अमेरिकी सरकार की पोषित संस्था फ्रीडम हाउस ने भारत को आंशिक स्वतंत्र देश बता कर खुद को किया बेनकाब , भारत सरकार ने रिपोर्ट को सिरे से खारिज किया
– देवसिंह रावत
विश्व लोकशाही के प्रखर ध्वजवाहक देवसिंह रावत ने अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस की भारत विरोधी डेमोक्रेसी अंडर सीज वाली रिपोर्ट को भारत के खिलाफ एक खौपनाक गंभीर षडयंत्र बताते हुए भारत सरकार को इसे हल्के में न लेते हुए इस भारत विरोधी कृत्य के लिए प्रधानमंत्री मोदी को तुरंत अमेरिका के राष्ट्रपति से अपना कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए इस संस्था पर अंकुश लगाने को कहना चाहिए।
फ्रीडम संस्था को कटघरे में खडा करते हुए श्री रावत ने कहा कि अमेरिका की यह संस्था को लोकशाही व मानवाधिकारों पर अगर ईमानदारी से काम करने की मंशा रहती तो वह सबसे पहले भारत को नहीं अपितु खुद अपने देश अमेरिका को आईना दिखाती। अमेरिका के सर्वोच्च संस्थान केपिटल हिल में जिस प्रकार से राष्ट्रपति चुनावों के बाद संगठित हमला हुआ और अमेरिका में नस्लभेद का हिंसक संघर्ष निरंतर चल रहा है उस पर इस तथाकथित लोकशाही की ध्वजवाहिका का शर्मनाक मौन से हय संस्था खुद बेनकाब हो गयी है। यह संस्था कुल मिला कर अमेरिकी प्रशासन की मंशा को ही उजागर करती है और शासन के कलुषित छुपे ऐजेन्डे का साफ संकेत भी देती है।
अमेरिकी प्रशासन को आगाह करना चाहिए कि ऐसे नापाक हरकतों से अमेरिका के साथ भारतीय संबंधों पर भारी कुप्रभाव पडेगा। अमेरिका को साफ शब्दो में बता देना चाहिए कि ऐसे कृत्यों को भारत किसी भीसूरत में बर्दास्त नहीं करेगा। यह सब रिपोर्ट न केवल असत्य है अपितु अमेरिका व भारतीय संबंधों को ध्वस्थ करने के लिए भारत विरोधी चीन व पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को मजबूत करने वाली है। खासकर अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन के सत्तासीन होने के बाद भारत विरोधी ताकतें निरंतर भारत व अमेरिका के सांझे हितों पर कुठाराघात कर रही है। भारत सरकार को इस रिपोर्ट को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इस मामले को शीर्ष स्तर पर उठा कर भारत विरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए दो टूक शब्दों में विरोध करना चाहिए।
श्री रावत ने कहा कि भारत सरकार को इस रिपोर्ट को हल्के में नहीं लेना चाहिए। क्योंकि यह संस्था सामान्य संस्था नहीं अपितु अमेरिका सरकार का मार्गदर्शक भी है। ‘फ्रीडम हाउस’ अमेरिकी सरकार द्वारा पोषित एक गैर सरकारी संगठन है। यह लोकशाही के लिए समर्पित अनुसंधान संस्थान के साथ मार्ग दर्शक भी है। यह विश्व के देशों में लोकशाही, राजनैतिक स्वतंत्रता व मानवाधिकार की स्थिति को देख कर उसका मूल्यांकन करता है। 1941 में स्थापित इस संस्था का मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है। अपने स्रोतो से इस 3.09 करोड़ अमेरिकी डालर की भारी कमाई होती है। एक प्रकार से यह संस्था अमेरिकी हितों के प्रसारक का ही कार्य करती है। दुनिया के अधिकांश देश इस संस्था पर पक्षपाती आरोप लगाने व दूसरे देश की छवि बिगाडने का आरोप भी लगाते है। इसी सप्ताह इस संस्था ने भारत के बारे में ऐसी भ्रामक व सत्य से विपरित रिर्पोट भारत में धार्मिक, राजनैतिक स्वतंत्रता व मानवाधिकारों के साथ पत्रकारों के दमन के दुराग्रही रिपोर्ट बना कर सत्तारूढ़ मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए भारत को एक स्वतंत्र देश के रूप में दर्जा घटा कर आंशिक रूप से स्वतंत्र देश बताया। जिसे भारत सरकार ने आज 5 मार्च को सिरे से खारिज करते हुए इस संस्था की रिर्पोट को पूरी तरह से भ्रामक, गलत और अनुचित बताया।
हालांकि भारत सरकार ने आज ही अमेरिकी संस्था के इस रिर्पोट का कडा विरोध किया। परन्तु जिस स्तर पर यह विरोध किया जाना चाहिए उस स्तर पर व उस निर्ममता से नहीं किया गया जिसकी जरूरत है। खासकर जिस प्रकार से भारत विरोधी तत्व अमेरिका व उसके मित्र देशों कनाड़ा, ब्रिटेन इत्यादि देशों में बेठ कर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं उससे साफ हो गया कि कहीं न कहीं इसको अमेरिका की ही शह है। हालांकि सोवियत संघ के विखराव के बाद अमेरिका ने भारत की तरफ दोस्ती का भी हाथ बढ़ाया हुआ है परन्तु उसने अपने भारत विरोधी नापाक मंसूबों को अभी बंद नहीं किया। इसलिए भारत सरकार को चाहिए कि वह इस मामले को हल्के में न लेते हुए अमेरिका को अपने जीवंत देश होने का दो टूक संदेश दे।
