मुम्बई पर आतंकी हमले के गुनाहगार को अमेरिका की तरह सजा क्यों नहीं दे पाया भारत
देव सिंह रावत
आज एक तरफ भारत 26 नवम्बर 2008 को पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा मुंबई में हुए जघन्य आतंकी हमले की बरसी पर शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा था वहीं दूसरी तरफ भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के श्रीनगर में पाकिस्तानी आतंकियों के कायराना हमले में 2 जवान शहीद हो गए । लोगों के जेहन में एक ही सवाल रह रह के उठ रहा है कि आखिर पाकिस्तानी आतंक पर अंकुश नहीं लगाया जा सका? लोगों का सवाल हवाई नहीं अपितु जायज भी है जब वर्षों पहले पाक प्रशिक्षित संरक्षित आतंकियों ने अमेरिका के पर 9/11 को भीषण हमला किया था। अमेरिका ने उस आतंकी हमले का ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया कि फिर आतंकियों की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वह अमेरिका की तरफ आंख उठाकर आतंकी हमले का साहस भी जुटा पाए।
अमेरिका ने न केवल इस आतंकी हमले का को अंजाम देने वाले आतंकियों के आका ओसामा बिन लादेन को जमींदोज किया अभी तू अफगानिस्तान में इस हमले के लिए दोषी माने जा रहे हैं तालिबानी सरकार को भी उखाड़ फेंका।
अमेरिका ने भारत की तरह आतंकी हमलों के सबूत दुनिया को दिखाते नहीं फिरा। अपितु अमेरिका ने सीधे आतंकी सर परस्तों पर प्रहार किया।
वहीं भारत यह जानते हुए भी कि इन आतंकी घटनाओं के पीछे सीधा हाथ पाकिस्तान का है भारत ने पाकिस्तान से न संबंध विच्छेद किए व नहीं उसे आतंकी व शत्रु राष्ट्र की घोषित किया।
पाकिस्तान को अमेरिका की तर्ज में मुंहतोड़ जवाब देने का भी कदम नहीं उठाया गया। भारत इंतजार ही करता रहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ या अमेरिका आदि कोई देश पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित करें। परंतु वह खुद पाकिस्तान को आतंकी देश व शत्रु राष्ट्र घोषित करने से बचता रहा।
अपितु पाकिस्तान को मित्र राष्ट्र का दर्जा बरकरार रखा। यह मित्र राष्ट्र का दर्जा भी सरकार ने तब हटाया जब पुलवामा मैं पाकिस्तानी आतंकियों ने जघन्य कांड किया।
26नवंबर 2008 में मुंबई में
हुए आतंकवादी हमले में पाकिस्तान स्थित एक इस्लामी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के मुंबई में 10 सदस्यों ने मुंबई में चार दिन तक चलने वाली 12 समन्वय शूटिंग और बम विस्फोट की एक श्रृंखला को अंजाम दिया।
हमले जिनकी व्यापक रूप से वैश्विक निंदा की गई बुधवार, २६ नवंबर को शुरू हुए और शनिवार, २९ नवंबर २००८ तक चले, १५५ मासूम लोगों की मौत हो गई और कम से कम ३०८ मासूम घायल हो गए।
छत्तीपति शिवाजी टर्मिनस, ओबेरॉय ट्राइडेंटख्, ताज पैलेस एंड टॉवर, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल, नरीमन हाउस यहूदी समुदाय केंद्र, मेट्रो सिनेमा और टाइम्स ऑफ इंडिया बिल्डिंग और सेंट जेवियर कॉलेज के पीछे एक लेन में आठ हमले हुए। मुंबई के बंदरगाह क्षेत्र में माजगाव में और विले पार्ले में एक टैक्सी में एक विस्फोट हुआ था। 28 नवंबर की सुबह तक, ताज होटल को छोड़कर सभी साइटों को मुंबई पुलिस विभाग और सुरक्षा बलों द्वारा सुरक्षित किया गया था। 29 नवंबर को, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) ने शेष हमलावरों को फ्लश करने के लिए श्ऑपरेशन ब्लैक टोर्नेडोश् का आयोजन किया। यह ताज होटल में अंतिम शेष हमलावरों की मौत के साथ समाप्त कर दिया। इस आतंकी हमले में दबोचे गये जीवित आतंकी अजमल कसाब ने खुलासा किया कि हमलावर अन्य लोगों के बीच लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य थे। भारत सरकार ने कहा कि हमलावर पाकिस्तान से आए और उनके नियंत्रक पाकिस्तान में थे। 7 जनवरी 2009 को, पाकिस्तान ने इस बात की पुष्टि की कि हमलों का एकमात्र जीवित अपराधी पाकिस्तानी नागरिक था।
इस हमले से न केवल भारत स्थित पूर्व विश्व स्तर तो हो गया कई देशों के नागरिक इस हमले की शिकार बने पूरे विश्व में पाकिस्तान एक प्रकार से बेनकाब हो गया परंतु भारत जिसे अमेरिका की तर्ज पर आतंक की कमर तोड़ने वाला प्रहार करना था वह केवल दुनिया को सबूत दिखाने तक ही सीमित रहा इस कारण न केवल आतंकी पाकिस्तान का दुस्साहस बड़ा अपितु उस ने भारत में निरंतर आतंकी हमले की संसद पर आतंकी हमला हो या मुंबई में आतंकी हमला, पठानकोट में आतंकी हमला हो यह कश्मीर में आतंकी हमला,
उरी में आतंकी हमला हो या पुलवामा में आतंकी हमला, आतंकी हमलों के पीछे अगर कोई खड़ा है तो वह पाकिस्तान अगर पाकिस्तान को अमेरिका की तर्ज पर कड़ा सबक सिखाया जाता समय पर दंडित किया जाता तो पाकिस्तान की आज हिम्मत नहीं रहती कि वह भारत की तरफ आंख उठाने का भी तो साहस कर सकें।
भारत की इसी उदासीनता का लाभ उठाकर पाकिस्तान ने न केवल भारत को आतंक से छलनी कर दिया अपितु भारत के अंदर छिपे हुए आस्तीन के सांपों को पोषित करके भारत की अमन-चैन पर ग्रहण लगा दिया है।
भले ही भारत पाकिस्तानी आतंक से त्रस्त है परंतु आज भी अगर भारत अमेरिका की तरह कड़े निर्णय लेकर पाकिस्तानी आतंक का सर कुचल दे तो
पाकिस्तान फिर भारत की तरफ आंख उठाने का साहस भी नहीं जुटा पाता।
भारतीय हुक्मरानों की भारत की रक्षा के प्रति कितनी उदासीनता है यह 26 /11 के आतंकी हमलों के बाद हुए पठानकोट के हमलों से उजागर हो गया।