संक्रमण को रोकने के लिए चीन द्वारा कोरोना मृतकों का शवदाह करने के बाद इटली, ईरान व अमेरिका में भी उठने लगे दफनाने पर सवाल
नई दिल्ली(प्याउ)। कोरोना महामारी से जहां पूरे विश्व में 76000 से अधिक लोग मारे गये और 13लाख62 हजार से अधिक लोग इस बीमारी से पीड़ित है। संसार के 209 देशों में इस त्रासदी ने लोगों का जीना दुश्वार कर रखा है। सबसे परेशानी की बात यह है कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के साथ उसके परिजनों का भी जीना दुश्वार हो जाता है। पीड़ित के परिजनों को इस बीमारी से बचने के लिए जहां एकांतवाश करना पड़ता है वहीं अगर दुर्भाग्य से कोई इस बीमारी से काल कल्वित हो गया तो उसका शव का अंतिम संस्कार उसकी परंपराओं के अनुसार नहीं अपितु संक्रमण न फैलने के डर से आनन फानन में तय नियमों के अनुसार किया जाता है। सबसे परेशानी दुनिया में शव को दफनाने वाले बहुसंख्यक ईसाइ व मुस्लिम धर्मावलम्बियों के साथ हो रही है। लंका व भारत में एक एक ऐसे मामले देखने में आया जब दोनों देशों में कोरोना पीड़ित मुस्लिम मृतक व्यक्तियों को दफनाने के बजाय उनका दाह संस्कार किया गया। श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार को लेकर एक निर्देश जारी किये थे कि कोरोना से मरने वाले सभी लोगों के शवों का दाह संस्कार करना जरूरी है. जारी गाइडलाइन के मुताबिक शव को नहलाने या काफिन में रखने को लेकर भी पाबंदी लगाई गई थी। वहीं दूसरी तरफ भारत कें महाराष्ट्र से आया है, जहां कोरोना पीड़ित की मौत के बाद उसके शव को दफनाने से मना कर दिया गया। मुंबई के मलाड के कोरोना वायरस से मरने वाले 65 वर्षीय मुस्लिम शख्स के परिवार वालों ने आरोप लगाया कि उसके शव को कब्रिस्तान के न्यासियों ने दफनाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उसका अंतिम संस्कार हिन्दू श्मशान घाट पर किया गया। यह घटना बुधवार की बताई जा रही है। मालवानी के कलेक्टर परिसर में रहने वाले 65 वर्षीय कोरोना मरीज की मौत बुधवार तड़के जोगेश्वरी स्थित निगम द्वारा संचालित अस्पताल में हो गई थी, जिसके बाद शव को दफनाने के लिए मलाड के कब्रिस्तान ले जाया गया था।कब्रिस्तान के ट्रस्टियों ने नहीं दी दफन करने की इजाजत। मृतक के परिजन इस बात से बेहद आहत थे कि कब्रिस्तान वालों ने उसके परिजन का दफनाने की इजाजत नहीं दी। इसके बाद वहीं हिन्दू श्मसानघाट में उनका अंतिम संस्कार करना पडा। ईसाई धर्मगुरु ने मुंबई के सारे चर्चों के पादरियों से आह्वान किया है कि कोरोना की वजह से मरे लोगों की डेडबॉडी को दफनाने की बजाए जलवाएं। उन्होंने पादरियों से ईसाईयों के शवों को ना दफनाने की अपील की ।
ऐसी तरह ईरान में भी संक्रमण की आशंका से कोरोना पीड़ितों के शवों को कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए शवों को केल्सियम आक्साइड का छिडकाव करके दफनाया जाता है ताकि वह संक्रमण न फैला सके
वहीं चाइना डेली न्यूज के मुताबिक राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने शनिवार को यह बयान जारी किया। इसमें स्पष्ट निर्देश है कि इस जानलेवा वायरस के कारण मारे गए लोगों को दफनाने की जगह उन्हें जलाया जाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा गया कि मृत लोगों को बहुत दूर ले जाने से संक्रमण के बढ़ने और फैलने की आशंका है, इसलिए जहाँ जिनकी मृत्यु हुई है, उनका नजदीक ही अंतिम संस्कार (जला देना) किया जाना चाहिए। संसार में इस प्रकार की खबरे समाचार जगत में छायी रही कि वुहान शहर में 24 घंटे कोरोना से मरने वालों के शवों को जलाया जा रहा है। सरकार ने शवों को दफनाने और सार्वजनिक तौर पर अंतिम संस्कार पर रोक लगा दी है। यहां शमशान में काम करने वाले लोगों को बिना किसी ब्रेक के 24 घंटे शव जलाने का काम दिया गया है।
संसार भर में ऐसी धारणा है कि कोरोना महामारी यानी कोविड-19 से मारे गये मृतक के शव को दफनाने से भी संक्रमण फैलने की संभावनायें बनी रहती है। इसलिए कोरोना के मृतकों को दफनाने के बजाय उनका शव दहन करने को प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसा मानना है कि अगर शव को चिता या फिर इलेक्ट्रिक मशीन से जलाया जाता है तो उसका तापमान 700 से 1000 डिग्री के बीच रहता है। जिससे वायरस मर जाता है और उसके फैलने का खतरा नहीं रहता है।
इसी तथ्य को ही ध्यान में रख कर चीन ने इस बात का निर्णय लिया कि इस जानलेवा वायरस के कारण मारे गए लोगों को दफनाने की जगह उन्हें जलाया जाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा गया कि मृत लोगों को बहुत दूर ले जाने से संक्रमण के बढ़ने और फैलने की आशंका है, इसलिए जहाँ जिनकी मृत्यु हुई है, उनका नजदीक ही अंतिम संस्कार कर जला देना चाहिए। चीन में भी इस बीमारी से हजारों लोग मारे गये थे उनका अंतिम संस्कार भी युद्ध स्तर पर किया गया। इस प्रकार कोरोना महामारी से पीड़ित व्यक्ति की मरने पर भी परिजनों को बहुत ही असहज व दुखद स्थिति से गुजरना पड रहा है। इटली में असंख्य मृतकों के शव चर्चों में रखे गये है जिनका अंतिम संस्कार भी बहुत ही गमगीन परिस्थितियों में परिजनों की अनुपस्थिति में भी हो रहा है। अधिकांश मृतकों के परिजन एकांतवास में होते है या उनको बहुत ही सूक्ष्म रस्म से इसका अंतिम संस्कार करना पड़ता है।