर्पित आंदोलनकारियों को चिन्ही करण करने में भी पूरी तरह से नाकाम रही है उत्तराखंड सरकार की लापरवाही व गैर जिम्मेदाराना पूर्ण हरकत को बेनकाब करने के लिए दिल्ली में चयनित राज्य गठन आंदोलनकारियों को उत्तराखंड की सरकार चिन्हीकरण करने में पूरी तरह विफल रही। ऐसा नहीं कि उत्तराखंड की सरकार इन मांगों से अनभिज्ञ हैं। उत्तराखंड की जनता व राज्य गठन आंदोलनकारी इस बात से हैरान है कि प्रधानमंत्री द्वारा उत्तराखंड यों को दिए गए अच्छे दिन लाने के आश्वासन के बावजूद भी प्रदेश की सरकार न तो राजधानी गैरसैंण ही बना पाई व न हीं भू क़ानून इत्यादि जन आकांक्षाओं को साकार कर पाई।
वहीं प्रदेश में केवल हिंदू धर्म के मठ मंदिरों पर काबिज होने के लिए मोदी के देवस्थानम् बोर्ड का भी पुजारियों द्वारा भारी विरोध किया जा रहा है।
ऐसी स्थिति में महंगाई बेरोजगारी वजन हितों को रोकने के कारण जनता में छाये निराशा व आक्रोश को देखते हुए भाजपा का पुनः उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज होना एक दिवास्वप्न की तरह ही लग रहा है
ऐसे में अगर भाजपा नेतृत्व को प्रदेश में पूनम सत्ता पर काबिज होना है तो उन्हें अविलंब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सात-आठ दिसंबर को होने वाले गैरसैंण में प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में राजधानी गैरसैण को घोषित करने का ऐतिहासिक कार्य करने का निर्देश दें।
उत्तराखंड सरकार को अपने केंद्रीय नेतृत्व से सबक लेकर जन विरोधी कार्यों को वापिस लेकर देश प्रदेश के हित में कार्य करना चाहिए। देखना यह है कि कि जिस बेशर्मी से उत्तराखंड के नेता ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण को ऐतिहासिक कार्य बता कर जनता से विश्वासघात कर रहे हैं उसको सुधारने का काम करने का साहस जुटा पाते हैं या नहीं?