अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति के बिना न भारत में लोकशाही व आजादी का सूर्योदय होगा व न हीं भारतीय भाषाओं/मातृभाषा का होगा विकास
नई दिल्ली(प्याउ)।
आज 21 फरवरी 2021 को एक तरफ जहां भारत सहित पूरा विश्व (पाकिस्तान को छोड़कर) अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रहा है। वहीं विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक व विश्व की सबसे प्राचीन-समृद्ध बहुभाषाई देश भारत में अंग्रेजों से मुक्ति पाने के बाबजूद आज 74 साल बाद भी पूरी व्यवस्था उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व उनके द्वारा थोपे गये नाम इंडिया का ही गुलाम बनाया गया है। आजाद होते ही देश की पूरी व्यवस्था भारतीय भाषाओं के द्वारा संचालित होनी चाहिए थी। देश को अपना नाम भारत के नाम से जाना जाना चाहिए था। परन्तु गुलामी के ही रंगे में रंगे पंचमी कहारों ने भारत को बेशर्मी से अंग्रेजी व इंडिया का गुलामी बना कर भारत की लोकशाही, आजादी व संस्कृति को जमीदोज कर दिया है। संसार की सबसे समृद्ध व वैज्ञानिक भाषायें होने के बाबजूद भारत में आज भी न्याय, शिक्षा, रोजगार व शासन पर एकाधिकार अंग्रेजी का ही है। पूरा विश्व आज भी भारत के अपने नाम से अनजान हैं और वह इंडिया के नाम से हमें जानता है।
अंग्रेजी दासता से मुक्ति होने के 74 साल बाद भी अंग्रेजी की दासता के कारण दम तोड़ती भारतीय भाषाओं को बचाने के लिए भारतीय भाषा आंदोलन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन देकर गुहार लगाई। भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने बताया कि भारतीय भाषा आंदोलन भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने तथा भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए 21 अप्रेल 2013 से सतत सत्याग्रह कर रहा है। परन्तु सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है।
जबकि देश में शांतिपूर्ण आंदोलनों के बेशर्मी से नजरांदाज करने वाली सरकारों व लोकशाही के तथाकथित चोथे स्तम्भ समाचार जगत के सामने ही भारतीय भाषा आंदोलन ने संसद की चैखट से प्रधानमंत्री कार्यालय तक ऐतिहासिक आंदोलन किया।
(क) -21 अप्रैल 2013 से इसी मांग को लेकर जंतर मंतर पर अखण्ड धरना (खद्ध30 अक्टूबर 2018 हरित अधिकरण(ग्रीन ट्रिव्यनलª) की आड़ में सरकार ने जंतर मंतर पर चल रहे इस ऐतिहासिक धरने सहित अन्य आंदोलनों को रौदने व प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया।
(ख) – पुलिस प्रशासन द्वारा न्यायालय व आंदोलनकारियों को गलत गुमराह किया कि आंदोलन स्थल रामलीला मैदान बनाया गया। जबकि वहां कोई स्थान नियत नहीं किया गया। आंदोलनकारियों ने रामलीला मैदान में धरना देने की कोशिश की तो वहां पर कोई स्थान तय नहीं किया गया। उसके बाद आंदोलनकारी महिनों तक शहीदी पार्क पर आंदोलनरत रहे परन्तु पुलिस ने वहां पर भी परेशान किया।
(ग) 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन का धरना प्रारम्भ (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जंतर मंतर व वोट क्लब पर आंदोलन करने की इजाजत जारी करने के बाद) पर एक पखवाडे बाद ही दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के अधिकारी द्वारा उत्पीड़न किये जाने के बाद धरना स्थगित ।
(घ) 28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 तक हर कार्यदिवस पर सर्दी, वर्षा व गर्मी के साथ पुलिसिया दमन को दरकिनारे करके हर कार्य दिवस पर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा व ज्ञापन सौंपने का ऐतिहासिक आजादी का आंदोलन किया।18 मार्च को चुनाव आचार संहिता लगने पर नयी सरकार के गठन तक आंदोलन जारी पर पदयात्रा स्थगित।
(ड़) 30 मई 2019 को नयी सरकार के गठन के बाद 1 जून 2019 से पुन्न जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर कार्य दिवस पर पद यात्रा कर ज्ञापन देने का आंदोलन 19 मार्च 2020 तक किया। 20 मार्च 2020 से वैश्विक महामारी कोरोना के प्रकोप को देखते हुए आज तक हर दिन प्रधानमंत्री मोदी को इंटरनेटी माध्यम से इस आशय का ज्ञापन दिया जा रहा है।
आज 21 फरवरी को भी प्रधानमंत्री मोदी से पुन्न गुहार लगायी। भारतीय भाषा आंदोलन ने अंग्रेजी की गुलामी से दम तोड़ रही भारतीय भाषाओं, देश के नाम, संस्कृति व देश की लोकशाही की रक्षा के लिए 21 अप्रैल 2013 से संसद की चैखट जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक के अपने ऐतिहासिक आंदोलन का भी स्मरण कराया।
