विक्टोरिया पदक सम्मानित दरवान सिंह नेगी के पैतृक गांव कफातीर में वीरता दिवस का आयोजन
प्यारा उतराखण्ड डाट काम
प्रथम विश्व युद्ध के महान योद्धा वीसी दरवान सिंह नेगी को विश्व को अचम्भित करने वाली उनकी महान वीरता दिवस पर 23 नवम्बर को उनके पैतृक गांव कफातीर में भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। इस वीरता दिवस कार्यक्रम का आयोजन उनके गांव में किया गया। इसमें उनके गांव के लोगों के अलावा बड़ी संख्या में समाजसेवियों ने भाग लेकर प्रथम विश्व युद्ध के महान वीर दरवान सिंह नेगी की वीरता का स्मरण कर उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस समारोह में मुख्य अतिथि जिला पंचायत उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह रावत वसेवानिवृत्त कर्नल हरेंद्र सिंह रावत ने दरवानसिंह नेगी जी को संसार का महान योद्धा बताते हुए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की ।
श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में जनपद चमोली के वरिष्ठ भाजपा नेता पुरूषोतम शास्त्री, कोठुलेश्वर महादेव के श्रीमहंत खीमा भारती जी महाराज, देश के अग्रणी क्रांतिकारी समाजसेवी अध्यापक बलवंत सिंह नेगी,सैनिक कल्याण समिति के सतपाल सिंह नेगी सहित बड़ी संख्या में कडाकोट पट्टी के जनप्रतिनिधी व समाजसेवी उपस्थित थे।
उल्लेखनीय है कि प्रथम विश्व युद्ध में 23-24 नवम्बर 1914 की रात को फ्रंास के फस्तुबर्त के युद्ध मोर्चे में जर्मन की फोजो के दांत खटटे करके मित्र राष्ट्रों का परचम लहराने वाले 39वीं गढवाल राइफल्स की 1वीं बटालियन के नायक दरवान सिंह नेगी की वीरता से बिट्रेन के सम्राट ने स्वयं उनको युद्ध मोर्चे में सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया।
दरवान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च 1883 को भारत के कफातीर गांव(चमोली उतराखण्ड) में हुआ था। प्रथम विश्वयुद्ध दौरान वह 39वीं गढ़वाल राइफल्स की 1ली बटालियन में नायक (कॉरपोरल पद के समकक्ष) थे।
23 की रात से 24 नवंबर 1914 को उनकी रेजिमेंट फेस्तुबर्त के निकट दुश्मन से ब्रिटिश खाईयों को वापस हासिल करने का प्रयास कर रही थी। दो बार सिर और बांह में घाव लगने और राइफलों की भारी गोली-बारी और बमों के धमाके के बीच होने के बावजूद दरवान सिंह नेगी उन प्रथम सैनिकों में थे, जिन्होंने खाइयों में घुसकर उन्हें जर्मन सैनिकों से मुक्त कराया। दरवान सिंह नेगी को उनकी अनुपम वीरता के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया, उनकी प्रशस्ति में लिखा है।
23-24 नवंबर की रात, फ्रांस के फेस्तुबर्त के निकट जब रेजिमेंट दुश्मन से अपनी खाइयों को वापस लेने का प्रयास कर रही थी उस दौरान, और दो बार सिर और बांह में घाव लगने और निकट से हो रही राइफलों की भारी गोली-बारी और बमों के धमाके के बीच होने के बावजूद खाइयों में घुसकर उन्हें जर्मन सैनिकों से मुक्त कराने में दिखाई गई उनकी अनुपम वीरता के लिए।
बाद में वह सूबेदार पद (कैप्टन के समकक्ष) से भारतीय सेना से सेवामुक्त हुए। दरवान सिंह नेगी की मृत्यु 1950 में हुई। उत्तराखंड के लैंसडाउन स्थित गढ़वाल राइफल्स के रेजिमेंटल म्यूजियम का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है।
उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी उनकी जयंती पर उनके सम्मान में उनके पैतृक गांव में आयोजित सम्मारोह में गत वर्ष भाग लिया था। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कई योजनाओं की भी घोषणा की थी। इन घोषणाओं के अभी तक पूरा ना होने से क्षेत्र की जनता की स्तब्ध थी। इस अवसर पर सभी वक्ताओं ने प्रदेश के मुख्यमंत्री व स्थानीय विधायक से उक्त घोषणाओं को साकार करने का पुरजोर अनुरोध किया।
इस अवसर पर अध्यक्ष लखपत सिंह नेगी सहित समिति ने सभी पधारे अतिथियों सहित उपस्थित लोगों का हार्दिक स्वागत करते हुए आभार प्रकट किया।