इस्लामी स्टेट खुरासान सहित सभी आतंकियों का आका है पाकिस्तान
देवसिंह रावतअमेरिका सेना ने दावा किया है कि 28अगस्त की तडके उन्होने 26 अगस्त को काबुल हवाई अड्डे पर आतंकी हमला कराने वाले इस्लामी इस्टे खुरासान के मुख्यालय नांगरहार (अफगानिस्तान) पर मानव रहित विमान से हमला करके मुख्य साजिशकत्र्ता को मौत के घाट उतार दिया है। इस हमले को अमेरिका का बदला लेना माना जा रहा है।
परन्तु अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका भले ही काबुल हवाई अडडे के हमले के मुख्य साजिशकर्ता को मार गिराने का दावा कर रहा है परन्तु अमेरिका जानबुझ कर काबुल हवाई अड्डे व अफगानिस्तान सहित दुनिया में तबाही मचा रहे आतंकियों के मुख्य आका पाक पर अंकुश नहीं लगा रहा है। जो इस्लामिक इस्टेट-खुराशान, तालिबान, जेश ए मुहम्मद, हक्कानी नेटवर्क, अलकायदा व लश्कर सहित तमाम इस्लामी आतंकी संगठनों का संरक्षण,पोषक, प्रशिक्षक व मार्गदर्शक है। बिना पाकिस्तान पर अंकुश लगाये आतंक पर अंकुश लगाने की लडाई छद्म है। निरर्थक है।
इसके साथ अमेरिका सहित विश्व समुदाय को को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अफगानिस्तान का अमन चैन तालिबान ने ग्रहण लगा रखा है। ऐसे में तालिबान के खिलाफ कोई कार्यवाही न करना और अफगानी समाज जो तालिबान के खिलाफ लडाई लड रहा है उसको सहयोग न देना एक प्रकार से तालिबान का समर्थन करके अफगानिस्तान की जनता के जख्मों में नमक छिड़कना ही है।
अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व समुदाय अगर अफगानिस्तानियों की मदद करना चाहता है या मानवता की रक्षा करना चाहता है तो तुरंत अफगान के सम्मान व मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे अफगानिस्तान के जांबाजों का समर्थन व सहयोग करे। अन्यथा यह शरणार्थी वाला कृत्य एक प्रकार से नाटक ही साबित होगा।
26 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के हवाई अड्डे पर रात्रि में आत्मघाति विस्फोटों से अफगानिस्तान सहित पूरा विश्व सहम गया।इस हमले से सो 170अधिक लोग मारे गये वहीं 1300 से अधिक लोग घायल हो गये। इस हमले की जिम्मेदारी आई एस आईएस खुराासान ने ली। इस आतंकी संगठन ने धमकी दी कि यह हमला अमेरिकी व उसके समर्थकों पर उसने किया। यही नहीं इस आतंकी संगठन ने ऐलान किया कि ऐसे हमले और किये जायेंगे।
इस हमले में 14 अमेरिकी सैनिक व नागरिक भी मारे गये। दो दर्जन के करीब घायल बताये जा रहे है। इन हमलों की आशंका हमेरिका व उसके मित्र राष्ट्र व तालिबान एक दो दिन से प्रकट कर रहे थे। अमेरिका की सत्ता पर काबिज तालिबान ने इन हमले के लिए अपने प्रतिद्धंदी संगठन आईएस आईएस खोराशान पर निशाना साधा। तालिबान ने जहां इस हमले की निंदा करते हुए विश्व समुदाय को आश्वासन भी दिया कि वह गुनाहकारों को हर हाल में दण्डित करेगा।
वहीं इस हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो वाइडेन ने उच्चस्तरीय बैठक कर ऐलान किया कि सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा और अमेरिका अपने जांबाजों के हत्यारों को हर हाल में सजा देगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने सेना को इन आतंकियों को सजा देने के लिए तैयारी करने का भी निर्देश दिया। वहीं ब्रिटेन सहित विश्व के तमाम संगठनों व देशों ने इस हमले की निंदा की।
परन्तु तालिबान ने इस हमले के बाद अमेरिका सहित सभी विदेशी सेना को 31 अगस्त तक दी गयी अपनी समय सीमा में एक दिन की कटौती करके उन्हें अब एक दिन पहले यानी 30 अगस्त तक अफगानिस्तान छोडने की चेतावनी दे डाली।
