उत्तराखंड देश

उतराखण्ड के साथ महिलाओं के भी घोर विरोधी है उतराखण्ड के 20 सालों के सभी मुख्यमंत्री व सत्तारूढ दल

मात्र नाच गाने के बजाय गैरसैंण राजधानी आदि हक हकूकों को साकार करने के लिए मनायें अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस

 

तीलू रौतेली, टिंचरी माई,गौरादेवी,  कमला पंत के महिला मंच से प्रेरणा लें उतराखण्डी समाज  व महिला संगठन
देवसिंह रावत
उतराखण्ड के साथ महिलाओं के घोर विरोधी है मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सहित उतराखण्ड के 20 सालों के सभी मुख्यमं्रत्री। जैसे आज 8 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैने विश्व की मातृशक्ति को नमन करने के लिए अपनी फेसबुक सहित इंटरनेटी सार्वजनिक मंचों पर नजर दौडाई तो मेरे पेज पर उतराखण्डी समाज में बड़े स्तर पर आज मनाये जा रहे महिला दिवस के आमंत्रणों व सूचनाओं पर बरबस नजर गयी। तो मेरे मन मस्तिष्क में उतराखण्ड में घास, पानी, लकड़ी, पलायन , शिक्षा चिकित्सा, रोजगार, जंगली पशुओं  व शराब आदि के दंश से सबसे व्यथित पीड़ित महिलाओं की दर्द भरी तस्वीरें क्रोंधने पर तुरंत यह विचार आया। सच में अगर उतराखण्ड के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सहित 20 सालों के सभी मुख्यमंत्रियों में एक प्रतिशत भी महिलाओं सहित उतराखण्ड से प्यार व अपनत्व रहता तो ये अविलम्ब प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बना देते। परन्तु इनको तो अपनी कुर्सी प्यारी है, अपने दल प्यारे है, अपनी तिजोरी व अपने परिवार ही प्यारे है। नहीं तो 20 सालों से देहरादून में अपने निहित स्वार्थों, अज्ञानता व पंचतारा सुविधाओं के मोह में अंधे न हो कर उतराखण्ड की राजधानी तुरंत गैरसैंण बनाते। उतराखण्ड राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, शहीदों की शहादत, आंदोलनकारियों का संघर्ष, प्रदेश का चहुमुखी विकास व देश की सुरक्षा के लिए बिना समय गंवाये शपथ गैरसैंण में तम्बू लगा कर वहीं से सरकार का संचालन करते। नेताओं व नौकरशाहों के लखनवी मोह के दंश से व्यथित जनता ने राव मुलायम के जघन्य दमनों को सह कर भी देश के हुक्मरानों को उतराखण्ड राज्य गठन करने के लिए मजबूर कर दिया। उस संघर्षो व बलिदानों को अपने सम्मान व विकास की रक्षा के लिए लखनवी मोह से पीडित जनता ने उतराखण्ड की राजधानी गैरसैंण बनाने का सर्वसम्मति से राज्य गठन जनांदोलन के पहले ही आत्मसात किया था, जिसे अभिभाजित उप्र सरकार ने भी अपनी सहमति प्रदान की। परन्तु उतराखण्ड गठन के बाद लखनवी मोह से ग्रसित नेताओं व नौकरशाहों ने जनभावनाओं व देश की सुरक्षा को रौंदते हुए पंचतारा सुविधाओं के मोह में अंधे हो कर गैरसैंण में राजधानी बनाने के बजाय देहरादून में ही कुण्डली मार कर प्रदेश को बर्बादी के गर्त में धकेल दिया। अगर प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनती तो उतराखण्ड की महिलाओं के  पिता,पति, भाई, पुत्र व पुत्री सहित अन्य परिजनों को रोजगार, शिक्षा व चिकित्सा के लिए पलायन कर देश प्रदेश के शहरों में नारकीय जीवन जीने के लिए अभिशापित नहीं होना पड़ता। महिलाओं को प्रसव आदि इलाज के अभाव में अकाल ही दम नहीं तोड़ना पड़ता, पर्वतीय जनपदों के जिला मुख्यालय व मण्डल मुख्यालय तक के चिकित्सकालय भी राज्य बनने के बाद दम सा तोड़ चूके है। उतराखण्ड के बीस सालों के हुक्मरानों की उदासीनता के कारण खेत, जंगल, जल, जमीन सभी जगह जंगली हिंसक पशुओं व माफियों के दंश से शांत वादियों के लिए विख्यात उतराखण्ड में महिलाओं का जीना दूश्वार हो गया है। इन सबका एक ही निदान है प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बना कर प्रदेश के नेताओं व नौकरशाहों के सर पर चढ़ा लखनवी व देहरादूनी भूत उतार कर उतराखण्ड की जनांकांक्षाओं के लिए समर्पित  कराया जाता। परन्तु इसी सप्ताह 4 मार्च को उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करके उतराखण्ड की जनता की आंखों में धूल झौंक कर देहरादून को प्रदेश की राजधानी घोषित करने का विश्वासघात करके उतराखण्ड के वर्तमान व भविष्य पर बज्रपात करने की हिमालयी भूल की। इसका सबसे बडा कुप्रभाव उतराखण्ड को जिंद्दा रखने वाली मातृशक्ति पर ही पडेगा। दलीय बंधुआ मजदूरों द्वारा ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाये जाने पर जश्न मनाने की विवशता तो समझ में आती है परन्तु उतराखण्ड के हक हकूकों के लिए समर्पित सामाजिक संगठनों व तथाकथित प्रबुद्ध लोगों द्वारा उनका स्वागत किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही है।
