कोरोना महामारी की आपात स्थिति में अपनी जान बचाने के लिए जहां हैं वहीं रहना जरुरी है।
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार
केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में फंसे लोगों को उनके गृह राज्यों में भेजने की हरि झंडी से स्वाभाविक ही लाखों लोगों को तत्काल राहत अनुभव हुआ होगा। कई राज्य सरकारों और केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए भी यह एक बड़ी समस्या से निजात पाने की हरि झंडी जैसी है। गृहमंत्रालय ने अपने आदेश में कहा है कि सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अपने यहां फंसे लोगों को उनके गृह राज्यों में भेजने के लिए एक मानक प्रॉटोकॉल तैयार करें। यह साफ है कि केन्द्र ने अपनी इच्छा से इसकी अनुमति नहीं दी है। जो स्थिति पैदा हो गई थी उसमें उसके पास एक ही विकल्प का था कि इसके लिए कोई रास्ता निकाला जाए। दूसरे राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में रहने वाले लोगों के समूहों ने जिस तरह ऑन लाइन अभियानों से लेकर, सोशल मीडिया का इस्तेामल करते हुए इसे मानवीय मुद्दा बना दिया था, कई जगहों पर सोशल डिसटेंसिंग तक तोड़कर बाहर निकल आ रहे थे, कहीं-कहीं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए धरना और अनशन तक करने लगे थे उसमें राज्यों में भी समस्याएं पैदा हो रहीं थी। कई राज्य सरकार केन्द्र से मांग कर रहे थे कि उन्हें अपने यहां से लोगों को बाहर निकालने या अपने लोगों को लाने की अनुमति दी जाए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने इसके लिए विशेष रेल की व्यवस्था की मांग की थी। इस पर राजनीति शुरु हो गई थी सो अलग। मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की वीडियो कॉन्फ्रेंस से आयोजित बैठक में भी यह मुद्दा उठा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके लिए एक स्पष्ट प्रोटोकॉल की मांग की। शायद सरकार ने लाकडाउन खत्म होने के बाद किसी अफरातफरी की स्थिति से बचने के इरादे से भी ऐसा किया हो।
बहरहाल, लोगों की वापसी हो रही हैओ इसक दिशानिर्देश और खाका हमारे सामने है। इसके आधार पर अलग अलग राज्यों मे फंसे मजदूर, छात्र, तीर्थयात्री, पर्यटक बसों व रेलों से घर लौट सकते हैं। वैसे इस अनुमति का अर्थ यह नहीं है कि कोई कहीं से निकलकर अपने मूल गांव या शहर चला जाएगा। यह काम राज्यों को करना है। अगर कहीं पर कोई समूह फंसा हुआ है और वह अपने मूल निवास स्थान जाना चाहता है तो राज्य सरकारें आपसी सहमति के साथ इसकी व्यवस्था कर सकतीं हैं। गृहमंत्रालय का जो दिशानिर्देश हमारे सामने है उसके अनुसार वापसी की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए राज्य नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करेंगे। वापस जाने वाले सभी लोगों का पंजीकरण करना होगा। नोडल अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वह फंसे हुए लोगों का रजिस्ट्रेशन कराएं। वापसी की प्रक्रिया शुरू होने के पहले सभी की स्क्रीनिंग की जाएगी और जिनमें कोरोना के लक्षण नहीं होंगे, सिर्फ उन्हें ही इजाजत की जाएगी। वापसी के बाद उनका एक बार फिर से स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। उन्हें 14 दिन तक क्वारेंटाइन में रहना होगा। गृहमंत्रालय ने इन सभी के मोबाइल में आरोग्य सेतु एप को डाउनलोड करने को कहा है ताकि क्वाररंटीन के दौरान उनपर नजर रखी जा सके। स्थानीय स्वास्थ्य कर्मी इन सभी के स्वास्थ्य की समय-समय पर जांच करते रहेंगे।पहले दिशानिर्देश मे केवल बस का उल्लेख किया गया था लेकिन राज्यों की मांग पर रेलों की अनुमति मिल गई।
देखा जाए तो गृहमंत्रालय ने अपने दिशानिर्देश में पूरी कोशिश की है जिससे एक दूसरे के संपर्क में आकर संक्रमित होने, किसी संक्रमित के वापस जाने या फिर वापस जाने के बाद स्वास्थ्यकर्मियों की नजर से दूर रहने की संभावना न रहे। राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में पहुंचने वाले लोगों का पूरा ब्यौरा रखा जाएगा तथा आरोग्य सेतु से उन पर नजर भी। बसों और रेलों को सैनिटाइज किया जाएगा। साथ ही इसमें बैठने के दौरान शारीरिक दूरी के नियम को सख्ती से अपनाए जाने की भी बात है जो संभव है। जहां से चलेंगे वहां और जहां पहुंचेंगे वहां अगर स्वास्थ्य विभाग की टीम उनकी जांच करेगी तो किसी के संक्रमित होकर परिवार और समाज में घुल मिल जाने की संभावना ही नहीं रहेगी। इसी तरह उनको 14 दिनों के लिए आइसोलेशन या कोरंटाइन करने से भी खतरा कम हो जाएगा। जरूरत पड़ी तो उन्हें अस्पतालों/स्वास्थ्य केंद्रों में भी भर्ती किया जा सकता है। उनकी समय-समय पर जांच होती रहेगी। लोगों को किस रास्ते से ले जाना है यह तक करने की जिम्मेवारी भी राज्य सरकारों की हैं। इसमें निश्चित रुप से यह ध्यान रखा जाएगा कि हॉटस्पॉट या संक्रमित क्षेत्रों से बचकर बसों को निकाला जाए। तो जोखिम से बचने के सारे संभव उपाय किए गए हैं।
