चीन की सह पर अपने मित्र अनन्य मित्र भारत को आंखे दिखाने की बड़ी कीमत चूकानी पडेगी नेपाल को
भारत व भारतीय संस्कृति के घोर विरोधियों के नेपाल की सत्ता में काबिज होने के कारण चीन के शिकंजे में जकडा नेपाल
तिब्बत की तरह नेपाल को चूकाना होगा भी चीन से गलबहियां करने का दण्ड
देवसिह रावत
जिस प्रकार नेपाल ने चीन की शह पर भारत को आंखे दिखाने का काम किया उससे भारत का भले ही कोई नुकसान न हो परन्तु चीन का जरूर हस्र तिब्बत की तरह हो जायेगा।
जिस प्रकार से तिब्बत ने कभी नेपाल के साथ अपने विवाद में कभी चीन की सहायता लेने की भूल की थी, चीन ने उसी मित्रता की आड़ में तिब्बत को हडप्प ने का कृत्य किया। अगर नेपाल की जनता व वहां के देशभक्त अभी नहीं जागे तो चीन तिब्बत की तरह नेपाल को पूरी तरह हडप्प लेगा । इसके साथ जिस प्रकार से चीन ने 1950-51 में पूरी तरह से तिब्बत को हडप्प कर तिब्बतियों की संस्कृति व परंपराओं को तहस नहस करके वहां पर अपना राज बलात थोप दिया था। अब अपनी इसी विस्तारवादी मनोवृति को आगे बढ़ाते हुए चीन ने नेपाल को भी मित्रता के मोहपाश रूपि शिकंजे में जकड़ लिया है। चीन द्वारा अपने प्यादों को चीन की सत्ता पर काबिज करने के बाद जिस प्रकार से वर्तमान सरकार ने इसी सप्ताह नेपाली संसद में भारतीय भूभाग पर अपना अधिकार जताते हुए भारत के प्रति गहरी धृणा प्रदर्शित की। उससे साफ हो गया कि नेपाल भारत के खिलाफ पूरी तरह से चीन का प्यादा बन गया है। खासकर नेपाली हुक्मरानों ने जिस प्रकार से नेपाली संसद में विश्वव्यापी कोरोना महामारी के बारे में कोरोना का भारतीय संस्करण को चीन व इटली से अधिक खतरनाक बताया। उससे साफ होगया कि नेपाल के हुक्मरानों के दिलो दिमाग में भारत के खिलाफ कितनी धृणा हैे और द्वेष है। इसका मूल कारण है इनकी सत्तालोलुपता से नेपाली जनमानस व भारत के बीच युगों से चली आ रही सांस्कृतिक एकता व आत्मीयता को पूरी तरह से तहस नहस कर देगे। यह विरासत जो युगो से भारत व नेपाल के बीच में थी उस पर चीन के प्यादे बने नेपाली हुक्मरान अपनी पदलोलुपता के खातिर नष्ट कर देंगे। इसका खमियाजा भारतीय संस्कृति जिसके ध्वजवाहक नेपाल व भारत दोनों है, को भुगतना पडेगा। भारत व नेपाल भले ही नाम के दो देश हों परन्तु दोनों की एक सांझी संस्कृति व विरासत है।
जैसे ही इस पखवाडे भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीयों के पावन तीर्थ मानसरोवर यात्रा के लिए उतराखण्ड प्रदेश के धारचूला से लिपुलेख तक नई मार्ग का उद्घाटन किया वेसे ही नेपाल में सत्तासीन भारत विरोधी व चीन के प्यादा बनी नेपाल की सरकार ने पुरजोर विरोध किया। यह विरोध की जड्डे कितनी खतरनाक थी इसका अहसास भारत सहित नेपाल की आम जनता को तब लगा जब इस सप्ताह नेपाल की संसद में नेपाल सरकार ने संसद में देश का नया नक्शा पारित कराकर भारतीय भू भाग लिंपियाधुरा, लिपुलेक और कालापानी को नेपाल का भू भाग बताते हुए भारत को इनको नेपाल को सोंपने को कहा। नेपाल की संसद में पारित इस नये नक्शे में नेपाली सीमा से लगे भारतीय क्षेत्र के 395 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को नेपाल का हिस्सा बताया गया। इस नक्शे में लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को तो दर्शाया ही गया। इसके साथ गुंजी, नाभी और कुटी गांवों को भी शामिल किया गया ।है। अगर मोटे तोर पर देखा जाय तो कालापानी के कुल 60 वर्ग किलोमीटर व लिंपियाधुरा के 335 किलोमीटर क्षेत्र पर नेपाल ने अपना हिस्सा बता कर भारत को स्तब्ध कर दिया। दो प्राचीन मित्रों के बीच विस्फोटक स्थित खडी करने वाली नेपाल संसद की इस बैठक को ऐतिहासिक बताते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली व राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने कहा कि लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी इलाके नेपाल के हैं और हम इसको भारत से वापस ले कर रहेंगे।
भारत ने नेपाल के इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए नेपाल से कड़ी आपत्ति प्रकट की।