आज 5 मार्च को भारत सरकार ने इस संस्था की रिपोर्ट का खंडन किया। पसूकाभास द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार भारत सरकार ने साफ शब्दों में संस्था को आरोपों को इन शब्दों में नकारा
फ्रीडम हाउस की “डेमोक्रेसी अंडर सीज” शीर्षक वाली रिपोर्ट, जिसमें दावा किया गया है कि एक स्वतंत्र देश के रूप में भारत का दर्जा घटकर “आंशिक रूप से स्वतंत्र” रह गया है, पूरी तरह भ्रामक, गलत और अनुचित है।
यह बात इस तथ्य से जाहिर होती है कि केन्द्र में मौजूद राजनीतिक दल से इतर दूसरे दल भारत के कई राज्यों में संघीय ढांचे के तहत एक चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से सत्ता में आए हैं। ये चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हुए थे, जिन्हें एक स्वतंत्र संस्था द्वारा कराया गया था। इससे एक जीवंत लोकतंत्र की उपस्थिति का पता चलता है, जो विभिन्न विचारों वालों को स्थान देता है।
इन विशेष बिंदुओं का खंडन किया जाता है :-
- भारत में मुसलमानों और उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के खिलाफ बनाई गई भेदभावपूर्ण नीति – भारत सरकार अपने सभी नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करती है, जैसा देश के संविधान में निहित है और बिना किसी भेदभाव के सभी कानून लागू हैं। आरोपी भड़काने वाले व्यक्ति की पहचान को ध्यान में रखे बिना, कानून व्यवस्था के मामलों में कानून की प्रक्रिया का पालन किया जाता है। जनवरी, 2019 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के विशेष उल्लेख के साथ, कानून प्रवर्तन मशीनरी ने निष्पक्ष और उचित तरीके से तत्परता से काम किया। हालात को नियंत्रित करने के लिए समानता के साथ और उचित कदम उठाए थे। प्राप्त हुई सभी शिकायतों/ कॉल्स पर कानून प्रवर्तन मशीनरी ने कानून और प्रक्रियाओं के तहत आवश्यक कानूनी और निरोधक कार्रवाई की थीं।
- देशद्रोह कानून का उपयोग – भारत के शासन के संघीय ढांचे के तहत ‘सरकारी आदेश’ और ‘पुलिस’ राज्य के विषय हैं। अपराधों की जांच, दर्ज करना और मुकदमा, जीवन और संपत्ति की रक्षा आदि सहित कानून व्यवस्था बनाये रखने का दायित्व मुख्य रूप से राज्य सरकारों के पास है। इसलिए, कानून प्रवर्तन प्राधिकरणों द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था की रक्षा के लिए सही कदम उठाए गए थे।
- लॉकडाउन के माध्यम से कोविड-19 पर सरकार की प्रतिक्रिया –16 मार्च से 23 मार्च के बीच ज्यादातर राज्य सरकारों/ संघ शासित क्षेत्रों ने कोविड-19 के आकलन के आधार पर अपने संबंधित राज्यों/ संघ शासित क्षेत्र में आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया था। लोगों की किसी प्रकार की व्यापक आवाजाही से देश भर में तेजी से यह बीमारी फैल सकती थी। इन तथ्यों, वैश्विक अनुभव और रणनीति में तात्कालिकता की जरूरत व देश भर में विभिन्न रोकथाम के उपायों के कार्यान्वयन को ध्यान में रखते हुए, एक देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया था। सरकार इस बात को लेकर पूरी तरह सतर्क थी कि लॉकडाउन के दौरान, लोगों को बेवजह संकट का सामना नहीं करना चाहिए। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने हालात से निपटने के लिए ये कदम उठाए; (1) भारत सरकार ने खाद्य पदार्थ, स्वास्थ्य, निराश्रितों और प्रवासी कामगारों को आश्रय उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकारों को राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) के इस्तेमाल की अनुमति दे दी (2) सरकार ने प्रवासी कामगारों को नियंत्रित क्षेत्रों के बाहर विभिन्न गतिविधियों से जोड़े जाने की अनुमति दे दी, जिससे उनके लिए आजीविका सुनिश्चित हुई (3) सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रुपये के एक राहत पैकेज की भी घोषणा की, जिसमें प्रवासी कामगारों को भी शामिल किया गया (4) सरकार ने अपने गांवों में लौट रहे प्रवासी कामगारों के लिए रोजगार और आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए एक अभियान लॉन्च किया (5) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के अंतर्गत नवंबर, 2020 तक लगभग 80 करोड़ लाभार्थियों को हर महीने मुफ्त में 5 किलोग्राम गेहूं या चावल, 1 किलोग्राम दाल उपलब्ध कराई गई (6) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत दैनिक मजदूरी बढ़ा दी गई, जिसमें वापस लौटने वाले प्रवासी कामगारों को भी शामिल किया गया। लॉकडाउन अवधि से सरकार को मास्क, वेंटिलेटर, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट आदि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने और इससे प्रभावी रूप से महामारी के प्रसार को रोकने का मौका मिला। प्रति व्यक्ति आधार पर भारत में कोविड-19 के सक्रिय मामलों की संख्या और कोविड-19 से जुड़ी मौतों के मामले में वैश्विक स्तर पर सबसे कम दर में से एक रही।
