देहरादून को ही राजधानी बनाने की हठधर्मिता का त्रिवेंद्री दाव है गैरसैण ग्रीष्मकालीन राजधानी
गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन का झूनझूना नहीं अपितु स्थाई राजधानी चाहिए उतराखण्ड को
प्यारा उतराखण्ड डाट काम
8 जून को आखिरकार उत्तराखंड के राज्यपाल ने उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण बनाने की सरकारी अधिसूचना विधिवत जारी कर दी ।यह एक शासकीय प्रक्रिया है इसे जारी होना ही था । क्योंकि कुछ माह पहले, गैरसेंण में उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र हुआ था, तो उसमें त्रिवेंद्र सरकार ने पक्ष विपक्ष को हैरान करते हुए गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने का सदन में विधिवत प्रस्ताव लाकर पारित भी करा दिया था।विरोधी नहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश के बड़े नेता भी हैरान थे कि आखिर मुख्यमंत्री को अचानक गैरसैण के प्रति मोह कैसे हो गया?
लोगों का प्रश्न अनावश्यक नहीं था। क्योंकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत प्रायः गैरसैण का नाम सुनते ही भड़क जाते थे। उनको यह नाम पसंद ही नहीं था। वह अपने मन की बात छुपाते भी नहीं थे और तुरंत कहते थे गैरसैण उचित जगह है राजधानी के लिए।वहां पानी नहीं है । वहां रहने की व्यवस्था नहीं है ।क्यों बनायें गैरसैण राजधानी? उनके चेहरे का भाव उनकी बातों को ही बयां करता था। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की इन बातों से सुर मिलाने की होड़ उत्तराखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अजय भट्ट भी करते रहते।
कुछ साल पहले ही कर्णप्रयाग विधानसभा उपचुनाव में गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाने की हुँकार भरने वाले अजय भट्ट भी कर्णप्रयाग में जीत के बाद अपने ही वादे को नजरांदाज करते हुए गाहे-बगाहे यह कहते नजर आते थे कि गैरसैण विधानसभा भवन अवैध जगह पर हरीश रावत ने बनाई। ऐसा प्रतीत होता है कि वह भी गैरसैंण राजधानी बनाने की जनता की पुरजोर मांग को अपने विधानसभा क्षेत्र के राजनीति से ऊपर उठकर देखने की हिम्मत नहीं कर पाते थे।
गैरसेंण ग्रीष्मकालीन राजधानी की विधिवत सरकारी अधिसूचना जारी होने के बाद भले ही उत्तराखंड के लोग छला महसूस कर रहे है।।वहीं कुछ अंधभक्त इसे उतराखण्डियों की ऐतिहासिक विजय बता रहे हैं। बेगाने की शादी में अब्दुला दीवानों की तरह ये इसे बड़ी उपलब्धी बताकर जनता को भ्रमित कर रहे हैं वहीं आंदोलनकारी प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार द्वारा जनभावनाओं का सम्मान करते हुए गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने के बजाय इसे ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने को उत्तराखंड के साथ विश्वासघात,उत्तराखंड राज्य गठन की सपनों को निर्ममता से रौंदना व शहीदों की शहादत का अपमान करने वाला अलोकतांत्रिक कृत्य बता रहे हैं । उतराखण्ड की सरकार के इस कृत्य से छले हुए आंदोलनकारी एक बार फिर गैरसैण राजधानी बनाने के लिए मजबूत संकल्प ले रहे हैं। उत्तराखंड महिला मंच, उत्तराखंड पूर्व सैनिक व अर्धसैनिक संगठन, छात्र सहित सभी आंदोलनकारी संगठनों ने मुख्यमंत्री के इस कदम की कड़ी भत्र्सना कर पुन्न गैरसेंण को उतराखण्ड की राजधानी को बनाने पुरजोर मांग की।
पर हकीकत यह है कि जब प्रदेश की एकमात्र विधानसभा गैरसैंण के भराड़ीसेंण में निर्मित है गैरसैण विधानसभा के इस भवन में प्रदेश की ग्रीष्मकालीन शीतकालीन व बजट सत्र जैसी महत्वपूर्ण अधिवेशन संपन्न हो चुके हैं प्रदेश की जनता निरंतर इसके लिए आंदोलन कर रही है यह मांग आज की मांग नहीं अपितु राज्य गठन आंदोलन की प्रमुख मांग रही थी। इसके लिए बाबा मोहन उत्तराखंड व देव सिंह नेगी ने अपनी शहादत ने दी। यही नहीं गैर सेंण पर राज्य गठन से पूर्व ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित एक समिति ने वैज्ञानिक भूगर्भीय व जनता की भावना के अनुरूप गैरसैंण को ही सबसे उपयुक्त स्थान बताया था। फिर क्या कारण है कि प्रदेश की मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने जन भावनाओं को नजरअंदाज करके उस गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का एलान किया जिसका वह नाम तक सुनना पसंद नहीं करते थे?