उल्लेखनीय है कि आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है। वर्ष 1999 में आज के ही दिन संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – यूनेस्को ने 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में घोषित किया था।
इस वर्ष थीम है- शिक्षा और समाज में समावेशन के लिए बहुभाषिता को बढ़ावा देना।
शहीद मीनार , ढाका मेडिकल कॉलेज कैम्पस, बांग्लादेश में स्थित शहीद स्मारक ,21 फरवरी 1952 पर बांग्ला (बंगाली ) भाषा के लिए बलिदान की स्मृति। इसको बाद में पूरे विश्व ने अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के आधिकारिक नाम से स्वीकार किया।
इसका उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना।
मातृभाषा दिवस हर साल 21 फरवरी को मनाया जाता है। 17 नवंबर (नवम्बर), 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी।
इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।
यूनेस्को द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस (बांग्ला भाषा आन्दोलोन दिबॉश) को अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।
2008 को अन्तरराष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहराया है।
उल्लेखनीय है कि इसी दिन 1952 में ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तानी हुक्मरानों से अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया था। यह विरोध प्रदर्शन बहुत को कुचने के लिए पाकिस्तान ने पुलिसिया दमन से 16 लोगों का नरसंहार किया। भाषा के इस बड़े आंदोलन में शहीद हुए लोगों की याद में 1999 में यूनेस्को ने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी। बांग्ला भाषा बोलने वालों के मातृभाषा के लिए को बचाने के लिए जो बलिदान दिया उसी को नमन करते हुए पूरा विश्व आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रहा है। यूनेस्को के मुताबिक दुनियाभर में 6000 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं। भारत में 1652 भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से 50 करोड़ से अधिक लोगों की मातृभाषा हिंदी है। भारत में 29 भाषाएं ऐसी हैं उनको बोलने वालों की संख्या 10 लाख से ज्यादा है। भारत में 7 भाषाएं सी बोली जाती है, जिनको बोलने वालों की संख्या एक लाख से ज्यादा है। भारत में 122 ऐसी भाषाएं हैं, जिनको बोलने वालों की संख्या 10 हजार से ज्यादा है।
भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने देशवासियों को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए आशा प्रकट की है कि
यह दिवस हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करता है। गृहमंत्री ने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा का अधिकतम उपयोग करना चाहिए व बच्चों में अपनी संस्कृति की नींव को मजबूत करने के लिए मातृभाषा के ज्ञान संस्कार से पल्लवित करना चाहिए। गृहमंत्री सहित देश के सभी मंत्रियों, जनप्रतिनिधियों सहित अनैक भाषा प्रेमियों ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की शुभकामनाएं दी । परन्तु हैरानी की बात तो यह है कि सभी भारतीय इस बात को जानते हुए भी नजरांदाज कर रहे हैं कि आज भी भारत अंग्रेजी व इंडिया की गुलाम बना हुआ है। देश की मातृभाषाओं को बढ़ावा देने की बात तो रही दूर यहां संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त भारतीय भाषाओं में न्याय, रोजगार, शिक्षा व शासन नहीं मिलता। इस पर एकाधिकार उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का है जिन्होने भारत को दो शताब्दियों तक गुलाम बनाया, अरबों खरबों की सम्पति लूटी, लाखों माॅ भारती के सपूंतों का कत्लेआम किया। यही नहीं इन्हीं अंग्रेजों ने भारतीय भाषाओं, संस्कृति को जमीदोज करने के लिए 1835 में इंग्लिश एजूकेशन एक्ट को थोपा। जिससे शिक्षा, न्याय, शासन व रोजगार में भारतीय भाषायें बाहर कर दी गयी। यही नहीं भारतीय चिकित्सा पद्धतियों पर प्रतिबंधित की गयी। भारतीय इतिहास व गौरव को रौंदने का कृत्य किया गया। जिसे अंग्रेजों के जाने के 74 साल बाद भी भारतीय हुक्मरानों ने राष्ट्रमण्डल देश का कलंक सर माथे पर लगाये रख कर उसी अंग्रेजी भाषा की गुलामी ढो कर भारतीय मूल्यों को रौंदने का कृत्य कर रहे है। देश में अंग्रेजी की अनिवार्यता पूरी तरह हटनी चाहिए तभी भारतीय भाषाओं व मातृभाषा का विकास होगा और देश में लोकशाही व आजादी का सूर्योदय होगा। इसी के लिए भारतीय भाषा सतत् संघर्ष कर रहा है।