आज से पावन श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ हो गया। हर साल में इस पक्ष में लोग अपने दिवंगत पूर्वजों का स्मरण व तर्पण करते है। परन्तु कुछ लोग श्राद्ध का अर्थ और भाव को न जान कर लोग इसके अर्थ का अनर्थ कर देते हैं।
श्राद्ध भी जीवन की तरह केवल खाने पीने और सोने या वक्त कटाने का नाम नहीं है। श्राद्ध है अपने पूर्वजों के प्रति अपने समर्पण का, उनके सत कार्यों का अनुशरण करने का व उनसे हुई भूलो में सुधार कर उनके सपनों को साकार करने का है ।उनकी कीर्ति को रोशन करने का पर्व है श्राद्ध।
संसार का ऐसा आदर्श व परिष्कृत अन्य समाज नहीं है जो भारतीय समाज की तरह अपने पूर्वजों के स्मृति में श्राद्ध का एक विशेष पक्ष रखता है।
परिवार संस्था ही भारतीय समाज का विश्व को एक अनुपम आदर्श धरोहर व सौगात है।
परंतु सामान्य व अज्ञानी लोग इसकी मूल तत्व को ना जानते हुए केवल इसको तमाशा बनाते हैं। किसी भी पक्ष के सकारात्मक गुणों को ग्रहण करना चाहिए और उसमें उत्पन्न हुई विकृतियों को त्यागना चाहिए ।यही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म होता है। मनुष्य को अपने पूर्वजों को सत विचारों व सत कर्मों का ही तर्पण देना चाहिए। हमेशा दर्पण व श्राद्ध सतकर्मी से ही कराना चाहिए। खुद भी कर सकते हैं।