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“फूलदेई” पवित्र और हर्ष का पर्व, जाने इस दिन का दिनचर्या क्या होता

  • आप सभी को प्यारउत्तराखंड परिवार की ओर से सभी पाठको को फुलदेई की हार्दिक शुभकामनाएं। उत्तराखंड जो देवभूमि कहा जाता है वहाँ आज वसंत ऋतु के स्वागत का लोक पर्व फूलदेई मनाया जा रहा है।

  • चैत्र संक्रांति को मनाया जाने वाला यह पर्व प्रकृति व मानव के बीच जुड़ाव को दर्शाता है। आज के दिन सुबह सुबह घर के सभी बच्चे घर की देहरी(घर के दरवाजे के पास) को प्योंली , बुरांश, सरसों, आडू आदि रंगबिरंगे फूलों से सजाएंगे। सतरंगी फूल, चावल, कुमकुम से सजी टोकरी या थाली हाथ में लिए बच्चे एक साथ मिलकर बड़े मीठे मीठे स्वरों में फूल देई छम्मा देई का गान करते हुए जाते है।

  • फूलदेई से पहले के दिन की शाम को बच्चे टोकरी थैला लेकर पास के जंगल में जाकर विभिन्न प्रकार के फूल ले आते है जिसमे प्योंली,बुरांश, सिलपड़ी और सरसों आड़ू आदि के फल एकत्रित कर लेते है।

  • फूल देहि के दिन का दिनचर्या ( सच्ची जुबानी )

  • अगले दिन प्रातः सभी बच्चे एकत्रित होकर एक छोर से गांव के घरो में फूल की टोकरी लेकर जाते है और आँगन में पहुँचते ही “फूल फूल माई दे बूढ़ेई सप्पे खज्जा” जिसका हिंदी में अनुवाद होता है की हमारा प्यारा सा फूल लो माता जी और हमे अपने घर के चावल हमारी सभी भाई बहनो के नाम का दे दो। इसलिए जिस बच्चे के भाई बहन घर पर मौजूद नहीं होते उनके छोटे भाई बहन उनके नाम का कटोरा डोना ले जाकर उनके नाम का भी चावल माता जी से माँगते है।

  • लेकिन बचपना बच्चो का इतना होता है की बच्चे दूर दूर के भाई बहनो के नाम पर चावल मांगते है और माता जी परेशान हो जाती है की कौन सा बच्चा किसके नाम पर ले गया चावल। बच्चे फिर एक दूसरे को चिढ़ाते है की मेरी टोकरी में जयदा चावल हो गए फिर कभी कभी एक दूसरे क उसमे से निकाल भी देते है। और अंत में बच्चे गांव के मंदिर में जाकर वह के महाराज जी से टिका लगा कर शिवरात्रि के दिन लोगो द्वारा दिए चुवा (भुना रामदाना ) और चावल पाकर बड़े आनंदित होते है।

  • इसकी दीवानगी और मान्यता आप इसी अंदाजे से लगा सकते है की उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री नन्हे बच्चो के साथ फूलदेई पर्व मन कर कितने प्रफुलित है उनकी ये तस्वीरें आपको भली भांति बताती नजर आ रही है।

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उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों पर छाया फूलदेई पर्व

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