- मानवाधिकार संगठनों पर सरकार की प्रतिक्रिया – भारतीय संविधान मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मानवाधिकार सुरक्षा अधिनियम, 1993 सहित विभिन्न कानूनों के तहत पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराती है। यह अधिनियम मानवाधिकारों के बेहतर संरक्षण और इस विषय से जुड़े मसलों के लिए एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों के गठन का प्रावधान करता है। राष्ट्रीय आयोग की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करते हैं और पूछताछ, जांच के एक तंत्र के रूप में काम करता है तथा ऐसे मामलों में सिफारिश करता है जहां उसे लगता है कि देश में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
- शिक्षाविदों और पत्रकारों को धमकी व मीडिया द्वारा व्यक्त असंतोष की अभिव्यक्ति पर अंकुश – भारतीय संविधान अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रावधान करता है। चर्चा, बहस और असंतोष भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा है। भारत सरकार पत्रकारों सहित देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च अहमियत देती है। भारत सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा पर राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को विशेष परामर्श जारी करके उनसे मीडिया कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानून लागू करने का अनुरोध किया है।
- इंटरनेट शटडाउन –दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात और लोक सुरक्षा) नियम, 2017 के प्रावधानों के तहत इंटरनेट सहित दूरसंचार सेवाओं का अस्थायी निलंबन किया जाता है, जिसे भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के अंतर्गत जारी किया गया है। इस अस्थायी निलंबन के लिए केन्द्र सरकार के मामले में गृह मंत्रालय में भारत सरकार के सचिव; या राज्य सरकार के मामले में गृह विभाग के प्रभारी सचिव की अनुमति की जरूरत होती है। इसके अलावा, ऐसे किसी आदेश की समीक्षा एक निश्चित समय अवधि के भीतर केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा, क्रमशः भारत सरकार के कैबिनेट सचिव या संबंधित राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी समीक्षा समिति द्वारा की जाती है। इस प्रकार, सख्त सुरक्षा उपायों के तहत कानून व्यवस्था बनाए रखने के व्यापक उद्देश से दूरसंचार/इंटरनेट सेवाओं के अस्थायी निलंबन का सहारा लिया जाता है।
- एफसीआरए संशोधन के तहत एमनेस्टी इंटरनेशनल की संपत्तियां जब्त किए जाने से रैंकिंग में आई गिरावट – एमनेस्टी इंटरनेशनल को एफसीआरए अधिनियम के तहत सिर्फ एक बार और वह भी 20 साल पहले (19 दिसंबर 2000) में अनुमति मिली थी। तब से एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा बार-बार आवेदन के बावजूद बाद की सरकारों ने एफसीआरए स्वीकृति देने से इनकार कर दिया, क्योंकि कानून के तहत वह ऐसी स्वीकृति हासिल करने के लिए पात्र नहीं थी। हालांकि, एफसीआरए नियमों को दरकिनार करते हुए एमनेस्टी यू. के. भारत में पंजीकृत चार इकाइयों से बड़ी मात्रा में धनराशि ले चुकी है और इसका वर्गीकरण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में किया गया। इसके अलावा एमनेस्टी को एफसीआरए के अंतर्गत एमएचए की मंजूरी के बिना बड़ी मात्रा में विदेशी धन प्रेषित किया गया। दुर्भावना से गलत रूट से धन लेकर कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया।एमनेस्टी के इन अवैध कार्यों के चलते पिछली सरकार ने भी विदेश से धन प्राप्त करने के लिए उसके द्वारा बार-बार किए गए आवेदनों को खारिज कर दिया था। इस कारण पहले भी एमनेस्टी के भारतीय परिचालन को निलंबित कर दिया गया था।