8 मार्च को देहरादून व दिल्ली सहित अनैक शहरों में उतराखण्डी संगठन बडे जोरशौर से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने जा रहा है। इसमें उतराखण्ड के स्वर सम्राट नरेन्द्र नेगी, देश में समाजसेवा के क्षेत्र में एक दशक से उभर कर सामने आयी प्रमुख शख्सियत भोले जी महाराज व माता मंगला के साथ उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत सहित प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का परचम लहरा कर सराहनीय उपस्थिति दर्ज कराने वाली अनैक महिला नेत्रियां भी चढ़ बढ़ कर भाग लेंगी। इन कार्यक्रमों में विभिन्न क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित करने के साथ कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ महिलाओं के हक हकूकों की रक्षा करने के संकल्प के साथ समापन होगा।
विगत दिनों जंतर मंतर पर मुझसे  दिल्ली उतराखण्डी समाज की प्रखर महिला नेत्री बबीता नेगी ने आग्रह किया कि आगामी 8 मार्च को दिल्ली के गढवाल भवन में आयोजित हो रहे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम में सम्मलित  होने के लिए पुरजोर आग्रह किया। वहीं कल ही 29 फरवरी को दिल्ली के गढवाल भवन में उतराखण्डी कलाकार संजू कुमार की श्रद्धांजलि समारोह में भाग लेते समय  अधिवक्ता संजय दरमोड़ा के नेतृत्व वाली नई सोच नई पहल दल के प्रमुख संजय चैहान ने देहरादून में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस समारोह में सम्मलित होने के लिए आमंत्रित किया। मैने दो टूक शब्दों में कहा कि अगर कोई भी उतराखण्डी ईमानदारी से महिला दिवस का आयोजन करता है तो उसको अपने कार्यक्रम में प्रतिभाशाली महिलाओं को सम्मान करने के साथ राजधानी गैरसैंण आदि उतराखण्ड के हक हकूकों को साकार करने के लिए समर्पित करना चाहिए। क्योंकि उतराखण्ड की महिलाओं का जन जीवन राजधानी गैरसैंण न बनाये जाने से बद से बदतर हो गया है। शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन आदि के अभाव के कारण उतराखण्डी जन जीवन काफी कष्टमय हो गया। उसका सबसे बड़ा असर महिलाओं के उपर पड़ रहा है। उतराखण्ड के हुक्मरानों की इस उदासीनता के कारण जहां खेत खलिहान जंगली जानवरों ने उजाड दी है। वहीं विद्यालय व चिकित्सालयों के दम तोड़ने से पलायन के दंश से सबसे अधिक पीड़ित महिलायें ही होती है। अगर एक वाक्य में कहा जाय तो उतराखण्ड को जिंदा उतराखण्डी महिलाओं ने ही रखा है। इसलिए हमें अपने तमाम सामाजिक आयोजनों को समाज के हक हकूकों को साकार करने के लिए समर्पित करना चाहिए। केवल नाच गाने मात्र से न उतराखण्ड के हितों की रक्षा होगी व न महिलाओं का दुख दर्द दूर होगा। जिस प्रकार से महिलाओं पर उतराखण्ड के बदहाली का सबसे अधिक कुप्रभाव पडा। जिस प्रकार से उतराखण्ड राज्य आंदोलन में महिला संगठनों ने कोशल्या डबराल व ऊषा नेगी के नेतृत्व वाली उतराखण्ड महिला संयुक्त संघर्ष समिति तथा  कमला पंत के नेतृत्व वाली उतराखण्ड महिला मंच ने ऐतिहासिक भूमिका निभा कर राज्य आंदोलन को मजबूती प्रदान की। आज जरूरत है बाजारवाद की आंधी में जिस प्रकार से हमारे जीवन के सभी महत्वपूर्ण दिवसों का अंतरराष्ट्रीय करण  कर दिया गया। हमें अपने सनातनी मूल्यों को मजबूती से आत्मसात करे रखना होगा। जिस प्रकार से उतराखण्ड समाज के मान सम्मान के साथ हक हकूकों की रक्षा के लिए तीलू रौतेली, टिंचरी माई, गौरा देवी व कमला पंत जैसी प्रतिभाओं से प्रेरणा लेकर अपने समाज के हक हकूकों की रक्षा करने के लिए अपने सभी आयोजनों को अपने समाज के हितों व सम्मान की रक्षा के लिए समर्पित करना चाहिए। आज जिस प्रकार से उतराखण्ड सरकार ने