इस प्रकरण पर जहां अफगानिस्तान के कार्यकारी विद्रोही राष्ट्रपति साहेल ने दो टूक शब्दों में कहा कि तालिबान व आईएस आईएस अलग नहीं एक ही है। दोनों को पाक ने संरक्षित व दीक्षित किया हुआ है। इन दोनों को हक्कानी प्रमुख के द्वारा जोडा गया है। हक्कानी पर जहां अमेरिका 35 करोड रूपये का ईनाम घोषित किया है। वहीं तालिबान उसी हक्कानी प्रमुख को काबुल की सुरक्षा प्रमुख बनाता है।ऐसे खुंखार आतंकी प्रमुख की सरपरस्ती में अफगानिस्तान में बम धमाका ही होंगेेेेेेेेेेेेेे। अब भले ही तालिबान आईएस आई एस कोइस गुनाहगार बनाये परन्तु यह जग जाहिर है कि अलकायदा व आईएस आईएस के आतंकियों को अफगानिस्तान की जेल में से किसी और ने नहीं अपितु खुल तालिबान ने छुडवाया था। हक्कानी को काबुल का सुरक्षा प्रमुख व अफगानिस्तान के प्रमुख लोगों से मिलने की जिम्मेदारी भी तालिबान ने ही दी।
वहीं अफगान समस्या का समाधान सुलझाने के बजाय अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्र व संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व के समर्थ देश अपने स्वार्थो को प्राथमिकता देते हुए इसे उलझा रहे है। तमाम देश अफगानिस्तान से शरणार्थियों को निकालने व बसाने में ही अपना पूरा ध्यान लगाये हुए है। परन्तु एक भी देश ेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेइस समस्या का समाधान करने के लिए ईमानदारी से पहल नहीं कर रहे है। लोग तालिबान के पूर्व शासन से इतने त्रस्त व आतंकित है कि वे अपनी जान जोखिम में डाल कर भी अफगानिस्तान से विदेश जाना चाहते है। इसी लिए लाखों की संख्या में अफगानिस्तानी काबुल हवाई अड्डे की तरफ उमड रहे है। इससे आरजकता फैल गयी। आतंकी इसी आरजकता का लाभ उठज्ञ कर आतंकी यहां विस्फोट करने में सफल हो रहे है। संयुक्त राष्ट्र व अमेरिका की जिम्मेदारी यह थी कि वे यहां के शासकों पर लैगिक असामानता व भेदभ्ज्ञाव करने व दमन न करने के लिए दवाब डालते।संसार में ऐसा किसी भी देश में नहीं होने देते। तभी शरणार्थियों की समस्या का स्थाई निदान होता।
जब अमेरिका ने ईराक द्वारा एक दिन के लिए कुवैत पर हमला करने के लिए वहां पर था, उस पर संयुक्त राष्ट्र से दवाब भी लगवाया। परन्तु अफगानिस्तान मामले में केवल तमाशबीनी बने हुए है। इसी कारण वहां की स्थिति बिगडी है।
परन्तु अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका भले ही काबुल हवाई अडडे के हमले के मुख्य साजिशकर्ता को मार गिराने का दावा कर रहा है परन्तु अमेरिका जानबुझ कर काबुल हवाई अड्डे व अफगानिस्तान सहित दुनिया में तबाही मचा रहे आतंकियों के मुख्य आका पाक पर अंकुश नहीं लगा रहा है। जो इस्लामिक इस्टेट-खुराशान, तालिबान, जेश ए मुहम्मद, हक्कानी नेटवर्क, अलकायदा व लश्कर सहित तमाम इस्लामी आतंकी संगठनों का संरक्षण,पोषक, प्रशिक्षक व मार्गदर्शक है। बिना पाकिस्तान पर अंकुश लगाये आतंक पर अंकुश लगाने की लडाई छद्म है। निरर्थक है।
इसके साथ अमेरिका सहित विश्व समुदाय को को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अफगानिस्तान का अमन चैन तालिबान ने ग्रहण लगा रखा है। ऐसे में तालिबान के खिलाफ कोई कार्यवाही न करना और अफगानी समाज जो तालिबान के खिलाफ लडाई लड रहा है उसको सहयोग न देना एक प्रकार से तालिबान का समर्थन करके अफगानिस्तान की जनता के जख्मों में नमक छिड़कना ही है।
अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व समुदाय अगर अफगानिस्तानियों की मदद करना चाहता है या मानवता की रक्षा करना चाहता है तो तुरंत अफगान के सम्मान व मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे अफगानिस्तान के जांबाजों का समर्थन व सहयोग करे। अन्यथा यह शरणार्थी वाला कृत्य एक प्रकार से नाटक ही साबित होगा।