इसका मूल कारण है कि त्रिवेंद्र रावत का देहरादून में ही राजधानी बनाने की हठधर्मिता व अंध मोह।इसके साथ एक और महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि देहरादून में राजधानी घोषित हो जाने के बाद जो नया विधानसभा भवन इत्यादि विशाल भवनों का निर्माण होंगे। हो सकता हैे उसी ताकतबर व प्रभावशाली लाॅबी ने भी देहरादून को राजधानी बनाने का दवाब भी गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने में निर्णायक साबित हुआ हो।
त्रिवेंद्र रावत सीधे सीधे देहरादून को राजधानी घोषित नहीं कर सकते थे। उनके कार्यकाल भी समापन की तरफ है। इसी को देखते हुए उन्होंने देहरादून को ही प्रदेश की राजधानी घोषित करने के लिए आनन-फानन में बजट सत्र को गैरसैंण में रखा और गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का विधिवत प्रस्ताव भी उत्तराखंड विधानसभा में पारित कराया ।क्योंकि कांग्रेस सहित भारतीय जनता पार्टी के अधिकांश विधायक पंचतारा सुविधाओं की मोह में देहरादून में ही राजधानी बनाए जाने की पक्षधर है । जन भावनाओं का सम्मान करना, लोकशाही का सम्मान करते हुए गैरसैंण में ही प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाना ना उनकी कभी नियत रही ना ही इसके लिए उनमें कभी कोई इच्छाशक्ति ही रही। देहरादून में ही सत्तासुख को बनाये रखने में ही वे अपनी पूरी ताकत लगाते है।
इसीलिए जनता की आंख में धूल झोंकने के लिए गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी का दांव चला गया। जिससे जनता गैरसेण नाम से खुश हो पर उनका असली काम देहरादून को राजधानी घोषित करने का था ।जो सीधा सीधा ना कहकर भी त्रिवेंद्र रावत ने अपना यह दाव सफल बनाया और जनता को यह अभी तक समझ में नहीं आया।
क्योंकि त्रिवेंद्र रावत और उनके रणनीतिकारों को इस बात का मालूम था कि अगर वह सीधे देहरादून को राजधानी घोषित करते तो उत्तराखंड में एक बड़ा आंदोलन भड़क जाता। उत्तराखंड में ही नहीं दिल्ली सहित देश के विभिन्न स्थानों पर रहने वाले उत्तराखंडी इस बात के लिए आंदोलित हो जाते हैं। जो त्रिवेंद्र रावत और भारतीय जनता पार्टी के लिए भी गले की हड्डी बनती । इसलिए एक षड्यंत्र के तहत गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की विधिवत घोषणा विधानसभा गैरसैण में पारित की गई । पर इसका सीधा सीधा मतलब यही होता था कि प्रदेश की राजधानी देहरादून हो गयी। जो काम बोलकर नहीं किया गया ,वह काम अप्रत्यक्ष रूप से ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के दाव को चलकर त्रिवेंद्र रावत ने जनता की आंखों में धूल झौंक कर दिया। इसी को देख कर ठगे आंदोलनकारी त्रिवेंद्र पर सीधा आरोप लगा रहे है कि उनकी नजर में ना उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं की कोई कीमत है। ना उनकी नजर में शहीदों की शहादत का कोई सम्मान है । हैरानी यह है कि लोकशाही मैं भी प्रदेश के हुक्मरान अपनी हठधर्मिता के लिए जन भावनाओं को रौंदने का यह अलोकतांत्रिक कृत्य करने से भी नहीं चूके।
दूसरी तरफ 8 जून को उतराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किये जाने की विधिवत अधिसूचना जारी करने को उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलनकारियों ने उतराखण्ड के साथ विश्वासघात बताया। उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन व उक्रांद के शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी, उतराखण्ड आंदोलन पुरोधा देवसिंह रावत, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता धीरेन्द्र प्रताव व राजधानी गैरसैंण अभियान के लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल,रघुवीर विष्ट, मनोज ध्यानी , प्रकाश थपलियाल व मदन भंडारी सहित तमाम आंदोलनकारियों ने एक स्वर में त्रिवेंद्र सरकार के इस कृत्य को उतराखण्ड गठन की जनांकांक्षाओं को रौंदने के साथ शहीदों की शहादत का घोर अपमान बताया। उतराखण्ड आंदोलनकारियों ने हर हाल में प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने तक संघर्ष करने का सामुहिक संकल्प भी लिया।