पावन देवभूमि में शराब को घर घर पंहुचाने के लिए  उसे सस्ता बेचने का काम किया। ऐसे समय में महिला संगठनों में शराब से बर्बाद हो रहे उतराखण्ड को बचाने के लिए अपने दायित्वों का निर्वाह करने के लिए टिंचरी माई से प्रेरणा लेनी चाहिए। परन्तु जब उतराखण्ड समाज के नाम पर आयोजित कार्यक्रमों में समाज के ज्वलंत समस्याओं के निदान के लिए अगर आयोजक दो शब्द भी प्रदेश के मुखिया या  प्रतिभाओं के समक्ष नहीं रख सकते तो ऐसे आयोजनों का क्या औचित्य। जिस प्रकार हमारे देश में ही नहीं पूरे विश्व में मुस्लिम समाज के तमाम आयोजनों में समाज के हक हकूकों व सम्मान की बातों को प्रमुखता से रखा जाता है। जनता को जागृत किया जाता है। इसी प्रकार उतराखण्ड समाज की तमाम सामाजिक संस्थाओं का सामाजिक दायित्व होता है कि वे अपने आयोजनों की सार्थकता व सफलता के लिए आयोजनों को प्रदेश के हितों से जोडे रखे। इससे बर्बादी की गर्त में धकेला जा रहा उतराखण्ड सहित देश की रक्षा बखुबी से होगी।
संजय शर्मा दरमोडा द्वारा देहरादून में 8 मार्च को आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम में भोले जी महाराज व माता मंगला के साथ उतराखण्ड के शीर्ष स्वर सम्राट नरेन्द्र नेगी व उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत सहित अनैक प्रतिष्ठित लोग भी सम्मलित होंगे। वहीं दिल्ली में कल्याणी सामाजिक संगठन की प्रमुखा बबीता नेगी द्वारा  दिल्ली के गढवाल भवन में आयोजित कार्यक्रम में लोक गायिका कल्पना चैहान व आशा नेगी, केन्द्रीय मंत्री रमेश पौखरियाल निशंक की सुपुत्री आरूषि निशंक आदि प्रतिष्ठित महिला नेत्रियों को आमंत्रित किया।
ऐसा नहीं कि केवल उतराखण्ड की महिलायें ही महिला दिवस मना रही है। यह दिवस पूरे विश्व में 1909 से मनाया जाता है। परन्तु दूर संचार क्रांति के बाद कुछ वर्षों से हर चीज का अंतरराष्ट्रीय करण हो गया। आज माता पिता का दिवस हो या प्यार दिवस यानी बेलेंन्टाइन दिवस, पृथ्वी दिवस हो या मित्रता दिवस, बाजादवाद की आंधी में सभी मानवीय रिश्तों का बाजारीकरण करने की होड़ सी लगी है। इसमें भले ही अंध बाजारवाद के कारण आपसी प्रेम अपनत्व भरी संवेदनायें पल पल में दम तोड़ रही है परन्तु दस्तावेजी, तस्वीरीकरण के साथ उत्सवधर्मिता बड़ी तेजी से फल फूल रही है।
उल्लेखनीय है कि अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
सबसे पहला दिवस, न्यूयॉर्क शहर में 1909 में एक समाजवादी राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया गया था। 1917 में सोवियत संघ ने इस दिन को एक राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया, और यह आसपास के अन्य देशों में फैल गया। इसे अब कई पूर्वी देशों में भी मनाया जाता है। अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले २८ फरवरी १९०९ को मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखिरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था, क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था। १९१७ में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। जार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखिरी इतवार २३ फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये ८ मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
मेरी धारणा है कि अधिकांश किसी भी प्रकार के समारोह आयोजित करने वाले संगठन ऐसे अतिथियों को आमंत्रित करते हैं जिनके आने से समारोह के आयोजन में सहयोग करे व जिनके आने से समारोह की गरिमा बढ़े। हमारे समाज में कार्यक्रम अधिकांश सांस्कृतिक कार्यक्रम ही आयोजित होते है। इनमें समाज की प्रतिभाओं के बजाय ऐसे थैलीशाहों को मंचासीन किया जाता है जिससे समारोह को साकार करने में मजबूती मिले।  ऐसे तमाम आयोजन करने वालों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। वे समाज को एकजूट करने का काम करते है। वेहतर होता ये सामाजिक संगठन देश प्रदेश के जनहितों को प्रमुखता से स्थान देकर देश प्रदेश को मजबूती प्रदान करे।

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