26 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के हवाई अड्डे पर रात्रि में आत्मघाति विस्फोटों से अफगानिस्तान सहित पूरा विश्व सहम गया।इस हमले से सो 170अधिक लोग मारे गये वहीं 1300 से अधिक लोग घायल हो गये। इस हमले की जिम्मेदारी आई एस आईएस खुराासान ने ली। इस आतंकी संगठन ने धमकी दी कि यह हमला अमेरिकी व उसके समर्थकों पर उसने किया। यही नहीं इस आतंकी संगठन ने ऐलान किया कि ऐसे हमले और किये जायेंगे।
इस हमले में 14 अमेरिकी सैनिक व नागरिक भी मारे गये। दो दर्जन के करीब घायल बताये जा रहे है। इन हमलों की आशंका हमेरिका व उसके मित्र राष्ट्र व तालिबान एक दो दिन से प्रकट कर रहे थे। अमेरिका की सत्ता पर काबिज तालिबान ने इन हमले के लिए अपने प्रतिद्धंदी संगठन आईएस आईएस खोराशान पर निशाना साधा। तालिबान ने जहां इस हमले की निंदा करते हुए विश्व समुदाय को आश्वासन भी दिया कि वह गुनाहकारों को हर हाल में दण्डित करेगा।
वहीं इस हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो वाइडेन ने उच्चस्तरीय बैठक कर ऐलान किया कि सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा और अमेरिका अपने जांबाजों के हत्यारों को हर हाल में सजा देगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने सेना को इन आतंकियों को सजा देने के लिए तैयारी करने का भी निर्देश दिया। वहीं ब्रिटेन सहित विश्व के तमाम संगठनों व देशों ने इस हमले की निंदा की।
परन्तु तालिबान ने इस हमले के बाद अमेरिका सहित सभी विदेशी सेना को 31 अगस्त तक दी गयी अपनी समय सीमा में एक दिन की कटौती करके उन्हें अब एक दिन पहले यानी 30 अगस्त तक अफगानिस्तान छोडने की चेतावनी दे डाली।
इस प्रकरण पर जहां अफगानिस्तान के कार्यकारी विद्रोही राष्ट्रपति साहेल ने दो टूक शब्दों में कहा कि तालिबान व आईएस आईएस अलग नहीं एक ही है। दोनों को पाक ने संरक्षित व दीक्षित किया हुआ है। इन दोनों को हक्कानी प्रमुख के द्वारा जोडा गया है। हक्कानी पर जहां अमेरिका 35 करोड रूपये का ईनाम घोषित किया है। वहीं तालिबान उसी हक्कानी प्रमुख को काबुल की सुरक्षा प्रमुख बनाता है।ऐसे खुंखार आतंकी प्रमुख की सरपरस्ती में अफगानिस्तान में बम धमाका ही होंगेेेेेेेेेेेेेे। अब भले ही तालिबान आईएस आई एस कोइस गुनाहगार बनाये परन्तु यह जग जाहिर है कि अलकायदा व आईएस आईएस के आतंकियों को अफगानिस्तान की जेल में से किसी और ने नहीं अपितु खुल तालिबान ने छुडवाया था। हक्कानी को काबुल का सुरक्षा प्रमुख व अफगानिस्तान के प्रमुख लोगों से मिलने की जिम्मेदारी भी तालिबान ने ही दी।
वहीं अफगान समस्या का समाधान सुलझाने के बजाय अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्र व संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व के समर्थ देश अपने स्वार्थो को प्राथमिकता देते हुए इसे उलझा रहे है। तमाम देश अफगानिस्तान से शरणार्थियों को निकालने व बसाने में ही अपना पूरा ध्यान लगाये हुए है। परन्तु एक भी देश ेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेइस समस्या का समाधान करने के लिए ईमानदारी से पहल नहीं कर रहे है। लोग तालिबान के पूर्व शासन से इतने त्रस्त व आतंकित है कि वे अपनी जान जोखिम में डाल कर भी अफगानिस्तान से विदेश जाना चाहते है। इसी लिए लाखों की संख्या में अफगानिस्तानी काबुल हवाई अड्डे की तरफ उमड रहे है। इससे आरजकता फैल गयी। आतंकी इसी आरजकता का लाभ उठज्ञ कर आतंकी यहां विस्फोट करने में सफल हो रहे है। संयुक्त राष्ट्र व अमेरिका की जिम्मेदारी यह थी कि वे यहां के शासकों पर लैगिक असामानता व भेदभ्ज्ञाव करने व दमन न करने के लिए दवाब डालते।संसार में ऐसा किसी भी देश में नहीं होने देते। तभी शरणार्थियों की समस्या का स्थाई निदान होता।
जब अमेरिका ने ईराक द्वारा एक दिन के लिए कुवैत पर हमला करने के लिए वहां पर था, उस पर संयुक्त राष्ट्र से दवाब भी लगवाया। परन्तु अफगानिस्तान मामले में केवल तमाशबीनी बने हुए है। इसी कारण वहां की स्थिति बिगडी है।