यहां ध्यान रखने की बात है कि इसके पहले भी केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के बीच कई तरह की छूट का ऐलान किया है। संक्रमित क्षेत्रों को छोड़कर कपड़ा उद्योग, निर्माण, रत्न एवं आभूषण जैसे 15 बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में काम शुरू करने की छूट दी थी। कृषि कार्य, ग्रॉसरी की दुकानें खोलने, फल-सब्जी बेचने वाले, स्टेशनरी, इलेक्ट्रीशियन-मैकेनिक, प्लंबर आदि को भी छूट दी जा चुकी थी। अब इन छूटों का काफी विस्तार हो गया है। तो धीरे-धीरे कोरोना प्रकोप से बचने का विचार करते हुए आर्थिक और अन्य आवश्यक गतिविधियांें की आजादी मिली है। लेकिन इन छूटों और लोगों की एक राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों से दूसरी जगह ले जाने में मौलिक अंतर है। ध्यान रखिए, लाख मांगों के बावजूद बड़े बाजारों, मौल एवं मल्टीप्लेक्स आदि को अभी खोलने की अनुमति नहीं है। अगर किसी क्षेत्र में उद्योग, काश्तकारी या दूकानों की खोलने की अनुमति है और वहां कोई संक्रमित पाया जाता है तो उसे आसानी से मिनट में बंद कराया जा सकता है। किंतु एक बार देश के अलग-अलग राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों से लोगों का आवागमन आरंभ हो गया तो किसी विपरीत परिस्थिति में भी इनको अचानक पूरी तरह रोक देना कठिन होगा। हमने दिल्ली से महाराष्ट्र के मुंबई, ठाणे, पुणे, गुजरात, केरल तथा कर्नाटक के कई स्थानों पर उग्र भीड़ और प्रदर्शन देखे हैं। इसमें कई तरह के जोखिम और भी हैं। मसलन, जाते समय भारी समूह का या गंतव्य तक पहुंचने के बाद स्वास्थ्य परीक्षण ठीक प्रकार से हर जगह किया ही जाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। संभव है अनेक जगह केवल औपचारिकताएं पूरी की जाएं। दूसरे, घर पहुंचने के बाद स्वयं व्यक्ति परिवार में आइसोलेशन में 14 दिनों रहने के आत्मानुशासन का वचन निभा पाएगा इसमें भी संदेश की गुंजाइश है। सबसे बड़ी बात कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि किस राज्य से कितन लोग कहां जाएंगे। उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, झारखंड,पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश के ही कई करोड़ लोग काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में हैं। पढ़ाई के लिए तो है हीं। लौकडाउन के बीच इस तरह इतनी संख्या में लोगों को लाने-ले जाने का अनुभव हमें नहीं है।
कायदे से तो यह स्थिति पैदा ही नहीं होनी चाहिए थी। पर्यटन या तीर्थाटन या किसी वाणिज्यिक या पेशागत यात्रा पर आए फंसे लोगों की समस्याएं समझ आ सकतीं हैं। हालांकि कोविड 19 जैसे खतरनाक महामारी की आपात स्थिति में अपनी जान बचाने के लिए जहां हैं वहीं रहना जरुरी है। इसमें कष्ट और समस्याएं आ रहीं हैं लेकिन अपने और परिवार की जान जोखिम में डालने की बजाय इसे सहन करना ही बेहतर विकल्प होता। फिर भी इस श्रेणी के लोगों की व्यवस्था पर विचार किया जा सकता था। किंतु जो लोग कहीं लंबे समय से काम कर रहे हैं या छात्र हैं आरंभ से ही उनकी उचित व्यवस्था तथा काउंसेलिंग के द्वारा तस्वीर बदली जा सकती थी। कई राज्य सरकारें इसमें विफल रहीं हैं। बेसहारा लोग हजारों मील दूर पैदल निकल पड़े, कुछ त्रासदियां भी हुईं। राजस्थान के कोटा का उदाहरण लीजिए। वह कोचिंग का हब है। अरबों का कारोबार है। राज्य को खासा आमदनी होती है एवं हजारों को रोजगार मिलता है। यह सरकार की जिम्मेवारी थी कि कुछ अधिकारियों को छात्रों से संपर्क और संवाद में लगाएं, उनकी काउंसेलिंग करे तथा समस्याओं के समाधान की कोशिश। छात्र जो कुछ बता रहे हैं उनसे साफ है कि उनको उनके हवाले छोड़ दिया गया। इसी तरह दिल्ली या मुंबई में कामगारों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति तथा उनसे स्थानीय अधिकारियों के संपर्क के अभाव ने विकट स्थिति पैदा की। मुंबई के धारावी में अभी तक आवश्यक राशन सभी को उपलब्ध नहीं हो सका है। खाने तक के लाले हो जाएं और उस पर बीमारी का भय तो कौन रुकना चाहेगा। हालांकि ऐसे भी मामले देखने में आए जहां सारी व्यवस्थाओं के बावजूद लोगों ने रुकना पंसद नहीं किया। एक कारण केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा राहत एवं सहायता भी है। शहरों मंें जिसके पास न राशन कार्ड है, न पहचान पत्र और न बैंक खाता उनको लाभ नहीं मिल रहा। गांव या अपने मूल शहर जाते ही उनको सारे लाभ मिल जाते हैं। जो भी हो अब जब हरि झंडी मिल गई है तो उसको पूरी सतर्कता से अंजाम देने की कोशिश होनी चाहिए। पूरी जिम्मेवारी से यह काम करना होगा।