देवकृष्ण थपलियाल
कोरोंना वाइरस से जहाॅ देश दशहत में है, वहीं उत्तराखण्ड राज्य का पहाडी इलाका आजकल कुछ ज्यादा ही भयभीत है, या यों कह लीजिए की यह राज्य ’कोरोंना वाइरस’ की दो गुनी मार झेल रहा है, कारण, उन प्रवासी ग्रामीणों का अचानक घर वापस लौंटना है, जिन्होंनें सालों पहलेे गाॅव को बाय-बाय कह दिया था या कभी-कभार ही जरूरत भर के लिए गाॅव/मुल्क के दर्शन करने आते थे ? मार्च के दूसरे पखवाडे तक पहाड (गढवाल क्षेत्र) लौटनें वालों की तादात 18,000 से अधिक है, (कुमाॅयू मंडल में यह आॅकडा दोगुणा भी हो सकता है,) जबकी इससे अधिक प्रवासी उत्तराखण्डी जगह-जगह रास्तों में फॅसे हुऐ हैं, (जिन्हें सरकार अपनें स्तर से उनके गंतव्य तक पहुॅचानें के लिए व्यवस्थाऐ जुटा रही है) जो देश के विभिन्न शहरों-प्रान्तों व विदेश से लौट रहे हैं। जनपद पौडी (गढवाल) 6,897 से अधिक लोग अपनें घर आये, रूद्रप्रयाग 1800, उत्तरकाशी में अभी तक 39 लोग विदेशों से लौटे वहीं करीब 2500 लोग देश के विभिन्न हिस्सों लौटे, सीमान्त जनपद चमोली से 1200 लोग देश तथा 57 लोग विश्व के अलग-अलग देशों लौंटे वहाॅ 19 लोंगों को क्वारंटीन पर रखा गया है।
अब ध्यान देंनें वाली बात ये है, समस्या उनके अपनें घर/गाॅवों की तरफ लौटनें/वापस आनें से नहीं है, बल्कि ये तो पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखण्ड वासियों के लिए आशा जगानें वाली कोशिश होती, परन्तु ऐंन वक्त पर जब कोरोना वाइरस से देश-दुनियाॅ खौफजदा है, इसके एक-दूसरे के सम्पर्क में आनें मात्र से फैलना तय है, तो फिर इतनें लोगों का अचानक महानगरों की भीड-भाड व व्यस्त सडकों/इलाकों को छोड घर (पहाड) लौटना कहाॅ तक विश्वसनीय है ? खासकर कोरोना वाइरस कोविड-19 जिसके बारे में कहा जा रहा है, की उससे संक्रमित व्यक्ति को भी तब पता चलता है, जब उसे पीडित हुऐ दो सप्ताह से अधिक का समय निकल जाता है, इस दौरान वह अपनीं तमाम गतिविधियों से अपनें चारों ओर संक्रमित कर चूका होता है। इस कारण स्थानीय लोंगों को बिन बुलाये संकट का सामना करना होगा ? इसकी आहट से पहाड व्याकुल है, तमाम शंका-आशंकाओं से डरे-सहमें लोंगों नें कई जगह उनकी घर वापसी तक का विरोध किया हैं, भले किसी के अपनें घर लौटनें दूसरे को क्या परेशानी होंनी चाहिए, परन्तु इस वायरस के फैलनें के भय से लोग आशंकित हैं, निश्चित रूप से यह पीडादायक क्षण है, ऐसी शान्तवादियों में जहाॅ की आव्वो-हव्वा स्वच्छ व शीतल है, अगर इसका वाइरस दूसरे लोंगों को ट्राॅसफर हो गया तो इसके परिणाम भयावह हो सकते है।
ग्रामीण इलाकों में इसके फैलनें की गति शहर-कस्बों से अधिक होंनें का अनुमान है, फिर पहाडी इलाकों में गाॅव-तोकों, कस्बों की बनावट ही इस तरह की होती है, की एक का दूसरे से सम्पर्क न चाहते भी होता है। एक गाॅव में तीस-चालीस परिवार से लेकर 400 तक परिवार हो सकते हैं, गाॅव के सभी मकान/दुकान/भवन एक-दूसरे से सटे होंनें, सम्पर्क मार्गों का सीमित होंना, यानीं सभी ग्रामीणों द्वारा उसी मार्ग का बार-बार प्रयोग करना, सार्वजनिक स्थलों, नौला-पंधेरों (पानीं के सार्वजनिक प्राकृतिक स्रोंत) पर एकत्रित होंना आम बात है। इसलिए दोंनों पक्षों को वक्त की नजाकत समझनीं चाहिए, लेकिन जो सूचनाऐं प्राप्त हो रहीं हैं, उससे संक्रमण शायद ही कोई बचा पायेगा ? जो लोग बाहर से अभी-अभी आये है, गाॅवों में ठीक उसी तरह सम्पर्क कर रहे हैं, जैसे पहले, लोंगों के साथ घूमना-फिरना, सहयोग करना सार्वजनिक स्थलों पर उनसे वार्तालाप करना, यहाॅ तक खाली समय में बच्चों के साथ क्रिकेट, जैसे खेलों से समय पास करना, निश्चित रूप से घातक और संक्रमण फैलानें में मददगार सिद्व होगा, स्थानीय ग्रामीण इसकी गंभीरता न समझें पर, बाहर से आये लोंगों को इसकी गंभीरता जरूर समझनीं चाहिए,
28 दिसम्बर 2019 को चीनी संक्रमित शख्स पहचाना गया तो 03 जनवरी 2020 को दुनियाॅ को इसका आभास हो गया था, 30 जनवरी 2020 को देश में (तीन मरीजों की केरल में सबसे पहले पहचान हुई थी ) में पहुॅचा था। मार्च के पहले हफ्ते में देश में यह कहर बनकर उभरा ! दो मार्च से 21 मार्च तक इसकी संख्या 5 से 321 और आज 1,000 तक पहुॅच गईं है। विदेशों से (चीन (जहाॅ इसकी उत्पत्ति हुई), अमेरिका, इटली, स्पेंन ईरान, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, लंदन, फ्रांस, जर्मनी) इससे मरनें वालों की संख्या निरंतर बढ रही है। फिर संसाधन विहीन इस राज्य में जहाॅ की स्वास्थ सेवाऐं भगवान के भरोसे हैं, में कितना असर करेगा इसका समझा जा सकता है ? स्वास्थ्य विभाग में कुल स्वीकृत पदो ंके हिसाब से 38.7 फीसदी पद रिक्त हैं, यानीं की डाॅक्टर सहित अन्य सहायक स्टाॅफ के 14,857 स्वीकृत पदों में से 5,750 पद रिक्त हैं, वहीं चिकित्सकों की बात की जाय तो 2,735 के सापेक्ष 2,096 डाॅक्टर ही उपलब्ध हैं, वरिष्ठ चिकित्साधिकारियों के मंजूर 426 पदों में से 150 करीब खाली चल रहें हैं, अस्पताल, दवाओं उपकरणों की हालात तो बदत्तर हैं, ऐसे में राज्य सरकार कुछ करना भी चाहे तो कैसे सम्भव होगा ? अतः इस वाइरस को रोकनें का सबसे बडा उपाय उसका बचाव ही है।
विपत्ति की इस घडी में घरों को लौट रहे लोंगों को किसी भी प्रकार से आक्षेपित करना न्यायोचित नहीं होगा बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से रास्ते में फॅसे ऐसे लोगों की सरकार उनके गंतव्य तक पहुॅचानें में उनकी मदद करे ! यद्यपि सरकार नें शासन स्तर से इसकी व्यवस्था बनाई है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं है, इसे और मजबूत किया जाना चाहिए ? सवाल तो ये उठता है, नये राज्य के निर्माण के पीछे जो मजबूत तर्क थे, उनमें ’पलायन’ और ’रोजगार’ सबसे प्रमुख कारण थे, आज के हालात स्पष्ट संकेत दे रहे हैं की सरकार इन ’’दोंनों लक्ष्यों’’ को हासिल करनें में पूरी तरह विफल रही है ? अधिकाॅश युवा जो देश-विदेश से लौट रहे हैं, ये दर्शाता है, की उन्हें यहाॅ ’रोजगार’ के अवसर नहीं मिले इसलिए वे अपनीं रोजगार व रोजी-रोटी के लिए अपनीं मातृ-भूमि को छोड इतनी दूर (विदेश) तक जा पहुॅचे । फिर इस पहाडी राज्य के निर्माण और उस संघर्ष का क्या होगा जो लोगों नें भूख-प्यास की परवाह किये बगैर किया था ? राज्य निर्माण के दो महत्वपूर्ण लक्ष्य अभी उपेक्षित हैं ? राज्य के भीतर कई ऐसे प्राकृतिक संसाधन हैं, जिनका सही नियोजन, उचित विजन व विकसित कर उन्हें रोजगार के साथ-साथ अनेक नये अवसरों को पैदा करनें की क्षमता विकसित की जानीं चाहिए, परन्तु सरकारों में बैठे लोंगों में ऐसे ’विजन’ का लगातार अभाव दिखा है, इसी कारण बडी संख्या में लोंगों नें पलायन की राह पकडी जिससे आज कोरोना वाइरस जैसे संक्रमित वाइरस से राज्यवासी को मौत के मुहानें पर खडा कर दिया ?
साल 2018 में पलायन और रोेजगार की पडताल को लेकर एक आयोग का गठन किया गया था जिसकी कमान राज्य के पूर्व आईएफएस अधिकारी डाॅ0 शरद सिंह नेंगी को सोंपीं गई थी, उन्होंनें अपनें अथक परिश्रम से तैयार की गईं राज्य की जो तस्वीर पेश की वह आॅख खोल देंनें वाली 05 मई 2018 की सांय को मुख्यमंत्री आवास में प्रस्तुत की गई रिर्पोट में ‘पलायन’ की सबसे बडी विवशता ’रोजी-रोटी’ शिक्षा तथा ’स्वास्थ सेवाऐ’ हैं जिन कारणों से युवाओं को अपनीं मातृभुमि को त्यागनें को विविश होंना पडा। रोजगार के कारण के कारण 50 फीसदी से अधिक युवाओं को घर छोडना पडा, 15 फीसदी लोंगों नें ’अच्छी शिक्षा’ तथा और 8 फीसदी लोगो नें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में राज्य से पलायन किया। पलायन करनें वालों में अधिकतर नौंजवान बेरांेजगार युवाओं का है, ग्रामीण विकास व पलायन आयोग की रिर्पोट कहती है की, 26 से 35 आयु वर्ग के 42 फीसदी, 35 से अधिक आयु सीमा के 29 फीसदी लो और 25 वर्ष से कम के 28 फीसदी नौजवानों नें नौकरी के लिए पहाड को छोडा।
अब सरकार और नीति-नियंताओं को इस उपजी हुई स्थिति पर गौर करना चाहिए कि, राज्य के नौजवानों को रोजगार के संसाधनों की उपलब्धता होती तो शायद आज स्थिति इतनीं गंभीर नहीं होती ?